
क्या आपने कभी अपनी बेटी की उम्र की किसी लड़की के साथ सेक्स किया है?
जवाब मिलता हैं.. हां।
क्या आप कभी अपने पति के अलावा किसी और के साथ गैर मर्द के साथ नाजायज़ रिश्ता बनाने की कोशिश करेंगीं?
जवाब मिलता है.. नहीं।
लेकिन ये जवाब गलत था। ये एक बानगी भर है उस प्रोग्राम की, जो आजकल स्टार प्लस पर आता है। अमेरिकी शो 'मोमेंट ऑफ ट्रूथ'की नकल पर शुरु हुए इस प्रोग्राम के ज़रिए हिंदुस्तान में सच की गंगा बहाने की कोशिश की जा रही है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र के इस मुल्क में जहां हज़ारों गुरु पंडितों और मुल्ला मौललवियों ने इस मुल्क की बुनियाद रखी, वहां आज लोगों को सच सिखाने की ज़रूरत पड़ रही है। जहां लाखों पीर-फकीर गंगा-जमुनी तहजीब की सीख देकर चले गये। वहां टीवी पर सच सिखाया जा रहा है। सच भी कैसा। बेडरूम का सच। नाजायज़ रिश्तों का सच। साजिशों का सच। मर्डर और दोस्ती में दरारों का सच। सेक्स और बेवफ़ाई के अजीबो-गरीब रिश्तों का सच। प्यार-मौहब्बत में नाकाम रहने का सच। फलर्ट करने का सच। सच भी ऐसा जिसमें सिर्फ़ मसाला हो, तड़का हो। वो भी किसलिए सिर्फ़ एक करोड़ रुपयों के लिए। और एक करोड़ भी तब मिलेंगे जब आप सभी 21 सवालों का सही जवाब देंगे। मुझे आचार्य धर्मेद्र की एक बात बहुत अच्छी लगी, कि आप पैसा देना बंद कर दो, लोग टीवी पर सच बोलना बंद कर देंगे। लोग टीवी पर पैसे के लिए सच बोल रहे हैं। प्रोग्राम के पीछे तर्क दिया जा रहा है, कि इसके आने के बाद लोग सच बोलने लगे हैं। मेरा उनसे यही सवाल है कि क्या इससे पहले समाज में लोग सच नहीं बोलते थे? क्या अब तक मुल्क और समाज की बुनियाद झूठ के ढर्रे पर चल रही थी? एक सच ये है कि मैं कभी झूठ नहीं बोलता। आप भले ही यकीन न करें, लेकिन मुझे झूठ बोलना बिल्कुल पसंद नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि मैं शायद स्टार प्लस पर आने वाले प्रोग्राम सच का सामना के बाद कुछ बदल गया हूं। आप सोच रहे होंगे कि इस प्रोग्राम के आने के बाद हिंदुस्तान में राजा हरिशचन्द्र कहां से पैदा हो गये। लेकिन जनाब ऐसा नहीं हैं। यहां सदियों से लोग सच का सामना करते हैं। अब अगर कोई राखी सावंत से सच बोलता है कि वो पहले से शादी-शुदा है, तो क्या ये सच का सामना का असर है। दरअसल ये भी एक ड्रामा था। जिसके पीछे भी था पैसे का बड़ा खेल। मतलब फुल ड्रामा। और फिर यहां जो भी शख्स सच बोलता है, उसकी पूरी फैमिली उसके सामने बैठती है। झूठ और सच के साथ ही उनके एक्सप्रेशन भी बदलते जाते हैं। ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि कोई पति या पत्नी अपनी बीस साल की शादी-शुदा ज़िंदगी में डर की वजह से अपने राज़ एक-दूसरे से शेयर ही न करे। और जब बात एक करोड़ मिलने की आती है, तो उसके राज़ परत दर परत सारी दुनिया के सामने खुल जाते हैं। मुझे याद है कि कई साल पहले राजेन्द्र यादव जी ने अपनी पत्रिका हंस में ऐसी ही एक सीरीज़ चलाई थी। जिसमें अपनी ज़िंदगी का कच्चा चिट्ठा लिखना था। मैगज़ीन बाज़ार में आई, लेकिन लेख छपते ही हल्ला मच गया। कुछ लोगों ने बड़े उतावले पन के साथ अपनी ज़िंदगी को तार-तार करने की कोशिश की थी। लेकिन नतीजा क्या निकला। हंगामा मचा, तो हंस को सीरीज़ ही बंद करना पड़ी। अफ़सोस ये है कि इस प्रोग्राम का भी वहीं हश्र न हो। सच का सामना करने के चक्कर में कहीं रिश्ते दरक न जाएं, और भरोसे पर टिका जिंदगी का घंरौंदा एक हल्के से झोके में ही ज़र्रा-ज़र्रा करके बिखर जाए। सच के ठेकेदारों समाज पर कुछ तो रहम करो। क्योंकि कुछ झूठ ख़ूबसूरती के लिबास में ही अच्छे लगते हैं।
अबयज़ खान