Tuesday, August 11, 2009

मेरी अच्छी बहन लता किसी भी क्षण मर सकती थी

ब्लू फिल्म-भाग 6

ज़िंदगी ज़्यादा ख़ूबसूरत नहीं हो सकती थी। लता अस्वस्थ रहने लगी थी। वह नींद से अचानक चौंककर जग जाती और चिल्लाने लगती। कभी मेरा नाम लेकर, कभी माँ का, कभी बिल्ली, कभी दीवार, कभी छाया। शुरु में हमने सोचा कि कोई डरावना सपना देख लेती होगी। लेकिन फिर उसका पसीने में भीगकर चिल्लाते हुए जगना हर रात होने लगा तो हमें चिंता हुई। अब वह जागने के बाद भी डरी रहती और हममें से किसी को नहीं पहचानती। हम पास जाने की कोशिश करते तो डरकर और चीखती। माँ कमरे का दरवाज़ा कसकर बन्द कर देती थी कि कहीं पड़ोसी न सुन लें। अगर माँ उसके साथ किसी रात अकेली होती और वह चिल्लाती तो माँ उसे थामने से पहले दरवाज़े की ओर भागती। कई बार हड़बड़ी में दरवाज़ा जल्दी से बन्द नहीं होता था और पड़ोसी कुछ न कुछ सुन ही लेते थे। वैसे दरवाज़े इतने भी बढ़िया नहीं थे कि आवाज़ को रोक पाते। कभी-कभी तो वे हवा को भी नहीं रोक पाते थे। बंद दरवाज़े के बाहर खड़े होकर फूंक मारो तो उसका थोड़ा हिस्सा दूसरी तरफ भी महसूस होता था। यह वहम भी हो सकता था।
दस पन्द्रह मिनट बाद लता सामान्य हो जाती थी और भोलेपन से पूछती थी कि तुम सब आधी रात में बैठकर मुझे क्यों घूर रहे हो? कई दिन तक तो हम उसे कुछ नहीं बताते थे। मैं अपने कमरे में जाकर पड़ जाता। माँ उसे अपने पास खींचकर लाड़ से थपथपाकर सुलाती थी। हर रात हम अपने अपने बिस्तर पर पड़े नींद की नहीं, उसके जागने की प्रतीक्षा करते रहते थे। माँ पानी का एक गिलास और रामायण सिरहाने के पास मेज पर रखकर सोती थी। उसके सोने के बाद एक चाकू उसके तकिये के नीचे सरका देती थी, लेकिन सब बेअसर रहता था। हम हर दिन और चुप, और चिंतित, और निराश होते जाते थे।
एक रात उसके जागने के इंतज़ार में हम तीनों को ही नींद आ गई। पिताजी की आँख अचानक खुली तो उन्होंने लता के पलंग की ओर देखा। वह वहाँ नहीं थी। कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था। वे हड़बड़ाकर उठे और माँ को उठाया। माँ ने मुझे आवाज़ लगाई। तब तक पिताजी आँगन में पहुँच चुके थे। मैं और माँ दौड़कर उनके पीछे पहुँचे तो देखा कि वह मेन गेट वाली दीवार पर चढ़कर बिल्कुल सीधी खड़ी है। गली की ट्यूबलाइट की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। वह एकटक हमारी ओर देख रही थी। हम भीतर तक काँप गए। वह शुद्ध डर था, जो एक बार महसूस हो जाने के बाद जीवन भर सुख-दुख के हर क्षण में याद रहता है। लता की फ़िक्र भी उस डर के कई क्षण बाद हमारे ज़ेहन में आई।
वह दीवार करीब बारह फ़ुट ऊँची होगी। वह उस तरफ गिरती तो पक्के चबूतरे पर गिरती और इस तरफ़ गिरती तो पक्की ईंटों के फ़र्श पर। पिताजी दौड़कर लोहे के दरवाज़े पर से चढ़ने की कोशिश करने लगे। माँ दीवार के सहारे उसके बिल्कुल नीचे जाकर बाँहें फैलाकर खड़ी हो गई और मुझे कुछ भी नहीं सूझा। मैं बुत बना उसे देखता रहा। वह उस लता की तरह नहीं थी, जो मुझे हर साल राखी बाँधती थी और पैसे माँगती थी। उसकी दृष्टि का आत्मविश्वास मेरे सोने वाले कमरे में टँगी तस्वीर में कलेक्टर के हाथों ईनाम लेती लता से कई गुना अधिक था। वह बहुत भयंकर थी और बेबस भी। मैं आकर अपने बिस्तर पर लेट गया। मुझे पहली बार इतना हीन होने का अहसास हुआ। मैं जैसे कुछ भी नहीं था। मेरी अच्छी बहन लता किसी भी क्षण मर सकती थी। मुझे उसे दीवार से उतारकर अन्दर लाने में माँ-पिताजी की मदद करनी चाहिए थी, लेकिन मैं वह भी नहीं कर पाया। मैं निष्क्रियता की हद तक उदास था। यदि उस रात मेरी मौत का फ़रमान मुझे सुनाया जाता तो मैं उससे शत-प्रतिशत सहमत होता।
जब माँ और पिताजी उसे अन्दर लेकर आए तो मुझे रागिनी की बहुत याद आ रही थी। मैं उसी समय उससे बात करना चाहता था। फ़ोन मेरे कमरे में होता तो शायद कर भी लेता। लेकिन उसने अपना नम्बर मुझे नहीं दिया था। मैं पहले शिल्पा के घर तीन बार घंटी बजाता और यदि वह जग रही होती और इशारा समझ जाती तो रागिनी को फ़ोन करके मुझसे बात करने के लिए कहती। मगर इतनी रात को यह सब होना बहुत मुश्किल था और वह भी तब, जब फ़ोन दूसरे कमरे में रखा हो।
माँ रोती जाती थी, लता बेहोश थी, पिताजी उसका माथा मल रहे थे और मैं एक लड़की को याद कर रहा था, जो अपने पति के बिस्तर पर आराम से सो रही होगी। मैं यह भी सोच रहा था कि किसका हाथ कहाँ होगा और किसके पैर कहाँ? लेकिन मैं बुरा नहीं था, मज़बूर था। बहुत कमज़ोर भी।
आख़िर मैं उठकर दूसरे कमरे में गया। बल्ब की पीली रोशनी में पिताजी और भी बूढ़े नज़र आ रहे थे। लता के माथे पर तेजी से चलती उनकी उंगलियाँ कहीं ठहरकर रो लेना चाहती थीं। मेरे मन में आया कि जब तक नई सरकार नहीं आती, मुझे किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा लेना चाहिए। मैंने पिताजी से लेट जाने के लिए कहा। उन्होंने रुककर मेरी ओर देखा और उठकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट गए। मैं लता के सिरहाने बैठकर उसका सिर दबाता रहा। माँ रोती रही।

गौरव सोलंकी
कहानी जारी है...

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4 बैठकबाजों का कहना है :

कुश का कहना है कि -

कहानी दिलचस्प मोड़ की ओर मुड गयी है.. आगे पढना और भी रोमांचक होगा..

निर्मला कपिला का कहना है कि -

रोचक और मार्मिक अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा आभार्

Manju Gupta का कहना है कि -

बीमार लता जल्दी ठीक हो जाए तो कहानी शायद सुखांत हो जाए . आज की लता की घटना मेरी सहली से मिलती -जुलती है .बधाई .

Shamikh Faraz का कहना है कि -

कहानी में लगातार मोड़ आ रहे हैं. अगले भाग का बेसब्री से इन्तेज़ार है.

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