हिंदी हमारी मातृभाषा है, हमारी राष्ट्रभाषा है लेकिन इसकी बदनसीबी यह है कि कुछ लोगों के सिवा इसकी याद हमें केवल हिंदी दिवस पर ही आती है. उसी रोज़ गोष्ठियां, सभाएं, निबंध प्रतियोगिताएं, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं.
मैं हिंदी दिवस पर इतना जज्बाती न होकर और सिर्फ हिंदी के प्रचार की बात न करके एक बात और भी कहना चाहूँगा वह है हिंदी के शब्दकोष में विस्तार.
अभी कुछ समय पहले 'web2.0' अंग्रेजी का दस लाखवां शब्द बना. दुनिया के छोटे-छोटे देशों की राष्ट्रभाषाओं के शब्दकोष एक बड़े देश भारत की राष्ट्रभाषा के शब्दकोष की तुलना में बड़े हैं. आकडों पर नज़र डाले तो English Global Language Monitor के अनुसार अंग्रेजी में 10,00,000, चीनी में 5,00,000+, जापानी में 232,000, स्पेनिश में 225,000, रूसी में 195,00 जर्मन में 185,000, जबकि हिंदी में केवल 1,20,000 शब्द हैं. यह बड़ी ही अजीब बात है कि 125 करोड़ लोगों की राष्ट्रभाषा का शब्दकोष बस इतना ही है.
इसके अलावा हिंदी विश्व कि दूसरी सबसे कठिन भाषा है जबकि पहले नंबर पर चीनी है. मुझे निजी तौर पर एक बात और महसूस होती है. हिंदी वर्णमाला में कुछ अक्षर ऐसे हैं जिनका साधारण बोलचाल में कोई प्रयोग नहीं होता है. उन्हें वर्णमाला से निकल देना चाहिए. इसी तरह से जो और संभव बदलाव हों वो करना चाहिए.
अंग्रेजी में 'जय हो' शब्द शामिल होने के बारे में सुनने को मिला. इसी तरह के कुछ और उदहारण पहले के भी देखे जा सकते हैं जैसे अंग्रेजी भाषा में सिपॉय (हिंदी के सिपाही से बना.) और लूट (सीधे एक वर्ब के तौर पर इस्तेमाल होता है.) इसी तरह से कुछ और कठोर उच्चारण वाले शब्दों को आम बोलचाल के शब्दों से बदलकर आसान बनाया जा सकता है.
कुछ अंग्रेजी के शब्दों जैसे त्रिकोणमिति के 'sin' और 'cos' को हिंदी में 'ज्या' और 'कोज्या' लिखते हैं. इन्हें ज्या और कोज्या में न बदलकर सीधे तौर पर sin & cos में ही लिखा जाए. इसे यह बिलकुल भी ना माना जाए कि हम विदेशी भाषा को तरजीह दे रहे हैं बल्कि इन शब्दों को जोड़कर हिंदी का शब्दकोष बढा लिया जाए. इसी प्रकार अंग्रेजी के सामान्य शब्दों login id, email id, password और इसी तरह के आम बोलचाल के शब्दों को हिंदी शब्दकोष में शामिल कर लिया जाए.
शामिख फ़राज़
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31 बैठकबाजों का कहना है :
सही कहा शमिख जी..
इक वाक्य बताताना चाहूंगी याहाँ.
कुछ दो दिन पहले कि घटना है, मेरे स्टोर में इक family आई थी उनके साथ इक प्यारा सा बच्चा भी था, तो जैसे ही उस बच्चे ने हिंदी में (ध्यान दीजिये) हिंदी में बात करना शुरू किया, उसकी मम्मी trial room से बाहर निकल कर आई और कहने लगी "अब तू हिंदी बच्चा बनता जा रहा है, कल तेरी शिकायत Teacher से करुँगी"
देखिये येः है हम हिन्दुस्तानियों की सोच.
अगर वो हिंदी में बात करना चाहता है तो इसमें गलत क्या है.
समस्या येः है कि हम हिन्दुस्तानी ही अंग्रेजी के पीछे हाथ धो के पड़े हैं, मानती हूँ कि आज के ज़माने की जरुरत है अंग्रेजी भाषा पर अपने बच्चों को येः सीख देना कि हिंदी ना बोले, येः कहाँ तक जायज़ है.
आप का लेख पढना बहुत अच्छा लगा.
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-दीप
ज्या और कोज्या कौन से कठिन शब्द हैं । जब अपनी भाशा की बात हो तो केवल अपनी भाश्aa ke हो फिर क्यों दूसरी भाशा के शब्दों को अपनाया जये? क्या ये हिन्दी को कमज़ोर करने का एक प्रयास नहीं है?
तमाम भारतीय भाषाओं के शब्दों का एक सामान्य शब्दकोष बने जो कंप्यूटर आने पर बहुत आसान बात है। हमें दुनिया की किसी भी भाषा के किसी भी शब्द को यदि हिन्दी में उस का कोई समानार्थी सहज रूप में प्राप्य नहीं तो उसे अपने शब्दकोष में सम्मिलित कर लेना चाहिए। तभी हिन्दी आगे बढ़ेगी।
शामिख जी,
हिन्दी में अन्य भाषा के वे शब्द जो अब आम बोल चाल की भाषा में प्रयोग में लाए जा रहे हैं और, समय समय पर और शब्द भी लिये जाने चाहियें यह वजिब बात है,अंगेजी में भी ऐसे शब्द नाहक नहीं लिये जाते वहां इस पर सरकार का अधिकार भी नहीं है कि कौन से शब्द लिये जाएं कौन से नहीं ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के हर नये संस्करण से पहले एक भाषा-विशेषज्ञ कमेटी इसका अनुमोदन करती है जिसमें लगभग २० से ३० सदस्य होते हैं और एक बार शब्द ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में आने पर उसे मानकता प्राप्त हो जाती है ,मगर हमारे यहां ऐसी कोई मानक डिक्शनरी न होने से ऐसा हो रहा है,यहां तो प्रकाशक कोई पुराना शब्दकोष उठाता है और एक नया शब्द कोष बना प्रकाशित कर देता है
हां इसके अलावा हिंदी विश्व कि दूसरी सबसे कठिन भाषा है,यह कथन सर्वथा गलत है तथ्य यह है कि व्याकरण,उच्चारण एवम् जो बोला जाता है वही लिखने के आधार पर हिन्दी सबसे सरल,वैज्ञानिक एवम् संप्रेषिणिय भाषा है,इसे दुरूह केवल कुछ नासमझ सरकारी अधिकारी बना रहे हैं और आप को भी ऐसे कथन से जो तथ्य आधारित नहीं है परहेज करना चाहिये बल्कि संपादक यहां नियन्त्रक का कर्तव्य बनता है कि वह पहले जांच करे तब और गलत पाये जाने पर ऐसे वाक्य हटा दे हां आप अपने ब्लॉग पर जो चाहें लिखें,एक उदाहरण रेल हेतु लोहपथ गामिनी शब्द किसी मानक शब्दकोष में नहीं है केवल विदूषक ऐसे शब्द प्रयोग कर हिन्दी का उपहास करते हैं ,रेल हेतु रेल शब्द अनेक शब्दकोषों में संग्रहित है।बस कोई एक सुदृढ संस्था शब्दकोष प्रकाशित करने लग जाए स्वमेव ही मानक बन जाएगी.राजस्थानी ,भौजपुरी,पंजाबी,हरियाणवी,मैथिली व अन्य भाषाएं जो उत्तर भारत में बोली जाती हैं के अलावा अनेक शब्द जो अब द्क्षिणी भाषाओं से बोलचाल में आग्ये हैं कोलेना चाहिये,एक हरियाणवी कहावत है ,दस कोस पर वाणी बदलै,बीस कोस पै पाणी ,यानि भाषा जड़ नही है उसे जड़ बनाना भी नहीं चाहिये
श्याम सखा श्याम
गलती से २० -३० शब्द टाइप हो गया इसे २००-३०० पढें
श्याम सखा श्याम
बहुत बढ़िया
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना . हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार का संकल्प लें .
हिन्दी दिवस की बधाई..
नए हिन्दी शब्द कोष का स्वागत है .. समय समय पर इसका विस्तार किया ही जाना चाहिए .. मैं तो मानती हूं कि अभ्यास की कमी से ही यह एक कठिन भाषा मानी जाती है .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
हिंदी-दिवस पर हिन्दयुग्म और इसके सभी-पाठको,व् कवियों तथा सभी हिन्दुस्तानियों को बधाई!!!!हमारे और आपके प्रयास से ही हिंदी,आगे बढेगी! इसमें नए शब्दों को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए...
Hindyugm aur aap sabhi ko hindi divas ki badhayee.shamikh ji ke vichaar se sahmat hoon. ye bhi sach hai ki hindi dusri bhashao ke sath judker Ek nai bhasha ko janam deti hai aur aisa sirf hindi bhasha hi kar sakti hai dusri nahi.
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं |
अवनीश तिवारी
शामिख जी,
बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने और हिंदी दिवस पर प्रकाशित होने पर लोग और ध्यान दे रहे हैं पढने पर वर्ना फिर सबका उत्साह ठंडा पड़ने लगता है.....क्योंकि....चार दिन की चांदनी और फिर अँधेरी रात.....लोगों को जोश आता है बस उसी दिन पढ़ने का और वादे करने का फिर टाँय-टाँय फ़िस्स.....जैसे शिक्षक दिवस पर हुआ था. गर्मजोशी से लोग पढ़ते हैं फिर वही बात अगले दिन या उसके अगले दिन पढ़कर किसी को जोश नहीं आता. शिक्षक-दिवस, हिंदी-दिवस, मातृ-दिवस आदि तरह-तरह के दिवस क्या उस एक दिन को ही मायने रखते हैं. इस तरह के लेखों का किसी भी दिन स्वागत होना चाहिये. देखकर बहुत ख़ुशी है की आपने इस पर लेख लिखा ताकि हिंदी की महत्ता से सब अवगत हों.
एक बात कहना चाहूंगी की जो भी भाषा जिसे न आती हो वही कठिन है. चीनी भाषा के साथ जापानी भी बहुत कठिन है. चीनी व जापानी भाषा व लिपि सुना है की मिलती है जैसा वहां के लोगों से पता चला था. चीनी व जापानी लोग तो जापान में महाबिध्यालय जाकर भी अंग्रेजी नहीं बोल पाते अच्छी तरह से. जब की अन्य देशों में उनकी भाषा न जानने पर कम से कम अंग्रेजी में तो किसी तरह अपनी बात समझा सकते हैं. चीन व जापान ३-४ साल पहले घूमने गयी थी तो वहां पर उनकी बात समझने व अपनी बात समझाने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते थे. भगवान का शुक्र है की हम एक २० लोगों के ग्रुप में यात्रा कर रहे थे जिसका एक गाइड भी था. लेकिन वह चिंगलिश बोलता था. वहां के लोग दूसरी भाषा सीखने की कोशिश ही नहीं करते. और अपने यहाँ भारत में कॉलेज का छात्र धड़ल्ले से अंग्रेजी बोल लेता है.
खैर, एक बात और बतानी है की अंग्रेजी की नयी ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में ' जय हो ' शब्द तो होगा ही पर साथ में और भी शब्द शामिल हो रहे हैं. उसी तरह कॉलिन्स की डिक्शनरी में भी हो रहा है. जैसे की क्रिकेट के खिलाडी यू. के. में ' दूसरा ' शब्द बहुत इस्तेमाल करते हैं तो वह भी उसमे अब है. और अंग्रेज लोग जो करी (curry) शब्द दाल-सब्जी के लिये कहते हैं तो शायद उन्होंने तरकारी शब्द को बिगाड़ कर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया होगा अपने कहने की सुविधा के अनुसार.....उस शब्द को काट कर छोटा कर लिया होगा. और अब रेस्टोरेंट के मेनू में भारतीय भी तरकारी के बजाय करी ही कहते हैं. डिक्शनरी में भी curry ही लिखा है. अब तो अन्य तमाम हिंदी शब्द भी शामिल होने की सम्भावना है जो आपकी दिलचस्पी के लिये बता रही हूँ जैसे की: अंग्रेज, मेमसाहिब, देसी, अच्छा, ठीक, अरे, आलू, गुरु, मंत्र, चड्डी, जंगली और बदमाश आदि. और भी कुछ गाली वाले शब्द सुना है डिक्शनरी में आने वाले हैं पर मैं नहीं बता रही हूँ. बहुत कुछ वैसे ही झर्र-झर्र कर ली है मैंने. लेकिन जाने के पहले एक बात और की अपने यहाँ तमाम शब्द जो अंग्रेजी के हैं उन्हें आसानी से हिंदी में सब लोग क्यों नहीं बोल सकते हैं? उदारहरण के लिये टीचर और स्टूडेंट को शिक्षक और विद्यार्थी कह सकते हैं. इसी तरह न जाने कितने और भी बेशुमार शब्द हैं. लेकिन बहुमत होना चाहिए वर्ना अकेला चना क्या भाड़ फोड़ लेगा
हिंदी सरल ,सहज ,लचीली भाषा होने के कारण नये शब्दों को अपनाने से शब्दकोष का विस्तार और समृधि होगी .बडिया आलेख के लिए बधाई .
शन्नो जी की नकारी अच्छी लगी....श्याम जी की भी बात ठीक है.....हिंदी कठिन है, ये कैसे कह सकते हैं....मतलब, पैमाना क्या है कठिनता मापने का....
शन्नो जी की नकारी अच्छी लगी....श्याम जी की भी बात ठीक है.....हिंदी कठिन है, ये कैसे कह सकते हैं....मतलब, पैमाना क्या है कठिनता मापने का....
शमिख जी के इस लेख में मुझे शब्दों से संबंधित बात बहुत अच्छी लगी. जब हम ने टेलीफोन, स्कूल, कॉलेज, मोबाइल जैसे शब्दों को अपना लिया है तो यूज़र नेम, पासवर्ड आदि शब्दों को दिल में जगह क्यों नहीं दे सकते? भला पासवर्ड के लिए कूटशब्द पढ़ कर कौन हिंदी की तरफ आकर्षित होगा? कभी किसी से यह कहते हुए सुना है कि आपका दूरभाष आया है या मुझे एक चलता फिरता दूरभाष खरीदना है. पृथ्वी अब एक ग्रह के रूप में अधिक देखी जा रही है बजाय देशों में बंटी होने के के. जब कई देश मिल कर यूरो करेंसी निकाल सकते हैं, एक ही व्यक्ति दो देशों का नागरिक बन सकता है और भारत में फिनलैंड की नोकिया कंपनी का चलता फिरता दूरभाष (हा हा .. आ गई न हंसी) यानी मोबाइल हर हाथ में इतराता हुआ देखा जा सकता है तो चंद विदेशी शब्दों में क्या देवता लोग नाराज़ हो कर हमारा अनर्थ कर देंगे? क्या 'सुनामी' शब्द जैसा जापानी शब्द अख़बारों में उपयोग नहीं हुआ? जब 'नवभारत टाईम्स' का 'रविवासरीय संस्करण' 'सन्डे टाईम्स' में बदल सकता है तो इतने कट्टरपंथी हम क्यों बनें? यहाँ उन हिंदुत्व- वादियों से तो भगवन बचाए जिन्हें उर्दू भाषा और शब्दों से ही देश हिन्दू संस्कृति खतरे में नज़र आती है और जो 'हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान..' जैसे भ्रामक नारों से देश की गौरवशाली व स्वस्थ सांस्कृतिक विविधता को भी अनदेखा कर गए.
मैं भी विचारों से सहमत हूँ.. पर हम अंग्रेजी के हर शब्द को तो हिन्दी में लिखने के लिये इस्तेमाल नहीं कर सकते.. म्सलन ऊपर वाले वाक्य में ही यदि मैं "इस्तेमाल" की जगह "यूज़" लिखूँ तो?
यही काम नवभारत टाइम्स जैसे घटिया अखबार कर रहे हैं.. हर समाचार पत्र कहीं न कहीं अंग्रेजी के "वर्ड्ज़" को "यूज़" कर रहा है। पर उससे पढ़ने में भी "प्राब्लम" आती है। यदि हम हर शब्द को हिन्दी में लिखने लगेंगे तो हिन्दी के "ओरिजिनल"शब्द अपना स्थान "लूज़" कर देंगे...
शामिख जी ने जो कहा वह सही कहा। लॉगिन आइडी और नये तकनीकि शब्दों के प्रयोग का समर्थन करता हूँ पर ऐसे शब्दों को गँवाना नहिम चाहता जिनका हम "डेली लाइफ़" में "यूज़" करते हैं..
प्रेमचंद जी की बात समझ नहीं आई.....
"हिंदुत्व- वादियों से तो भगवन बचाए जिन्हें उर्दू भाषा और शब्दों से ही देश हिन्दू संस्कृति खतरे में नज़र आती है और जो 'हिंदी हिन्दू हिन्दुस्तान..' जैसे भ्रामक नारों से देश की गौरवशाली व स्वस्थ सांस्कृतिक विविधता को भी अनदेखा कर गए.."
कृपया उदाहरण दें...
उर्दू तो इस तरह से बोलचाल में घुल-मिल गई है कि पता ही नहीं चलता क्या हिन्दी और क्या उर्दू... उर्दू न हो तो बात ही न हो पाये...
नवभारत टाइम्स ने तो आज हद कर दी...
पीएम ने पीसी को शाबासी दी...
मैंने सोचा पीसी माने क्या....दिमाग में आया पर्सनल कंप्यूटर या प्रेस कांफ्रेंस..मगर निकले पी चिदंबरम.....
अब क्या किया जाए ऐसी अंग्रेज़ी का.....
एक कहावत है कि दूध में चीनी मिलाना ठीक है, मगर चीनी ज़्यादा होने लगे तो उल्टी का खतरा है...
खा-पीकर बैठी जभी, आया मुझे ध्यान
बैठक पर देखूं क्या, बना कोई विधान.
हिंदी का हो रहा है, अपना 'चार्म' 'लूज़'
'पब्लिक' रहती 'आल्सो', हर समय 'कन्फ्यूज़'.
भाषा पर लिखे जाओ, कितने भी आलेख
खरबूजा रंग बदले, खरबूजे को देख.
मैंने झट से सोचा पढ़ते ही निखिल जी का 'कमेन्ट'
'प्राइम मिनिस्टर' ने दी 'पुलिस कांस्टेबिल' को 'पैट'
जब दिमाग में 'लोड' हुआ 'मैटर' हो गया 'क्लियर'
पढ़ना चाहिये था ढंग से, ना समझो 'दिस' ऑर 'दैट'.
भारत में अखबारों के 'नवभारत टाइम्स' की जगह 'नवभारत चेतना' आदि जैसे नाम क्यों नहीं रखे जाते?
नभाटा का NBT होते देखा है..
शुक्र है कि भास्कर और अमर उजाला जैसे अखबार अभी बाकि हैं..
गौर कीजिये कि अखबार उर्दू शब्द है... लेकिन हम यही इस्तेमाल करते हैं..
उर्दू हमारी अपनी है... हिन्दी माँ तो उर्दू मा-सी है... अंग्रेजी कतई नहीं..
तपन जी आपकी कमेन्ट पर मुनव्वर राना साहब का एक शे'र याद आ गया.
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
तपन जी, आप बिलकुल सही कह रहे हैं. भारत में हिंदी और उर्दू हमेशा से बोली गयी हैं और एक दूसरे की पूरक हैं.
क्या बात है शामिख भाई..
मुन्नवर राणा की "माँ" पढ़ी है मैंने भी.. गजब लिखते हैं...शायद उसी शे’र की वजह से मैंने कमेंट दिया.. टिप्पणी करी.. :-) बहुत खूब...
महोदय
विनम्रता पूर्वक कहना चाहूंगा कि शब्दकोश मोटा हो तो भाषा ज्यादा प्रचलित या समृद्ध हो ऐसा नहीं माना जा सकता । भाषा जितनी ज्यादा प्रयोग में आयेगी उसके शब्द उतने ही कामन बनते जायेंगे ।और उसमें व्यावसायिकता आती जायेगी जो आज की दुनिया में जरुरी है । मराठी भाषी की उत्तरपुस्तिका जांचते समय जब लिंग बदलने की बात आयी तो चूहे का स्त्रीलिंग उस परीक्षार्थी ने चूही लिखा था । पाठक का उसी ने पाठकी लिख दिया ।और उदाहरण देखिये- छात्र की छात्री कर दिया और वीर का वीरनी । एक मराठी भाषी मित्र ने तो देखने योग्य का शॉर्ट फॉर्म बनाया देखनीय ।
अब मै अपना विचार रखुं तो मुझे विशु्द्धतावादियों की बात जंचती नहीं जो इसे व्याकरण के नियमों का उल्लंधन और भाषा की दुर्दशा जैसे लांछन लगाते हैं । हिंदीतर भाषी अधिक से अधिक संख्या में हिंदी का प्रयोग कर रहे हैं यही संतोष का विषय है । बहस का नहीं ।
हिम्मत जोशी
सेल / चेन्नई
i want read newspaper in hindi language.
this is posuble or not.
kya main bhi hindi me likh sakta hun in net blog
main shyaam ji ki baaton se sahmat hun.. aur shamikh ji.. pahle to ye baat aati hai ki hindi bhasha mein shabdon ki kami nahin ki hum kisi aur bhasha se shabd udhaar len.. jaisa ki computer scientists bhi siddh kar chuke hain ki samskrit mein programmin har bhasha ko support karegi aur samskrit ke baad hindi bhasha bahut hi vrihad aur apne aap mein sampurn hai.. jarurat hai iske prayog ke protsaahan ki aur humaare gunsutron mein base ghulaami ke germs ko mitaane ki..
जब हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शुद्धता की बात करते है एवं प्रत्येक वस्तु शुद्ध मांगते है तो भाषा में मिलावट क्यों , जो कि सबसे अहम है । अंग्रजी विभिन्न भाषाओं का मिश्रण है लेटिन फ्रेंच आदि पर हिन्दी अपने में सम्पूर्ण भाषा है । जहां तक व्यक्तिवाचक शब्दों की बात है मेरा नाम अविनाश है तो दुनिया की कोई भी भाषा हो वो अविनाश हि लिखेगी औे बोलेगी उसी तरह नए आविष्कारों से उत्पन्न व्यक्तिवाचक शब्दों का प्रत्येक भाषा को वैसे ही प्रयोग करना होगा । यदि हम समझौता करते है तो किस हद तक जायेंगे आप केवल कुछ शब्दों की बात करेंगे मैं कुछ ज्यादा शब्द जोडना चाहुंगा और अन्त मैं हम अंग्रजी पर ही पहुंच जायेंगे । मेरा मानना है कि व्यक्तिवाचक विशेष शब्दों के अलावा समस्त शब्द हमारी भाषा में विद्यमान है और हमें यथासम्भव शुद्धरूप ही प्रयोग में लाना चाहिये ।
मैं आपके विचारों से सहमत हूँ .
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