"इस लोकसभा चुनाव में अब तक दो चरणों में औसतन 55 प्रतिशत मतदान हुआ। यदि देश भर की मीडिया 'वोट दो, वोट दो' नहीं चिल्लाती, तब शायद यह मतदान 35 प्रतिशत तक भी पहुँच सकता था। मतलब लोगों का इन चुनावों के ऊपर से विश्वास उठ रहा है। यह चिंता का विषय है।"
यह शब्द मेरे नहीं हैं, बल्कि देश के सबसे प्रसिद्ध बाबा स्वामी रामदेव के हैं, जो कल राष्ट्रीय सहारा द्वारा आयोजित 'चुनावः चिंता, चुनौती और समाधान' में मुख्य-अतिथि के तौर पर पधारे थे। मैं वहा उपस्थित था। बाबा ने इस बात की हिमायत की कि हमें वोट ज़रूर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोग मुझसे पूछते हैं कि 100 में 99 बेईमान हैं, बाबा हम किसे वोट दें। मैं कहता हूँ, हालाँकि नहीं कहना चाहिए कि कम बेईमान को वोट दो।
बाबा ने बताया कि मैं आरोग्य विषय से हूँ लेकिन देश के आरोग्य को सर्वोपरि मानता हूँ। देश बीमार हो गया है, जिससे हम सब ग्रसित हैं। देश का प्रतिनिधित्व युवा करे या बुजुर्ग, इस विषय पर बोलते हुए रामदेव ने कहा कि बुजुर्ग कमजोर हो सकता, बीमार हो सकता है लेकिन युवा भी शराबखोर, चरित्रहीन, बेइमान, मक्कार हो सकता है।
एक बहुत ही रोचक और चौकाने वाले तथ्य की ओर बाबा ने इशारा किया। उन्होंने बताया कि एक पोलिंग बूथ पर कम से कम 700-800 मतदान करने की व्यवस्था होती है। इस कार्यक्रम में पूर्व चुनाव आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति भी सम्मिलित थे, उनसे रामदेव ने पूछा कि एक मतदाता को वोट करने में औसतन कितना समय लगया है? 4-5 मिनट। मतलब कि चुनाव आयोग ही एक पोलिंग बूथ से 200-250 मतों की ही उम्मीद करता है? यानी बाकि वोट फर्जी पड़ते हैं।
बहुत से चुनाव सुधारों की बात भी बाबा ने कही। जैसे-राजनेताओं की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित हो, अदालत में प्रथम दृष्ट्या अपराधी चुनाव लड़ने से वंचित हों, व्यापारियों को देश नहीं चलाना चाहिए, उन्हें व्यापार करना चाहिए। चुनाव कराये जाने का समय निर्धारित होना चाहिए। गर्मी का मौसम है। पोलिंग बूथ पर पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। बुजुर्गों के लिए बैठने के लिए जगह नहीं है।
बाबा रामदेव के बाद जे॰एन॰यू॰ के कुलपति प्रो॰ बी॰बी॰ भट्टाचार्य ने अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों का पैन कार्ड बनना व आयकर रिटर्न भरना आवश्यक होना चाहिए ताकि यह पता तो चले कि उम्मीदवारों कहाँ से कितना कमाया है। मैं यह मानता हूँ कि वह सीए से हेर-फेर करके गड़बड़ रिटर्न बनवा लेगा, लेकिन फिर भी एक दबाव बनेगा।
भट्टाचार्य ने राजनेताओं की उदासीनता का उदाहरण देते हुए बताया कि हर बार बजट या किसी आर्थिक मुद्दे पर बहस के लिए टीवी वाले मुझे कार्यक्रम में बुलाते हैं। एक तरफ सत्तापक्ष का नेता और दूसरी तरफ विपक्ष का नेता और बीच में मैं। अपने देश की आर्थिक नीतियाँ बनाने वालों के बीच मैं बैठा हूँ। जैसे ही ब्रेक होगा, एक नेता पूछेगा, भट्टाचार्या जी इस बजट में जो-जो अच्छा है हमें बता दीजिए बोलना है, और दूसरा है वो पूछेगा जो-जो बुरा है वो बता दीजिए।
प्रो॰ भट्टाचार्य ने बताया कि इतने उदासीन लोग, इतने अनपढ़, गाँवार लोग हमारी लोकतंत्र की दिशा तय करते हैं, यह शर्म की बात है। उन्होंने नेता बनने के लिए न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने की बात को दुबारा उठाते हुए कहा कि चुनाव लड़ने से पूर्व उम्मीदवारों की ऐसा परीक्षा अनिवार्य हो जिसमें भारतीय संविधान, देश की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था व नीतियों से संबधित सवाल पूछे जाएं।
भट्टाचार्य ने कहा कि यदि सर्वे किया जाय तो शायद 15 प्रतिशत भी एसे पी॰ एम नहीं निकलेंगे जो आम बजट पढ़ते हों।
एक और महत्वपूर्ण बात भट्टाचार्य जी ने कही कि अभी तक किसी ने यह नहीं कहा कि भारत में चुनाव नहीं होने चाहिए, यह आशा की किरण है कि लोगों का लोकतंत्र से विश्वास नहीं उठा है।
इसके बाद पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति माइक पर आये। उन्होंने कहा कि चुनाव सुधार के लिए भारतीय संविधान में परिवर्तन के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 और कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल 1961 में भी व्यापक संशोधन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग संविधान के अनुसार ही चलता है। इसलिए संविधान को बदलना जरूरी है।
कंस्सीट्यूशन क्लब (दिल्ली) में आयोजित इस संगोष्ठी के दो सत्र थे। पहले सत्र में सहारा परिवार के उपाध्यक्ष ओ॰ पी श्रीवास्तव भी बोले। उन्होंने बताया कि सहारा परिवार देश की स्थितियों को लेकर बहुत पहले से ही सजग है। यह चुनाव अभियान उस बीज-सजगता का विस्तार है।
गोष्ठी के दूसरे सत्र में सुप्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे के उद्बोधन से गोष्ठी आगे बढ़ी। अन्ना ने बताया कि व्यक्ति यदि ठान ले तो बहुत कुछ कर सकता है। मैंने 26 वर्ष की उम्र में ही ठान लिया था कि मुझे शादी नहीं करनी, मुझे छोटा परिवार नहीं बसाना, बड़ा परिवार बनाना है। और मुझे बहुत खुशी है कि आज मेरे लाखो-करोड़ों बच्चे हैं। आज 72 वर्ष का होने के बाद भी दिल में समाज के लिए कुछ करने का जज्बा कम नहीं हुआ है। हमने ठान लिया था गाँव-गाँव में पर्यावरण (जमीन-पानी) के प्रति लोगों को जागरूक करना है। मुझे खुशी है पूरे महाराष्ट्र के किसी भी गाँव में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव नहीं है। गाँव के विकास से ग्रामीणों का शहर की तरफ पलायन घटता है।
अन्ना ने यह भी बताया कि वे लगातार आंदोलन करते रहे। सरकार तब तक आपकी बात नहीं मनाती जब तक उसे अपनी कुर्सी का खतरा ना हो। जब महाराष्ट्र सरकार को कुर्सी छूटने का खतरा महसूस हुआ तो 2001 में 'सूचना का अधिकार' कानून बना। बाद में 2005 में ये पूरे देश में लागू हुआ।
अन्ना ने कहा कि कि चुनाव सुधार के लिए जरूरी है कि जनता को ‘राइट टू रिकॉल’ मिले और बैलेट पर एक निशान मतदाता की नापसंदी का भी हो, अगर नापसंदी पर ज्यादा वोट मिलते हैं तो चुनाव निरस्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि चुनाव में मतदान न करने वालों की सभी सुविधाएं बंद कर दी जानी चाहिए। मैं इसके लिए लड़ाई लड़ रहा हूँ।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिन्दर सच्चर ने कहा कि इन दिनों राजनीति के अपराधीकरण का मुद्दा प्रमुख है लेकिन असल में यह अपराधियों का राजनीतिकरण है। पहले केवल राजनीतिज्ञ ही चुनाव जीतने के लिए अपराधियों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब बाहुबलि जान गये कि जब हमारे ही बल पर चुनाव जीते जा रहे हैं तो हम ही क्यों जीतें? अन्ना हजारे के विचारों से ये भी सहमत दिखे।
भारतीय चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजे राव ने कहा देश को इस स्थिति से उबारने के लिए गंभीर लोगों को एक मंच पर आना होगा और लड़कर चुनाव सुधार करना होगा। आंध प्रदेश में उनकी संस्था ने बहुत से आशचर्यजनक परिवर्तन किये हैं।
सबसे अंत में बोलने के लिए पधारे उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण। इन्होंने बोला कि भारत की डेमोक्रेसी को रिप्रेजेंटेटिव (प्रतिनिधित्व) की जगह पार्टीसिपेटरी (भागीदारी) या डायरेक्ट (सीधा) होना चाहिए। कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर पूरे देश का विचार लेना आवश्यक है। आज का युग इंटरनेट का युग है। गाँव-गाँव से इंटरनेट के माध्यम से जनता का मत जाना जा सकता है। इन्होंने शक्तियों के विकेन्द्रीकरण की बात कही। प्रशांत भूषण ने कहा कि जनता लोकसभा चुनाव में जनता उम्मीदवार को वोट नहीं देती, बल्कि उसे वोट देती है जो सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएगा। अगर यह सोचा जाय कि आज एक अच्छा और ईमानदार आदमी चुनाव में खड़ा होता है तो क्या वो जीत पायेगा?
इन्होंने न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता पर अपनी असहमति जताई और बताया कि अनपढ़ लोगों में, इलीटरेट लोगों में पोलिटिकल अंडरस्टैंडिंग (राजनैतिक समझ) पढ़े-लिखे लोगों से भी ज्यादा होती है। के॰जे॰ राव सबसा अनूठा उदाहरण हैं। उनमें लो लीडरशिप क्षमता थी, वह किसी पढ़े-लिखे लोगों में भी नहीं देखने को मिली। प्रशांत भूषण ने उम्मीदवार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने के चुनाव न लड़ने देने वाले विचार पर भी असहमति जताई। कहा कि मजिस्ट्रैड पुलिस के एफ आई आर के विना पर ही चार्जशीट तैयार करता है। विपक्षी पार्टियाँ किसी भी पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करवा कर, चार्ज शीट दाखिल करवाकर चुनाव लड़ने देने से रोक सकती हैं।
उन्होंने कहा कि सबसे ज़रूरी है कि भारत की न्यायिक प्रणाली में सुधार हो। निर्णय जल्दी आयें। अभी जो 20 साल लगने वाला एक स्लो सिस्टम है वह भारत को आने नहीं बढ़ने दे रहा।
सहारा समूह प्रकाशन के प्रधान संपादक रणविजय सिंह के सबका धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी का संचालन जेएनयू के प्रो॰ आनंद कुमार ने किया। इन लोगों के अलावा गोष्ठी में दिल्ली विश्वविघालय के डिप्टी डीन (स्टूडेंट वेलफेयर) डा.गुरप्रीत टुटेजा, खालसा कालेज के प्रधानाचार्य डा.जसविंदर सिंह, दयाल सिंह कालेज के प्रधानाचार्य डा.दीपक मल्होत्रा, फेडकूटा के पूर्व अध्यक्ष प्रो.कपिल कुमार, आईआईएमसी के एसो.प्रो.आनंद प्रधान, डीयू के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सुधीर पचौरी, प्रो.गोपेश्वर सिंह, जेएनयू के प्रो.देवेन्द्र चौबे, पूर्व मेयर आरती मेहरा, पदमश्री श्याम सिंह शशि, दिल्ली हिन्दी अकादमी के सचिव डा. ज्योतिष जोशी, एनएसडी के सुरेश शर्मा, दिल्ली कैथेलिक आर्चडाइज के निदेशक फादर डोमोनिक इमैनुअल, आईसीआई के सदस्य सहदेव कन्दोई, मौलाना आजाद दंत विज्ञान संस्थान के सहायक प्रोफेसर डा. ज्ञानेन्द्र कुमार, सर गंगाराम अस्पताल के सर्जन डा. विवेक कुमार, एम्स के हिन्दी विभाग के प्रमुख प्रेम सिंह, श्रीनीलम कटारा, वरिष्ठ पत्रकार तरूण विजय, प्रो. कपिल कुमार, लेखिका मैत्रेयी पुष्पा, सुप्रसिद्ध कवयित्री अनामिका, केन्द्र सरकार के एडवोकेट नवीन कुमार मारा, दिल्ली सरकार की मुख्य अधिवक्ता नजमी वजीरी, अधिवक्ता अशोक अग्रवाल, उपहार अग्निकांड पीड़ित एसोसिएशन के संयोजक नीलम कृष्णामूर्ति, शेखर कृष्णामूर्ति, गांधी शांति प्रिष्ठान के सचिव सुरेंद्र कुमार, दरस्गाह तफहीम कुरआन के संस्थापक अध्यक्ष हसन अमीर, मदरसा जीनतुल कुरआन के मोहतमिम मौलाना ताहिर, यूपीएससी के पूर्व चेयरमैन डा.एसआर हाशिम, पूर्व एयर मार्शल आरसी वाजपेयी, जेएनयू के प्रोफेसर तुलसी राम, कथक नृत्यांगन पुनीता शर्मा, युद्धरत आम आदमी पत्रिका की संपादक रमणिका गुप्ता, वाशिंगटन से आए टेक्नोक्रेट और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विदेश नीति सलाहकार रहे शेखर तिवारी, बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के पूर्व उपकुलपति और भीमराव अम्बेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ बायो मेडिकल साइंस के डाक्टर रमेश चंद्रा, पंजाब सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता रणजीत कपूर आदि उपस्थित थे।
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4 बैठकबाजों का कहना है :
बाबा ने इस बात की (हिमाकत) की कि हमें वोट ज़रूर देना
(हिमाकत) nahee baba HIMAAYAT
मुझे प्रूफ करना चाहिए था। टाइपिंग मिस्टेक बताने के लिए शुक्रिया अंशु भाई।
संगोष्ठी का जीवंत वर्णन पढ़कर आनंद आया...मेरे मत में इस नकारात्मक राजनीति का मूल दलवाद में है. दलों के दलदल में देश डूब रहा है. राष्ट्रहित को नहीं दल-हित को वरीयता दी जा रही है. संसद में विपक्ष को राष्ट्र हित की नीति पर सत्ता दल का समर्थन तथा राष्ट्र-विरोधी नीति पर विरोध करना चाहिए पर ऐसा नहीं होता. जनता को राष्ट्र-हित में सब कुछ कुर्बान करने के लिए तत्पर होना चाहिए किन्तु कुछ सम्बन्धियों को आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाने पर जनता शासन पर दबाव बनाती है की आतंकवादियों को विदेश पहुँचने के लिए सरकार पर दबाव बनाती है और मीडिया राष्ट्र हित की चिंता भूलकर टी आर पी के पीछे पागल है...दलगत राजनीति ख़त्म हो...कोई चुनाव में खडा न हो, न प्रचार हो...हर मतदाता जिसे चाहे कोरे मतपत्र पर नाम लिखकर मत दे...जिसे सर्वाधिक मत मिलें वही सब मतदाताओं का प्रतिनिधि हो...जन प्रतिनिधि इसी तरह मंत्रियों को चुनें. संसद में सरकार तथा समर्थक हों विपक्षी कोई नहीं होगा. जनप्रतिनिधि चुने जाने पर संपत्ति व आय का जो ब्यौरा देगा उसमें ५ सालों में देश की राष्ट्रीय आय से जितनी अधिक वृद्धि हो वह राष्ट्रीय कोष में जप्त की जाये. इससे ईमानदारी बढेगी.
भारत वासी जी आप वाकई भारतवासी हैं! इतनी अच्छी रिपोर्ट के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं! मैं भी प्रो. भट्टाचार्य जी के प्रस्ताव से पूर्णतया सहमत हूँ की चुनाव लड़ने से पूर्व उम्मीदवारों की ऐसा परीक्षा अनिवार्य हो जिसमें भारतीय संविधान, देश की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था व नीतियों से संबधित सवाल पूछे जाएँ और उसमे असफल होने वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर देना चाहिए! फिर भी हमारा कर्तव्य बनता है की हमें अपने कीमती वोट को बेकार नहीं जाने देना चाहिए! हमें वोट ज़रूर देना चाहिए!
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