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दिल्ली के निजामुद्दीन पुल से नोएडा की ओर जाते हुए आजकल कईं पेड़ कटे हुए देखे जा सकते हैं। सड़कें जो चौड़ी करनी है। खैर हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हो सकता है कि इन पेड़ों से महरूम रह जायें लेकिन उन्हें ऒक्सीजन की कमी न हो उसका इलाज वैज्ञानिक कर रहे हैं। जी हाँ, जल्द आने वाले हैं सिंथेटिक पेड़। तस्वीर में एक झलक देखिये। ये सिंथेटिक पेड़ आम पेड़ों के मुकाबले १००० गुना तेज़ी से कार्बन का खात्मा कर सकते हैं। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक क्लॉस लैकनर १९९८ से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहें हैं। ये पेड़ हवा में घूम रहे उन कार्बन पदार्थों को खत्म करेंगे जिन्हें हवाई जहाज, कार व अन्य वाहन वातावरण में डाल देते हैं। ये पेड़ आप कहीं भी रख सकते हैं। इस पेड़ में एक टन कार्बन डाई ऑक्साइड प्रतिदिन समाप्त करने की क्षमता है। जिस तरह से स्पंज का टुकड़ा पानी को समा लेता है, ठीक उसी प्रकार ये पेड़ भी कार्बन को समा लेंगे।
दिखने व पढ़ने में यह बहुत अच्छा दिखने वाला पेड़ आज की तारीख में १२ लाख रू का पड़ेगा। अमरीका में शोध से पता चला है कि कारों के धुँए का असर खत्म करने के लिये ६८ लाख पेड़ लगाने पड़ेंगे। देखना यह है कि ये प्रयोग कितना कामयाब होगा और भारत में ये कब लांच होगा। इंसान अपनी ही बनाई मशीनों से परेशान हो चुका है। ये सब सुविधाजनक तो हैं पर हमारी ज़िन्दगी में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से परेशानियाँ भी बढ़ा रही हैं जिसके बारे में हमें हमेशा ही देर से पता चला है या हम देख कर अनदेखा कर देते हैं। अंग्रेज़ी फ़िल्मों में दिखाते हैं कि इंसान ने रोबोट बनाया जो इंसान जैसा दिखता है, उसी की तरह काम करता है। पर बनाया किसलिये? अपनी सुविधा के लिये। लेकिन वही रोबोट इंसान पर हावी हो जाते हैं और इंसान की ही जगह ले लेते हैं। और अंत-विनाश। हम उसी ओर जा रहे हैं।
प्राकृतिक पेड़ रहें या न रहें सिंथेटिक पेड़ जरूर आ जायेंगे। लेकिन इंसान पेड़ की छाया से वंचित हो जायेगा। चिलचिलाती धूप में वो आराम नहीं मिलेगा, तेज़ बारिश में भीगने से बचने के लिये घना पेड़ न होगा, झूले टँगने से मना करेंगे और...इंसान रोबोट बन चुका होगा...
तपन शर्मा
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10 बैठकबाजों का कहना है :
हम विकास की ओर किस मापदँड मे?
वास्त्विका या पाखँड मे
साईँस के अविश्कारों मे या
उससे फलीभूत विकारों मे
तृ्ष्णाओं के सम्मोहन मे या
प्रकृति के दोहन मे
क्या ऊँची उडान की परिभाशा मे
य झूठी मृग अभिलाशा मे
ए मानव कर अवलोकन
कर तर्क और वितर्क्
फिर देखना फर्क
ये है पाँच तत्वों का परिहास
प्रकृतिक सम्पदाओं का ह्रास
ठहर अपनी लालसाओं खो ना बढा
सृ्श्टी को महाप्रलय की ओरे ना लेजा
आपके आलेख से मुझे अपनी इस कविता के कुछआअँश याद आ गये बडिया पोस्ट आभार्
ख़बर अच्छी है...पेड़ माफ़िया की तो अब मौज्जां इ मौज्जां..
नयी जानकारी मिली .खर्चीली तकनीक है .विकासशील देश इसे अपनासकेंगे क्या ?
तपन जी आपने सिंथेटिक पेडों के बारे में अच्छी जानकारी दी. अब असली पेड़ काटकर स्य्ठेतिक लगाये जायेंगे. प्रकृति के नियमों से इस तरह छेड़छाड़ ठीक नहीं है.
चन्दा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फ़िक्र करो
बढती जाती भीड़, सिमटती जाती धरती सालो-साल
और क्या उपाय है जी...?
:)
यह है आधुनिकता की बयार
यहाँ नकली का ही है प्रचार
नाम असली तो चेहरा नकली
हर चेहरे पर मु्स्कान नकली
हो रहा है वन-उपवन उजाड़
यह है आधुनिकता की बयार
जो थोड़े बहुत लोग पेडो की फिक्र किया करते थे , वो भी करना बंद कर देंगे ,alternate option जो मिल गया है :(
-Pallavi
प्राकृतिक पेड़ रहें या न रहें सिंथेटिक पेड़ जरूर आ जायेंगे। लेकिन इंसान पेड़ की छाया से वंचित हो जायेगा। चिलचिलाती धूप में वो आराम नहीं मिलेगा, तेज़ बारिश में भीगने से बचने के लिये घना पेड़ न होगा, झूले टँगने से मना करेंगे और...इंसान रोबोट बन चुका होगा...
सच कह रहे हैं...बड़ी विडंबना है
badhiya lekh hai ,nai jaankaari mili
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