बहरहाल, इस बीच मैं दिनांक 24 अप्रैल को जनकपुरी मेट्रो स्टेशन के नज़दीक बने 'एस के बैंकेट हाल' में आयोजित भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद का भाषण सुनने चला गया। रविशंकर प्रसाद वाजपेयी के नेतृत्त्व वाली सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं तथा भाजपा की सांप्रदायिक छवि के तुलना में एक 'सेकुलर' नेता व सुलझी हुई सभ्य शख्सियत माने जाते हैं। पर जैसा कि हर चुनाव में होता है, इस बार भी भाजपा का प्रचार नकारात्मक वोटों पर ही आधारित है। कांग्रेस के विफलताओं की रोटियां सेंक कर खाना भाजपा का बहुत पुराना खेल है। रविशंकर प्रसाद सुप्रीम कोर्ट के एक जाने माने वकील भी हैं तथा भाषण बहुत प्रभावशाली करते हैं। उन्होंने सब से पहले अपने समय की एन.डी.ए सरकार की एक बड़ी उपलब्धि यही मानी कि सन 98 में परमाणु परीक्षण कर के एन.डी.ए सरकार ने भारत को अग्रणी देशों में ला खड़ा किया। परन्तु जब मैंने भाषण के अंत में मंच पर जा कर यह प्रश्न किया कि परमाणु शक्ति होने के कारण भारत पाकिस्तान पर हमला ही नहीं कर पा रहा, वरना इतने आतंकवादी हमलों के बाद भारत के पास यही विकल्प है कि पाकिस्तान पर हमला कर के उन के आतंकवादी अड्डे नेस्तनाबूद कर दे। पर रवि शंकर प्रसाद यह मानने को तैयार नहीं हैं। बल्कि रोचक बात यह है कि उन्होंने पाकिस्तान को सीधा करने का वही तरीका बताया जो इस समय कांग्रेस को अपनाना पड़ रहा है। वे कहते हैं कि भारत के पास कई और तरीके हैं, जैसे कि सख्ती। और दुनिया के कई देश भारत की बात मानते हैं. यानी राजनयिक (diplomatic) तरीका। मुझे इस से भी अधिक रोचक बात यह लगती है कि कांग्रेस और भाजपा की आर्थिक व विदेशी नीतियां एक दूसरे के फोटो-कॉपी ही हैं। कुछ दिन पहले तो रजत शर्मा ने 'आप की अदालत' में भाजपा नेता अरुण जेटली से पूछ ही लिया कि इतने ढेरों दलों के खिचडी से तो बेहतर है कि कांग्रेस और भाजपा मिल-जुल कर सरकार बनाएं। अरुण जेटली ने वही जवाब दिया जिसकी उम्मीद थी, हालांकि उपस्थित दर्शक-गण ने रजत के सवाल पर भरपूर ठहाका लगाया था। जेटली कहते हैं कि समय के साथ राजनैतिक ध्रुवीकरण भी हो चुका है। अतः भाजपा और कांग्रेस का मिलना तो अब दूर की बात ही रही। रविशंकर प्रसाद ने अपने भाषण में मंहगाई, आतंकवाद, काला धन, अफज़ल गुरू, कांधार विमान-अपहरण, बंगलादेशी घुसपैठिये, कसाब के बजाय दूसरे मृत आतंकवादी का डी.एन.ए टेस्ट पाकिस्तान भेज देना, सन 84 की सिख हत्याएं, हिंदू- मुस्लिम प्रश्न... इन सब जाने पहचाने प्रश्नों के चिरपरिचित लीक पर अपना प्रभावशाली भाषण रखा। हिंदू-मुस्लिम प्रश्न पर भाजपा की गिरगिट बाज़ी का प्रदर्शन उन्हें भी करना पड़ा शायद। वोटों के समय भाजपा एक नकली मुखौटा चढ़ाती है कि वह मुसलमानों की दुश्मन नहीं है। पर ज़रूरत पड़ने पर जैसा गुजरात में हुआ, नरसंहार अपनी आंखों से होता देखते रहने में कोई संकोच नहीं करती। न ही वह उड़ीसा की शर्मनाक ईसाई हत्याओं का कोई जवाब देती है। रोचक बात यह कि रविशंकर प्रसाद जी का कहना है कि उन की पार्टी मौलाना आजाद, परम वीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद, इरफान पठान व सानिया मिर्जा पर गर्व करती है। वास्तविकता यह है कि मौलाना आजाद की छवि पुराने जनसंघी नेता चुन-चुन कर बिगाड़ते रहे और अब्दुल हमीद के विषय में उन का प्रचार यही था कि सन 65 की लड़ाई के बाद दिखावे के तौर पर एक मुस्लिम को भी परम वीर चक्र दे दिया गया। बैंकेट हॉल में जहाँ शादी के बाद दूल्हा दुल्हन बैठते हैं, ऐसे एक हॉल में लगभग 600 लोग थे जिन में कई तो कार्यकर्त्ता थे। पर रविशंकर प्रसाद अपने प्रस्तुतीकरण में काफ़ी सशक्त रहे. वोटों के दिन जनता क्या करती है, यह जनता के गत जनता जाने।
इधर दिनांक 29 अप्रैल को मैं अपने घर बैठा चंगा भला फिल्मी गाने सुन रहा था कि नीचे कार्यकर्ताओं का शोर सा सुनाई दिया. 'भारतीय जनता युवा मोर्चा' के कार्यकर्ता एक वैन में प्रचार को निकल पड़े थे और उनके साथ थी यहाँ रमेशनगर की निगम पार्षद उषा मेहता, जो यहाँ की एक लोकप्रिय नेता हैं, अपनी सुंदर वाणी और हावभाव के लिए प्रसिद्ध। उन से मैंने पूछा कि नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र को ले कर उन की क्या योजनाएं हैं तो उन्होंने भी मंहगाई की बात कर के यह कहा कि नई दिल्ली में अजय माकन के होते जो तबाही हुई है, उस से दिल्ली को बचाना हमारा ध्येय है. हर बार की तरह कार्यकर्ताओं में उत्साह और धूमधड़ाका था पर आडवानी और मनमोहन सिंह की तुलना में आख़िर इस चुनाव का ऊँट किस करवट बैठता है, यह जानने के लिए सब को इंतज़ार है चुनाव ख़त्म होने का और 16 मई को परिणाम आने शुरू होने का।
रविशंकर प्रसाद से सवाल करते प्रेम | निगम पार्षद उषा मेहता का जवाब |
---|
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 बैठकबाजों का कहना है :
आखिर हम चाहते क्या हैं? क्या इस देश में केवल साम्प्रदायिकता के नाम पर ही बहस होती रहे? या केवल एक सम्प्रदाय अपने वोटों की ताकत ही दिखाते रहे और भारत के विकास की बात बेमानी हो जाए? आज आवश्यकता है एक सुदृढ़ सरकार की जो देश को दुनिया में अग्रणी बना सके। इसके लिए यदि भाजपा और कांग्रेस को एक मंच पर आना पड़े तो देश को उन्हें मजबूर करना चाहिए नहीं तो छिटपुटे नेता इस देश को तबाह करते रहेंगे।
वैचरिक रूप से कांग्रेस और भारतीय जनता दल में कोइ अंतर नहीं है. देश हित को सर्वोपरि मानें या जन-आदेश की बात करें इन दोनों दलों को एक साथ सरकार बनाना चाहिय. जनता ने गत चुनाव में यही कहा और अभी भी यही कह रही है. साम्यवादी और समाजवादी एक साथ हों तो वैचारिक ध्रुवीकरण होकर स्थनीय दल समाप्त होने लगेंगे.
वैसे भाजपा के पास दिल्ली के लिए कोई ख़ास मुद्दा नहीं है। आम ज़रूरत की चीजों का महँगा होना एक राष्ट्रीय मुद्दा है जिसे सभी दलों ने इग्नोर किया है।
ऐसे में बेहतर होगा कि सरकार उपभोक्ता के हितों के साथ-साथ तिलहन उत्पादक किसानों की हितों का भी ध्यान करे। अन्यथा कुछ वर्षों बाद खाद्य तेल उद्योग केवल इतिहास बन कर रह सकता है।-इति
आजकल नेता जनहित की बात तब की करते हैं जब उनका स्वहित हो। अन्यथा नहीं।
जहां तक मुद्दों का प्रश्न है, महंगाई एक ज्वलंत प्रश्न है लेकिन इसकी परवाह ही किसे है। पिछले 5 वर्षों में हर परिवार का रसोई का बिल 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुका है लेकिन किसी को कोई चिंता नहीं। हर कोई अपने काम में मस्त है। कोई समय था जब महंगाई विरोध में धरने और प्रदर्शन होते थे लेकिन अब न तो जनता के पास समय है और न ही नेताओं की कोई दिलचस्पी है।
किसी ने ठीक ही कहा है:
कौम के गम में खाते हैं डिनर हुक्काम के साथ,
लीडर को गम बहुत है मगर आराम के साथ।
आजकल नेता जनहित की बात तब की करते हैं जब उनका स्वहित हो। अन्यथा नहीं।
जहां तक मुद्दों का प्रश्न है, महंगाई एक ज्वलंत प्रश्न है लेकिन इसकी परवाह ही किसे है। पिछले 5 वर्षों में हर परिवार का रसोई का बिल 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुका है लेकिन किसी को कोई चिंता नहीं। हर कोई अपने काम में मस्त है। कोई समय था जब महंगाई विरोध में धरने और प्रदर्शन होते थे लेकिन अब न तो जनता के पास समय है और न ही नेताओं की कोई दिलचस्पी है।
किसी ने ठीक ही कहा है:
कौम के गम में खाते हैं डिनर हुक्काम के साथ,
लीडर को गम बहुत है मगर आराम के साथ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)