हर बार लोक सभा चुनाव वर्ष के दौरान सत्तारुढ़ सरकार आम बजट में ऐसे प्रस्ताव लाती है जिनसे आम जनता प्रसन्न हो और उपहार स्वरुप सत्तारुढ़ दल को ही वोट दे कर कृतार्थ करे। इस वर्ष भी ऐसा ही हो रहा लेकिन हालात बदले हुए हैं। सरकार दोनों हाथों से लुटा रही है। फिलहाल तो आम जनता खुश हो रही है लेकिन अगली सरकार के आने भले ही उसे इसकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी।
रेल मंत्री श्री लालू यादव ने रेल के यात्री किराए में कमी की है। यह कमी हर श्रेणी में की गई। वह पिछले पांच वर्षों से ऐसा ही करते आ रहे हैं। यह कार्य वह आंकड़ों को इधर से उधर करके कर रहे हैं क्योंकि राजस्व में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो रही है। रेल किराए में जो कमी आती है उसे माल भाड़े के आंकड़ों से पूरा किया जा रहा है। नए प्रोजैक्ट नहीं लग रहे हैं। लेकिन आम जनता को इससे कोई सरोकार नहीं है उसे तो प्लेटफार्म से भी कम के टिकट पर यात्रा करने को मिल ही रहा है।
हालांकि वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट पेश करते हुए आम जनता के लिए कोई घोषणा नहीं की थी लेकिन बजट पर बहस के दौरान वाही-वाही लूट ही ली है। उन्होंने आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए आयात शुल्क में कमी की है। उत्पाद शुल्क में कमी की है। सेवाकर की दरों में कमी की है। उन्होंने कई हजार करोड़ रुपए आम जनता पर न्यौछावर कर दिए हैं। लेकिन क्या इसका लाभ जनता को मिलेगा ?
कुछ वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क में दो प्रतिशत की ही कमी की गई। वह ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है। यही नहीं यह कटौती भी उपभोक्ता तक पहुंच पाएगी? इस पर भी संदेह है।
इस कमी को उद्योग ही हजम कर जाएगा जैसा की पूर्व में होता आया है।
सेवा कर में भी केवल 2 प्रतिशत की कमी की गई है। यानि 100 रुपए के टेलिफोन बिल पर 2 रुपए की छूट।
कूरियर, सैलून, ड्राईक्लनिंग का लाभ तो व्यापारी या सेवा प्रदाता ही हजम कर जाएगा।
आम आदमी यानि कम कीमत की कारों पर शुल्क में कोई छूट नहीं दी है लेकिन महंगी कारों पर शुल्क कम किया है और इसका लाभ उच्च वर्ग को ही मिलेगा। लेकिन बेगानी शादी में अब्दुला दिवाना यानि आम आदमी खुश।
करों में छूट देने का कोई भी विरोधी नहीं है लेकिन यह मौका इस प्रकार की छूट लुटाने का नहीं है। वैश्विक मंदी से भारत भी अछूता नहीं है। निर्यात कम होने से उत्पादन घट रहा है और इससे सरकार को दोहरा नुकसान हो रहा है। एक तो विदेशी मुद्रा में कमी आ रही है और दूसरे उत्पाद शुल्क कम मिल रहा है। यानि राजस्व में कमी हो रही है लेकिन सरकार लुटा रही है।
सरकार ने पहले सरकारी कर्मचारियों को छठा वेतन आयोग दिया और अब महंगाई भत्ता भी बढ़ा दिया। बाबू वेतन वृद्वि भी पाकर खुश तो है लेकिन बढ़ती महंगाई का रोना भी रो रहा है।
वास्तव में यह वर्ष वैश्विक मंदी का है और हर ओर मंदी व्याप्त है लेकिन सरकार है कि दोनों हाथों से लुटा रही बिना यह सोचे की आने वाले महीनों में क्या होगा?
एक एजेंसी का कहना है कि भारत में आने वाले दिनों में आर्थिक हालात खराब हो सकते हैं, लेकिन सरकार ने इस पर गौर नहीं किया।
यह ठीक है अब सरकार ने वाही-वाही लूट ली है लेकिन आने वाले महीनों में बजट में होने वाली कमी को पूरा करने के लिए नई सरकार के सामने भारी कराधान करने के कोई उपाय नहीं होगा।
राजेश शर्मा
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3 बैठकबाजों का कहना है :
आया आम चुनाव अब,
राहत का है दौर.
जो दल सत्ता पायेगा,
वह लूटेगा और.
नाग सांप बिच्छू खड़े,
जनता है मजबूर.
जिसे चुना वह डंसेगा,
होकर मद में चूर.
जनता का धन लुटाते,
नहीं बाप का माल.
इनको सत्ता चाहिए,
देश भले कंगाल.
sanjivsalil.blogspot.com
नहीं रहे निष्पक्ष जब,
खुद चुनाव आयुक्त.
युक्ति करेगा कौन सी,
जनमत कहो प्रयुक्त?
सत्ता सब को चाहिए,
हाथी हो या हाथ.
साईकिल हँसिया कमल भी,
खड़े होड़ में साथ.
लुटा खजाना देश का,
लूटेंगे मिल रोज.
चोर गले मिल जायेंगे,
'सलिल' बहाने खोज.
नूरा कुश्ती हो रही,
बना खलीफा धूर्त.
भूल देश निज स्वार्थ के,
सपने करते मूर्त.
अच्छा लेख, इस तरह की कटोती का लाभ जनता तक पहुचने मे बहुत समय लगता है और ज्यादातर उन तक पहुच भी नही पाता
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