पिछले कुछ हफ्तों से अखबारो और समचार चैनलों से जाना कि राहुल गाँधी आने वाले चुनावों के लिये युवाओं की फौज तैयार कर रहे हैं। यानि कि कांग्रेस चाहती है कि युवा इस देश का नेतृत्व करें। मनमोहन सिंह तो वैसे भी पहले से ही कांग्रेस के लिए कठपुतली रहे हैं। यदि आप कांग्रेस के होर्डिंग देखेंगे तो पायेंगे कि ५० फीसदी में मनमोहन गायब होंगे। और अगर विश्व में सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की बात होती है तो सोनिया का नाम ज़रूर आता है पर अपने प्रधानमंत्री का नहीं। पिछली बार तो कांग्रेस की मजबूरी थी मनमोहन को प्रधानमंत्री बनाना लेकिन इस बार राहुल बाबा पिछले २-३ सालों से मेहनत कर रहे हैं। पसीना बहा रहे हैं। अभी हाल ही में दिल्ली में मैंने बैनर देखा था.. लिखा था : "युवा देश युवा नेता" और फोटो थी केवल राहुल गाँधी की। अब इसका क्या मतलब निकाला जाये? कांग्रेस में ही विरोधाभास है। मनमोहन या राहुल? वे युवा के तौर पर राहुल को प्रोजेक्ट कर रहे हैं और प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह को। वैसे कांग्रेस की नीति कभी भी प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री को प्रोजेक्ट करने की नहीं रही। हर बार चुनाव के बाद ही पासे खुले हैं। क्या इस बार भी...?
यदि कांग्रेस यह मानती है कि राहुल गाँधी युवा हैं और राहुल भी अपने जैसे युवाओं की एक ब्रिगेड खड़ा करना चाहते हैं तो उनके 'युवा' देश के मंत्रियों की एक लिस्ट देखें:
मनमोहन सिंह, प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शरद पवार, लालू प्रसाद, ए.के.एंटनी, ए.आर. अंतुले, सुशील कुमार शिंदे, रामविलास पासवान व जयपाल रेड्डी आदि। इनमें से कितने राहुल बाबा के हमउम्र हैं, ये कांग्रेस व राहुल गाँधी को समझना चाहिये। फिलहाल तो यही लोग देश का नेतृत्व कर रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अब तक यह देश बुजुर्ग हाथों में हैं?
खैर कांग्रेस तो उलझी रहेगी। उधर बीजेपी में आडवाणी के नाम पर फैसला ५ साल पहले ही तय हो गया था जब भाजपा चुनाव हारी थी। अगर वर्तमान स्थिति देखें तो मनमोहन और आडवाणी में मुकाबला... ये दोनों बुजुर्ग हैं या युवा? हो सकता है कि लोगों में बात उठे कि कहीं युवा भारत के बुजुर्ग प्रधानमंत्री तो नहीं होने जा रहे? आडवाणी ने पिछले दिनों चैट के दौरान लोगों से कहा कि देश चलाने के लिये अनुभव की जरूरत होती है। ऐसा व्यक्ति जो देश व विदेश की सभी नीतियों को जानता हो। अपने दोस्त व दुश्मन को जानता हो। बात भी सही है। अनुभव के बिना देश नहीं चलता। तो क्या राहुल गाँधी में अनुभव है कि वे देश को चला सकें?
युवा और बुजुर्ग पर बहस चली है तो मुझे एक वाकया याद आ गया। अभी पिछले महीने जनवरी में संघ के एक कार्यक्रम में जाना हुआ जिसमें दिल्ली की आई.टी और मैनेजमेंट कम्पनियों के कईं इंजीनियर, मैनेजमेंट के छात्र आदि उपस्थित थे। उसमें संघ के जनरल सेक्रेट्री मोहन राव भागवत को सुना। युवा होने की परिभाषा में उनका कहना था कि आयु युवा होने का प्रमाण नहीं होती। इंसान सोच से युवा या बुजुर्ग होता है शरीर से नहीं। उन्होंने आगे कहा कि युवा होने के लिए संवेदना होनी आवश्यक है। जिस व्यक्ति में संवेदना होती है, जो दूसरों के दुख-सुख को समझ सकता है वही युवा है। एक और लक्षण जो उन्होंने बताया वो था दृढ़ निश्चय। जो लक्ष्य हासिल करना होता है उसको पाने के लिये वो जी-तोड़ मेहनत करता है जबकि जो बुजुर्ग होगा वो थक जायेगा व हताश हो जायेगा। इसका मतलब ये हुआ कि २५ बरस में भी इंसान बूढ़ा हो सकता है और ७० वर्ष का भी युवा हो सकता है।
राहुल गाँधी को भविष्य का प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करना या न करना इस उलझन में फिलहाल कांग्रेस भी है। पर राहुल देश के प्रधानमंत्री तो बनेंगे ही, आखिर ख़ास परिवार से हैं। इसमें जो पैदा हुआ वो प्रधानमंत्री बना। इस बार नहीं तो १०-१५-२० वर्षों बाद वो दिन तो आयेगा ही। पिछली बार इनका बचपन था अब युवा हैं.. उम्र से.. राजनीति में शायद अभी भी बचपन ही है...राजनैतिक समझ तो अभी बाकी है। देखें कब तक वे परिपक्व होते हैं पर तब तक भारत की जनता दो उम्रदराज़ युवाओं, मनमोहन और आडवाणी, के बीच ही फैसला करेगी।
तपन शर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 बैठकबाजों का कहना है :
युवा देश, युवा नेता। अब देश में बुजुर्गो की आवश्यकता नहीं। देश के संचालन के लिए इस प्रकार के नारे केवल भ्रमित करते हैं समाधान नहीं देते। कभी दलित कभी महिला और अब युवा। समग्रता के दर्शन कहीं भी नहीं। इस देश को समूहों में विभक्त करने की हमारी आदत सी पड़ गयी है। तरुण जी आपने बहुत ही श्रेष्ठ विश्लेषण किया है आपको बधाई।
राजनीति मैं परिभाषा अपनी सहूलियत के हिसाब से बदलती रहती है जैसे धर्म निरपेक्षता की , ठीक उसी प्रकार युवा की भी . एक अच्छी अभिव्यक्ति . बधाई .
अच्छा मुद्दा है |
बिना अनुभव के इस पड़ पर होना उचित नहीं होगा और साथ साथ उर्जावान होना चाहिए ही |
राहुल जी अनुभवी नहीं हैं | जितने नाम आपने लिए सब में मुझे आडवाणी जी ही उचित लगते हैं |
-- अवनीश तिवारी
अच्छा मुद्दा है |
बिना अनुभव के इस पद पर होना उचित नहीं होगा और साथ साथ ऊर्जावान होना चाहिए ही |
राहुल जी अनुभवी नहीं हैं | जितने नाम आपने लिए सब में मुझे आडवाणी जी ही उचित लगते हैं |
-- अवनीश तिवारी
नेहरू परिवार की यह फितरत रही है कि उसी परिवार का व्यक्ति प्रधाममं्त्री बनें।जिस दिन अच्छी खासी सीटें काग्रेस के हाथों मे आ जाएगी ,उसी दिन राहुल गाँधी को पी एम की सीट मिल जाएगी।
वैसे आपने बहुत बढिया लिखा है।बधाई।
raaj nitee par koi tippani nahin,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अब हम क्या कहें....... आडवाणी अगर अनुभवी हैं ती राहुल उर्जावान.......
बात अलग है कि मुझे दोनों ही उतने ही नापसंद हैं.....
आलोक सिंह "साहिल"
Main deepak ji ki baton se bahut sahmat hun...
Bahut sahi mudda uthaya aapne aur sarthakta se use abhivyakti di.Aabhaar.
अनुभव, उर्जा, जनाधार, दक्षता, परिणाम और लोकप्रियता......... सिर्फ़ नरेन्द्र मोदी ही खरे उतरते हैं
Modi for PM, Vote for Modi
दुकानदार के पास जो भी कुछ होता है वो सजा है दूकान के बाहर वही हालत कांग्रेस की है ..कुछ भी नहीं छोड़ना नहीं चाह रही ..वैसे भी मनमोहन के अनुभव और राहुल की उर्जा का कॉम्बो पैक बहुत हो जोरदार हो सकता है | थोडा शायद अपने लिखते वक्त बायस हो गए .. नए बहुत अच्छे युवा लोग हैं कांग्रेस के पास !! बाकी आपने अच्छी तरह से लिखा है ...और हर बार बेहतर होते जा रहे हैं आप....
बस एक दो कमेन्ट पढ़े के निराशा हुई ..."जैसे की राजनीती पे कोई टिपण्णी नहीं ..."मुझे बहुत अच्छा लगेगा मनु जी अगर आप टिपण्णी देंगे तो ..आप ज्यदा अनुभवी है हम में से बहुत से लोगो से आपकी तप्पनी से जरुर कुछ न कुछ ...सिखेनेगे ही हम !!
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
inconvenientiसाहब,
I'm sorry whatever i'll writing can go inconvenient for u लेकिन ...फ़िर भी . मैं पूरी तरह सहमत हूँ आपसे मोदी के अन्दर अनुभव, उर्जा, जनाधार, दक्षता, परिणाम और लोकप्रियता .ये सब है.".गुजरात मैं महा विनाश से लेकर महा विकास तक सब कुछ करने कीक्षमता है" ...लेकिन मैं कभी भी मोदी को प्रधान मंत्री नही चाहुगा जिसके अन्दर "" महा विनाश से लेकर महा विकास तक सब कुछ करने कीक्षमता हो " और केवल हिंदुत्व वगेरह के झांसे मैं रहकर चीजे नही होने वाली अब !!!
Apne Desh ko Ek Tej Aur Honhar Neta Ki jarurat hai, Bujurg ki nahi
युवा की बात चली है तो संघ द्वारा बताई गई परिभाषा पूर्णत सही लगती है।
मुझे लगता है आज देश मे कोई युवा नही है क्योकि देश चलाने के लिए राजनीति से उपर उठकर जो देश हित मे सर्वसव न्योछावर कर दे मै उसे युवा समझूगा चाहे अडवानी, मनमोहन या कोई भी आम भारतीय।
और कुछ युवाओ को मै भी जानता हूँ उनमे से एक थे भगत सिंह, पर आज के युवाओ को तो उनकी जन्म तिथि तक नही पता
सुमित जी चलिए मैं कुछ युवाओं के बारें में बता देता हूँ जब युवाओं के बारें मैं बात चली ही है ..
दो साल पहले मैं कुछ लोगो के संपर्क मैं आया जो अच्छे खास पढ़े लिखे थे और राजनीती में आ गए अपना बहुत ही अच्छा करियर छोड़ के ....
उनका लिंक http://bpd.org.in/ ये है और इसमे बहुत से लोग IIT के से पढ़े हुए हैं ...इनकी पार्टी का नाम "भारत पुनर्निर्माण दल" है ..मैंने इन लोगो के लिए थोड़ा बहुत लिखा था पिछले चुनाव मैं ..और मुझे पूरी उम्मीद है यहाँ मुझे अच्छा लिखने वाले बहुत लोग हैं जो इनके और भी बेहतर तरीके से इनकी मदद कर सकते हैं
इतना भी निराश होने कि बात नही है....
और रही बात भगत सिंह की जन्मतिथि पता होने कि वो मुझे भी याद नही (And i'm not sorry for this) हाँ थोड़े बहुत विचार पता हैं ..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)