अनिरुद्ध शर्मा हिंदयुग्म के पुराने पाठकों में से हैं.....पुणे की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी करते हैं...चुनाव के दौरान इनके भीतर का नागरिक जगा और इन्होंने हमें एक लेख भेज दिया....आप भी पढें इनके विचार.....
हाल की ख़बरों में एक निराली बात सुनने को मिली. समाजवादी पार्टी का मेनिफेस्टो जिसमे हमारे देश के महान(!) नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि वो इंग्लिश स्कूल्स बंद करवाएंगे, ट्रैक्टर की जगह बैल चलवाएंगे, कंप्यूटर बंद करवाएंगे, मशीनें बंद करवाएंगे वगैरह वगैरह… मैं सदमे में हूँ... क्या कहा जाये इस आदमी को? क्या इसे समझाना संभव है?बिलकुल नहीं.जिस आदमी की सोच इतनी घटिया है वो कितने सालों से इतना बड़ा प्रदेश चला रहा है. शर्म की बात है जनता के लिए और यहाँ हद दर्जे के मूर्खों की भरमार है वरना क्यों नहीं इन सड़े हुए नेताओं के इस तरह की बातें करते ही मंच से नीचे खींचकर जूतमपैजार कर दी जाती ? और क्यों मुलायम, मायावती जैसे लोग बार-बार आ जाते हैं? कुंठितों का पूरा कुनबा है जो देश को डुबोने पर आमादा है. ये नेता कुंठित हैं इंग्लिश नहीं जानने से, कंप्यूटर के डर से और इन्ही के तरह की जनता है जो सिर्फ अपना मन समझाने के लिए ऐसे लोगों को अपना भविष्य सौंप देती है.मुझे गुस्सा आता है, असहनीय गुस्सा आता है लेकिन जब गहरे में जाता हूँ तो गुस्सा निराशा का रूप ले लेता है.मेरा भारत महान चिल्लाते हुए बरसों बीत गए लेकिन इमानदारी से कहूं तो मुझे कभी इसका कारण समझ में नहीं आया. अब तो मैंने मुद्दत हुई ये वाक्य नहीं दोहराया है लेकिन जब नारे लगाने पड़ते थे तब भी मुझे ये समझ में नहीं आया. किस बात के लिए हम महान हैं? आज जो हालत मैं देखता हूँ उसमें तो निहायत ही नामुमकिन सी बात है महानता को ढूंढ़ना. और अगर इतिहास की बात करें तो समय-समय पर हमारे यहाँ महान लोग हुए हैं इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन दुनिया में सभी जगह हुए हैं. देश उसमें रहने वाले सारे लोगों से मिलकर बनता है यानी कि आम आदमी से . अब देखिये न प्रजातंत्र में सरकार चलती है और सरकार कौन बनाता है? यही आम आदमी… लेकिन मैं जब इतिहास पर गौर करता हूँ तो महानता तो दूर की बात मुझे आम आदमी में किसी भी दौर में समझदारी भी नहीं दिखाई दी. ये हमेशा से उन लोगों का समूह रहा है जिसे जो जैसे चाहे वैसे हांक देता है और वो भी बहुत ओछी बातों से. वरना वरुण गाँधी को आज सफलता के लिए कोई और शॉर्ट कट ढूंढ़ना पड़तासबसे बड़ी चीज़ जो ऑब्ज़र्व करने जैसी है वो है हमारी कौम की हीन भावना. ये भावना हमेशा से रही है और आज भी है. एक दौर था जब राजा-महाराजा शोषण करते थे, आम आदमी शाही लोगों से हीन था और शाही लोग? विदेशियों से… कुछ सचमुच के महान राजाओं को छोड़ दिया जाये तो सभी आखिरकार चाटुकार ही साबित होते थे. जब मुग़ल यहाँ आये तो ये लोग उनके पैरों में गिर गए. कई सालों तक मुग़लों ने राज किया और आम आदमी तो कभी कुछ करता ही नहीं हैं न? समय-समय पर कुछ स्वाभिमानी राजाओं ने विरोध किया लेकिन उन्हें मुग़लों के साथ अपने लोगों का भी विरोध सहना पड़ा. धीरे-धीरे मुग़ल इसी देश का हिस्सा हो गए… ठीक है अगर अपनापन कहीं है तो वो ग़लत नहीं है लेकिन फिर आये अंग्रेज और इस बार हमारे लोगों की हीन भावना देखने के काबिल थी. अंग्रेजों की ठोकरों में रहकर भी उन्हें ऊँची नज़र से ही देखा जाता था. फिर से कुछ लोगों ने बड़ी मुश्किलों से लड़ाई लड़ी. यहाँ ये बात उल्लेखनीय है कि आज जो संगठन स्वाभिमान का झूठा झंडा उठा कर ज़हर फैलाने का काम कर रहे हैं वो तब भी थे और उन्होंने हमेशा की तरह असली समस्या को हटाने की बजाय नकली समस्याएँ पैदा करने का ही काम किया. खैर, जैसे-तैसे हम आज़ाद हो गए लेकिन हमारा स्वाभिमान आज भी धूल में पड़ा हुआ है. हम अपने देश के आदमी को कभी इज्ज़त नहीं देते लेकिन आज भी कोई विदेशी आ जाये तो मुस्कराहट 4 इंच से कम ही नहीं होती. मैं IT इंडस्ट्री से हूँ और मैंने बहुत करीब से इसे देखा है. अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ों को लेकर इतना क्रेज बाप रे! जहाँ अपनी भाषा में बोलना गवार होने की निशानी मन जाता है, जहाँ अमेरिका जाने के लिए आदमी मर जाता है… वहां किस तरह की महानता निवास करती है मैं नहीं जानता. ठीक है ये बिज़नेस है और हमारा ग्राहक और दुकानदार का रिश्ता है, IT की भाषा में कहें तो वो हमारे क्लाइंट हैं लेकिन क्या हमारे यहाँ के दुकानदार देसी ग्राहक को इतनी इज्ज़त बख्शते हैं? क्यों हम उनके पैरों की धूल चाटने को लालायित रहते हैं, क्यों अपने बच्चों के हिंदी बोलने पर शरमाते हैं, क्यों अपने ही लोगों की इज्ज़त करना हमें छोटी बात मालूम होता है?मैंने देखा है छोटे गाँव से लेकर, छोटा शहर और मेट्रो सब देखा है और ये हीन भावना मैंने सभी जगह पाई है. और अगर कहीं स्वाभिमान की बात भी होती है तो वो दरअसल कुंठा ही होती है जो आपस में ही दंगे करवाती है. स्वाभिमान का सबसे अच्छा उदाहरण हैं स्वामी विवेकानंद, अपने देश अपनी भाषा सबके लिए स्वाभिमान और दूसरे देश की भाषा, संस्कृति के लिए भी सम्मान. उन्हें अपनी भाषा से प्रेम था लेकिन दूसरी भाषाओँ से बैर नहीं था उन्हें भी वे समान आदर देते थे लेकिन प्राथमिकता हमेशा अपनी विरासत ही रही.कुछ लोग हैं, और हमेशा रहे हैं जो स्वाभिमान का सही मतलब समझते हैं लेकिन तादाद में कम ही हैं. मेरे ख़याल से एक राम, एक कृष्ण, एक गाँधी. सिर्फ इन नामों का सहारा लेकर हम आम तौर पर महानता का दावा नहीं कर सकते. ये देश तब तक महान नहीं है जब तक यहाँ का आम आदमी महान नहीं है, उसमें स्वाभिमान नहीं है.
जय हिंद
अनिरुद्ध शर्मा
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7 बैठकबाजों का कहना है :
लेख तो नहीं दिख रहा, सिर्फ एक तस्वीर ही दिखायी दे रही है। कहीं कोई तकनीकी गलती तो नहीं हुयी?
अनिल जी,
तकनीकी गलती ही थी.....ध्यान दिलाने का शुक्रिया...
बैठक पर आज बहुत ही अच्छा विषय उठाया गया है इसके लिए सबसे पहले मैं अनिरुद्ध जी को धन्यवाद कहना चाहूगा |
बिलकुल सही कहा आपने की जो नेता ऐसे विचार जनता के सामने रख रहा है उसे क्या हम अच्छी सोच कहेगे ,क्या इस तरह की खोखले मुद्दे को आप आम आदमी की तरक्की से किसी भी तरह जोड़ सकते है और क्या इस तरह के बयानों और सिर्फ भाषणों से आम आदमी की सोच को प्रभावित किया जा सकता है | आज आम आदमी समझदार हो गया है कम से कम इतने निचले स्तर की मानसिकता को तो भांप ही सकता है | एक ओर तो हम दुसरे ग्रहों की खोज करने के लिए नए आयाम तलाश कर रहे है और दूसरी तरफ इस तरह की सोच रखते है | यहाँ सबसे ज्यादा जरूरत है आम आदमी के स्तर पर उसकी सोच को सही दिशा देने की | वो कहते हे न की देश कम विकाश तभी संभव है जब आम आदमी कम विकास हो उसी तरह आम आदमी को महानता की श्रेणी की ओर ले जाने के लिए जरूरी है उसकी सोच का विकास हो | हमारे इतिहास में जितने भी महान लोग हुए है वो इसीलिए महान नही थे कि उन्होंने अच्छे काम किये अपितु उनकी सोच महान थी विचारों में उचाई थी | इसीलिए विचारों से महान बनो |
लालू हों या मुलायम, स्वार्थ इन्हें है साध्य.
सत्ता ही इनको हुई, 'सलिल' सदा से साध्य.
जब तक जनता करेगी, इनको नहीं निरुद्ध.
तब तक समता पंथ के, होंगे यही विरुद्ध.
hi namskaar aapka likhalekh acha laga hai mai bhi kuch likhta hu mari madad kare use dakhe or parkhe ek.......student dum todte bharat ka
hi namskaar aapka likhalekh acha laga hai mai bhi kuch likhta hu mari madad kare use dakhe or parkhe ek.......student dum todte bharat ka
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