मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने कुछ निर्णयों के बारे में जनता को अवगत कराया। मुझे एक बात तो मालूम थी कि अर्जुन सिंह बेशक चले गये पर कांग्रेस सरकार चलेगी उसी तरह ही। बेचारे अर्जुन सिंह बिना वजह ही बलि का बकरा बनाये... पहले तो उन्होंने कहा कि १०वीं का बोर्ड समाप्त किया जाये। ये बच्चे की मर्जी पर होगा कि बोर्ड की परीक्षा देनी है या नहीं। कपिल सिब्बल ये बतायें कि एक औसत बच्चा पढ़ाई कब करता है। वो तभी पढ़ता है जब परीक्षा होती है। जनवरी-फरवरी में तो पढ़ाई शुरु की जाती है। उस पर यदि आप परीक्षा समाप्त कर देंगे तब तो भगवान भरोसे ही पढ़ाई हो पायेगी। पास होने के लिये भी नहीं। पर ऐसा किया क्यों गया? कुछ लोग ये दलील देंगे कि बच्चे पर बहुत जोर पड़ता है। कोमल फूल से बच्चे होते हैं और भारी भरकम सिलेबस। १५ साल का बच्चा मेरी नजर में बिल्कुल बच्चा नहीं रहा। जब वो शराब और सिगरेट पी सकता है तो इतना समझदार भी हो सकता है कि पढ़ाई कर सके। टीवी पर ऐसे प्रोग्राम आते हैं कि १० साल का बच्चा भी समझ ले। फिर ये पढ़ाई से बचने का बहाना क्यों? अगर ये कहा जाये कि बच्चे परीक्षा के डर से खुदकुशी कर लेते हैं तो मैं कहूँगा कि ये अभिभावकों की गलती है, शिक्षा प्रणाली की नहीं। आज से दस साल पहले तक कोई मुझे बता दे कि इतनी आत्महत्याएं होती थीं या नहीं। मेरे समय में तो बिल्कुल नहीं। आज ऐसा क्या हो गया जो दस या बीस या तीस साल पहले नहीं था। कम्पीटीशन और अभिभावकों की अधिक चाह ने बच्चों के करियर के साथ खिलवाड़ किया है। दसवीं का बोर्ड तो बहुत छोटी परीक्षा है। अगर इसी तरह से हम अपने बच्चों को परीक्षाओं से दूर भगाना सिखाते रहेंगे तो कल को जीवन में इससे भी कठिन परीक्षायें कैसे दे पायेंगे? बोर्ड को हौवा बना कर रख दिया गया है जितना वो है नहीं। इसे कहते हैं मुसीबत से भागना। अब स्कूल के टीचर ही ग्रेड के माध्यम से ये निर्णय ले सकेंगे कि बच्चे को ११वीं में भेजा जाये या नहीं। हर स्कूल के अपने खुद के टीचर... कमाल है... क्या गारंटी है कि ये बिल्कुल फ़ूल-प्रूफ़ होगा। अभी उत्तर-पुस्तिकाएं कोई बाहर का टीचर करता है जिसमें कम से कम ये बात साफ़ रहती है कि कोई बेईमानी नहीं होगी। पर अब? क्या भविष्य में १२वीं का बोर्ड भी समाप्त कर दिया जायेगा? सरकार ने बहुत कोशिशें कर ली बदलाव लाने की। अब १५ मिनट दिये जाते हैं प्रश्न-पत्र को पढ़ने के लिये। प्रश्नों का स्तर भी कम कर दिया। अब क्या परेशानी हो सकती है? कुछ लोग कहते हैं कि बच्चे १०वीं के बोर्ड में रटते हैं। क्या अब वे पढ़ेंगे? अब उतना भी नहीं करेंगे!! क्या १२वीं में नहीं रटते? या अब नहीं रटेंगे? अब तो बल्कि और भी डरेंगे क्योंकि बारहवीं का बोर्ड उनका पहला बोर्ड होगा। एक बार दसवीं की परीक्षा देने के बाद बच्चा निडर हो जाता है। पर अब?
एक और बात जो सिब्बल जी ने कही। पूरे भारत में एक ही बोर्ड और एक ही परीक्षा। अब उन्हें कैसे समझाया जाये कि इस देश में कितनी ही भाषायें हैं, कितने ही राज्य हैं। हर राज्य का परीक्षा करवाने का अलग समय होता है। छुट्टियों का अलग समय। अंकों का अलग हिसाब-किताब। अब इन सब के बीच एक ही बोर्ड को कैसे मुमकिन कर पायेंगे ये उन्हें बताना ही होगा।
अब बात करते हैं लगातार बढ़ाये जाने वाले आई.आई.टी जैसे संस्थानों की। थोक के भाव बढ़ाये जा रहे हैं आई.आई.टी.। पर कोई सरकार से पूछे कि क्या पूरी सुविधायें हैं जहाँ नये संस्थान खुल रहे हैं। पिछले २ बरसों से आई.आई.टी जयपुर की कक्षायें कभी दिल्ली कभी कानपुर में हो रही हैं। मुझे नहीं पता कि अब कहाँ लग रही हैं। आपको पता हो तो बतायें, पर इतना पता है कि अब आई.आई.टी को जयपुर से हटकर जोधपुर ले जाने का प्रस्ताव है। जब बच्चों को ढंग की सुविधायें नहीं मिल सकतीं तो खोलने का फ़ायदा क्या है? आई.आई.टी जैसे संस्थान के साथ ऐसा बर्ताव कर उसे खोखला बना दिया है। ऊपर से आरक्षण का भूत। समझ नहीं आता कि जिस आरक्षण को नेहरू ने दस वर्ष तक खत्म करने की बात की थी उसी को वोट का मोहरा मना कांग्रेस अभी तक रोटियाँ सेंक रही है। खैर ये बातें तो अब होती रहती हैं।
दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज को दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी बनाने की भी बात शुरु हुई है। इसकी जरूरत क्या थी? क्या हमारे देश में इंजीनियरिंग कॉलेज की कोई कमी हो गई है? इसके जरिये सरकार नये कॉलेजों को मान्यतायें देगी और पैसे कमायेगी जैसा कि इंद्रप्रस्थ विवि के साथ हो रहा है। १ सरकारी और ४ प्राइवेट कॉलेजों के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा द्वारा शुरु हुए इस वि.वि. में अब १० से ऊपर प्राइवेट कॉलेज हो गये हैं पर पढ़ाई का स्तर केवल ३-४ में ही अच्छा है। जो स्तर दिल्ली इंटर कॉलेज का है वो बनाये रखा जाये तो बेहतर। चौथा मुद्दा मैं पहले भी छेड़ चुका है इसलिये संक्षेप में... मदरसा बोर्ड और सीबीएसई बोर्ड को बराबर का दर्जा। सिब्बल कहते हैं कि मदरसों में धार्मिक पढ़ाई के साथ आधुनिकीकरण भी किया जायेगा। मेरी उनसे गुजारिश है कि पहले आधुनिकीकरण कर लेवें तभी उसे सीबीएसई के साथ रखें।
कपिल सिब्बल जी ने एक ही ढंग की बात कही। कॉलेजों में दाखिले के लिये जीआरई जैसी परीक्षा.. पर ग्रेड से पास हुआ बच्चा क्या तब मार्क्स की परिभाषा समझ सकेगा। सौ दिनों में कुछ करने के चक्कर में सब कुछ बिगाड़ मत देना। राजनीति के लिये क्यों बच्चों के भविष्य से खेल रहे हैं मंत्री जी?
तपन शर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 बैठकबाजों का कहना है :
सभी शिखर को चमकाने के प्रयास में लगे है | वाहवाही उसी से मिलाती है | इसमें आंच अच्छी होती है राजनितिक रोटियों अच्छी पकती है | आई आई टी , मेडिकल, बोर्ड परीक्षा या उच्च शिक्षा | कोई जड़ों की तरफ ध्यान नहीं देता यानी नर्सरी और प्राथमिक शिक्षा | सर्वाधिक ध्यान यही देने के जरुरत है | सबसे कम वेतन, सबसे कम प्रतिभा, | कंही तो उपेक्षित है , कंही शोषण हो रहा है , सभी बाल विद्यालयों में एक बाल मनोवैज्ञानिक होना ही चाहिए |
बहुत कुछ लिखना है | अलग से ही एक पोस्ट लिखूंगा |
bahut hi behatreen lekh .aapne to mere dil ki baat kah di
dhanyvaad
एक अच्छे मुद्दे को बयां करता हुआ आपका आलेख. उच्च शिक्षा की ओर सभी ध्यान दे रहे हैं लेकिन प्राथमिक की ओर कोई नहीं. एक अच्छे पहलु की ओर आपना ध्यान खींचा. बहुत राजनीती कर रहे हैं कपिल सिब्बल.
सिब्बल हड़बड़ी में बिना सोचे समझे ऊटपटांग हरकतें कर रहे हैं
Is post ko aabhar deti hun ki yatharth likha hai.
Shree Kapil ji ki shicha nitiya baccho ka bhavishy choopat kar dega.
अच्छा लेख है
इन्हें बस चर्चा में आने के लिए बिना सोचे फैसले लेने होते है, भविष्य के बारे में कभी हमारे नेताओ ने सोचा है न ही ये सोचेंगे...
इन्हें बस अपनी राजनीती रोटियों को सकने से मतलब होता है
मुझे तो लग रहा है अब ये दसवी के बच्चो में भी अपना वोट बैंक देख रहे है जो अगले चुनाव तक वोट डालने लायक हो जायेंगे, हलाकि उन बच्चो को ये पता भी नहीं चलेगा की कैसे उनका भविष्य बिगाड़ दिया गया
बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने मैं भी इस विषय पर लिखना चाह रही थी परन्तु समयाभाव के कारण न लिख सकी...खैर आपने ही पहल कर दी अच्छी बात है....यदि १० वीं कक्षा से बोर्ड हट जाएगा तो कौन पढ़ाई करेगा . मैं स्वयं अध्यापिका हूँ , मेरे विद्यालय में भी विद्यार्थी ऐसा ही करते हैं, जब परीक्षा सिर पर आती है तो पढ़ाई आरम्भ करते हैं, और रही बात ग्रेडिंग की तो उसमें भी जहाँ ९० प्रतिशत से अधिक पाने वाला विद्यार्थी भी उसी ग्रेड में और ८० प्रतिशत वाला भी उसी ग्रेड में रहेगा तो क्या ९० प्रतिशत वाले विद्यार्थी को कुंठा नहीं होगी, और फिर उसे लगेगा की अधिक मेहनत करने की क्या आवश्यकता है ग्रेड तो अच्छा मिल ही जाएगा | यह सभी बातें माननीय मंत्री जी नहीं समझ रहे हैं |
पापा कहते थे बड़ा नाम करेगा.. लेकिन वही बेटा अब खामोश है.. बेटी खामोश हो गई है हमेशा के लिए.. और जानते हैं पापा की तमन्ना क्यों पूरी नहीं होगी.. उन लोगों की वजह से जिनको न तो पापा जानते हैं और न वो बेटा.. जो अब कभी नहीं उठेगा..क्या दसवीं का रिजल्ट इतना घातक हो सकता है..इधर दसवीं के नतीजे आ रहे थे और उधर रीवा के संजय गांधी अस्पताल में एक के बाद एक बच्चे पहुंच रहे थे..सबकी एक ही दास्तां..सबकी एक ही कहानी...मध्य प्रदेश में इस साल 10वीं के रिजल्ट ने 6 बच्चों की जिंदगी छीन ली है..
इतने घातक इम्तिहान कि एक के बाद एक किशोर जिंदगियों को दुनिया से बेजार करके रख दें.. क्या इम्तिहान इतना खतरनाक हो सकता है कि मासूम के दिमाग को इस दुनिया के लिए नफरत से भर दे..हां, ये मुमकिन है.. बिल्कुल मुमकिन है.. क्योंकि अभी तक तो हमारा पैमाना परीक्षाएं ही रही हैं जो तय करती हैं कि हम कितने होशियार हैं.. हम कितने जहीन हैं.. कितने समझदार हैं.. और कितने इंटेलेक्चुअल हैं..इम्तिहान लेने वाला दिमाग भी खुद को बहुत इंटेलेक्चुअल इसीलिए महसूस करता है क्योंकि उसने इम्तिहान दिए हैं और पास किए हैं..जाहिर है उसके लिए एक और अकेला यही पैमाना है..
मुझे लगता है कि ये अकेडमिक आतंकवाद है.. और इम्तिहान लेने वाले, उनके आधार पर किसी भी व्यक्ति की जिंदगी को सफल-असफल करार देने वाले अकेडमिक आतंकवादी.. ये आतंकवादी आपके बच्चों के दिमाग को जहर से भर रहे हैं.. और चेतन तौर पर ये महसूस करा रहे हैं कि बगैर किसी परीक्षा को पास किए ये जिंदगी बेकार होगी.. ये बात आपको भी मंजूर है और आपने मन ही मन कबूल कर ली है..क्योंकि जैसे-तैसे आपने भी इम्तिहान तो पास किया ही था.. और अब बारी है आपके मासूमों की...
नतीजे आए तो रीवा में दो, छतरपुर, दतिया, गुना औऱ राजगढ़ में कुछ बच्चों ने पाया कि वो फेल हो गए हैं.. और वो जिंदगी भी क्या जो फेल होकर, अपने मां-बाप और अकेडमिक आतंकवादियों की नजर में दोयम बनकर जीनी पड़े..(ये तर्जुमानी मेरी है..हो सकता है इन मासूमों ने इन्हीं शब्दों में न सोचा हो, लेकिन तकरीबन ऐसा ही सोचा होगा).. इन छह बच्चों ने खुदकुशी कर ली...
स्नेहा डॉक्टर बनने का सपना पाल रही थी...सत्रह साल की स्नेहा रीवा के रेवांचल पब्लिक स्कूल में पढ़ती थी.. लेकिन डॉक्टर बनने का सपना तभी टूट गया जब उसने पाया कि वो दसवीं में फेल हो गई है..लगा कि ये तो बहुत बड़ा सितम है..उसने किसी तरह जहर हासिल किया और खा लिया..डॉक्टर के अधूरे सपने के साथ ही स्नेहा चली गई..
रविकांत चक्रधर हायर सेकण्डरी स्कूल में पढ़ता था.. उसने भी दसवीं की परीक्षा दी थी..वही परीक्षा जो उसके लिए मौत का संदेश लेकर आई थी..ज़हर खाकर उसने जान दे दी..
विष्णु ने दोबारा दसवीं का इम्तिहान दिया था..पिछली बार फेल होने पर इतनी लानत-मलामत हुई थी कि इस बार वो कोई चांस नहीं लेना चाहता था.. इस किशोर ने भी फाँसी लगा ली..लेकिन मां-बाप को वक्त पर पता चला और वो उसे लेकर अस्पताल पहुंच गए.. किस्मत से विष्णु बच गया..
लेकिन दतिया का रिंकेश खुशनसीब नहीं था...16 साल के रिंकेश को मौत का एक रास्ता दिखाई दिया..सामने से आती ट्रेन..जो उसे उसके सपनों के साथ रौंदकर निकल गई...चिरूला हाईस्कूल में पढ़ने वाला रिंकेश भी सदमे में था..वजह थी बिजली, जो परीक्षाओं से ऐन पहले गुल हो गई थी और तब आई जब रिंकेश की जिंदगी खत्म हो चुकी थी...
राजगढ़ ज़िले के खिलचीपुर में शिवचरण ने ज़हर खाया.. अपनी मां को वो ये कहकर चला गया कि 'छोटे भाई को पढ़ाना, मैं इस काबिल नहीं'..
गुना में राजकुमार ने पंखे से लटककर फांसी लगा ली..उसकी मेज पर इंटरनेट से निकाली गई उसकी दसवीं की मार्कशीट मिली..
छतरपुर में पूनम ने भी फांसी लगाकर जान दे दी.. किसी भी साइकिएट्रिस्ट ने ये नहीं कहा कि ये गलती अकेडमिक टैररिस्ट की है.. सबने इसके लिए मां-बाप की जिम्मेदारी तय कर दी..
ये कुछ नाम भर हैं और वो भी सिर्फ एक राज्य के..हर बार जब इम्तिहान होंगे..इस सूची में कुछ और नाम जुड़ जाएंगे..ये सिलसिला साल दर साल चलेगा, लेकिन क्या इसका मलाल होना चाहिए कि आपके बच्चे इम्तिहान में खरे नहीं उतरे..
जब तक इम्तिहान हैं, खुदकुशी होंगी, क्योंकि सभी पास नहीं होंगे..जो पास नहीं होंगे वो डार्विन के नेचुरल सेलेक्शन के नियम को चुनेंगे..जो बच जाएंगे, वो योद्धा कहलाएंगे..क्योंकि हम इम्तिहान इसलिए देते हैं कि हमें जीतना है..लेकिन शायद ये भी कहीं लिखा है कि कोई भी इम्तिहान जिंदगी का आखिरी इम्तिहान नहीं होता...
अनाम जी, नाम लिखना भूल गये आप।
आप एक काम कीजिये। १२वीं का बोर्ड भी बंद करायें, क्योंकि नम्बर तो चाहें १०वीं में मिलें या फिर १२वीं में, वो तो मिलेंगे ही। क्या १२वीं में फेल बच्चे आत्महत्या नहीं करेंगे..??
दूसरी बात... मान लीजिये मेडिकल की तैयारी करी... प्रवेश परीक्षा दी... नम्बर नहीं आया..क्या तब आत्महत्या नहीं होगी? क्या प्र्वेश परीक्षा बंद करवा दें???? क्या दसवीं, १२वीं के ग्रेड के बूते ही इंजीनियर और डॉक्टर बन जायें???? इम्तिहान बंद करवा दें? इम्तिहान तो लेना ही होगा.. नौकरी के समय साक्षात्कार भी होगा... तब भीप्रवेशपरीक्षा होती है.. और होनी भी चाहिये...तो क्या दसवीं के ग्रेड के बूते नौकरी दिलवायेंगे?
इम्तिहान से भागना इन सब का इलाज नहीं है... अभिभावकों को चाहिये कि वो बच्चों को सही गाइड करें... उन पर दबाव न डालें... आज की तारीख में गलती अभिभावक कर रहें हैं.. परीक्षा पहले भी होती थी.. मैंने लेख में लिखा भी है...आज से दस साल पहले तक आत्महत्यायें शायद ही सुनी जाती हों...क्या कारण है कि अभी शुरु हुई.. अभिभावकों का दबाव... बच्चों को सही गाइडेंस नहीं मिल पाती...
आपने सही कहा.. कोई भी इम्तिहान जिंदगी का आखिरी इम्तिहान नहीं होता...यही बच्चों को सिखाना है...
अगर ये कहा जाये कि बच्चे परीक्षा के डर से खुदकुशी कर लेते हैं तो मैं कहूँगा कि ये अभिभावकों की गलती है, शिक्षा प्रणाली की नहीं। आज से दस साल पहले तक कोई मुझे बता दे कि इतनी आत्महत्याएं होती थीं या नहीं।
पूरे बैठक में ये लाइन मुझे बहुत अच्छी लगी
सच में इम्तहान कर अगर इतना ही दर है तो पढाई ही न करे
जो बच्चा टॉप करता है वो भी उन्ही में से एक होता है अलग से बन कर नहीं आता
जो फेल होता है वो भी उन्ही में से एक
लेकिन हर कोई किसी एक चीज़ के लिए नहीं बना
इतिहास में ऐसे अनेको उदहारण भरे पड़े है जहा महापुरषों ने बिना पढाई किये ही बहुत कुछ किया
एडिसन,न्यूटन ज्यादा दूर क्यों जाते है
मसि कागद छुयो नहीं, कलम गहि न हाथ
कहने वाले कबीर दास जी भी तो बिना पढाई के महापुरुष हुए
अगर बच्चा आत्महत्या करता है तो दोष उनके अभिभावकों और गुरुजनों का है जो बच्चे को इतना मजबूत नहीं बनाते वो किसी हालात से लड़ सके
तपन ,
बहत बढ़िया लेख ,सही लिखा है सबकुछ ,विनय जी आपके लेख का इन्तजार रहेगा ,अनाम जी ने जो कहा है ,उस पर हम सिर्फ इतना कहना चाहेंगे की इन हत्याओं का जिम्मेदार न तो माता पिता हैं और न ही
विद्यालय ,
प्रशासन ही सोया हुआ है ,किसी ने कोई कर्र्यवाई की???????????? कैसे परीक्षा फल प्रकाशित हो गया ????????????????????
इस समाज का भ्रष्ट आचरण न मासूमों को निगलता है ,इस पर भी प्रशासन की नींद नहीं टूटी ,क्या ये नेता अपने बच्चों पर कोई आंच आने पर भी ऐसे ही सोते रह सकते हैं ,कई दाहार्ण आपके सामने हैं ,निउमो ,कानूनों में तत्काल तब्दीली हो जाती है ,प्रजातंत्र में नेता ही हमारे माई बाप हैं
main aapase bilkul sahamat hoon ye bachon ke bhavishy se khilvad hai par in netaon ko kaun samjhaye shybhkamnayen
main aapase bilkul sahamat hoon ye bachon ke bhavishy se khilvad hai par in netaon ko kaun samjhaye shybhkamnayen
main aapase bilkul sahamat hoon ye bachon ke bhavishy se khilvad hai par in netaon ko kaun samjhaye shybhkamnayen
क्रम से comment करूँगा.
१. ध्यान दिला दूँ कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षक ही मनोवैज्ञानिक हुआ है. वैसे कपिल सिब्बल मनोवैज्ञानिक भी लगवा देंगे, आखिर नयी जॉब के आसार भी बढ़ेंगे. उच्च शिक्षा में पैसा ज्यादा है इसलिये सबका ध्यान वहीं है यारो.
२. सुमित जी की बात में दम है... क्योंकि भले ही कांग्रेस युवाओं का समर्थन ले पाने का दावा करती रहे, पर देख के लगता है.... अब तो लेकर ही रहेगी.
३. किसी ने आत्महत्याओं का जिक्र किया है.... बता दूं कि ७ IITs में हर साल कोई ६-१० विद्यार्थी आत्महत्या करते हैं... आप भी अखबारों में पढ़ते होंगे.... उस पर आप का क्या कहना है?
४. तपन जी ने काफ़ी कुछ कह दिया है, फ़िर भी इतना ही कहूँगा कि 'शिक्षा माफ़िया: कपिल दाउद सिब्बल'.
वैसे एक बात अभी से कह दूं, कुछ दिन बाद कपिल सिब्बल सफ़ाई देंगे कि हमारी कांग्रेस सरकार तो ये चाहती है कि गरीब लोग जो कि देश की जनसंख्या में ७०% से ऊपर हैं, उन को भी बिना tution/coaching के पास होने का अवसर मिले.
तपन जी,
बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने. हम इस समय अपने देश में तो नहीं हैं, पर हमें भी यह पता चला था की इस साल दसवीं बोर्ड का रिजल्ट बहुत कम रहा था, बहुत से बच्चे खुदकुशी की राह अपना चुके हैं, और बहुतों के सपने चकनाचूर हो चुके हैं. इस सब के लिए हम सिर्फ प्रशासन , अभिभावक अथवा शिक्षा प्रणाली को दोष देकर कुछ भी ठीक नहीं कर पायेंगे.
यह तो सर्व विदित है कि प्रत्येक क्षेत्र में प्रतियोगिता बहुत बढ़ गयी है, किन्तु दसवीं एवं बारहवीं की परीक्षा आगे का भविष्य निर्धारित करने के लिए बेसिक परीक्षाएं हैं. अगर कोई बच्चा 90 % अथवा उस से अधिक अंक नहीं ला पाता तो इस में उस बच्चे की गलती नहीं है, किन्तु अपेक्षाएं इतनी अधिक हो गयी हैं कि प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चे को प्रथम स्थान पर ही देखना चाहता है. बच्चा दबाव की स्थिति में पढता तो है, किन्तु समझ नहीं पाता, ऐसी स्थिति में असफलता उसके हाथ लगती है, और कोमल मन आत्म हत्या जैसे रास्तों पर चल निकलता है .
ऐसे में समझने की आवश्यकता सभी को है. हर एक व्यक्ति की तरह बच्चे का भी बुद्धि का अपना एक स्तर होता है, उसकी भी अपनी समझ पाने और ग्रहण कर पाने की क्षमता होती है, और यह भी सत्य है कि प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चे की क्षमता को पहचानता है, फिर भी लालसा की वजह से बच्चे पर दबाव होता है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. इस बाबत त्रिपाठी जी ने बहुत अच्छी बात कही है....., "लेकिन हर कोई किसी एक चीज़ के लिए नहीं बना " . विश्व में सभी के लिए स्थान है, ऐसे में अगर बच्चा ४० % अंक ही प्राप्त कर पाया हो तो , अपने बच्चों से अधिक की अपेक्षा मत रखिये, बल्कि यह देखिये कि उसका मस्तिष्क किस दिशा में विकसित हुआ है, अगर वह किसी कला में पारंगत होने की क्षमता रखता है तो उसे डॉक्टर - इंजिनियर बनाने के सपने मत पालने दीजिये, अन्यथा शिक्षा प्रणाली भी कुछ नहीं कर पाएगी. हाँ, यह जरूर हो सकता है कि हम अपने ही बच्चों से हाथ धो बैठें.
तपन जी एक बात और.........
कपिल सिब्बल जी भी हो सकता है कि इसी मुद्दे को सुलझाने का प्रयत्न कर रहे हों और पासा उल्टा पड़ रहा हो, क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर उन्हें किसी से रंजिश तो नहीं हो सकती. ( वैसे व्यक्तिगत तौर पर ना ही मैं उन्हें जानती हूँ और ना इस वक़्त भारत की राजनीति से अवगत हूँ ) . मुझे लगता है कि आप अपने विचार शिक्षा मंत्रालय तक पहुंचा सकें तो सभी के लिए हितकारी अवश्य हो सकते हैं.
इस सार्थक बहस को उठाने के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
कपिल सिब्बल जी कई सोच कों सचमुच दाद देनी पढेगी. मैं तपन जी की सोच से इतफाक नही रखता.
हमारे समूचे देश में शहरों में , दूर दराज़ के गाँव के स्कूलों में क्या एक ही तरह की पढाई होती है.एक ही प्रकार के शिक्षक , एक ही प्रकार की सुविधायं, ट्यूशन, दिल्ली पब्लिक स्कूल मिल पाते हैं.
शहर का बच्चा क्या उस दूर गाँव के बच्चे का दर्द समझ पायेगा.
मेरा तो यह मानना है की , दिल्ली विशाव्विद्द्यालय में पहली लिस्ट में दूर दराज़ के गाँव के बच्चों के नाम होने चाहिए.
मैं कपिल सिब्बल जी का कोई फैन नहीं ...मगर उनकी दूर दरीश्ता कों सलाम करता हूँ
flowlinefire जी,
पहले तो गाँवों में स्कूल ही नहीं हैं.. एक शिक्षा का सवाल ही नहीं उठता..
दूसरी बात... एक बोर्ड का मुद्दा राज्यस्तर पर है.. गाँव व शहर के बीच नहीं.. भारत के हर राज्य का अपना तरीका है... अपने समय पर पेपर होते हैं.. अपने विषय हैं... और अपनी भाषायें हैं... अपना तरीका है...ऊपर से आप CBSE और ICSE दोनों का स्टेंडर्ड ही अलग है...जहाँ विषय एक से होते हैं... तो एक बोर्ड की बात करना ही हास्यास्पद है..
अकसर ये देखा जाता है की हम अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए सारा दोष शासन प्रणाली और नेताओ को देते है
इन हत्याओं का जिम्मेदार न तो माता पिता हैं और न ही
विद्यालय ,
प्रशासन ही सोया हुआ है ,किसी ने कोई कर्र्यवाई की
अब कोई नेता किसी के बेटे को ये सिखाने नहीं जायेगा की बेटा हालात और ज़िन्दगी से कैसे लडो ये काम पहले माता पिता कर है फिर गुरुजनों का
हम कब तक इस तरह दोष दुसरो के सर पर मढ़कर अपनी जिम्मेदारियों से बचते रहेंगे अगर वो भ्रष्ट है तो हम भी भ्रष्ट है वो बड़े स्तर के भ्रष्टाचारी है तो हम छोटे स्तर के अंतर सिर्फ इतना ही है
किसी को सुधारने से पहले खुद को सुधार लिया जाये फिर देखिये पूरी दुनिया सुधरती नज़र आएगी
अगर उन नेताओ का कर्त्तव्य है देश के लिए तो हमारा भी कुछ कर्त्तव्य है सब मिलकर अपने कर्त्तव्य को निभाए फिर देखिये हिन्दुस्तान बनना शुरू हो जायेगा
सबसे बड़ी बात तो ये है कि हमेशा शिक्षा विभाग का जिम्मा ऐसे सनकी और नालायक लोगों को ही क्यों मिलता है ? अर्जुन सिंह ने नाक में दम कर रखा था, उन्हें कभी भी रात में कोई सपना आता और वो उसे जनता पर लाड देते और अब ये कपिल सिब्बल... ये अगर ठीक से पढ़े होते तो इनमे थोडी समझ होती | शिक्षा प्रणाली को निश्चित ही बहुत बड़े सुधार की ज़रुरत है लेकिन ऐसे अक्ल-मंद लोग सुधार का अपना ही मतलब लेते हैं | सब जानते हैं कि आजकल बच्चों पर टॉपर होने का कितना जबरदस्त दबाव होता है लेकिन कोई कुछ भी कर ले, टॉपर तो एक ही हो सकता है न? २ लोग एक साथ तो प्रथम नहीं हो सकते? तो एक क्लास में अगर ४० बच्चे हैं तो १ बच्चा खुश रहता है और बाकी ३९ बच्चे कुंठित हो जाते हैं क्योंकि उन्हें घर में हमेशा यही सुनने को मिलता है कि वो तभी कुछ हैं जब टॉप करते हैं | जब वे नहीं कर पाते तो उन्हें लगने लगता है कि वे कुछ नहीं हैं | अब बताइये जिम्मेदार कौन है? हमें वो दीखते हैं जो आत्महत्या करते हैं लेकिन उससे भी घातक बात ये है कि वे ३९ बच्चे जो कुंठित हो गए, वही मिलकर समाज बनायेंगे फिर सोचिये क्या वो समाज भी कुंठित नहीं होगा?
araksran meri mane to galat hai , lekin ab ye itna bada muda ban gaya hai ki ab isese par jana ek badi badi bat hai , mai kapil ji ke ish niyum ka swagat karta ho ki unhone ek nayi pahel kari , arakshan hatne ki yahi pahel hai jab kuch open course , ap course karye ye ek nayi tarike ka peryog hai per , jaldi hi ye safal hoga
aap ne bilkul sahi likka hai
sabhi apna apna dimag chala rahe hai us aane wali genration ke bare me koi nahi sochna chahata aur unhe is baat se koi matlab hi nhi hai
Hi,
The blog was absolutely fantastic! Lots of great information and inspiration, both of which we all need!b Keep 'em coming... you all do such a great job at such Concepts... can't tell you how much I, for one appreciate all you do!
Thanks
same day payday loans bad credit
long term cash loans for bad credit
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)