Sunday, July 19, 2009

ये सिंथेटिक पेड़ क्या होते हैं भाई !

छोटे बच्चों को विज्ञान में जब पेड़ों के फ़ायदे बताने को कहा जाता है तो उसमें सबसे अहम होता है-पेड़ कार्बनडाईऑक्साइड खत्म करते हैं और ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं। इंसान भी अजीब है अपने मृत्यु और अपने जीवन के उपाय खुद करता है। मिसाइल बनाई तो मिसाईल का पता करने के रडार बनवा दिये, पेट्रोल और डीज़ल के इंजनों से धुँआ ज्यादा निकला तो सीएनजी की और रूख किया। कोयला खत्म होता दिखा तो बिजली से रेलगाड़ी चलाई तो कभी सूरज की रोशनी से बिजली पैदा करने की बात होने लगी। घर के एसी, फ़्रिज से निकलने वाले क्लॉरो-फ़्लॉरो-कार्बन(सीएफसी) और कारों व बसों से निकलने वाली जहरीली गैसों के बारे में आप जानते ही होंगे। एक से ओज़ोन की परत कमज़ोर होती जा रही है तो दूसरे ने साँस की तकलीफ़ पैदा कार दी है। ऊपर से इंसान की जरूरतें बढ़ने की वजह से पेड़ों को काटने का दौर जारी है। दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी को हर कोई जानता है। इसके लिये मेट्रो का काम, कईं हजार फ़्लैट और स्टेडियम तो बन ही रहे हैं पेड़ भी काटे जा रहे हैं।



दिल्ली के निजामुद्दीन पुल से नोएडा की ओर जाते हुए आजकल कईं पेड़ कटे हुए देखे जा सकते हैं। सड़कें जो चौड़ी करनी है। खैर हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हो सकता है कि इन पेड़ों से महरूम रह जायें लेकिन उन्हें ऒक्सीजन की कमी न हो उसका इलाज वैज्ञानिक कर रहे हैं। जी हाँ, जल्द आने वाले हैं सिंथेटिक पेड़। तस्वीर में एक झलक देखिये। ये सिंथेटिक पेड़ आम पेड़ों के मुकाबले १००० गुना तेज़ी से कार्बन का खात्मा कर सकते हैं। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक क्लॉस लैकनर १९९८ से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहें हैं। ये पेड़ हवा में घूम रहे उन कार्बन पदार्थों को खत्म करेंगे जिन्हें हवाई जहाज, कार व अन्य वाहन वातावरण में डाल देते हैं। ये पेड़ आप कहीं भी रख सकते हैं। इस पेड़ में एक टन कार्बन डाई ऑक्साइड प्रतिदिन समाप्त करने की क्षमता है। जिस तरह से स्पंज का टुकड़ा पानी को समा लेता है, ठीक उसी प्रकार ये पेड़ भी कार्बन को समा लेंगे।

दिखने व पढ़ने में यह बहुत अच्छा दिखने वाला पेड़ आज की तारीख में १२ लाख रू का पड़ेगा। अमरीका में शोध से पता चला है कि कारों के धुँए का असर खत्म करने के लिये ६८ लाख पेड़ लगाने पड़ेंगे। देखना यह है कि ये प्रयोग कितना कामयाब होगा और भारत में ये कब लांच होगा। इंसान अपनी ही बनाई मशीनों से परेशान हो चुका है। ये सब सुविधाजनक तो हैं पर हमारी ज़िन्दगी में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से परेशानियाँ भी बढ़ा रही हैं जिसके बारे में हमें हमेशा ही देर से पता चला है या हम देख कर अनदेखा कर देते हैं। अंग्रेज़ी फ़िल्मों में दिखाते हैं कि इंसान ने रोबोट बनाया जो इंसान जैसा दिखता है, उसी की तरह काम करता है। पर बनाया किसलिये? अपनी सुविधा के लिये। लेकिन वही रोबोट इंसान पर हावी हो जाते हैं और इंसान की ही जगह ले लेते हैं। और अंत-विनाश। हम उसी ओर जा रहे हैं।

प्राकृतिक पेड़ रहें या न रहें सिंथेटिक पेड़ जरूर आ जायेंगे। लेकिन इंसान पेड़ की छाया से वंचित हो जायेगा। चिलचिलाती धूप में वो आराम नहीं मिलेगा, तेज़ बारिश में भीगने से बचने के लिये घना पेड़ न होगा, झूले टँगने से मना करेंगे और...इंसान रोबोट बन चुका होगा...

तपन शर्मा

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10 बैठकबाजों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

हम विकास की ओर किस मापदँड मे?
वास्त्विका या पाखँड मे
साईँस के अविश्कारों मे या
उससे फलीभूत विकारों मे
तृ्ष्णाओं के सम्मोहन मे या
प्रकृति के दोहन मे
क्या ऊँची उडान की परिभाशा मे
य झूठी मृग अभिलाशा मे
ए मानव कर अवलोकन
कर तर्क और वितर्क्
फिर देखना फर्क
ये है पाँच तत्वों का परिहास
प्रकृतिक सम्पदाओं का ह्रास
ठहर अपनी लालसाओं खो ना बढा
सृ्श्टी को महाप्रलय की ओरे ना लेजा
आपके आलेख से मुझे अपनी इस कविता के कुछआअँश याद आ गये बडिया पोस्ट आभार्

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून का कहना है कि -

ख़बर अच्छी है...पेड़ माफ़िया की तो अब मौज्जां इ मौज्जां..

Manju Gupta का कहना है कि -

नयी जानकारी मिली .खर्चीली तकनीक है .विकासशील देश इसे अपनासकेंगे क्या ?

Shamikh Faraz का कहना है कि -

तपन जी आपने सिंथेटिक पेडों के बारे में अच्छी जानकारी दी. अब असली पेड़ काटकर स्य्ठेतिक लगाये जायेंगे. प्रकृति के नियमों से इस तरह छेड़छाड़ ठीक नहीं है.

manu का कहना है कि -

चन्दा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फ़िक्र करो
बढती जाती भीड़, सिमटती जाती धरती सालो-साल

और क्या उपाय है जी...?
:)

Disha का कहना है कि -

यह है आधुनिकता की बयार
यहाँ नकली का ही है प्रचार
नाम असली तो चेहरा नकली
हर चेहरे पर मु्स्कान नकली
हो रहा है वन-उपवन उजाड़
यह है आधुनिकता की बयार

pallavi paurav का कहना है कि -
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Anonymous का कहना है कि -

जो थोड़े बहुत लोग पेडो की फिक्र किया करते थे , वो भी करना बंद कर देंगे ,alternate option जो मिल गया है :(

-Pallavi

अर्चना तिवारी का कहना है कि -

प्राकृतिक पेड़ रहें या न रहें सिंथेटिक पेड़ जरूर आ जायेंगे। लेकिन इंसान पेड़ की छाया से वंचित हो जायेगा। चिलचिलाती धूप में वो आराम नहीं मिलेगा, तेज़ बारिश में भीगने से बचने के लिये घना पेड़ न होगा, झूले टँगने से मना करेंगे और...इंसान रोबोट बन चुका होगा...

सच कह रहे हैं...बड़ी विडंबना है

Nishikant Tiwari का कहना है कि -

badhiya lekh hai ,nai jaankaari mili

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