विगत दिनों संसद में पेश किए गए 2009-10 के बजट को सत्तारुढ़ दल के नेताओं के अलावा अनेक उद्योगपतियों और कुछ अर्थशास्त्रियों ने आम आदमी के बजट की संज्ञा दी है। हर किसी ने इस बजट को आम आदमी का बजट कहा था। वित्त मंत्री प्रणब दा ने खूब वाहवाही बटोरी थी।
अब देखिए आम आदमी के इस बजट में उसके लिए क्या है?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि वित्त मंत्री ने आम आदमी के लिए आयकर छूट की सीमा बढ़ा दी है। इस सीमा को बढ़ाने की मांग हर वर्ष की जाती है।
वित्त मंत्री ने इस सीमा को बढ़ाया है और सरचार्ज भी समाप्त कर दिया है लेकिन इससे आम आदमी को जो राहत मिली है वह ऊंट के मुहं में जीरा ही है। जिस व्यक्ति की सालाना आय 5 लाख रुपए तक है उसे लगभग 1100 रुपए का लाभ मिला है, यानि हर माह 100 रुपए का लाभ भी नहीं।
सरकार ने `आम आदमी´ के लिए बड़ी कारों पर शुल्क घटा दिया है और एलसीडी पर शुल्क में कमी कर दी है। यह वास्तव में सराहनीय है।
आम आदमी को राहत का एक और नमूना: सरकार ने कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) को वापिस ले लिया है। इस टैक्स को गत वर्ष के बजट में लगाया गया था लेकिन व्यापारियों के विरोध कारण इसे लागू ही नहीं किया गया था। अब वित्त मंत्री ने इसे वापिस ही ले लिया था।
सीटीटी उन व्यापरियों या कारोबारियों पर लगना था जो प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंजों में जिंसों में वायदा कारोबार करते हैं। इन एक्सचेंजों में रोजाना कागजों में करोड़ों का कारोबार होता है और केवल चंद व्यापारियों को लाखों का मुनाफा होता है। सरकार को इस मद से कई हजार करोड़ रुपए प्राप्त हो सकते थे और वह भी बिना आम आदमी को छूए बिना।
ब्रांडेड ज्यूलरी से उत्पाद शुल्क समाप्त कर दिया गया है। जूतों और स्पोर्टस के बनाने के कच्चे माल पर आयात शुल्क हटाया जा रहा है।
इससे आम आदमी को कितना लाभ होगा यह हो आने वाले समय ही बताएगा।
वास्तव में वित्त मंत्री ने अनेक वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की है। उसका पता फिलहाल उपभोक्ता को नहीं चला है। बहरहाल, गैस स्टोव निर्माताओं ने अवश्य कहा है कि अब गैस से चूल्हे महंगे हो जाएंगे क्योंकि बजट में शुल्क बढ़ गया है।
देखिए कराधान की बातअब कुछ वर्ष पूर्व तक वित्त विधेयक के भाग-दो में वित्त मंत्री द्वारा लगाए गए प्रस्तावों का विवरण होता था। वास्तव में बजट का लेखा-जोखा कहा जा सकता है क्योंकि उसमें इस बात का खुलासा होता था कि कौन से प्रस्ताव से सरकार को कितना नुकसान होगा या फायदा होगा। मसलन यदि किसी वस्तु पर एक्साईज शुल्क कम किया है तो सरकार को कितना अधिक राजस्व प्राप्त होगा। यही स्थिति नए शुल्क या शुल्क में बढ़ोतरी के बारे में होती थी।
इससे तुरंत मालूम हो जाता था कि सरकार ने किसी मद पर कितना अधिक राजस्व जुटाने का प्रस्ताव रखा है। बहरहाल, अब इस चैप्टर को ही समाप्त कर दिया है।
इस बजट में वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा है कि अप्रत्यक्ष करों के प्रस्ताव से पूरे वर्ष में सरकार को 2000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा।
इसका सीधा अर्थ कि जनता पर 2000 करोड़ रुपए का कर बोझ लादा गया है। यह किन-किन आईटमों पर लादा गया है, यह समय बताएगा।
राजेश शर्मा
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6 बैठकबाजों का कहना है :
यह समय बताएगा। - to aap kya bata rahe ho. chup baidho na . aisa lekh koi bhee likh sakata hai. aape ke taraf se kya naya jod hai isame.
net se jankaree uthayee
aur
jod diya hindee me tranlate karake|
analyst banana he to analysis karana sikho.......
बजट की नई जानकारी मिली .कार्टून पसंद आया .मध्यम वर्ग ही हमेशा से पिसता है. .
मेरे दोस्त अनाम, आपकी टिप्पणी अच्छी लगी। आपने इसे पढ़ने की जहमत तो उठाई। आपकी जानकारी के लिए नेट ने जो जानकारी ली है वह समाचार पत्रों से ली है या वित्त मंत्रालय के आलेखों से फिर नेट या समाचार पत्रों ने भी क्या किया?
और समाचार पत्र जो प्रतिक्रिया प्रकाशित करते हैं उसे उद्योगों की संस्थाएं तैयार करती हैं।
मैंने जो जानकारी ली है वह बजट पेपरों से ली है। उसे तो मैंने अनुवाद भी नहीं किया है।
ख्ौर जब जब आपने टिप्पणी की है तो यह भी लिख देते की किसी वेबसाईट से कौन सी जानकारी ली है और किस समाचार पत्र से कौन सी? ताकि पाठक मेरे लेख की बजाए उन्हीं वेबसाईट को देख लेते या समाचार पत्र पढ़ लेते।
लेकिन कुल मिलाकर आने मेरे लेख के बारे में जो विश्लेषण किया है वह अच्छा लगा। कृपया सहयोग बनाएं रखें।
अच्छी टिप्पणी तो है मगर दाद किसको दें....आप तो छिपकर आए और चल दिए...बैठक में मुंह क्यों चुराते हैं भाई...यहां खुलकर बहस कीजिए ना...हमें अच्छा लगेगा....
आपने बजट का अच्छा विश्लेषण किया है. सरकार बजट को आम आदमी का बजट कह रही है. कितना आम आदमी का है और कितना नहीं यह आपने बखूबी बताया. लेकिन पिछले कुछ आलेखों के मुकाबले इसमें आंकडे कुछ कम दिखाई. लेकिन आलेख अच्छा लगा.
लगता है गुमनाम टिप्पणी देने वाले साहब को बजट से जोर का झटका लगाहै इसलिये बार-बार हो रही बहस से चिड़ जाते है.
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