Friday, July 10, 2009

होरी कहे पुकार के.....

होरी कहे पुकार के

हे रे होरी, हे रे गोबर, हे री धनिया , हे रे दमड़ी बसोर, हे रे हरखू, हे री सिलिया,हे रे हीरा, ओ री रूपा, ओ रे रामसेवक, ओ रे शोभा, हां री सोना, ओ री पुनिया, ओ री गोविंदी, ओ री झुनिया, आओ रे , चलो देश में लाकतंत्र आ गया है। आओ रिश्वत खाएं। छोड़ो रे तिल तिल कर मरना, कुछ खाने को नहीं मिल रहा है तो कोनो चिंता। सरकार बहादुर ने सब के लिए रिश्वत खाने के द्वार समान रूप से खोल दिये हैं। का हुआ जो राशन की दुकान पर से आटा गायब हुई गवा है। का हुआ जो राशन की दुकान पर से चावल गायब हुई गवा है। रिश्वत खाने के अवसर तो सरकार सड़क से संसद तक सभी को बराबर दे रही है। छोड़ो खेतों में काम करना, छोड़ो गऊदान के लिए तिल तिल मरना। चलो छोड़ो सब काम और पेट पर हाथ फेर फेर कर रिश्वत खाओ। देखते ही देखते मोटे हो जाओ। सब देश में रिश्वत खा रहे हैं। सबने आटा खाना छोड़ दिया है। सबने सब्जी खानी छोड़ दी है।

`पर साहब हम तो जन्मजात अनपढ़ हैं। हम तो जन्मजात शोषित हैं। मातादीन आज भी हमें लूट रहा है। दातादीन आज भी हमें लूट रहा है। झिंगुरी सिंह आज भी हमारा तेल निकाल रहा है। पटवारी को अगर मेरे माई बाप हम आज भी नजराना और दस्तूरी न दें तो गांव में तो गांव में, खेत में जाना मुश्किल हो जाए। आज भी जो गांव के प्रधान और उसके कारिंदों के पेट न भरें तो राशन कार्ड कैंसिल हो जाए। बी पी एल में तो लाला लोगन का ही हक है। पुलिसवाले तो आज भी हमारे दामाद हैं। जब जब गांव में उनका खाने को मन करे बिन सूचना दिए सांड की तरह आ धमकते हैं और तब धर्म निरपेक्ष देश में हमारा धर्म हो जाता है कि हम सबकुछ छोड़ उनका आदर सत्कार करें। उन्हें नजर नयाज दें। नहीं गांव में हरेक की मां बहन हो जाए। गांव में कुत्ते कम आते हैं मुलाजिम अधिक । हम तो आज भी उनके सामने हाथ बांधे खड़े रहते हैं। अपने पशुओं के लिए चारे का इंतजाम हो या न हो उनके लिए सारे काम छोड़ चारे, अंडे ,मुर्गी दूध,घी का इंतजाम करना पड़ता है। आज भी हमें रोटी खाने की आदत नहीं तो रिश्वत कैसे खांए?´ सबने सिसकते हुए हाथ जोड़ते कहा। धत्त तेरे की ! मैंने भी कैसे भूखे नंगों को रिश्वत खाने के लिए आमंत्रित कर अपनी नाक कटवा ली। सोचा था, ये भी जो सदियों से गंगा की केवल धाराएं गिनते गंगा किनारे बैठे हैं, थोड़ा बहती गंगा में हाथ धो लें। समाजवादी हूं न! सोचता हूं देश के अन्य संसाधनों की तरह रिश्वत पर भी सभी का समान रूप से हक हो। सोचता हूं देश में सब अधिकार सबको समान रूप से मिलें।

`अनपढ़ हो तो क्या हुआ! जन्मजात शोषित हुए तो क्या हुआ। अब देश आजाद हो गया है। अनपढ़ को क्या रिश्वत खाते हुए शर्म आती है? शोषित को क्या रिश्वत खाते हुए शर्म आती है? अनपढ़ को क्या रिश्वत खाते हुए पेट में दर्द होती है? शोषित का क्या आजाद देश में रिश्वत खाते हुए पेट में दर्द होती है? अनपढ़ के क्या पेट नहीं होता? शोषित को क्या पेट नहीं होता? अनपढ़ का क्या हराम का खाने को मन नहीं करता? शोषित का क्या हराम का खाने का मन नहीं करता? जिनमें दिमाग है जब उनको ही रिश्वत खाते हुए शर्म नहीं आती तो अनपढ़ में जब दिमाग ही नहीं होता तो उसे तो कम से कम रिश्वत खाते हुए शर्म नहीं आनी चाहिए। देखो, रिश्वत खाने वाले कैसे धड़ा धड़ पुरस्कृत हो रहे हैं। रायसाहब की तरह हवेलियों पर हवेलियां बनाए जा रहे हैं।´

`पर हम रिश्वत कैसे खाएं? हम तो तंत्र से बाहर हैं।´

`तो तंत्र में आओ।´

`कैसे??´

`किसी लीडर को पटाओ। चुनाव के दिनों में उसके पोस्टर चिपकाओ। उसके लिए जान हथेली पर रख वोट जुटाओ। फिर तंत्र में कुछ भी हो जाओ।´

` तो क्या हम राय साहब हो जाएंगे? तो क्या हम पंडित दातदीन हो जाएंगे? तो क्या हम थानेदार साहेब हो जाएंगे? तो क्या हम कानिसिटिबल हो जाएंगे? तो क्या हम कानूनगो हो जाएंगे? तो क्या हम डिप्टी हो जाएंगे? तो क्या हम कमिसनर हो जाएंगे? तो क्या हम कलक्टर हो जाएंगे? तो क्या हम डाक्टर हो जाएंगे? तो क्या हम इंजिनियर हो जाएंगे? तो क्या हम नहर वाले साहब हो जाएंगे? तो क्या हम जंगल वाले साहब हो जाएंगे? तो क्या हम ताड़ी- सराब वाले साहब हो जाएंगे? तो क्या हम गांव सुधार वाले साहब हो जाएंगे? तो क्या हम खेती वाले साहब हो जाएंगे? तो क्या हम पादड़ी हो जाएंगे? तो क्या हम जमींदार हो जाएंगे?´

`इस सबके लिए तो पढ़ा लिखा होना जरूरी होता है। तभी तो सरकार कहती है पढ़ो और पढ़कर देश का बेड़ा गर्क करो।´

` तो??´ सबको सांप सूंघ गया,` तो रिश्वत कैसे खाएं?´

` लीडर से कहो तुम्हें चेयरमैन बना दे। नेता से कहो तुम्हें मंत्री बना दे।´

`इस सबके लिए अनपढ़ चलेगा क्या?´

` चलेगा क्या, दौड़ेगा। सरपट । खरगोश की तरह। देश का वोटर पढ़ा लिखा होना चाहिए पर नेता नहीं। ´ मैंने कहा तो होरी ने सबको बला बुला कुलांचे भरते हुए कहा,` `हे रे काली, हे रे जीतू, हे रे मंगू, हे रे नंदसिंह, हे री प्रीतो, हे रे चौधरी कंता, हे रे चौधरी बसंता हे रे गोबर, हे री धनिया , हे रे दमड़ी बसोर, हे रे हरखू, हे री सीलिया,हे रे हीरा, ओ री रूपा, ओ रे रामसेवक, ओ रे शोभा, हां री सोना, ओ री पुनिया, ओ री गोविंदी, ओ री झुनिया, आओ रे , चलो देश में लाकतंत्र आ गया है। पर भैया! हम काहे रिश्वत खाएं? लोक तो बिगड़ा ही ,परलोक भी बिगाड़ें क्या?? जारी रखो रे तिल तिल कर मरना, कुछ खाने को नहीं मिल रहा है तो कोनो चिंता। लेओ भैया! सरकार बहादुर ने सब के लिए रिश्वत खाने के द्वार समान रूप से खोल दिये हैं। फुकने दो जो राशन की दुकान पर से आटा गायब हुई गवा है। फुकने दो जो राशन की दुकान पर से चावल गायब हुई गवा है। पर लेओ रिश्वत खाने के अवसर तो सरकार सड़क से संसद तक सभी को बराबर दे रही है। पर हम तो मजूरी ही करें। चलो भूखो ही मरें। ईमानदारी से ही पेट पालें। रिश्वत खाने वालों का नहीं रे! देश अपना है ,धरती अपनी है। सब तो देश में रिश्वत खा रहे हैं। पर आओ रिश्वत न खाकर हम देश के विकास में हाथ बंटावें, हम तो बच न सके, पर चलो मिलीके देश बचावें।´

डॉ. अशोक गौतम

गौतम निवास,अप्पर सेरी रोड
नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र.

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4 बैठकबाजों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

atyantm sateek aur saarthak aalekh!
saare uljhaav ko spasht karti bheeni bhaasha ka sahajk pravaah rachna ko aur bhi jaan daar banaa raha hai !

badhaai !

Disha का कहना है कि -

आज देश की नस-नस में रिश्वत का जहर भर गया है.
किसी न किसी को तो शुरुआत करनी होगी
बढिया

Shamikh Faraz का कहना है कि -

"हे रे होरी, हे रे गोबर, हे री धनिया , हे रे दमड़ी बसोर, हे रे हरखू, हे री सिलिया,हे रे हीरा, ओ री रूपा, ओ रे रामसेवक, ओ रे शोभा, हां री सोना, ओ री पुनिया, ओ री गोविंदी, ओ री झुनिया, आओ रे , चलो देश में लाकतंत्र आ गया है। आओ रिश्वत खाएं। छोड़ो रे तिल तिल कर मरना, कुछ खाने को नहीं मिल रहा है तो कोनो चिंता। सरकार बहादुर ने सब के लिए रिश्वत खाने के द्वार समान रूप से खोल दिये हैं। का हुआ जो राशन की दुकान पर से आटा गायब हुई गवा है। का हुआ जो राशन की दुकान पर से चावल गायब हुई गवा है। रिश्वत खाने के अवसर तो सरकार सड़क से संसद तक सभी को बराबर दे रही है। छोड़ो खेतों में काम करना, छोड़ो गऊदान के लिए तिल तिल मरना। चलो छोड़ो सब काम और पेट पर हाथ फेर फेर कर रिश्वत खाओ। देखते ही देखते मोटे हो जाओ। सब देश में रिश्वत खा रहे हैं। सबने आटा खाना छोड़ दिया है। सबने सब्जी खानी छोड़ दी है।"


आपने इन लाइन से जो शुरुआत की है वह काफी अच्छी है. रिश्वत पर जो व्यंग मारे हैं बहुत सुन्दर हैं. कुछ रिश्वत से जुडी हास्य पब्क्तियाँ याद आ रही हैं मुझे देखी.

नेता सारे देश को खाते हैं इसी लिए तो इनके विदेश में खाते हैं

Manju Gupta का कहना है कि -

प्रेमचंद जी के पात्रो से रिश्वत का व्यंग्य सराहनीय है रिश्वतखोर देश को खोखला कर रहे
है..

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