Saturday, July 11, 2009

धुँआ होती जिन्दगी...



नशा कोई भी हो, हर हाल में नुकसानदेह है. लेकिन सिगरेट पीना एक ऐसा नशा हैं जो पीने वालों के साथ-साथ ना पीने वालों को भी अपना शिकार बनाता है. सिगरेट से निकलता धुआँ सैकड़ों लोगों की जिन्दगियों में अँधेरा कर देता है. टी.बी, फेफडों का कैंसर, मुँह का कैंसर आदि बीमारियाँ तथा प्रजनन क्षमता में कमी जैसे भयानक परिणाम सामने आते हैं. किन्तु आज समाज में "हर फिक्र को धुँए में उड़ाने" की प्रवृति जन्म ले चुकी है. सिगरेट पर रोक लगाने के लिये कई कानून भी बनाये गये हैं, जिसके तहत सार्वजनिक स्थानों में सिगरेट पीना कानूनन अपराध है. ऐसा करने पर जुर्माना तथा सजा हो सकती है. लोगों को जागरूक करने के लिए सिगरेट के पैकेट पर बड़े-बड़े अक्षरों तथा चित्रों में चेतावनी दिये जाने का कानून बना है. यहाँ तक की अट्ठारह साल से कम उम्र के लोगों को सिगरेट न बेचना तथा स्कूल/कालेजों से सौ ग़ज की दूरी तक सिगरेट की कोइ भी दुकान न होना कानून लागू किया गया है.

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या केवल कानून बनाना देना ही इस समस्या का हल है. कानून तो पहले भी बने थे उनका नतीजा क्या निकला, कुछ नहीं. जब तक कानून को पूरी इमानदारी से लागू ना किया जाए, हल निकल भी कैसे सकता है. आप अपने आस-पास कितने ही उदाहरण देख सकते हैं जहाँ स्वयं पुलिस वाले ही कानून की धज्जियां उड़ाते हुए मिल जायेगें. बसों में लिखा होता है कि "धूम्रपान निषेध है" लेकिन वहाँ कंडक्टर और ड्राइवर ही सिगरेट पीते मिल जायेगें तो वो दूसरों से क्या कहेगें ?

खै़र यहाँ मेरा मक़सद कानून को कोसना नहीं है वरन लापरवाहियों की तरफ ध्यान दिलाना था. अगर सरकार सही में सिगरेट मुक्त वातावरण चाहती है तो उसे समय-समय पर नशा मुक्त कैम्प लगाने चाहिये और लोगों को नशे से मुक्त होने में मदद करनी चाहिये.

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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8 बैठकबाजों का कहना है :

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

हमेशा से कानून से बड़ा समाज का पहरा होता है, लेकिन आज समाज समाप्‍त प्राय: है तो किसी का डर नहीं है व्‍यक्ति में। मीडिया अभिनेताओं को समाज के हीरो बनाने में तुला रहता है, और ये सारे ही हीरो बुरी तरह से व्‍यसनों से जकड़े हुए हैं तो युवापीढी भी उनका अनुसरण करती है। आज कहीं भी समाज व्‍यवस्‍था जीवित है तो वह भी केवल सत्ता के लिए ही है, किसी भी जातिगत समाज में इन बुराइयों के प्रति कार्य नहीं होता अपितु सभी को सत्ता की ही चाहत रहती है। इसलिए कानून अकेला पर्याप्‍त नहीं है। डंडे के जोर से हम कब तक चलेंगे, हमें तो संस्‍कारित होना ही पड़ेगा।

Disha का कहना है कि -

बहुत सही कहा आपने

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बिलकुल सही और अजीत गुप्ता जी की टिप्प्णी ने यथार्थ को ब्याँ कर दिया है आभार्

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बिलकुल सही और अजीत गुप्ता जी की टिप्प्णी ने यथार्थ को ब्याँ कर दिया है आभार्

Manju Gupta का कहना है कि -

हर घर को संस्कारित होना पडेगा

आलोक साहिल का कहना है कि -

ab kya kahein...
kaanun vaanun se kuchh hota jata nahin...ek line ki baat hai jinhe peena hai we piyenge hi..balki, agar kaanun bana to jyada piyenge...yahi youth mentality hai...
to, ye to pine waalon par hi chhod dena chahiye ki we kya karein...kyonki pine waale lagbhag sabhi jante hain ki isse haaniyan kya hain...
agar kuchh kar sakte hain to itna ki kisi ko pine ko uksaayein na aur agar koi chhodna chahe to use rokein na...
ALOK SINGH "SAHIL"

Shamikh Faraz का कहना है कि -

"हर फिक्र को धुँए में उड़ाने" की प्रवृति जन्म ले चुकी है.


आपने बहुत अच्छा लिखा. आखिर में आपने लिखा कि सरकार को नशा उन्मूलन केंद्र चलने चाहिए लेकिन यह तो सिर्फ उन लोगो के लिए होंगे जो लगातार धुम्रपान कर रहे हैं. इस से भी बड़ा सवाल है कि युवाओं को शुरू करने के पहले धुम्रपान से कैसे रोका जाये. एक कहावत के माध्यम से कहूँ तो "सर फूटने के बाद इलाज के लिए भटकने से बहतर है कि सर अगर बच सकता है तो बचा लिया जाये." मुझे तो कभी कभी सरकार कि भूमिका पे भी शक होता है. इस लिंक को देखें आप खुद समझ जायेगी.

http://tambakookills.blogspot.com/2009/07/blog-post_6686.html

Divya Prakash का कहना है कि -

मैं ये तो नहीं कहूँगा की अच्छा लिखा है लेकिन ... अच्छी बात लिखी है ...
वैसे मैं आप सभी से कहूँगा कि एक बार "Thank you for smoking" फिल्म जरुर देखें !!

Saadar

Divya Prakash Dubey
http://www.youtube.com/watch?v=nG2v823ieUk

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