बैठक के लिए ये बातचीत प्रेमचंद सहजवाला ने की है...विभूतिनारायण राय के विवादस्पद बयान के बाद उन्होंने कुछ साहित्य से जुड़ी कुछ हस्तियों से इस विषय पर प्रतिक्रिया मांगी है...ये लेख उन्हीं प्रतिक्रियाओं का निचोड़ है साथ ही अंग्रेज़ी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस का संपादकीय भी लगा रहे हैं जो इसी मुद्दे पर छपा है
‘लेखिकाओं में होड़ लगी है यह साबित करने की कि उनसे बड़ी छिनाल कोई नहीं है’ यह बयान है अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय का जो उन्होंने ‘ज्ञानोदय’ पत्रिका को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा. उनकी इस बात पर साहित्य जगत में तो मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई ही है, पर मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल को इस बात पर सर्वाधिक आक्रोश हुआ लगता है. कपिल सिब्बल ने तुरंत उस पत्रिका के अंक की मांग की जिसमें यह साक्षात्कार छपा है और कहा है कि यह सब अस्वीकार्य बात है. यह महिलाओं का अपमान है और विशेषकर लेखिका वर्ग का भी. कपिल सिब्बल ने कहा है कि इतने बड़े ओहदे पर बैठे किसी व्यक्ति की ओर से यह बयान उस व्यक्ति की मानसिक बुनावट की ओर संकेत करता है जो पूर्णतः उस ओहदे की गरिमा के विरुद्ध है’.
आज प्रातः के समाचार-पत्रों में यह खबर पढ़ कर मेरा मन भी स्वाभाविक रूप से विचलित हो गया और मैंने सब से पहले स्वयं विभूतिनारायण राय जी को फोन मिलाया. वे उस समय दिल्ली में थे और मैंने जब उन से इस विषय पर विचार जानने चाहे तो उन्होंने कहा कि उन्होंने दरअसल ‘बेवफाई’ शब्द का उपयोग किया है. मंत्री महोदय ने ‘छिनाल’ शब्द का अर्थ वेश्या लगाया है जो कि गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि जहाँ वे रहते हैं वहां तो यह शब्द पुरुषों के लिए इस्तेमाल होता है. परन्तु मुझे लगा कि इस विषय पर लेखक जगत से भी प्रतिक्रिया जानना ज़रूरी है क्यों कि उक्त बयान से तात्पर्य अगर ‘वेश्या’ से नहीं भी है और ‘बेवफाई’ से है तो भी क्या यह मान लिया जाए कि लेखिकाएं ‘छिनाल’ या ‘बेवफा’ होती हैं? इस विषय पर पहली और गुस्से भरी प्रतिक्रिया मुझे सुप्रसिद्ध कवयित्री पुष्पा राही की मिली जिन्होंने फोन पर बात सुनते ही कहा कि लेखिकाएं क्या करती हैं, इसे ले कर विभूति नारायण राय क्यों परेशान हैं? और फिर ‘बेवफाई’ का संबंध तो हमारे समाज में पुरुषों से अधिक है. फिर इतनी बड़ी कुर्सी पर बैठ कर क्या लेखिकाओं के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग अच्छा लगता है? पुष्पा जी खासी गुस्से में थी और बोली कि उन्हें तो अपने शब्दों के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए. मेरे यह बताने पर कि विभूति नारायण राय ने कहा है कि इस शब्द का सर्वाधिक उपयोग तो प्रेमचंद ने किया है, पुष्पा जी ने कहा कि आप (विभूति नारायण राय) कोई प्रेमचंद तो नहीं हैं? वे पहले प्रेमचंद का साहित्य तो पढ़ें और समझें कि प्रेमचंद ने किस सन्दर्भ में इस शब्द का उपयोग किया है. लेकिन इस विषय पर जब मेरी बात कवयित्री अर्चना त्रिपाठी से हुई तब उन्होंने ज़ोर शोर से विभूति नारायण राय का पक्ष लेते हुए कहा कि रमणिका गुप्ता जैसी कुछ लेखिकाओं ने तो अपनी आत्मकथाओं में यह तक लिखा है कि उन्होंने अपने जीवन में कितने लड़कों को बिगाड़ा है, इस का कुछ हिसाब तक उनके पास नहीं है. रमणिका ने तो यह भी लिखा है कि मेरा जो बेटा है वह किसी कामरेड का बेटा है. उन्होंने मैत्रेयी पुष्पा का सन्दर्भ देते हुए कहा कि अपने उपन्यासों में वे नारी-पुरुष सम्भोग का इतना खुला वर्णन करती हैं कि जिस की कोई ज़रूरत तक नहीं. मृदुला गर्ग के उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ पर भी उनकी वही प्रतिक्रिया है कि कुछ पन्नों में ‘काश मैं एक उरोज होती...’ जैसे अनुच्छेदों की ज़रूरत तक नहीं. अर्चना त्रिपाठी ने कहा कि जो कुछ विभूति नारायण राय ने कहा है वही बात डॉ. धर्मवीर अपनी पुस्तक ‘तीन द्विज हिंदू स्त्री-लिंगों का चिंतन’ में कह चुके हैं. इस पुस्तक में उन्होंने मैत्रेयी पुष्पा, प्रभा खेतान व रमणिका गुप्ता के लेखन पर प्रश्न उठाते हुए कहा है कि क्या लेखिकाएं सेक्स के खुले वर्णन के अलावा लिख ही नहीं सकती? और क्या एकनिष्ठ्त्ता व चरित्र की समाज में कोई महत्ता ही नहीं रह गई है?
प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी ने भी यह तो माना कहा कि जो कुछ विभूति नारायण राय ने कहा है उस में कुछ हद तक सच्चाई है, परन्तु विभूति नारायण राय जी को अपनी बात कहते समय भाषा की गरिमा का भी ख्याल रखना चाहिए था. परन्तु पुरुष साहित्यकारों में से अशोक चक्रधर जी ने फोन पर बहुत कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि महिलाएं हमारे समाज का बेहद सम्मानजनक् हिस्सा हैं और इतनी ज़िम्मेदार कुर्सी पर बैठ कर ऐसी भाषा उपयोग करने के वे घोर विरोधी हैं.
इस विषय पर जबकि इतना बड़ा बवाल खड़ा होने पर गंगाप्रसाद विमल जी को सर्वाधिक आक्रोश है और उन्होंने कहा कि आज लेखक के लिए स्वतंत्रता से कुछ भी कहने का कोई ‘स्पेस’ नहीं बचा है. विभूति नारायण राय ने यह बात अश्लीलता के सन्दर्भ में कही है और इस पर इतना बड़ा विवाद खडा ही नहीं होना चाहिए था. उन्होंने ‘छिनाल’ शब्द का अनुवाद ‘वेश्या’ करने वाले पत्रकारों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ऐसे पत्रकार जिनमें अनुवाद करने तक की तमीज़ नहीं है, उन के मालिकों को चाहिए कि उन्हें नौकरी से निकाल बाहर करें. उन्होंने स्पष्ट कहा कि आज जितना खुलापन लेखन में आया है वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कारण ही सम्भव हुआ है जबकि कुछ शक्तियां इस आज़ादी को हड़प लेना चाहती हैं.
सुपरिचित कवि कथाकार रामजी यादव लेकिन विभूति नारायण के प्रति ही बेहद आक्रोश रखते हैं. उनके अनुसार वे हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं और उस पद पर बैठ कर उनका यह वक्तव्य बेहद गैर-ज़िम्मेदाराना सा है जो यह साबित करता है कि उनका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है. उन्होंने कहा कि विभूति नारायण राय को तुरंत अपने पद से निकाल देना चाहिए. रामजी यादव पूछते हैं कि जो लेखिकाएं स्वयं विभूति नारायण राय के निकट हैं उनके विषय में ऐसी बात उन्होंने क्यों नहीं कही. जैसे ममता कालिया जैसी दूसरे स्तर की लेखिका को विभूति नारायण राय मैत्रेयी पुष्पा जैसी बड़ी लेखिकाओं से भी बड़ी साबित करने में लगे हैं.
इस विषय पर कई अन्य साहित्यकारों विशेषकर लेखिकाओं से बात करने का मन था पर सब से संपर्क स्थापित नहीं हो सका. मेरी अन्तिम बातचीत इस सन्दर्भ में सुविख्यात कहानीकार उपन्यासकार मृदुला गर्ग से हुई जिनका उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ अपने समय का सर्वाधिक विवादस्पद उपन्यास रहा, हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से यही कहूँगा कि ‘चित्तकोबरा’ की मूल आत्मा उस कृति के उत्कृष्ट होने की ओर संकेत करती है. परन्तु विरोधियों की चेतना उस के कुछ पन्नों पर टिकी थी. मृदुला गर्ग जैनेन्द्र की साहित्यिक शिष्या हैं और जैनेन्द्र के उपन्यास ‘सुनीता’ पर भी जो बावेला खड़ा हुआ था उसे उनके परवर्ती साहित्यकारों ने व्यर्थ का विवाद माना और कहा कि नारी-पुरुष संबंधों का बेबाक व खुला वर्णन आपत्तिजनक है ही नहीं. परन्तु मृदुला गर्ग लेखक और लेखन के बीच बहुत सुलझे हुए तरीके से फर्क करती हुई बोली कि किसी के भी लेखन यथा ‘चित्तकोबरा’ पर अपने विचार लिखने का अधिकार सभी को है. परन्तु विभूति नारायण के सन्दर्भ में उनका कहना स्पष्ट है कि जो उन्होंने कहा है वह लेखिकाओं के बारे में कहा है, न कि लेखन के बारे में, जो गलत है. अपनी बात कहते हुए कि विभूतिनारायण राय को शब्दों की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए. यह पूछे जाने पर कि क्या जैसा कपिल सिबल ने कहा है, विभूतिनारायण राय पर कार्रवाई होनी चाहिए, मृदुला जी ने कुछ कहने से इनकार कर दिया और कहा कि यह विषय तो स्वयं कपिल सिबल जी का है और वे इस विषय पर कुछ भी नहीं कहना चाहेंगी.
कुल मिला कर मेरे मन में यह जिज्ञासा हुई कि विभूति नारायण राय ने कोई बात किसी विशेष सन्दर्भ में कही, पर क्या उस से इतना बड़ा विवाद खड़ा होना उचित था? और कि क्या शब्दों का स्वतंत्र उपयोग कोई इतनी बड़ी बात हो सकती है कि एक मंत्री को चेतावनी देनी पड़े? इस पर मैं कोई अपना निष्कर्ष दूं, बेहतर कि यह लेख पढ़ने वाले स्वयं अपनी धारणा से अवगत कराएं.
प्रेमचंद सहजवाला
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21 बैठकबाजों का कहना है :
Vibhuti ji ki baat sarvbhaumik satya bhale na ho..par kuch partishat sach to hai hi..baat kahni chahiye thi unhe par shabdon ka santulit upyog karna chahiye tha unhe..
सबसे पहले तो मैं एक बात कहना चाहूंगी कि सभी को एक ही कैटेगरी पर रखना कहाँ तक जायज़ है,
दूसरी बात में मैं सवाल करना चाहूंगी कि विभूति
नारानयन जी ने जो यह बात कही कि महिलाएं साबित करना चाहती है, (चाहे जो भी साबित करने कि बात है) आप महिलाओं से इतना चिढते क्यूँ हैं, सिर्फ इसलिए कि आज महिलाएं पुरुषों से हर क्षेत्र में आगे निकल गई हैं..अगर यह कारन है तो ईश्वर आपको सदबुधि दे. दरअसल आप कहना कुछ चाहते थे पर आपकी कुंठा कुछ और कह कर निकल गई,
छिनाल शब्द आज तक तो वेश्या के लिए ही इस्तेमाल होता आया है, और यदि कहीं इसे बेवफा कहा भी जाता है, तो भी आपको यह हक किसने दे दिया, या आप इस काबिल कब हो गए कि पूरे महिला लेखिकाओं के वर्ग पर इतने घटिया और गंदे शब्द इस्तेमाल करने लगे.
आप मानसिक रोगी प्रतीत होते हैं इस तरह कि बातों से, आपको डॉक्टर कि सख्त जरुरत है.
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता वहीं तक सही मानी जानी चाहिए जब तक यह एक सीमा रेखा का उल्लंघन नहीं करती
हिंदी विश्व विद्यालय के कुलपति निसंदेह हिंदी भाषा के ज्ञाता तो होंगे ही उन्हें 'छिनाल' शब्द का अर्थ और इसका स्तर भी पता होगा ही,फिर वे ये काहे वो 'ये' नही 'ये' कहना चाहते थे.उन् जैसे विद्वान को शोभा नही देता.
जीवन में बहुत कुछ होता है क्या जरूरी है यथार्थवाद के नाम पर उन् सबको यूँ खोल दें?
क्या हम यथार्थ या सत्य के नाम पर अपने बच्चों को ये बताए कि उनका जन्म......
मैंने अरुंधती रॉय की 'गोड ऑफ स्माल थिंग्स' पढ़ी.और भी कई लेखिकाओं को पधा.आप लोग मुझे 'बेकवर्ड' कह सकते हैं किन्तु लेखन हो या व्यक्तिगत जीवन मैंने हमेशा एक स्तर बना कर रखा है और उसे पसंद करती हूं.मर्यादाएं हमेशा सम्मान दिलाती है.
वैसे कोई हमें ये बताए कि हम छिनाल हैं या शरीफ .क्या उनके सर्टिफिकट के बाद ही हमे मालुम होगा कि हम क्या हैं?
हा हा हा
अपने आपको अपने से ज्यादा कोई क्या जानता होगा?
माना कि कुलपति महोदय ने उचित शब्दों का प्रयोग नही किया है ये उनकी मानसिकता है. उच्च पदस्थ व्यक्ति अच्छा इंसान भी हो ये जरूरी तो नही.
और हम इतनी परवाह क्यों करते हैंकि कोई हमारे लिए क्या कह रहा है?
हा हा हा
बकवास
इन्द्रा जी की बात शायद विभूति जी सरीखी सभी टिप्पणियों का उपयुक्त जवाब है। हालांकि ये कहना कि कुछ फकॆ नहीं पड़ता, इतना आसान नहीं है क्योंकि फखॆ तो पड़ता है। हर किसी को एक सांचे में ढालकर देखा जाता है तो सब कुछ ढक जाता है न तो वो सामने आता है जिसके बारे में बात कही गई है न ही वो जिसका इस बात से कोई संबंध नहीं है। सभी लेखिकाओं के लिए तथाकथित बेवफा शब्द का प्रयोग करना तो शब्दों के साथ बेवफाई सरीखा है क्योंकि हर लेखिका छिनाल कहकर एक परिभाषा वो लेखक के लिए भी तय किए जा रहे हैं जिससे फिर एक नया विवाद खड़ा हो सकता है।
Dr.mhaesh sinha ji ki tppni ko hi humaari bhi tippni samjhi jaay.
विभूति नारायण जी ने लेखिकाओं के लिए 'छिनाल' विशेषण का प्रयोग किया है, वह क्या सोच कर किया है?.. अगर वे छिनाल शब्द का अर्थ नहीं जानते तो इसका का प्रयोग किया ही क्यों?...अब लिपापोती करने का कोई मतलब नहीं है!... मै इतना ही कहूंगी कि 'छिनाल' शब्द एक भद्दी गाली है!... क्या एक प्रतिष्ठित साहित्यकार को शोभा देता है कि वह लेखिकाओं को गालियां दे?... इन्हों ने तुरन्त मनोचिकित्सक से संपर्क साधना चाहिए!
विभूति नारायण द्वारा प्रयुक्त शब्द 'छिनार' नहीं बल्कि ' छिनाल' होना चाहिए!... इसका प्रयोग मुंबई और आसपास के इलाको में झुग्गी-झोपडियों मे रहने वाले लोग ज्यादा करतें है!
छिनाल शब्द का जो भी अर्थ हो ...स्त्रियों के लिए उसका प्रयोग अनुचित है ...!
संतुलित आलेख ...आभार ..!
लोग क्या-क्या कह जाते हैं! और ब्लॉग-लेखन में ज़िम्मेदारी की बातें होती हैं।
ईमानदारी और पारदर्शिता का अर्थ नंगे घूमना नहीं होता, और ओहदा बड़ा होने से आदमी का छिछोरापन छुटता नहीं।
जिस शब्द का अर्थ ठीक से पता न हो, उसे जाने बिना प्रयोग न करने की ताक़ीद बचपन में की जाती है, मगर थूक कर चाटना न पड़े, ऐसी अपेक्षा तो सदा ही रखते हैं लोग स्वयम् से…
बाक़ी व्यक्तिगत जीवन इन नामचीन लोगों का…
जाने दीजिए, जो लोग जानते हैं वह यह भी जानते हैं कि ऐसी चर्चा भी अश्लीलता के घेरे में आ जायगी।
विभूति जी जैसे वरिष्ठ बुद्विजीवी से ऐसी कतई उम्मीद नहीं थी..वे कहते है उन्होंने यह शब्द नहीं कहा और यह भी कि पत्रकार द्वारा गलती से लिखा गया है.सचाई कहां तक है यह तो भगवान जाने. हम तो यह कहेगे कि हां यह बात सौ फ़ीसदी सही है कि आज कुछ लेखिकाओ ने लेखको की कुर्सी को जरुर हिला कर रख दिया है. लेखिकायें यदि बोल्ड लिखती भी है तो उन्हे दाद देनी चाहिए,वे लिख भी रही हैं, क्योंकि पुरुष शायद ही इस मामले में उनसे बेहतर लिख सके...एक तरह से ऐसे बयान इनकी छ्ट्पटाहट को ही दर्शाते है.
छिनाल /छिनार शब्द लौकिक साहित्य में धड़ल्ले से व्यवहृत होता रहा है -प्रेम से गाई जाने वाली "गाली" में वर वधू उभय पक्ष सम्मानित सम्बन्धियों तक को इससे विभूषित कर आनन्द का सृजन किया जाता रहा है मगर ध्यान देने वाली बात है कि यहाँ वैश्या शब्द वर्जित है -अंगरेजी के अधकचरे पत्रकारों ने तमाशा बना कर रख दिया !
वैसे तो विभूति नारायण ने पूरी ईमानदारी दिखाई है कि जो उनके तात्कालिक विचार हैं उन्हें बिना लाग लपेट के सामने रखने का साहस किया है.....पर चूँकि विभूति एक संवैधानिक पद पर हैं इसलिए उन्हें शालीन शब्दों में यह बात कहनी चाहिए थी. लेकिन इस प्रकरण का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू रिपोर्टिंग की खामियां हैं...गौर फरमायें तो विभूति ने लेखिकाओं के वर्ग विशेष कि बात की है न कि सभी हिंदी लेखिकाओं की. यह बात कुछ ऐसे ही है कि जैसे "कुछ पुरुष बलात्कारी है." शायद आपको इसमें कोई समस्या नहीं है...फिर यहाँ इतने अलग पैमाने क्यों???
दूसरी महत्वपूर्ण बात विभूति ने "छिनाल" शब्द का प्रयोग किया है जिसका अनुवाद कुछ पत्रकारों ने जानबूझकर या अनजाने में "prostitute" कर दिया है. कृपया शब्दकोष उठाकर देखें कि वैश्या (prostitute) उसे कहते है जो पैसों के बदले यौन सम्बन्ध स्थापित करे. ऐसी औरत जो मजे के लिए पति के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष से सम्बन्ध बनाये उसे "छिनाल" कहते है. छिनाल का इंग्लिश अनुवाद "adulteress" होता है.
जिन पाठकों ने महिला लेखिकाओं के उस "समूह विशेष" के द्वारा लिखी आत्मकथाएं पढ़ीं हैं (दुर्भाग्य से बहुत से प्रतिक्रिया करने वाले लोगों ने पढ़ी नहीं हैं) वो भली-भांति जानते हैं कि इन किताबों में पति के अतिरिक्त अन्य पुरुषों से सम्बन्ध बनाने को बड़े विस्तार और गर्व से लिखा गया है...इसमें कोई अतिरेक नहीं कि ये किताबें ऐसे प्रकरणों से भरी पड़ी है. हरिशंकर परसाई ने भी इस विषय पर एक व्यंग लेख लिखा था "एक मादा दूसरी कुड़ी" जिसका विषय अमृता प्रीतम और कमलादास कि आत्मकथाएं थी. वैसे भी लेखकों और बुद्धिजीवियों का बहुत बड़ा वर्ग ये कहता रहा है कि "नारी सशक्तिकरण आन्दोलन" केवल यौन उन्मुक्ति तक ही सीमित रह गया है. अतः नए सिरे से चीजों का अवलोकन किया जाना चाहिए.
अपनी बात कहने के लिए व्यक्ति को शिष्ट शब्दों का प्रयोग करना चाहिए!
अरुणजी, एक वृहत हिंदी शब्दकोष में 'छिनार' और 'छिनाल' दोनो शब्द एक साथ दिए गए हैं. दोनों का अर्थ एक ही है. आप विचलित क्यों हो गई. उर्मिल शर्मा
क्या कहें....?
हमारे ख्याल से छिनाल/छिनार का अर्थ वेश्या या बेवफा ना होकर...
इधर उधर मुंह मारने वाला होता है....जो हमारी मानें तो बेवफा और वेश्या...दोनों से ही बुरा है..
बेवफाई और वेश्यावृत्ति में तो एक बड़ी चीज होती है...वो है मजबूरी......
खैर...ये सब बाद की और बेकार की बातें हैं....
पर लेखन में मर्यादा का ख़याल किसी भी स्त्री/पुरुष को रखना ही चाहिए...
और मिस्टर विभूति...
आपको किसी भी वर्ग के लिए ऐसा कहना शोभा नहीं देता...
कुल्पति जी का बात कहने का तरीका गलत था इसमें कोई सन्देह नहीं मगर उसे सारे सन्दर्भों सहित देखे जाने पर उनकी बात के सही होने की एक सम्भावना ज़रूर बनती है ।
सभी महिला लेखिकाएं छिनाल नहीं होती. हमारे साहित्य में महादेवी वर्मा जैसी पूजनीय हस्तियाँ भी रही. अच्छी कहानीकारों में मल्टी जोशी निरुपमा सेवती मेह्रुनिज़ा परवेज़ से ले कर किसी भी युवा लेखिका तक शिष्टाचार बनाए रखने वाली लेखिकाओं की कमी नहीं है. परन्तु यदि कोई लेखिका नारी-पुरुष संबंध को खुले शब्दों में लिखती है तो उसे छिनाल कहना सरासर गलत है. इसलिए छिनाल शब्द का उपयोग ही इतना बड़ा विवाद बन गया है - अनुभव कुमार
मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश लखनऊ के आसपास का रहने वाला हूँ. हमारे यहाँ छिनार और छिनरिया शब्द आम बोलचाल की भाषा में अस्कर महिलायें ही लाती हैं, छोटे-मोटे लड़ाई-झगड़े में महिलायें एक-दूसरे को छिनार और छिनरपट्ट के आरोप-प्रत्यारोप लगाती रहती हैं. जंहा तक पुरुषों के सवाल है तो मैं पहली बार किसी संभ्रांत व्यक्ति और बहुमुखी लेखक से ये सुन रहा हूँ. जो महिलाओं की मर्यादा के खिलाफ हैं. जब हम किसी भी बात को सार्वजानिक रूप से प्रस्तुत करते हैं तो मान-और-मर्यादा का ध्यान रखना जरूरी हो जाता हैं जंहा तक उनके व्यक्तिगत विचारों की बात है तो हर इंसान के विचार अपने अलग अलग हो सकते हैं मसलन मैंने कही महिलाओं से सुना है कि पुरुष बहुत लम्पट, हरामी, रंडीबाज़ होते हैं, उस समय ये विचार किसी एक पुरुष के लिए होते हैं लेकिन सुनाने में तो यही लगता है संसार के सभी पुरुष इस श्रेणी में आते हैं.
मैं व्यक्तिगत तौर पर तो यही मानता हूँ कि राय साहब के साक्षात्कार को तिल का ताड़ बनाकर राजनीतिज्ञ और लेखकवर्ग चटकारे लेकर मजे ले रहा है. और अपने उदासी भरे जीवन में कुछ रंग भर रहा है.
http://www.iamshishu.blogspot.com/
और इस विवाद के बाद टी वी पर जो लेखको के बीच जूतमपैजार हुयी , उसे देखकर मैं लेखन से तौबा कर ली !
शर्म आनी चाहिए इन्हें !!
यह विचार उनका मानसिक विकार और पूर्वाग्रह दर्शाता है | इसे कोई बदल नहीं सकता |हम मात्र शिकायत कर सकते है |
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