Wednesday, February 25, 2009

भारत के बाज़ार में सेंध?

अभिषेक हिन्दयुग्म के पुराने कवि हैं....बैठक पर हाल ही में विचरना शुरू किया है...इन्होंने एक मेल के साथ ये आलेख भी भेजा है....आप इनका आशय खुद ही समझें और बैठक पर इनकी हाजिरी आज से तय मानी जाए...
"निखिल सर....आप एक बात जानते ही हैं कि हमारे बिहार में साक्षरता दर सबसे कम है....और आउटवार्ड माइग्रेशन कहीं ज्यादा...बाहर जाकर कमाने की ललक कहीं ज्यादा...इसी ललक का मैं भी मारा हुआ हूं...मैं हाल में एक ऐसे चरित्र से मिला हूं, जो बिना किसी लैंगिक भेदभाव स्त्री-पुरूष दोनों को सर का संबोधन देता रहा...और ऐसा वो जानबूझ कर नहीं...बल्कि आदतन करता है...मैं उसकी उसी आदत को अडॉप्ट करने की गुजारिश करता हूं....मेरे स्तंभ का नाम दें....हैलो सर.....आप क्या कहते हैं? कृप्या किसी जेंडर बायसनेस का आरोप न लगाएं...तमाम चीजों से परे हो कर देखें....हो सके तो मेरे इस गुजारिश को मेरे परिचय के तौर पर लिखें......पहला लेख नज़र कर रहा हूं...टिप्पणी तो चाहता ही हूं....सहयोग भी...."

हैलो सर....बहुत दिनों से एक सवाल जान खाए जा रहा है....कि हम हिन्दुस्तानी...छोटी-छोटी खुशियों से क्यों इत्ते खुश हो जाते हैं....क्यों नहीं पश्चिमी देशों की तरह हम भी खुद के लिए बड़ी खुशी तलाशते हैं...और उन खुशियों के हासिल होने के बाद भी घाघ बने रहते....दुनिया के सामने और अपने घरों में जश्न मनाते....बहुत दिनों से सोच रहा हूं कि कहीं....पश्चिमी देश हम हिन्दुस्तानी के इस रवैये से वाकिफ तो नहीं हो गए...अगर वाकई वाकिफ हो गए हैं...तो चिंता की बात है....फिर हर कुछ जो देश दुनिया में घट रहा है...वो एक साजिश है....खास-तौर पर भारत को हर क्षेत्र में मिल रहे तवज्जो...जीत....और बहुत कुछ....मैं कमअक्ल होने के बावजूद सोचने लगा हूं....ये बड़ी बात है....और ये साजिश की सोच.... मेरे कमअक्ल मगज की उपज से ज्यादा कुछ नहीं...लेकिन पता है...आज से तकरीबन पंद्रह साल पहले....कुछ लोगों की बातें मेरे जहन में घर कर गई थी....हां मैं साल 1994 की ही बात कर रहा हूं....और बात कर रहा हूं...उस साजिश की जिसके तहत...दुनियावी स्तर के दो इम्तिहानों में दो भारतीय सुंदरियों का परचम लहराया था...(जिसकी कमाई लोग आज तक खा-पी रहे हैं...इस बारे में बात फिर कभी....)...जी हां उस जीत के बाद बुद्धिजीवियों के एक जत्थे ने माना था....कि भारत के बड़े कॉस्मेटिक बाजार को दुनिया के लिए खोलने की तैयारी की जा रही है....भारतीय पूंजी को बाहर ले जाने के लिए...तमाम कवायदें की जा रही हैं...और उसके बाद की कई घटनाओं ने मेरे जहन में उस साजिश की नींव गहरे रख दी थी....मैं कितना गलत या सही हूं रामजाने....लेकिन....फिर मुझे कहीं भी कोई इस तरह की खबर मिलती कि भारत जीता...भारत का बढ़िया प्रदर्शन.....तो मैं...अपने जहन में गहरे उतर चुके उस तथ्य से तौल कर चीजों को देखने लग जाता....मैं अपनी नजर से कुछ दिखाने की कोशिश कर रहा हूं...हो सकता है मेरा तरीका कंविंसिंग न हो...या मैं पूरी तरह से ही गलत होऊं....जरा गौर फरमाएं..... साल 2009 का उत्तरार्द्ध....पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में.....और भारत के लोगों की बचत की आदत ने एक बार फिर उसे इस मंदी के असर को कम करने में मददगार साबित हुई....पूरी दुनिया की नजर में भारत....एक बेहतरीन बाजार...एक उद्धारक....एक आस....एक उम्मीद....एक....और एक-एक करके न जाने क्या कुछ नहीं....ऐसे में भारतीय क्रिकेट टीम के बारे में मोल्स का बयान आना ....कि भारत दुनिया की नंबर वन टीम....भारत के तमाम खिलाड़ियों का अलग-अलग खेलों में बेहतर प्रदर्शन....हिन्दी सिनेमा को ज्यादा तवज्जो दिया जाना....भारत की पृष्टभूमि पर बनी फिल्म का ऑस्कर में साल 1982 में बनी गांधी से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करना....कहीं...बाजार के तौर पर....भारत को और बड़ा करने की साजिश तो नहीं....या कहीं भारतीय बाजार में सेंध लगाने की कोशिश तो नहीं....मैं सोच रहा हूं....आप क्या कहते हैं?

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2 बैठकबाजों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

यह खुशी की बात है कि हमारा देश कई क्षेत्रों में तरक्की कर रहा है |
आज के सार्वभौमिक और वैश्विक व्यापार में भारत का नाम आगे आ रहा है |

लेकिन किसी भी देश से सतर्क रहना ही चाहिए और अपनी छवि ( identity ) बनाए रहना चाहिए |
पश्चिमी देशों से लाभ कम और नुकसान ज्यादा हुया है हमें |

लेख के लिए धन्यवाद |

अवनीश तिवारी

chandan का कहना है कि -

मुझे नहीं लगता हमें किसी की नकल की जरुरत है।
हमें अपनी पहचान कायम रखने की जरुरत है ।
हा, ये सही है कि हमें जरुरत है अपनी कुछ आदतों को बदलने की।

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