इरफ़ान |
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इंतख़ाब |
गौरव सोलंकी हिंदयुग्म का एक बड़ा नाम है....लगभग दो साल के हमारे रिश्ते में वो मुझसे उम्र की कई सीढियां आगे चढ़ गए हैं....हिंदयुग्म के कई सुख-दुख हमने साझा किए....आजकल उन्हें महान बनने की ज़िद है....सो, ब्लॉगिंग में वक्त ज़ाया नहीं करते...सिर्फ कहानियां लिखते हैं.....कहानियां ऐसी जैसे किसी कविता को हर सिरे से खींचकर लंबा कर दें और कहानी बन जाए....चूंकि, उनसे ज़रा पर्सनल ताल्लुक भी है, तो कह सकता हूं कि ज़िंदगी के दिनों को भी फिलहाल किसी नज़्म की तरह पढ़ रहे हैं जो उनकी समझ से बाहर हो...बैठक पर अब इस लंबी कहानी के ज़रिए कुछ हफ्तों तक नज़र आते रहेंगे...क्या पता, तब तक महान ही बन जाएं.... इत्तेफाक से आज गौरव का जन्मदिन भी है.....
भाग-1
भूखी गाली, भूखा घूंसा, भूखा सपना.....
जिस तरह ज़रूरी नहीं कि चाट पकौड़ियों की सब कहानियाँ करण-जौहरीय अंदाज़ में चाँदनी चौक की गलियों से ही शुरु की जाएँ या बच्चों की सब कहानियाँ ‘एक बार की बात है’ से ही शुरु की जाएँ या गरीबी की सब कहानियाँ किसानों से ही शुरु की जाएँ या कबूतरों की सब कहानियाँ प्रेम-पत्रों से ही शुरु की जाएँ, उसी तरह ज़रूरी नहीं कि सच्चे प्रेम की सब कहानियाँ सच से ही शुरु की जाएँ। इसीलिए मैंने रागिनी से झूठ बोला कि वही पहली लड़की है, जिससे मुझे प्यार हुआ है। ऐसा कहने से तुरंत पहले वह अपने विश्वासघाती प्रेमी की कहानी सुनाते सुनाते रो पड़ी थी। “तुम रोते हुए बहुत सुन्दर लगती हो”, यह कहने से मैंने अपने आपको किसी तरह रोक लिया था। फिर मैंने उसके लिए एक लैमन टी मँगवाई थी। मैंने सुन रखा था कि लड़कियों को खटाई पसन्द होती है, खाने में भी और रिश्तों में भी।
उसे कोई मिनर्वा टाकीज पसन्द था। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि यह इमारत दुनिया के किस कोने में है। वह देर तक उसके साथ वहाँ बिताए हुए ख़ूबसूरत लम्हे मुझे सुनाती रही। बीच में और एकाध बार मैंने दोहराया कि वही पहली लड़की है, जिससे मुझे प्यार हुआ है। मेरी आँखें उसकी गर्दन के आसपास कहीं रहीं, उसकी आँखें हवा में कहीं थीं। मैंने सुन रखा था कि लड़कियों के दिल का रास्ता उनकी गर्दन के थोड़ा नीचे से शुरु होता है। मैं उसी रास्ते पर चलना चाहता था। वैसे शायद सबके दिल का रास्ता एक ही जगह से शुरु होता होगा। सबका दिल भी एक ही जगह पर होता होगा। मैंने कभी किसी का दिल नहीं देखा था, लेकिन मैं फिर भी इस बात पर सौ प्रतिशत विश्वास करता था कि दिल सीने के अन्दर ही है। हम सब को इसी तरह आँखें मूँद कर विश्वास करना सिखाया गया था। हम सब मानते थे कि जो टीवी में दिखता है, अमेरिका सच में वैसा ही एक देश है। यह भी हो सकता है कि अमेरिका कहीं हो ही न और किसी फ़िल्म की शूटिंग के लिए कोई बड़ा सैट तैयार किया गया हो, जिसे अलग अलग एंगल से बार बार हमें दिखाया जाता रहा हो। जो लोग अमेरिका का कहकर यहाँ से जाते हों, उन्हें और कहीं ले जाकर कह दिया जाता हो कि यही अमेरिका है और फिर इस तरह एमिरलैंड अमेरिका बन गया हो। क्या ऐसा कोई वीडियो या तस्वीर दुनिया में है, जिसमें किसी देश के बाहर ‘अमेरिका’ का बोर्ड लगा दिखा हो? लेकिन टीवी में देखकर विश्वास कर लेना हमारी नसों में इतने गहरे तक पैठ गया था कि कुछ लोग अमेरिका न जा पाने के सदमे पर आत्महत्या भी कर लेते थे। ऐसे ही कुछ लोग प्रेम न मिलने पर भी मर जाते थे, चाहे प्रेम सिर्फ़ एक झूठी अवधारणा ही हो।
लेकिन डॉक्टर समझदार थे। कभी किसी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में नहीं लिखा गया कि अमुक व्यक्ति प्यार की कमी से मर गया। यदि दुनिया भर की आज तक की सब पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देखी जाएँ तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि दुनिया में हमेशा प्यार बहुतायत में रहा। लोग सिर्फ़ कैंसर, पीलिया, हृदयाघात और प्लेग से मरे।
वह एक पुराना शहर था जिसे अपने पुराने होने से उतना ही लगाव था जितना वहाँ की लड़कियों को अपने पुराने प्रेमियों से। रागिनी ने मुझे समझाया कि लड़के कभी प्यार को नहीं समझ सकते। मैंने सहमति में गर्दन हिलाई। गर्दन के थोड़ा नीचे मेरे दिल तक जाने वाला रास्ता भी उसके साथ हिला। फिर हम एक मन्दिर में गए, जिसके दरवाजे पर कुछ भूखे बच्चे बैठे हुए थे। अन्दर एक आलीशान हॉल में सजी सँवरी श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने वह सिर झुकाए कुछ बुदबुदाती रही। मैं इधर उधर देखता रहा। जब हम लौटे तो भूखे बच्चे भूखे ही बैठे थे। उनमें से एक ने दूसरे को एक भूखी गाली दी, जिस पर भड़ककर दूसरे ने पहले के पेट पर एक भूखा घूंसा मारा। और बच्चे भी लड़ाई में आ मिले। वहाँ भूखा झगड़ा होता रहा। अपने में खोई रागिनी ने यह सब नहीं देखा। मैंने जब उसे यह बताया तो उसने कहा कि भूख बहुत घिनौना सा शब्द है और कम से कम मन्दिर के सामने तो मुझे मर्यादित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। यह सुनकर मेरा एक भूखा सपना रोया। मैं हँस दिया।
वहीं पास में एक सफेद पानी की नदी थी जो दूध की नदी जैसी लगती थी। सर्दियों की रातों में जब उसका पानी जमने के नज़दीक पहुँचता होगा तो वह दही की नदी जैसी बन जाती होगी। उस नदी के ऊपर एक लकड़ी का पुल था जिस पर खड़े होकर लोग रिश्ते तोड़ते थे और दो अलग-अलग दिशाओं में मुड़ जाते थे। उस पुल का नाम रामनाथ पुल था। मुझे लगता था कि रामनाथ बहुत टूटा हुआ आदमी रहा होगा।
हम उस पुल के बिल्कुल बीच में थे कि एकाएक रागिनी रुककर खड़ी हो गई। रिश्ते टूटने वाला डर मुझे चीरता हुआ निकल गया। वह पुल के किनारे की रेलिंग पर झुकी हुई थी। फिर उसने कुछ पानी में फेंका, जो मुझे दिखा नहीं।
मैंने कहा- रागिनी, तुम ही दुनिया की एकमात्र ऐसी लड़की हो, जिससे प्यार किया जा सकता है।
वह गर्व से मुस्कुराई। वह मुस्कुराई तो मुझे अपने कहने के तरीके पर गर्व हुआ।
वह एक ख़ूबसूरत शाम थी, जिसमें एक अधनंगी पागल बुढ़िया पुल पर बैठकर ढोलक बजा रही थी और विवाह के गीत गा रही थी। कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ लड़के वहाँ तस्वीरें खिंचवा रहे थे। रागिनी ने अपना दुपट्टा हवा में उड़ा दिया जो सफेद पानी में जाकर गिरा। उसका ऐसा करना उन लड़कों ने अपने कैमरे में कैद कर लिया। चार लड़कों वाली फ़ोटो के बैकग्राउंड में दुपट्टा उड़ाती रागिनी।
उन चारों लड़कों को उससे प्यार हो गया था। वे जीवन भर वह तस्वीर देखकर उसे याद करते रहे। उन्होंने एक दूसरे को यह कभी नहीं बताया।
फिर रागिनी ने अपना मुँह मेरे कान के पास लाकर धीरे से कहा कि वह मुझे कुछ बताना चाहती है। उसके कहने से पहले ही मैंने आँखें बन्द कर लीं। उसने हाथ हवा में उठाकर कोई जादू किया और उसके हाथ में शादी का एक कार्ड आ गिरा। वह जादू जामुनी रंग का था जिस पर लिखा था, ‘रागिनी संग विजय’।
यह बहुत पहले ही किसी ने तय कर दिया था कि सब शादियों के निमंत्रण पत्र गणेश जी के चित्र से ही शुरु किए जाएँ। कहानी यहीं से आरंभ हुई....
(क्रमश:)
गौरव सोलंकी