Wednesday, April 22, 2009

अजय माकन को अपनी तथा मनमोहन सिंह दोनों की छवियों का दोहरा लाभ

प्रेमचंद सहजवाला हिन्द-युग्म के वरिष्ठ लेखक हैं। इन दिनों वे पाठकों के साथ भारतीय आमचुनावों की यादें बाँट रहे हैं। अभी कुछ ही समय पहले इनके इलाके रमेश नगर में कांग्रेस प्रत्याशी अजय माकन का आना हुआ। प्रेम ने सिटीजन पत्रकर का धर्म निभाया, माकन को कैमरे के मकान में बिठा लिया। आइए हम भी देखते हैं और पढ़ते भी-


दिल्ली के सात लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र सर्वाधिक गर्मजोशी वाला निर्वाचन क्षेत्र रहा है. इस निर्वाचन क्षेत्र से जहाँ एक ओर अटल बिहारी वाजपेयी, एम एल सोंधी, मोहिनी गिरी, जगमोहन व लाल कृष्ण आडवानी जैसे सांसद रह चुके हैं, वहीं सन 1957 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट से सुचेता कृपलानी ने 73% से भी अधिक वोट हासिल किए जो कि आज तक एक कीर्तिमान रहा है। यहीं से राजेश खन्ना व शत्रुघ्न सिन्हा की टक्कर हुई थी। राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को हरा दिया तो बाद में जब लाल कृष्ण आडवानी ने राजेश खन्ना को हरा दिया तब मीडिया ने चुटकी काटी के राजेश खन्ना तो शत्रुघ्न सिन्हा से बड़े अभिनेता हैं, पर लाल कृष्ण शायद राजेश खन्ना से भी बड़े अभिनेता हैं। जब सन् 80 में नई दिल्ली से चुनाव लड़ने के बाद मत-गणना केन्द्र पर वाजपेयी बारिश में छाता पकड़े खड़े अन्दर की स्थिति का जायजा ले रहे थे और मत-गणना के एक मुकाम पर उन्हें पता चला कि वे हारने वाले हैं तो पास खड़े विक्षिप्त से माने जाने वाले नेता राजनारायण जो यहीं से चुनाव लड़ रहे थे, को अपना छाता पकड़ा कर वाजपेयी मीडिया से मज़ाकिया बातें करते कार में अपने घर चले गए। इसी निर्वाचन क्षेत्र से आई एस जोहर जैसे विचित्र से माने जाने वाले हास्य अभिनेता व Bandit Queen फूलन देवी चुनाव लड़ कर ज़मानतें ज़ब्त करा चुके हैं। परन्तु सन् 2004 यानी पिछला लोक सभा चुनाव भी इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए कम दिलचस्प नहीं था। यहाँ एक युवा नेता अजय माकन ने जगमोहन जैसे धुंरधर नेता, जिन्होंने बुलडोज़र द्वारा दिल्ली के कई मकान व इमारतें धराशायी करवा दी थी, की आशाओं पर बुलडोज़र चला कर सब को चौंका भी दिया व अपना लोहा भी मनवा लिया। परन्तु दिल्ली निवासियों ने इन्हीं 5 वर्षों में सीलिंग तथा मकान गिरने के दुखद दिन भी देखे जिस में कि एक बार तो पुलिस की गोलियों से चार लोगों की मृत्यु भी हो गई। कांग्रेस को सन् 2007 में नगर निगम चुनावों में बुरी तरह पिटना पड़ा। परन्तु अजय माकन जिन्हें कि 'मास्टर प्लान माकन' नाम से जाना जाता है, का दावा है कि उनके विशेष प्रयासों से ही दिल्ली वासियों के दुखद दिनों का अब अंत हो चुका है. रमेश नगर जहाँ मैं रहता हूँ, वहां की एक जन सभा में उन्होंने कहा कि शहरी विकास राज्य मंत्री के रूप में उनके द्वारा कार्यान्वित 'मास्टर प्लान' के बाद दिल्ली-निवासी अब अपनी इमारत का निचला तल 'कार पार्किंग' के लिए रख कर उस के ऊपर चार मंज़िलें और बनवा सकते हैं तथा एक मंज़िल भूमिगत (basement) भी बनवा सकते हैं। इस प्रकार अब कोई भी इमारत कुल छह मंजिलों की बन सकती है। माकन के प्रतिद्वंद्वी विजय गोयल भले ही लोकप्रिय हों और स्वयं को एक कर्मठ नेता के रूप में प्रस्तुत करते हों, (वे भी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एन डी ए सरकार में राज्य मंत्री रह चुके हैं, पर अजय माकन की अपेक्षाकृत साफ़ सुथरी व सादगी पसंद छवि के आगे विजय गोयल बौने से पड़ जाते हैं) । अधिकाँश मतदाता स्पष्टतः अजय माकन की ओर झुके हुए हैं। तालियों की गड़गडाहट के बीच अजय माकन अपना भाषण बहुत प्रभावशाली तरीके से निभाते हैं।

अजय माकन का भाषण

भाषण का दूसरा तथा तीसरा भाग


प्रेमचंद सहजवाला की वोटरों (मतदाताओं) की बातचीत

अजय माकन के पास अपने चाचा, अपने समय में दिल्ली के धुआंधार नेता ललित माकन की राजनैतिक विरासत है, जिन्हें जुलाई 1985 में खालिस्तानी आतंकवादियों ने सपत्नीक गोलियों की बौछारों से उड़ा दिया था। दिल्ली हो या केन्द्र, अजय माकन की शख्सियत में कई सितारे टंके हैं। सन् 93 के दिल्ली विधान-सभा के चुनाव में घोर कांग्रेस विरोधी आंधी थी और 70 में से केवल 14 सीटें कांग्रेस के पाले में गई, तब अपेक्षाकृत नए प्रत्याशी अजय माकन न केवल चुनाव जीते वरन उन्हें वोटों की बहुत अच्छी प्रतिशत संख्या मिली। जब वे दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष बने तब देश की किसी भी विधान सभा के सब से युवा अध्यक्ष थे वे। तालियों की गड़गडाहट के बीच वे गर्व से कहते हैं कि दिल्ली के विद्युत् मंत्री के रूप में उन्होंने दिल्ली में विद्युत् का निजीकरण किया। केन्द्र में राज्य मंत्री के रूप में वे आज़ादी के बाद कांग्रेस के तब तक के सब से युवा मंत्री बने। अपने भाषण में उन्होंने गर्व से कहा कि उनकी जीत की बढ़त हमेशा बढ़ती ही रही। पहले 4000, फिर 20000 फिर 24000। अपने प्रतिद्वंद्वी विजय गोयल पर चुटकी लेते हुए वे कहते हैं कि गोयल हमेशा अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलते रहे हैं। पहले सदर, फिर चांदनी चौक और अब नई दिल्ली। श्रोताओं के बीच कहकहों की एक लहर सी पैदा करते वे कहते हैं कि अब जब वे यहाँ भाषण कर के वोट मांगने आएं तो आप लोग उन से यह ज़रूर पूछियेगा कि अगला चुनाव आप कहाँ से लड़ेंगे। अजय माकन डॉ मनमोहन सिंह की छवि को भी खूब निपुणता से भुनवाते नज़र आते हैं। वे मतदाताओं को याद दिलाते हैं कि जब नरसिम्हा राव प्रधान-मंत्री थे और देश में केवल तीन दिन और की विदेशी पूंजी बची थी, तब उन्होंने रिज़र्व बैंक के ही गवर्नर डॉ मनमोहन सिंह को वित्त-मंत्री बनाया जिन्होंने आते ही चमत्कार सा कर के देश को उस विपत्ति भरी स्थिति से उबारा। वे गर्व से कहते हैं कि भारत तो क्या, पूरी दुनिया के प्रधान-मंत्रियों व राष्ट्रपतियों की तुलना में सब से अधिक साफ़ सुथरी छवि डॉ मनमोहन सिंह की है, जिन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा। हालांकि गोयल ने यहाँ से टिकट लेने के लिए एड़ी चोटी के ज़ोर लगा दिया था, पर यहाँ माकन से यह सीट छीनना उनके लिए टेढी खीर होगी क्योंकि इस निर्वाचन क्षेत्र में अजय माकन के पाँव मजबूती से गड़े हुए हैं।

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5 बैठकबाजों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

अच्छा है अब आप लोग चुनाव प्रचार भी करने लगे। चंदे की उम्मीद है क्या?
राजन त्रिवेदी

Divya Narmada का कहना है कि -

चढा चुनावी ज्वार है, सब के सर पर आज.
राजनीति ही कर रही, लोकनीति पर राज.
लोकनीति पर राज, लोक का हाल बुरा है.
बद बुलंद है, सत कम्पित है डरा-डरा है.
कहे 'सलिल' कलियुग दिखता है अधिक प्रभावी.
सब के सर पर आज चढा है ज्वार चुनावी.

Anonymous का कहना है कि -

निर्दलीय पाटी के तरह अब कांग्रेसी हो गए,,,,
प्रेमजी तो एक फालतू लेखक है और ,,,
उन्हें अपने दिमाग का इलाज करना चाहिए ,,,यह मच उनको क्यों बुलाता है क्या ,,,
क्या पैसा देते है क्या

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

अनाम भाई को पैसा ही नजर आता है.. धन्य हो...प्रेम जी के भगतसिंह वाले लेख तो आपने पढ़ेव ही नहीं होंगे आपने तो?

Anonymous का कहना है कि -

Anonymus को चाहिए की किसी पंडित को बुला कर अपना नाम-कारन करवा दें. वैसे सब से अच्छा नाम 'अ' से होगा. असभ्य. कोई रिपोर्टर जब रिपोर्ट करता है तो हवा किस तरफ़ बह रही है, यह भी उसे रिपोर्ट करना पड़ता है, यही उस का कर्म है. इस का अर्थ यह नहीं कि सम्पंधित रिपोर्टर किसी तरफ़ झुका हुआ है. 'अ' से असभ्य ठीक न लगे तो 'अ' से 'अफ़सोसजनक' कर दें. बहरहाल टिप्पणी करनी हो तो सभ्य भाषा में करना बेहतर है. भले ही रिपोर्ट में व्यक्त विचारों का विरोध हो. - शालिनी.

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