Thursday, February 25, 2010

कविता: बातें जानी पहचानी-सी

मनुष्य की सबसे बडी ताकत है भावनओं को महसूस करना, अपनी भी और दूसरों की भी, और फिर उन्हें अभिव्यक्त कर सकने की क्षमता। प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकारों से अपने मनोभावों को व्यक्त करता है और इसके लिये वह जिन माध्यमों का प्रयोग करता है उनमें कविता भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है। कविता की ताकत सहज सम्प्रेषण की क्षमता में निहित है, यह मन की बात मन तक पहुँचाने का सहज साधन तो है ही दूसरों के मनोभावों को समझने और समझाने का सौन्दर्यपूर्ण तरीका भी है।

साहित्य की सबसे पुरातन विधा है कविता| कविता ही पहली ज्ञात हिंदी साहित्यिक रचना है जो छठवीं-सातवीं शताब्दी के दरमियान लिखी गयी होगी| तब से आज आधुनिक समय तक मानवीय भावनाओं के भावुक चित्रण का सशक्त माध्यम है कविता| मनुष्य के दुःख-सुख, क्षोभ, आनंद, हर्ष, विद्रोह, स्नेह, भक्ति और प्रेम इत्यादि भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए कविता से सुन्दर और कोई दूसरा माध्यम नहीं है|

कविता अपनी विकास यात्रा, मनुष्य की विकास यात्रा के साथ तय करते हुए और काई पड़ावों से गुजरते हुए अपने वर्तमान स्वरुप तक पहुँची है| इस यात्रा और यात्रा के दौरान आने वाले पड़ावों, मंजिलों का गहरा प्रभाव कविता के बदलते हुए स्वरुप पर देखने को मिलता है| कविता हमेशा अपने समय से घुल मिल कर रही है, कभी वर्तमान से कटाने की चेष्ठ कविता के द्वारा नहीं हुई| मनुष्य जरूर कविता से दूर हटता चला गया परन्तु कविता हमेशा मनुष्य के साथ हर पल रही है| वर्तमान से कट कर कभी भी कविता नहीं रही, हमेशा वर्तमान दौर में आइना बनकर समाज का सच्चा चहरा दिखाया है इसने|

एक प्रश्न उठता है कि आखिर कविता है क्या? क्य यह शब्दों के समुच्चय मात्र है जो अलंकारों, बिंबों और रूपकों से सजा हुआ है? और क्या यह एक कल्पनिक लोक का निर्माण करती है? रामधारी सिंह दिनकर जी ने कभी कहा था “कविता वह सुरंग है जिससे गुजरकर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व मे प्रवेश करता है।“

कल्पना के बगैर कविता नही हो सकती मगर यह एक कोरी कल्पना से बहुत अधिक है जिसमें यथार्थ भी है, प्रेम भी, आनंद है और छटपटाहट भी, मुक्ति है और विद्रोह भी, शांति है और त्याग भी, भक्ति है और वैराग्य भी।

कविता कवि की कल्पना से रचा संसार है जो वह यथार्थ की मिट्टी से रचता है और यथार्थ की कठोर सच्चाई के साथ बहुत कुछ ऐसा मिलाता है जिससे मनुष्य को जीने का साहस भी मिलता है और जीवन के सौन्दर्य की अनुभूति भी होती है। कविता फूलों की महकती बगिया में उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों के समान मनुष्य की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति भी है और जीवन का स्पंदन भी। कविता का अपना संसार है जो बिंबों, ध्वनियों और छायाओं से बनता है। प्रत्येक कविता में परत-दर-परत अर्थ के बहुआयामी दृष्य बनते हैं, बिलकुल एक तिलस्म के समान जो अंदर ही अंदर खुलते जाते हैं लेकिन तिलस्म के विपरित आदमी उसमे भटकता नहीं है, बल्की खुद को एक नये स्वरूप मे खोज लेता है ।

विचार, दर्शन, संवेदनाएँ और भावनाएँ कविता की आत्मा होते हैं। प्रेमानुभूति की तीव्रता हो, प्रकृति वर्णन हो, ईश उपासना हो अथवा कोई मानवीय भावना की अभिव्यक्ति, कविता तभी सार्थक हो पाती है जब वह किसी विचार और संवेदना के धरातल पर रची गयी हो, क्योंकि कविता मात्र मनोरंजन नहीं है। यह मानव मात्र की शक्ति भी है और टूटते विश्वास और नैतिक साहस की कमी से जूझते मनुष्य के लिये एक संभावना भी। यह आम आदमी के हाथ का साहस बनती है किसी अत्यचार के विरुद्ध। व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा होने का साहस भी कविता से ही जन्मता है। रघुवीर सहाय जी की कविता का आम आदमी कहता है:

“कुछ होगा अगर मैं बोलूँगा
न टूटे न टूटे तिलस्म सत्ता का
मेरे अन्दर एक कायर टूटेगा”

कविता शब्दों से बनती है लेकिन कविता को बनाने वाले शब्द मात्र किताबों में मिलने वाले शब्द नहीं होते वे फसलों की तरह खेतों में भी लहलहाते भी मिल सकते हैं, तो नदियों की तरह् कलकल करते बहते हुए भी। मनुष्य के अनुभवों से उत्पन्न भी हो सकते हैं तो हवाओं में खुशबू की तरह महकते हुए भी। शब्दों को खोजने के लिये कवि को अपने दायरे से बाहर आना होता है और खो जाना पड़ता है।

केदारनाथ सिंह जी की कविता एक उदाहरण देती है:

“चुप रहने से कोई फायदा नहीं
मैंने दोस्तों से कहा और दौड़ा
सीधे खेतों की ओर
कि शब्द कहीं पक न गये हों
यह दोपहर का समय था
और शब्द पौधों की जड़ों में सो रहे थे
खुशबू यहीं से आ रही थी– मैंने कहा
यहीं–यहीं – शब्द यहीं हो सकता है
जड़ों में”

कविता वर्त्तमान में होकर सभी युगों का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता रखती है इसीलिए हर युग में, हर तरह की कविता पढ़ी जाती रही है, लिखी जाती रही है| इसकी विषय-वस्तु चाहे कालानुसार बदलती रही हो परन्तु भाषा और शैली वर्त्तमान समय का प्रतिनिधित्व करते हैं, यही वजह है कि इस विधा से लोगों का जुड़ाव हर युग में रहा है| कविता का जन से जुड़ा होना बहुत जरूरी है और रचना अगर भावनाओं को तीव्रता से प्रस्तुत न कर पाये और पाठक उससे अपने आप को जोड़ ना पाए तो कविता सफल नहीं हो सकती, कविता से पाठक भाषा के माध्यम से ही जुड़ेगा|

हम कविता के साथ एक आत्मीय जुड़ाव महसूस करते हैं| कविता एक प्रकार का पुल बनती है हमारी कल्पना और हमारे यथार्थ के बीच और इस पुल से गुजरता आदमी कल्पना और यथार्थ दोनों को एक साथ भोगता है| कहीं-कहीं कविता यथार्थवादी कल्पना होती है तो कहीं कहीं काल्पनिक यथार्थ| हमारा जीवन केवल कल्पना अथवा केवल यथार्थ पर नहीं व्यतीत हो सकता, कल्पना और यथार्थ के बीच संतुलन आवश्यक होता है, कविता यही संतुलन बनती है|

कविता एक समंदर है जिसमें मानवीय भावनाओं की विभिन्न धाराएँ आकर समाहित हो जाती है और एक समग्र प्रभाव बनता है जिसमें पढ़ने वाला पाठक स्वयं को आनंदित महसूस करता है| जब एक कवि कोई कविता करता है तब वह उसकी अपनी होती है, लेकिन जैसे ही वह पढ़ने सुनने वालों तक पहुँचती है वह सार्वभौमिक हो जाती है और कविता में प्रस्तुत भावनाएँ, दर्शन, विचार, संवेदनाएँ पाठक को आनंदित, उद्देलित और भावविभोर कर देती है| किसी भी कविता की ताकत उसमें प्रस्तुत यही संवेदनाएँ, विचार, दर्शन और भावनाएँ ही होते हैं, इनके माध्यम से ही पाठक स्वयं को कवि के साथ एक भावनात्मक धरातल पर खड़ा पाता है| कोई भी कविता जिसमें कोई दर्शन न हो, भावनाएँ न हों वह कविता आत्मा विहीन ही होगी|

--प्रदीप वर्मा

Wednesday, February 24, 2010

नकली नोटों की असली तबाही

संख्या की दृष्टि से वर्ष 2001-02 से लेकर 2007-08 तक देश में 1141892 जाली करेंसी पकड़ी गयी। इस बात के सरकारी आकडें उपलब्ध नहीं है कि वर्तमान में कितने जाली नोट चलन में है। लेकिन फिर भी अनुमानिक तौर पर उपरोक्त पकड़ी गयी जाली करेंसी से लगभग 20 से 25 गुना अधिक चलन में उपलब्ध है। नकली मुद्रा से देश की अर्थव्यवस्था के नुकसान को समझने के लिए उसकी पात्रता को समझना होगा। यदि हम बाजार कुछ खरीदने जाते है, अनुपातिक रूप से हमारे पास उससे कहीं ज्यादा धन होगा तो निश्चित ही मॅहगाई आयेगी। मौद्रिक नीति का एक उद्देश्य होता है। सेवाओ, वस्तुओं तथा मुद्रा के बहाव में एक अनुपात बना रहे। यदि बाजार में मुद्रा अधिक होगी उसकी तुलना में वस्तुएँ तथा सेवाएँ कम होगी तो स्वाभाविक तौर पर मॅहगाई बढ़ेगी। यह बात बिल्कुल सत्य है जाली करेंसी असली के साथ ऐसा व्यवहार करती है जैसा बम धमाके में होता है। मुद्रा की अपनी कोई कीमत नहीं होती उसकी भूमिका आती है उस वादे से जो मुद्रा में स्पष्ट रूप से लिखा होता है ‘‘मैं धारक को इतने रूपये अदा करने का वचन देता हूँ।’’
जाली नोटों के चलन में व्यक्ति, बैकों सहित आर0बी0आई0 की विश्वसनीयता पर शक होने लगता है। साथ-साथ बेरोजगार व्यक्ति को लगता है कुछ गलत कर आसानी से धन पैदा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पूरी सरकारी मुद्रा शक के दायरे में खड़ी हो जाती है। यहां तक कि लोग 500 या 1000 के नकली नोटो के भय में असली भी लेने से मना करने लगते है। यदि लेते भी है तो हस्ताक्षर या इस प्रकार के चिन्ह लगाकर लेते है कि फर्जी होने पर वापस किया जा सके। नकली मुद्रा से समाज को प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनो रूप से अत्यधिक नुकसान पहुँचता है तथा समाज में अविश्वसनीयता का माहौल बनता है। मानवीय दृष्टिकोण से यदि हम विचार करे, 500 रूपये का एक नकली नोट किसी गरीब व्यक्ति के पल्ले पड़ जाता है, तो उसकी महीने भर की आर्थिक व्यवस्था गड़बड़ा जाती है उसके बाद उसे अपमानित अलग से होना पड़ता है। देश में कई घटनाए हुयी है जिससे बैंक द्वारा लगायी गयी ए0टी0एम0 मशीनों से नकली मुद्रायें प्राप्त हुई है। और तो और देश की संसद भवन की लाइब्रेरी बिल्ड़िग में लगी ए0टी0एम0 मशीन से भी नकली नोट निकला जिसका भुक्तभोगी उ0प्र0 का एक सांसद हुआ।
वर्तमान में पाकिस्तान अरबो रूपये की नकली करेंसी विभिन्न माध्यमों द्वारा भारत भेजने में जुटा हुआ है जिससे देश की आर्थिक मेरूदण्ड तो प्रभावित होती ही है साथ-साथ उस धन का आतंकवादी इस्तेमाल अपनी आतंकी गतिविधियां पूरी करने के लिए करते है। एवं उन्हे देश में भारतीय मुद्रा के लिए भटकना भी नहीं पड़ता है। जिसे वे अपने साथ ही लाते है। जिससे वे बम तथा बमबाज दोनो खरीद कर भारत में तबाही को अंजाम देते है। नकली मुद्रा का सीधा सम्बन्ध काले धन से भी है अर्थात जिसका कोई हिसाब किताब नही होता अतः उक्त करेंसी में काले धन के भी सारे दोष विद्यमान होते है। अर्थात नकली करेंसी देश को चारो तरफ से तबाह करती है। अर्थव्यवस्था, मंहगाई, आतंकी गतिविधियां, काला धन आदि के रूप में फर्जी मुद्रा देश को तबाही के कगार पर पहुँचाती है।
आज हमारा देश पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आर्थिक आतंकवाद की चपेट में आ चुका है। पाक समझता है कि भारत का सामाजिक एवं आर्थिक ताना-बाना ध्वस्त करने के लिए आर्थिक रूप से उसकी कमर तोड़नी होगी। बिना आर्थिक नुकसान पहुचाए भारत को कमजोर करना उसके बूते की बात नहीं अतः इसी विषय को ध्यान में रखते हुए आतंकवादियो के साथ भी वह नकली करेंसी का भण्डार भारत भेजता है। जिससे एक तरफ आतंकियो को आर्थिक सुविधा तथा दूसरी तरफ नकली मुद्रा का भण्डार भारत पहुच जाता है। पाकिस्तानी सरकार अपनी गुप्तचर एजेंसी आई0एस0आई0 के माध्यम से पाक वायु सेना की पाकिस्तान इन्टरनेशनल एयर लाइंस के विमानों के माध्यम से नेपाल, बांग्लादेश तथा श्रीलंका में नकली नोटो की खेप भेजने का कार्य करती है। इसके बाद वहां घुसपैठियों के माध्यम से भारत में फर्जी नोटो को फैलाया जाता है। जाली मुद्रा के व्यवस्थित वितरण करने वाले को एक निर्धारित प्रतिशत भी दिया जाता है। पाकिस्तान भली भॉति जानता है कि हिंसक गतिविधियों के अतिरिक्त भारतीय अर्थव्यवस्था पर चोट पहुचायी जाये तो विकासशील भारत के पांव में बेडियॉ पड जायेगी जिससे उसका विकास रथ की गति का सत्यानाश सुनिश्चित है अतः हमारा पड़ोसी मुल्क अपनी पूरी ऊर्जा इस अनैतिक कार्य में लगाये हुए है।
लेखक
राघवेन्द्र सिंह
117/के/145 अम्बेडकर नगर
गीता नगर, कानपुर - 25
फोन नं- 9415405284
उत्तर प्रदेश (भारत)
email: raghvendrasingh36@yahoo.com
सी0बी0आई0 द्वारा पकड़े गये राजेन्द्र कुमार अनादकर ने खुलासा किया जिसके अनुसार आई0एस0आई0 के इशारे पर फर्जी मुद्रा की छपायी क्वेटा आदि जगह पर होती है। उसके बाद वह जाली करेंसी डान दाउद को सौप दी जाती है जिसे वह अपने नेटवर्क के माध्यम से म्यूजिक सिस्टम, क्राकरी, वाशिंग मशीन आदि में डाल हवाई जहाज द्वारा भेज देता है। कम पढ़े, बेरोजगार महिलाओ तथा मुसलमानों को इस काम में लगाया जाता है। भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में नकली नोट, उसका असली के रूप में इस्तेमाल, नकली नोट रखना या नकली नोट बनाना या उसका उपकरण रखने या नकली नोट बनाने के सामान या बैंक नोट से मिलते जुलते दस्तावेज का इस्तेमाल करना भारतीय दंड संहिता की धारा-489-अ से 489-इ के तहत दंडनीय अपराध है। इन मामलो में देश की अदालते जुर्माना या सात साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास या संगीन जुर्म को देखते हुए दोनो सजाए एक साथ दे सकती है। वर्ष 2003 के सरकारी आकड़े के अनुसार देश के विभिन्न भागो में फर्जी करेंसी पकडने के कुल 1523 मामले पंजीकृत हुए तथा 2 करोड़ 80 हजार से ज्यादा नकली नोट बरामद हुए। खुफिया सूत्रो के अनुसार दिल्ली नकली नोटो का केन्द्र है, यहां से देश के अन्य भागो में उक्त करंेसी भेजी जाती है। वर्ष 2000 में रिजर्व बैंक द्वारा गठित नाइक कमेटी ने कहा था देश में करीब 1 लाख 69 हजार करोड फर्जी नोट बाजार में है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु के हालात काफी चिन्तनीय है।
26/11 के मुम्बई हमले की जॉच से यह बात सामने आयी आतंकी अपने साथ भारी मात्रा में भारतीय जाली करेंसी लाये थे। वर्ष 2005 में बेगलूर के भारतीय विज्ञान संस्थान पर हुए हमले भी 50 लाख में से 30 लाख नकली नोट खर्च किए गये थे। उक्त घटनाए प्रमाणित करती हैं, किस प्रकार नकली करेंसी आतंकी गतिविधियों में प्रवेश की हुई है। आज भारत उक्त विषय में बहुत विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है नकली नोटो का विषय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सीधे-सीधे आतंकी हिंसक गतिविधियों से जुड़ा है। जिसका इलाज समय रहते न किया गया तो आने वाला समय भारत के लिए मुश्किलो भरा होगा। आज से 63 वर्षों पहले पाकिस्तान भारत के हाथ काट कर अस्तित्व में आया था। आज पुनः हाथ काटने पर आमादा है। स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो चुका है पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आई0एस0आई0 भारत को नकली नोटो के माध्यम से आतंकवाद एवं अर्थव्यवस्था सहित अनेक कोनों पर तबाह करना चाहती है लेकिन हम अभी तक इसकी व्यवस्थित सुरक्षा कर पाने में पूरी तरह असमर्थ रहे है। हमारे देश तथा नेपाल सीमा पर वीजा प्रावधान न होने के कारण जाली करेंसी रोक की समुचित व्यवस्था नहीं हो पा रही है। बाग्लादेश सीमा पर एक दूसरे की जमीन होने के कारण भी सुरक्षा व्यवस्था में असुविधा होती है। हालांकि जाली नोटों के प्रसार को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ प्रयास किये है। जिसके अन्तर्गत जाली नोट धारको को रसीद जारी करना है, जिसके तहत जाली नोट पाये जाने पर धारक से नोट जब्त कर एक रसीद जारी होगी। नोटो की पहचान के लिए बैक के सभी कर्मचारियों का प्रशिक्षण, पकडे़ गये जाली नोटो की एफ0आई0आर0 तथा सभी बैंक में करेंसी रीडर उपकरणों को स्थापित करने की योजना सहित विभिन्न बिन्दुओं पर कार्य योजना तैयार की गयी है। परन्तु उपरोक्त सभी व्यवस्थाए अधकचरी सी प्रतीत होती है। जो जाली करेंसी रोक से ज्यादा रक्षात्मक है। बेहतर हो सरकार जल्द से जल्द भारतीय मुद्रा की डिजाइन एवं आकार परिवर्तित करती रहे तथा साथ-साथ वैश्विक स्तर पर ऐसी नयी तकनीके आ गयी है जिससे करेंसी का प्रतिरूप बनाना मुश्किल है। यदि बन भी जाती है तो आसानी से पकड़ में आ जाती है। प्लास्टिक की मुद्रा जो विश्व के कई देशों में व्यवस्थित रूप से चलन में है भारत में भी लागू हो सकती है। इसी प्रकार के कुछ प्रयास कर जाली करेंसी को चलन में आने से पहले ही रोका जाये तो बेहतर होगा अन्यथा उपयोग में आने के बाद पकड़े जाने पर वह अपना लगभग पूरा नुकसान कर चुकी होती है।