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क्या आपने कभी अपनी बेटी की उम्र की किसी लड़की के साथ सेक्स किया है?
जवाब मिलता हैं.. हां।
क्या आप कभी अपने पति के अलावा किसी और के साथ गैर मर्द के साथ नाजायज़ रिश्ता बनाने की कोशिश करेंगीं?
जवाब मिलता है.. नहीं।
लेकिन ये जवाब गलत था। ये एक बानगी भर है उस प्रोग्राम की, जो आजकल स्टार प्लस पर आता है। अमेरिकी शो 'मोमेंट ऑफ ट्रूथ'की नकल पर शुरु हुए इस प्रोग्राम के ज़रिए हिंदुस्तान में सच की गंगा बहाने की कोशिश की जा रही है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र के इस मुल्क में जहां हज़ारों गुरु पंडितों और मुल्ला मौललवियों ने इस मुल्क की बुनियाद रखी, वहां आज लोगों को सच सिखाने की ज़रूरत पड़ रही है। जहां लाखों पीर-फकीर गंगा-जमुनी तहजीब की सीख देकर चले गये। वहां टीवी पर सच सिखाया जा रहा है। सच भी कैसा। बेडरूम का सच। नाजायज़ रिश्तों का सच। साजिशों का सच। मर्डर और दोस्ती में दरारों का सच। सेक्स और बेवफ़ाई के अजीबो-गरीब रिश्तों का सच। प्यार-मौहब्बत में नाकाम रहने का सच। फलर्ट करने का सच। सच भी ऐसा जिसमें सिर्फ़ मसाला हो, तड़का हो। वो भी किसलिए सिर्फ़ एक करोड़ रुपयों के लिए। और एक करोड़ भी तब मिलेंगे जब आप सभी 21 सवालों का सही जवाब देंगे। मुझे आचार्य धर्मेद्र की एक बात बहुत अच्छी लगी, कि आप पैसा देना बंद कर दो, लोग टीवी पर सच बोलना बंद कर देंगे। लोग टीवी पर पैसे के लिए सच बोल रहे हैं। प्रोग्राम के पीछे तर्क दिया जा रहा है, कि इसके आने के बाद लोग सच बोलने लगे हैं। मेरा उनसे यही सवाल है कि क्या इससे पहले समाज में लोग सच नहीं बोलते थे? क्या अब तक मुल्क और समाज की बुनियाद झूठ के ढर्रे पर चल रही थी? एक सच ये है कि मैं कभी झूठ नहीं बोलता। आप भले ही यकीन न करें, लेकिन मुझे झूठ बोलना बिल्कुल पसंद नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि मैं शायद स्टार प्लस पर आने वाले प्रोग्राम सच का सामना के बाद कुछ बदल गया हूं। आप सोच रहे होंगे कि इस प्रोग्राम के आने के बाद हिंदुस्तान में राजा हरिशचन्द्र कहां से पैदा हो गये। लेकिन जनाब ऐसा नहीं हैं। यहां सदियों से लोग सच का सामना करते हैं। अब अगर कोई राखी सावंत से सच बोलता है कि वो पहले से शादी-शुदा है, तो क्या ये सच का सामना का असर है। दरअसल ये भी एक ड्रामा था। जिसके पीछे भी था पैसे का बड़ा खेल। मतलब फुल ड्रामा। और फिर यहां जो भी शख्स सच बोलता है, उसकी पूरी फैमिली उसके सामने बैठती है। झूठ और सच के साथ ही उनके एक्सप्रेशन भी बदलते जाते हैं। ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि कोई पति या पत्नी अपनी बीस साल की शादी-शुदा ज़िंदगी में डर की वजह से अपने राज़ एक-दूसरे से शेयर ही न करे। और जब बात एक करोड़ मिलने की आती है, तो उसके राज़ परत दर परत सारी दुनिया के सामने खुल जाते हैं। मुझे याद है कि कई साल पहले राजेन्द्र यादव जी ने अपनी पत्रिका हंस में ऐसी ही एक सीरीज़ चलाई थी। जिसमें अपनी ज़िंदगी का कच्चा चिट्ठा लिखना था। मैगज़ीन बाज़ार में आई, लेकिन लेख छपते ही हल्ला मच गया। कुछ लोगों ने बड़े उतावले पन के साथ अपनी ज़िंदगी को तार-तार करने की कोशिश की थी। लेकिन नतीजा क्या निकला। हंगामा मचा, तो हंस को सीरीज़ ही बंद करना पड़ी। अफ़सोस ये है कि इस प्रोग्राम का भी वहीं हश्र न हो। सच का सामना करने के चक्कर में कहीं रिश्ते दरक न जाएं, और भरोसे पर टिका जिंदगी का घंरौंदा एक हल्के से झोके में ही ज़र्रा-ज़र्रा करके बिखर जाए। सच के ठेकेदारों समाज पर कुछ तो रहम करो। क्योंकि कुछ झूठ ख़ूबसूरती के लिबास में ही अच्छे लगते हैं।
अबयज़ खान
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
24 बैठकबाजों का कहना है :
इस और राखी वाले लेख को लिखने के लिये आपने वे सीरीयल देखे होंगे मैने नहीं देखे और आप के लेख भी अखबार की सुर्खियों की तरह देखे भाई जो चीज पसन्द नहीं उसे देखने को कौन मजबूर करता है आपको यह बात समझ के बाहर है
श्याम सखा
ये बाज़ारवाद का युग है्और शायद किसी बरबादी का संकेत भी निश्चित ही समाज के लिये ऐसे प्रोग्राम खतरनाक साबित होंगे आभार्
पैसे के खेल में क्या बुराई है.. कौन नहीं चाहता पैसे... मुद्दे है तो सवाल है और सवाल है तो जबाब है..
आपने हंस की बात उठाई है तो इसका उत्तर राजेन्द्र यादव जी ही देंगे लेकिन यह मामला कहीं भी हो लोग सनसनी के ही लिये यह सब पढना देखना चाहते है आप झूठ को भी सनसनीखेज सच बनाकर प्रस्तुत कीजिये लोग उसे भी देखेंगे .तो यह सब नाटक है
वैसे तो आपके आलेख में दम है लेकिन आपने लिखा "सामना करने के चक्कर में कहीं रिश्ते दरक न जाएं, और भरोसे पर टिका जिंदगी का घंरौंदा एक हल्के से झोके में ही ज़र्रा-ज़र्रा करके बिखर जाए।" मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि कौन इतना बेवकूफ होगा जो ऐसा सच बोलने टी वी पर आएगा जिससे उसके रिश्ते ख़राब हो जाए. और वैसे भी अन्दर का सच क्या पता क्या है हम तो वही देख रहे हैं जो कैमरा के आगे है कैमरे के पीछे का असली माजरा क्या पता क्या है.
सच्चाई के प्रतीक राजा हरिश्चन्द्र के जमाने में आज की तरह कुकर्मी लोग नहीं थे
कलियुग के हमाम में सब नंगे है. अभी तो आगे-आगे देखिये यह सच कितनों को नंगा करता है.
आज पैसों के दम पर ९८% लोगो से झूठ किसी भी प्रकार का बुलवा सकते है . राखी ने मनमोहन तिवारी के घर जाकर उसके झूठ को बेनकाब दुनिया के सामने किया .अच्छी ,चेतनाशील सामयिकी के लिए बधाई .
Bahut sahi kaha aapne....
कुछ झूठ ख़ूबसूरती के लिबास में ही अच्छे लगते हैं।
Kya kaha jaay is durbhagypoorn sthiti ke bare me....
कल एक दोस्त के घर गया तो उनकी भाभी आधे घंटे बाद बाहर आकर बोलीं, बुरा मत मानिएगा....राखी का स्वयंवर में ब्रेक होते ही चाय देती हूं....अभी बहुत ज़रूरी चीज़ चल रही है....
ये अज के मिडिल क्लास का सच है जिसका सामना मैंने किया......
कल एक दोस्त के घर गया तो उनकी भाभी आधे घंटे बाद बाहर आकर बोलीं, बुरा मत मानिएगा....राखी का स्वयंवर में ब्रेक होते ही चाय देती हूं....अभी बहुत ज़रूरी चीज़ चल रही है....
ये अज के मिडिल क्लास का सच है जिसका सामना मैंने किया......
रिश्ते तब टूटते हैं जब भावनाओं पर जुड़े होते हैं ,आज के रिश्ते की बुनियाद पैसा होती है ,जब पति या पत्नी एक करोड़ कमाकर लायेगा तो टूटा रिश्ता फिर जुड़ जायेगा |यह आज का सच है |जिनको अपने रिश्ते की अहमियत का अंदाज होगा वह इस गेम को खेलने नहीं जायेगा |
अबयज़ दूसरा सवाल जो अपने लिखा है वो थोडा सा गलत लिख दिया इस्सलिये उसका प्रभाव भी ज्यदा बन गया आपके आलेख में, मुझे पूरा यकीं है अपने जान बूझ के नहीं किया होगा गलती से हुआ होगा आपको " झूठ बोलना बिल्कुल पसंद (भी तो) नहीं है "
जो सवाल शो में पुछा गया था वो था
"If your husband never came to know about it., would you consider sleeping with another man?
जिसका हिंदी में अनुवाद होगा की "अगर आपके पति को कभी पता न चले तो क्या आप क्या आप किस्सी गैर मर्द के साथ रिश्ता बनायेंगी ? "
आपने जो लिखा “क्या आप कभी अपने पति के अलावा किसी और के साथ गैर मर्द के साथ नाजायज़ रिश्ता बनाने की कोशिश करेंगीं?”
आपने जो अनुवाद लिखा या जो सवाल लिखा उसमे और जो सच में दिखाया गया TV पे उसमें बहुत ही फर्क है ये कोई दर्जा 8 का लड़का भी पढ़ के बता देगा |
अब एक छद्म(hypothetical/imaginary) सावल में यहाँ पे रखता हूँ " मान लीजिये बैंक को कभी ये पता नहीं चले की एक करोड़ रुपये आपने चुराया है तो क्या आप पैसा चुरा लेंगे ?" "
इस्सका जवाब शायद बहुत से लोग हाँ देंगे ....ये भी सवाल वैसा ही था जैसा की टीवी शो में पुछा गया ....हर किसी की अपनी Fantasies होती हैं ...और fantasy होना कोई गुनाह नहीं कम से कम IPC(Indian penal code) में तो नहीं !!
फिर आगे आपने एक तर्क दिया लिखा " भारतेंदु हरिश्चन्द्र के इस मुल्क में जहां हज़ारों गुरु पंडितों और मुल्ला मौललवियों ने इस मुल्क की बुनियाद रखी, वहां आज लोगों को सच सिखाने की ज़रूरत पड़ रही है। “
आप बहुत ही ज्यादा judgemental होके लिख रहे थे शायद .... कोई सीधा सम्बन्ध दिखा नहीं मुझे अपने तर्क और लेख में ... और उसके बाद तो हद्द ही कर दी आपने
“ सेक्स और बेवफ़ाई के अजीबो-गरीब रिश्तों का सच !!”
भैया मेरे इसमें अजीबो गरीब क्या है "सेक्स या बेवफाई" या इनसे होकर गुजरता हम सबका सच ....ये दोनों ही उतने पुराने हैं जितने की इंसान ... इन दोनों में ही नया कुछ कुछ भी नहीं ..अजीब भी कुछ भी नहीं ...............
बस आखिरी बात और जिसपे मेरा धयान गया , आपने लिखा “सच का सामना करने के चक्कर में कहीं रिश्ते दरक न जाएं, और भरोसे पर टिका जिंदगी का घंरौंदा एक हल्के से झोके में ही ज़र्रा-ज़र्रा करके बिखर जाए “
आप बेवजह फ़िक्र कर रहे हैं ... ऐसे रिश्ते अगर दरकते हैं तो उनको दरकने ही देना चाहिए ...
अबयज़ अच्छी बात ये है की आप लिख रहे हैं ...और सोच रहे हैं रहे हैं समाज के बारे मैं ...आपकी चिंता देख के मुझे ख़ुशी है ...
उम्मीद करता हूँ अगली बार आपको पढूं तो वो खुले दिमाग से लिखा गया हो ,unbiased हो
सादर,
दिव्य प्रकाश दुबे
http://www.youtube.com/watch?v=oIv1N9Wg_Kg
बैठक पर अच्छी बहस छिड़ी है....अबयज़ भाई जवाब दें...
वैसे दिव्य जी, अबयज़ के अनुवादों पर न भी जाएं, तो टीवी का ये नया भ्रमजाल कितना जायज़ है, ये तो बहस का विषय है ही... फैंटसी में जीना ठीक है, मगर सिर्फ फैंटसी टीवी का दुरुपयोग ही लगती है....मोरल ऑफ द स्टोरी क्या निकलती है, इस पर तो गौर किया ही जाना चाहिए....
मैं दिव्य भाई से पूर्णत: सहमत हूँ।
अबयज़ साहब तो मुझी पूरी तरह से कन्फ़्यूज्ड दिखे। एक बार कहते हैं कि "मैं झूठ नहीं बोलता" और आगे जाकर कहते हैं कि "कुछ झूठ रिश्तों के लिए ज़रूरी होते हैं।" भाई साहब आप आखिरकार बोलना क्या चाह्ते हैं।
और वैसे भी किसी भी रियालटी शो में किसे भाग लेना है किसे नहीं वह तो उस इंसान का अपना निर्णय है। किसी भी इंसान से जो भी प्रश्न पूछे जाते हैं उनकी संवेदनशीलता के बारे में उस इंसान को पहले हीं से मालूम होता है। फिर अगर वो सच कहने से कतराता है तो क्यों जाता है ऐसे शोज में... न जाए। और अगर आप इसे देखने से कतराते हैं तो आपको देखने के लिए चैनल वालों ने तो बाध्य नहीं किया है। ऐसा भी नहीं है कि चैनल वाले अपनी मर्जी से कुछ भी तथ्य बना रहे हैं...वही बता रहे हैं जो उस इंसान के साथ हुआ है या फिर जो वह सोचता है। अगर आप ऐसा नहीं सोचते तो आप देखना बंद कर दें।
-विश्व दीपक
आदरणीय दिव्य प्रकाश जी, सबसे पहले तो आपके साथ उन सभी लोगों का शुक्रिया, जिन्होने इस लेख को पढ़ा। अब मैं अपना पक्ष रखता हूं... आप सवाल का शाब्दिक अर्थ ढूंढ रहे हैं, तो भी उसका मतलब तो यही है न कि क्या आप किसी गैर मर्द के साथ रिश्ता बनाने की कोशिश करेंगी, और आपके पति को पता न चले। और ये सवाल तब पूछा जाता है, जब उस महिला का पति उसके सामने बैठा है। मुझे इसमें कोई एतराज़ नहीं है, कि कोई अपने बेडरूम का सच किसी को बताए या न बताए। खुलकर बताए, लेकिन खुलेआम न बताए। क्योंकि ये शो टीवी पर प्राइम टाइम में आता है। पूरा परिवार बैठकर देखता है। बच्चे भी देखते हैं। और ऐसा नहीं है कि आप किसी को रोक सकते हैं। लेकिन जब यही शो देखकर आपका बच्चा आपसे सवाल-जवाब करेगा, तो शायद जवाब देने में थोड़ी मुश्किल होगी। निखिल भाई ने ठीक ही लिखा है, फैंटसी में जीना ठीक है, मगर सिर्फ फैंटसी टीवी का दुरुपयोग ही लगती है। और ये तो कोई तर्क नहीं है कि आप शो क्यों देखते हैं, आपको अच्छा नहीं लगता तो मत देखिए। मैंने भी इस शो को तब ही देखा था, जब इस पर हंगामा मचा था। न ही मैने इस शो को बंद करने की वकालत की है। मेरा कहना तो ये है कि लोगों का मनोरंजन करिए, न कि उन्हें टॉर्चर करिए। दुनियाभर के सीरियल और फिल्में टीवी पर आती हैं। जिसको जो पसंद आता है, वो उस पर अपना कमेंट्स करता ही है। और ये बात सभी के साथ लागू होती है।
धन्यवाद
हाहा ... पहली बात तो ये निखिल कि बैठक पर अच्छी "बैठक" छिड़ी है अच्छी बहस नहीं .... बहस बोल के तड़का न लगाइए ये काम TV वाले , न्यूज़ चॅनल वाले कर रहे हैं ,उनके लिए ही छोड़ दीजिये ये ...
रही बात बच्चो के सवाल जवाब की ...तो सीरियल शुरू होने से पहले कई बार PG(Parental Guidance ) वाली बात बहुत साफ़ साफ़ डिसप्ले होती है , और उसके बाद भी कोई परिवार साथ बैठ के देखता है तो इसका मतलब है वो परिवार अपने बच्चे के सवालों के लिए पूरी तेरह तैयार है या फिर उसने अपने बच्चो के सवालो के जवाब पहले ही दे दिए हैं ... बच्चो के सवालों से कहाँ तक बचेंगे ...बच्चे तो तब भी सवाल करते थे जब दूरदर्शन पे कंडोम का प्रचार आता था , अब भी करते हैं जब गर्भ निरोधक गोली का प्रचार आता है , हाँ ये बात मैं भी मानता हूँ की "शायद जवाब देने में थोड़ी मुश्किल होगी" ये बात सही भी है ...सच और साफ़ बोलने मैं मुश्किल होती ही है ...
और वैसे भी इस पीढी की सबसे अच्छी बात ही यही है की वो सवाल तो पूछती है ..जरा सोचिये मेरे पिताजी वाली पूरी पीढी को सवाल पूछने के इतने मौके थे ही कहाँ ....
पहले जब कौन बनेगा करोर्पति आता था तो लोग हॉट सीट पे बैठे contestant साथ मैं जवाब देके खुश होते थे की हमें इतना आता है ,
लेकिन हर सवाल जो "सच का सामना" में पुछा जाता है तो हम चुपचाप से अपने अन्दर झांकते हैं और अपने सच को टटोलते हैं ...और उसके जवाब को अपने पास दफ्न रहने देते हैं ...
मुझे दुःख है की आपने ये शो हंगामा होने के बाद देखा ...
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है,
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है ,
ना-तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं,
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है,(अकबर इलाहाबादी )
Regards
Divya Prakash Dubey
'हाहा ... पहली बात तो ये निखिल कि बैठक पर अच्छी "बैठक" छिड़ी है अच्छी बहस क नहीं .... "
ये हंसते हुए क्या कह गए कुछ समझ नहीं आया...हंसी रुके तो समझाइए भी..... तड़का क्या लगा रहे हैं...सीधा-सीधा राय रखी थी हमने तो....
रही बात आपके सच का सामना को लेकर झंडा उठाने की, तो उठाइए झंडा....ये नई पीढ़ी-पुरानी पीढ़ी को बीच में कहीं ले आए....सच उगलवाने के लिए यही एक ज़रिया नहीं है नई पीढ़ी के पास.....जिस टीवी को तड़काबाज़ी कहकर कोस रहे हैं, उसके सिद्धांतों को समझिए पहले....आप कभी कुछ कह रहे हैं, कभी कुछ.....अबयज़ के लेख से आप परेशान हैं, कि बैठक से परेशान हैं कि कुछ भी लिखने को आतुर हैं...कुछ समझ ही नहीं आ रहा....जब जिसका मन करे, जो चाहे देखे..बैठक ने थोड़े ही रोक रखा है किसी को....झूठ-मूठ का बखेड़ा न करें....नई पीढ़ी सवाल करने लगी है, इतना कह भर देने से थोड़े होगा....क्या सवाल करती है, इस पर भी गौर करना होगा ना...नई पीढ़ी क्या होती है....सोच नई होती है....वो पिता की उम्र के आदमी में हो सकती है....किसी को बिना बात के न कोसें भाई....बैठक बैठक ही रहेगी...बहस अच्छी छिड़ी है कि नहीं, ये कौन तय कर सकता है........कम से कम आप या मैं तो नहीं...आप ही शुरू कीजिए ना अच्छी बहस...कौन रोकता है....
माफ़ कीजिये निखिल मुझसे लिखने मैं थोडी सी गलती होगयी ... अच्छी बैठक छिड़ी है से मेरा मतलब था की अच्छा है लोग यहाँ अपने विचार रख रहे हैं ... विचारों का आदान प्रदान हो रहा है ..,,,मैं इस संवाद को "बहस" नहीं बोलना चाह रहा था, "बहस" शब्द नहीं बोलना चाह रहा था ... इस संवाद को "बहस" बोलना मुझे ऐसा लगा जैसे कोई जबरदस्ती तड़का लगा रहा है . .. इसलिए वो वाक्य लिखा था . लेकिन थोडा शब्द विन्यास सही नहीं था इसलिए आप गलत समझ गए ...वाक्य सही से ना बना पाना मेरी गलती है मैं माफ़ी चाहता हूँ ...
और मैं कोई झंडा नहीं उठा रहा भाई ... मैं पूरी तरह से ये शो का लुफ्त उठत हूँ एन्जॉय करता हूँ ...मुझे फरक नहीं पड़ता की कोई हंगाम करे ...
और मैं कहाँ किसी को कोस रहा हूँ भाई ... मैं तो जिस प्रेम से सीरियल देख रहा हूँ उस्सी प्रेम से उसपे राखी गयी राय पढ़ रहा हूँ और उस्सी प्रेम से संवाद भी कर रहा हूँ ...कोस कहाँ रहा हूँ ??
मुझे शुरू से जिस बार को Premise बना के ये आलेख लिखा गया था ..उसपर ही कुछ सवाल थे ....उन्ही के लिए मैंने यहाँ लिखा था ...
मैं भी यही चाहता हूँ कि बैठक बैठक ही रहे ..."बहस" न हो जाये ...कुछ पूर्वाग्रहों से मिश्रित आलेख ,विचार न हो कर रह जाये ..
regards
Divya prakash Dubey
चलिए सब कुछ साफ हो गया...कुछ हमने समझने में भूल कर दी....कुछ आपने....चिल मारिए...आज मैंने भी यू-ट्यूब पर सच का सामना देखा...मुझे तो रोचक लगा....अजीब-सा कॉस्मोपॉलिटन टच.....बनावटी सवाल.....उतने ही बनावटी जवाब...कभी विस्तार से लिखूंगा...
ये हुई न बैठक वाली बात ..हाँ पक्के से लिखिए ...आपको पढना अपने आप में अनुभव होता है ...
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
:)
बहस चाहे जैसी भी छिड़े, बैठक चाहे किसी भी मुद्दे पर हो, लेकिन मैं "नियंत्रक" महोदय की टिप्पणी से थोड़ा चौंक-सा गया। मैने कविता , कहानी या फिर आवाज़ ब्लाग पर शैलेश जी को नियंत्रक के रूप में टिप्पणी करते हुए पढा है। उनकी शैली, उनके शब्द तनिक भी उकसाने वाले या फिर मज़ाक उड़ाने वाले नहीं होते। बड़े हीम आराम से वे हर बात को समझाते हैं। माना कि दिव्य जी की टिप्पणी थोड़ी ज्यादा हीं भारी-भरकम हो गई थी, लेकिन आप "कविता" ब्लाग पर देखे वहाँ पर लोग इससे भी बड़ी भारी-भरकम, कठोर या कहिए निंदनीय टिप्पणी करते हैं जैसे कि "हिन्द-युग्म को सही कविता की पहचान नहीं है" वगैरह वगैरह, फिर भी शैलेश जी उस टिप्पणी का जवाब बड़े हीं आराम से देते हैं। अब यहाँ अगर "निखिल" भाई "नियंत्रक" का नाम इस्तेमाल करके ऐसी टिप्पणी करेंगे तो आप हीं कहिए पढने वालों पर "बैठक" का कैसा इमेज़ बनेगा। यही बात कहनी थी तो अपना नाम इस्तेमाल करते।
मेरी बात बुरी लगी हो तब भी "नियंत्रक" के नाम से टिप्पणी नहीं कीजिएगा जो भी कहना हो "निखिल" नाम से हीं करे।
और जहाँ तक "सच का सामना" का सवाल है तो पाहले आप यह पता कर लें कि सवालों तक पहुँचा कैसे जाता है। लोगों के सामने जो २१ सवाल पूछे जाते हैं, वे उन ५० सवालों का हिस्सा होते हैं, जो वास्तविक पोलिग्राफ़िक टेस्ट के दौरान उस प्रतिभागी से पहले पूछे गए थे। बाद में उन्हीं सवालों में से मजेदार या कहिए समझदार २१ सवालों का चुनाव किया जाता है। यू-ट्युब पर आपको ये बातें पता चली हों तो अच्छा, नहीं तो पूरा रिसर्च करने के बाद हीं किसी चीज का समर्थन करें या विरोध करें।
-विश्व दीपक
अबयज़ ख़ान said...
जिसको जो पसंद आता है, वो उस पर अपना कमेंट्स करता ही है। और ये बात सभी के साथ लागू होती है। jee sach kaha yah aap par bhi lagu hai
संपादक said...
'हाहा ... पहली बात तो ये निखिल कि बैठक पर अच्छी "बैठक" छिड़ी है अच्छी बहस क नहीं .... "smpaadk ji khush hain bahas hai log aa rhe hain,आखिर यहां भी तो TRP का सवाल है फ़िर तथाकथित T.V.REALTY SHOW को क्यो कोसा जाए..... सबसे अच्छी बात है.......... Blogger रंजना said...
कुछ झूठ ख़ूबसूरती के लिबास में ही अच्छे लगते है
यह वाकई शास्वत सच है और हमेशा रहेगा...सेक्स अजन्ता की गुफ़ाओं.फ़्रेंच sculpture,aurसब के मन की गुफ़ाओं मे था रहेगा पहले taboo था अब saleable hai सो लोग बेच रहे हैं.....श्याम सखा श्याम
कुछ बाते ऐसी होती है जो सिर्फ राज ही रहती है इन राज को या तो अपनों को बताया जाता है या फिर दिल में छुपाया जाता है ऐसी बातो को सार्वजिनिक करना परिवार को तोड़ना ही है , टीवी शो वालो से मेरा कहना है की अगर सच बुलवाना ही है तो गंभीर अपराधियों से सच बुलाकर देश की सहायता करे.
धन्यवाद
वीमल कुमार हेडा
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