अनेक वर्षो के बाद देश एक बार फिर सूखे की चपेट में आ गया है। हालांकि इस वर्ष देश में मानसून का आगमन समय से पूर्व हो गया था लेकिन बाद में पहले केरल में कुछ ठिठका और फिर अन्य क्षेत्रों में अटक गया।
उसके बाद मानसून ने गति तो पकड़ी लेकिन देरी से। एक जून से मानसून सीजन की शुरुआत होती है। आरंभ के सप्ताहों में तो मानसून औसत से 46 प्रतिशत कम था लेकिन धीरे-धीरे मानसून ने गति पकड़ी और यह कमी घटती चली गई। अब हालात यह हैं कि औसत की तुलना में अब तक मानसून की कमी केवल 19 प्रतिशत ही रह गई है।ह
हालांकि मौसम विभाग और सरकार का कहना है कि देश में वर्षा औसत की तुलना में अब केवल 19 प्रतिशत ही कम रह गई है लेकिन इस कमी की चपेट में वे राज्य आए हैं जो देश के खाद्यान्न उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
वर्षा के लिए मौसम विभाग ने देश को 36 उप-खंडों में बांटा हुआ है। नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पूर्व सप्ताह तक 36में से 20 उपखंडों में वर्षा सामान्य से कम दर्ज की गई है। इन उपखंडों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि राज्य आते हैं। असम में 14 और झारखंड में 4 जिलों को अब तक सूखा ग्रस्त घोषित किया जा चुका है।
आशंका है कि भविष्य में कुछ अन्य राज्यों में यही स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
वास्तव में दक्षिणी राज्यों में सामान्य से कहीं अधिक वर्षा दर्ज की गई है जिससे औसत वर्षा कुछ ठीक नजर आ रही है। दक्षिणी राज्यों की भूमिका अनाज के उत्पादन में बहुत ही कम है।
फसल तबाहवर्षा की कमी के कारण देश में खरीफ फसलों की बिजाई बुरी तरह प्रभावित हुई है जबकि देश की कृषि अर्थ-व्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
इस वर्ष देश में अब तक चावल की बिजाई 114.63 लाख हैक्टेयर पर ही की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 145.21 लाख हैक्टेयर पर की गई थी। देश कुल लगभग 391 लाख हैक्टेयर पर चावल की खेती की जाती है।
बाजरा की बिजाई भी अब तक 34.67 लाख हैक्टेयर पर की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 46.01 लाख हैक्टेयर पर की गई थी। मक्का और ज्वार का क्षेत्रफल भी कुछ घटा है लेकिन अपेक्षाकृत कम।
तिलहनों की स्थिति कुछ इसी प्रकार हैै क्योंकि अब तक वह गत वर्ष की तुलना में केचल 3 लाख हैक्टेयर ही पीछे चल रही है। अब तक 107.10 लाख हैक्टेयर पर की जा चुकी है। मूंगफली की बिजाई अधिक प्रभावित हुई है जबकि इसमें तेल की मात्रा अधिक होती है।
दलहनों की बिजाई अब तक 38.38 लाख हैक्टेयर पर की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 40.73 लाख हैक्टेयर पर की जा चुकी थी। भाव ऊंचे होने के कारण अरहर की बिजाई गत वर्ष की तुलना में लगभग 3.66 लाख हैक्टेयर अधिक क्षेत्र पर की जा चुकी है लेकिन अन्य दलहनों की बिजाई घटी है। इसका असर आगामी दिनों में दलहनों के कुल उत्पादन पर पड़ेगा।
गन्ने की बिजाई भी गत वर्ष की तुलना में पीछे चल रही है लेकिन संतोष की बात है कि कपास की बिजाई गत वर्ष की तुलना में लगभग 7 लाख हैक्टेयर आगे चल रही है।
कम होगा उत्पादनजिन फसलों की बिजाई कम हुई है निसंदेह उनका उत्पादन कम होगा और इसका आने वाले महीनों में भाव पर असर पड़ेगा। चावल व मक्का के मामले में स्टाक स्थिति संतोषजनक है लेकिन दलहनों, तिलहनों और गन्ने की स्थिति चिंताजनक है।
दलहनों के भाव तो पहले की आसमान छू चुके हैं। चीनी भी गत वर्ष की तुलना में काफी मंहगी चल रही है। आगामी दिनों में इनके भाव में और तेजी की आएगी।
तिलहनों की स्थिति अभी तक ठीक चल रही है और भाव काबू में हैं लेकिन यह सब रिकार्ड आयात के कारण ही संभव हुआ है। अब विश्व बाजार में भी भाव बढ़ने आरंभ हो गए हैं और देश में तिलहनों का उत्पादन कम होने की आशंका है। इसका असर जल्दी ही उपभोक्ताओं को नजर आएगा जब वे अगले माह की खरीद करने बाजार जाएंगे।
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8 बैठकबाजों का कहना है :
जिन राज्यों को सूखाग्रस्त घोषित किया है .सोचनीय दशा है .उत्तरप्रदेश के तो २२ जनपद सूखाग्रस्त हैं और जिन राज्यों में वर्षा हुयी ,वहाँ बुआई में बीज बह गये .कितने राज्यों में मानसून देर से आने के कारण धान की बुआई नहीं हो पाई
देश की हालत सोचनीय है . आसमान को देखते किसान की फोटो इसी चिंता को दर्शाती है .अति नई जानकारी मिली . आभार .
अब तो बस यही दुआ है. "अलाह मेघ दे पानी दे पानी दे गुडधानी दे."
इस चित्र को देखकर मुझे अपनी एक ग़ज़ल का शेअर याद आ रहा है जो मैंने हिन्दयुग्म पर प्रथम चित्र और रचना में दिए गए चित्र पर लिखी थी.
सूखे में सूख गईं उम्मीदें सारी
चटके हुए बदन में बाकी हम हैं
खुशियाँ तो जैसे अगवाह कर लीं किसी ने
अब बाकी, बाकी बचा तो बस गम है.
आपने आकडों के साथ सूखे की समस्या को बहुत अच्छी तरह से समझाया.
सूखे ने अगर देश में सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया है तो उत्तर भारत में जबकि महाराष्ट्र आदि में तो कुछ जगहों पर बाढ़ भी आई. उत्तर भारत में सूखे से सबसे ज्यादा समस्या पैदा हुई अनाज की खेती को लेकर. कुछ सरकारी आंकडे तो यह भी कहते हैं कि कही कही पर बच्चों को कुपोषण का सामना भी करना पड़ सकता है.
उत्तर प्रदेश के तो हाल यह हैं कि जहाँ 307 mili वर्षा होनी चाहिए थी वहां सिर्फ 117 mili ही वर्षा हुई. 13 लाख हेक्टेयर में तो हल ही नहीं चला. 17 जिले तो ऐसे हैं जहाँ पर एक चौथाई से भी कम वर्षा हुई. अभी तक २० जिलों को सूखा घोषित किया जा चूका है और 67 जिलों को और घोषित किया जाने के बारे में विचार किया जा रहा है. यहाँ पर राजस्व वसूली भी नहीं की जायेगी.
अल्लाह मेघ दे...........
अगले मौसम में परींदे जरूर लौटेंगे..
सब्ज़ पेडों को किसी तौर बचाए रखना...
और..
जिंदगी इन के बिना और भी मुश्किल होगी
सुर्ख उम्मीद के ये फूल खिलाये रखना...
मंजू जी,
यूपी में अब तक 47 जनपदों को सूखा घोषित किया जा चुका है...पर जब तक मुकम्मल सुविधाएं नहीं पहुंचेंगी, इनका कोई फायदा नहीं....सूखे पर सियासत भी शुरू हो गई है....
बहुत ही दुखद है यह.
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