इरफ़ान |
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इंतख़ाब |
इंतख़ाब/इरफान - सम्मेलन का उददेश्य मुसलमानों मे जागरूकता लाना ताकि मुसलमान जागरूक होक्रर अपने शैक्षिक पिछड़ेपन को समझक्रर शिक्षा के लिए कदम बढाऐ। हम लोग मदारिया सिलसिले से ताअल्लुक रखते है। मदारिया सिलसिला सूफियों की फेहरिस्त में एक ऐसा सिलसिला है जहाँ इंसान की बात होती है न कि हिन्दू या मुसलमान की... बस इस सिलसिले का सज्जादा नशीन होने के नाते मैंने यह बीडा उठाया है की मज़हब, सम्प्रदाय तथा भेदभाव की सारी हदें तोड़कर दबे-कुचले लोगों की मदद करेंगे, उन्हें जागरूक करेंगे
हाशम - मुसलमानों की वर्तमान हालत का ज़िम्मेदार किसे मानते हैं?
इंतख़ाब/इरफान - मुसलमानों मे सबसे बड़ी कमी उनका जागरूक न होना है.. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद तो ये बिल्कुल साफ हो गया है कि मुसलमान कितना पिछड़ा हुआ है..कहना ये है कि जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानो के हालात दलितों से बदतर हैं तो मुसलमानो की बदहाली को दूर करने के लिए उठाये गये कदम दलितो के लिए मिलने वाली योजनाओं से कम क्यों हैं... क्या इन नाकाफी कोशिशों से मुसलमानों की बदहाली दूर होगी... हम सरकार से ये मॉग करेंगे कि मुसलमानों के लिये सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए। इसके अलावा एक बात और कहना चाहूंगा कि वर्तमान में मुसलमानों को अपने हक के लिए खुद भी खड़ा होना पड़ेगा...बजट पेश हो चुका है... अल्पसंख्यकों के लिए ढेर सारे पैकेज सरकार लायी है... नज़र अब इस बात पर रखनी है कि इनमे से कितनी योजनाएं हक़दार तक पहुंचती है
हाशम - मुसलमानों को आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक परिदृश्य में कहाँ देखते हैं?
इंतखाब/इरफान - आर्थिक रुप से मुसलमान ऐसा नहीं है कि कमज़ोर है लेकिन जहां-जहां मुसलमान आर्थिक रुप से मज़बूत है, वहां राजनैतिक फायदे के लिए दंगे करवाकर मुसलमान को आर्थिक रूप से चोट पहुंचाई जा रही है... इसका जीता-जागता उदाहरण गुजरात है। आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य में मुसलमानों की हालत शोचनीय है... शैक्षिक स्तर भी गिरता जा रहा है..गरीबी और बेरोज़गारी अहम समस्या बन चुकी है...ऐसे हालात में जागरूकता तो लानी ही है, इसके साथ-साथ सरकार को भी अल्पसंख्यक योजनाओं में पारदर्शिता बरतनी होगी... खाली एक समुदाय को खुश करने मात्र से भला नहीं होगा...
हाशम- इस तरह के सम्मलेन आयोजित करने का ख्याल कैसे आया ?
इंतखाब/इरफान -मैं और मेरे दोस्त इरफान हैदर जो पेशे से वकील हैं एक दिन मुसलमानों की दुर्दशा पर चर्चा कर रहे थे..इरफान भाई ने एक शेर सुनाया-
ये बज़्मे-मै है यहाँ कोताह्द्स्ती में है महरूमी
जो बढ़ कर हाथ में ले ले मीना उसी का है
इसके बाद हमारे नज़रिए बदल गए... हमने तय किया कि खुद आगे आना होगा... अपनी बात अपने मुंह से कहना होगी.. माध्यम जैसी हर चीज़ को ख़त्म करना ही हमारा मकसद है.. हम हर आम मुसलमान से अपेक्षा करते हैं की वो अपने हक के लिए खुद आगे आये और अपना हक हासिल करे.. बेचारेपन की जिंदगी कितने दिन चल सकती है.....
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15 बैठकबाजों का कहना है :
किसे जरुरत है आप लोगों के बनाये पात्र इंतखाब/इरफान की बात सुनने की .हिन्दी युग्म ऐसी ख़बरों को इसलिए पुब्लिश करता है जिससे लोग आयें और साईट देंखें. इससे उसे कुछ आमदनी होती ई, सभी प्रचार वाली ,,, साइट्स ऐसा ही करती है .
व्यापार करना हिन्दी उगम का पहला काम है,
पैसा कमाने के साथ साथ पुब्लिस्किटी करते है और हिन्दी भाषा का सौदा.
वाह ,,,, वाह
हम भी इनलोगों ,,, के जाल मे कुछ महीने तक फंसा था ,,,,, पैसा गया मेरा ,,,,
बच के रहिये भाई लोग
सुमित दिल्ली
हा हा हा...कौन हैं भई आप...मज़ेदार टिप्पणी है आपकी....कितना पैसा लिया है हमने आपका, ये भी बताएं....या फिर यही बता दें कि कौन पैसे दे रहा है ये सब लिखने के....
देश ,सरकार इस लेख को पढ़ कर जरूर जागेंगे.पारदर्शी जानकारी मिली .आभार .
सबसे पहले मैं अनिनिमस जी की टिपपड़ी पर एक बात कहाँ चाहूँगा की हिन्दयुग्म को एक बात ध्यान रखना चाहिए. यह सूक्ति मैंने शिव खेडा की किताब में पढ़ी थी कि आप अपने लक्ष्य पे निगाहें रखना चाहिए.
"सबसे ज्यादा पत्थर उसी पेड़ पर मारे जाते हैं जिसपर सबसे ज्यादा फल लगते है."
शुक्रिया फराज़ भाई....
इंतख़ाब साहब और इरफान साहब आप दोनों लोगों ने बहुत ही अच्छी से सवालों के जवाब दिए. मुझे लगता है कि आप लोगो को इस तरह के सम्मेलनों का थोडा प्रचार भी करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस में शिरकत कर सके. मैं बरेली के इतने पास होते हुए भी इसमें न जा सका. मेरे लिए अफ़सोस कि बात है.
राजनैतिक स्तर पर वाकई मुसलमान पिछडे हुए है शायद यही वजह है कि सामजिक स्तर पर भी कुछ हद तक पिछडे हुए हैं. लेकिन शैक्षणिक स्तर पर मैं समझता हूँ कि वो अपनी वजह से पिछडे हुए हैं. उन्हें इस तरफ खुद ध्यान देना चाहिए. और कुछ हद तक सरकार को भी मदद करनी चाहिए लेकिन इसकी शुरुआत उन्हें खुद करनी चाहिए. मज़हबी तालीम के साथ साथ दुनयावी तालीम पर भी ध्यान देना बहुत ज़रूरी है जो न सिर्फ मुस्लिम समाज के लिए बहतर होगा बल्कि कही कहीं देख हित में भी होगा.
समिखजी ,
आप हिन्दी युग्म के वफादार मेंबर हो .
जो हमने कहा है १०० % सच है. हर नियम और नीति हर जगह नहीं लागू होती है .
शिव खेर के बात छोडो, कबीर ने कहा है की बहुरूपियों से बचो.
कुछ महीने में जान जाओगे ,,,,,
सादर
सुमित दिल्ली
सबसे पहले तो सुमित नाम से कमेन्ट करना बंद करो,क्योकि मेरा नाम भी सुमित है और मैं डेल्ही में रहता हूँ और हिंद युग्म से काफी समय से जुडा हुआ हूँ और लोगो को ये लगेगा की ये मैं कमेन्ट कर रहा हूँ, इसलिए सामने आकर अपने नाम से he कमेन्ट करो
@ mr anonymous
सबसे पहले तो सुमित नाम से कमेन्ट करना बंद करो,क्योकि मेरा नाम भी सुमित है और मैं डेल्ही में रहता हूँ और हिंद युग्म से काफी समय से जुडा हुआ हूँ और लोगो को ये लगेगा की ये मैं कमेन्ट कर रहा हूँ, इसलिए सामने आकर अपने नाम से he कमेन्ट करो
तुम मेरे नाम को बदनाम कर रहे हो मैं तुम पर मान हानी का दावा भी कर सकता हूँ
मुसलमानों मे सबसे बड़ी कमी उनका जागरूक न होना है.. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद तो ये बिल्कुल साफ हो गया है कि मुसलमान कितना पिछड़ा हुआ है..कहना ये है कि जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानो के हालात दलितों से बदतर हैं तो मुसलमानो की बदहाली को दूर करने के लिए उठाये गये कदम दलितो के लिए मिलने वाली योजनाओं से कम क्यों हैं... मैं इंतिखाब और इरफान भाई की बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूं.. लेकिन सिर्फ़ सच्चर कमेटी से हमारा भला नहीं हो सकता.. हमें सरकार की रियायतों और रिजर्वेशन के बजाए एजुकेशन पर ज्यादा जोर देना होगा।
इस पहल के लिए हिंदी युग्म को खास तौर पर बधाई...
कांग्रेस की तरह हिन्दी युग्म भी कभी एन आर आई को, कभी मुसलमानों को कभी किसे... अपने बहस का सीकार कराती है.पोपुलर होने का अच्छा तरीका है.,,,जरुर से कोई छुपा कांग्रेसी हिन्दी युग्म को पैसे दे रहा है,,,,
सादर
सुमित दिल्ली
सुमित आप जो भी हो लेकिन आपको यह समझना चाहिए की ये एक अच्छी pahal है और किसी भी अच्छे काम की मुखालफत करना पाप है आप ये नहीं चाहते की उन हालत का ज़िक्र हो जो आज हमारे मुल्क के लोगों की समस्याएँ हैं अगर आप ये नहीं चाहते तो आप सच्चे प्रजातंत्र के पछधर नहीं हैं
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