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Sunday, August 02, 2009

चीनी के भाव रोकना सरकार के बस का नहीं...



पिछले कुछ महीनों से चीनी के भाव में तेजी आ रही है। सरकार भाव को काबू
में रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। सरकारी प्रयासों से चीनी के
भाव कुछ नीचे आते हैं लेकिन तुरंत ही पूर्व स्तर से भी ऊपर चले जाते हैं।
हाल ही में सरकार ने चीनी के भाव को काबू में करने के लिए कुछ उपाय किए
हैं। सरकार ने ड्यूटी मुक्त रिफाईंड चीनी के आयात की अवधि को बढ़ा कर 30
नवम्बर, 2009 कर दिया है। इसी प्रकार कच्ची चीनी के ड्यूटी मुक्त आयात की
अवधि 31 मार्च, 2009 कर दी है। इसके साथ ही मिलों के साथ व्यापारियों को
भी इसके आयात की अनुमति प्रदान कर दी है।

सरकार आश्वस्त लेकिन ?
सरकार अब आश्वस्त है कि आगामी त्यौहारी सीजन में चीनी के भाव काबू में
रहेंगे और उपभोक्ताओं के लिए कड़ुवाहट पैदा नहीं करेंगे। लेकिन ऐसा लगता
नहीं है कि सरकार चीनी के बढ़ते भाव को रोक पाएगी।
उत्पादन, बकाया स्टाक, आयात को मिलाकर कुल उपलब्ध्ता और खपत का गणित साफ
संकेत दे रहा है कि चीनी के भाव कम होने की बात ही दूर वर्तमान स्तर पर
रुकने भी संभव नहीं हैं। यही नहीं आगामी सीजन में भी चीनी के भाव नीचे
आने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं।

चीनी का गणित
चालू चीनी वर्ष 2008-09 (अक्टूबर 2008-सितम्बर 2009) में चीनी का उत्पादन
147 लाख टन पर ही सिमट जाने के अनुमान हैं जबकि गत वर्ष यह 264 लाख टन
था।
चालू चीनी वर्ष के आरंभ में चीनी का बकाया स्टाक लगभग 100 लाख टन का था
(हालांकि सरकार और उद्योग में इस पर एक मत नहीं हैं।)। आयात आदि को मिला
कर चीनी की कुल उपलब्धता लगभग 260 लाख टन होने का अनुमान है। भाव बढ़ने के
कारण चीनी की खपत में कमी आई है और सरकार ने निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा
दिया है। इससे अब आलोच्य वर्ष में खपत का अनुमान 230 लाख टन का है।
उपलब्धता में खपत को घटाने के बाद देश में चीनी का स्टाक लगभग 30 लाख टन
बचने का अनुमान है। जबकि सरकारी व व्यापारिक अनुमानों के अनुसार किसी भी
समय देश में चीनी का स्टाक कम से कम तीन माह ही अवधि के बराबर होना
चाहिए। ये आंकड़े ही तेजी के संकेत दे रहे हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आगामी महीनों में रिफाईंड चीनी का आयात भी
होगा और कुछ कच्ची चीनी पाईप लाईन में भी होगी लेकिन घरेलू चीनी के स्टाक
की कमी ही चीनी की तेजी को हवा देने के लिए पर्याप्त है।
इसके अलावा भारत में चीनी का उत्पादन कम होने और इसके द्वारा आयात किए
जाने से विश्व बाजार मे भाव लगातार बढ़ रहे हैं और चोटी पर पहुंच गए हैं।
इससे आयात भी महंगा होगा। व्यापारियों का कहना है कि वास्तव में आयातित
चीनी की लागत स्वदेशी चीनी की तुलना में अधिक होगी। इससे नहीं लगता कि
त्यौहारों के दौरान चीनी के भाव में कोई कमी आएगी।

आगामी सीजन

वास्तव में आगामी सीजन में भी उपभोक्ताओं के चीनी के अधिक दाम चुकाने
पड़ेंगे क्योंकि मानसून की देरी और कमी ने गन्ने की बिजाई को गड़बड़ा दिया
है।
इस वर्ष अब तक 42.50 लाख हैक्टेयर पर गन्ने की बिजाई की जा चुकी है जो गत
वर्ष की इसी अवधि की बिजाई की तुलना में 1.29 लाख हैक्टेयर कम है। राज्य
के अधिकांश जिले सूखे की चपेट में आ चुके हैं। देश के अन्य गन्ना उत्पादक
राज्यों में भी वर्षा की कमी अनुभव की जा रही है। इससे निसंदेह गन्ने के
कुल उत्पादन और उसमें रस की मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हालांकि
अभी से आगामी सीजन में चीनी के कुल उत्पादन के बारे में कुछ नहीं कहा जा
सकता है लेकिन यह तय है कि वह चीनी की घरेलू मांग को पूरा नहीं कर पाएगा।
आगामी वर्ष भी मांग को पूरा करने के लिए आयात का सहारा लेना ही
पड़ेगा।

राजेश शर्मा

Sunday, July 26, 2009

सावन में सूखा, रामा हो रामा....



अनेक वर्षो के बाद देश एक बार फिर सूखे की चपेट में आ गया है। हालांकि इस वर्ष देश में मानसून का आगमन समय से पूर्व हो गया था लेकिन बाद में पहले केरल में कुछ ठिठका और फिर अन्य क्षेत्रों में अटक गया।
उसके बाद मानसून ने गति तो पकड़ी लेकिन देरी से। एक जून से मानसून सीजन की शुरुआत होती है। आरंभ के सप्ताहों में तो मानसून औसत से 46 प्रतिशत कम था लेकिन धीरे-धीरे मानसून ने गति पकड़ी और यह कमी घटती चली गई। अब हालात यह हैं कि औसत की तुलना में अब तक मानसून की कमी केवल 19 प्रतिशत ही रह गई है।ह
हालांकि मौसम विभाग और सरकार का कहना है कि देश में वर्षा औसत की तुलना में अब केवल 19 प्रतिशत ही कम रह गई है लेकिन इस कमी की चपेट में वे राज्य आए हैं जो देश के खाद्यान्न उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
वर्षा के लिए मौसम विभाग ने देश को 36 उप-खंडों में बांटा हुआ है। नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पूर्व सप्ताह तक 36में से 20 उपखंडों में वर्षा सामान्य से कम दर्ज की गई है। इन उपखंडों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि राज्य आते हैं। असम में 14 और झारखंड में 4 जिलों को अब तक सूखा ग्रस्त घोषित किया जा चुका है।

आशंका है कि भविष्य में कुछ अन्य राज्यों में यही स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
वास्तव में दक्षिणी राज्यों में सामान्य से कहीं अधिक वर्षा दर्ज की गई है जिससे औसत वर्षा कुछ ठीक नजर आ रही है। दक्षिणी राज्यों की भूमिका अनाज के उत्पादन में बहुत ही कम है।

फसल तबाह
वर्षा की कमी के कारण देश में खरीफ फसलों की बिजाई बुरी तरह प्रभावित हुई है जबकि देश की कृषि अर्थ-व्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
इस वर्ष देश में अब तक चावल की बिजाई 114.63 लाख हैक्टेयर पर ही की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 145.21 लाख हैक्टेयर पर की गई थी। देश कुल लगभग 391 लाख हैक्टेयर पर चावल की खेती की जाती है।
बाजरा की बिजाई भी अब तक 34.67 लाख हैक्टेयर पर की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 46.01 लाख हैक्टेयर पर की गई थी। मक्का और ज्वार का क्षेत्रफल भी कुछ घटा है लेकिन अपेक्षाकृत कम।
तिलहनों की स्थिति कुछ इसी प्रकार हैै क्योंकि अब तक वह गत वर्ष की तुलना में केचल 3 लाख हैक्टेयर ही पीछे चल रही है। अब तक 107.10 लाख हैक्टेयर पर की जा चुकी है। मूंगफली की बिजाई अधिक प्रभावित हुई है जबकि इसमें तेल की मात्रा अधिक होती है।
दलहनों की बिजाई अब तक 38.38 लाख हैक्टेयर पर की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 40.73 लाख हैक्टेयर पर की जा चुकी थी। भाव ऊंचे होने के कारण अरहर की बिजाई गत वर्ष की तुलना में लगभग 3.66 लाख हैक्टेयर अधिक क्षेत्र पर की जा चुकी है लेकिन अन्य दलहनों की बिजाई घटी है। इसका असर आगामी दिनों में दलहनों के कुल उत्पादन पर पड़ेगा।
गन्ने की बिजाई भी गत वर्ष की तुलना में पीछे चल रही है लेकिन संतोष की बात है कि कपास की बिजाई गत वर्ष की तुलना में लगभग 7 लाख हैक्टेयर आगे चल रही है।

कम होगा उत्पादन
जिन फसलों की बिजाई कम हुई है निसंदेह उनका उत्पादन कम होगा और इसका आने वाले महीनों में भाव पर असर पड़ेगा। चावल व मक्का के मामले में स्टाक स्थिति संतोषजनक है लेकिन दलहनों, तिलहनों और गन्ने की स्थिति चिंताजनक है।
दलहनों के भाव तो पहले की आसमान छू चुके हैं। चीनी भी गत वर्ष की तुलना में काफी मंहगी चल रही है। आगामी दिनों में इनके भाव में और तेजी की आएगी।
तिलहनों की स्थिति अभी तक ठीक चल रही है और भाव काबू में हैं लेकिन यह सब रिकार्ड आयात के कारण ही संभव हुआ है। अब विश्व बाजार में भी भाव बढ़ने आरंभ हो गए हैं और देश में तिलहनों का उत्पादन कम होने की आशंका है। इसका असर जल्दी ही उपभोक्ताओं को नजर आएगा जब वे अगले माह की खरीद करने बाजार जाएंगे।