30 साल...
10 हज़ार बच्चों की मौत...
साल 2009 ...150 बच्चों की मौत....
साल 2009....180 लोगों की मौत....
अभी मौत से लड़ते लोग....750 से ज्यादा
मरने वालों का ये टेबल अफ्रीका के किसी ग़रीब देश का नहीं है..हमारे अपने देश के आंकड़े है...वैसे ये आंकड़े पूरी तरह से सही हों मै दावा नहीं कर सकता ..पर इतना दावा कर सकता हूं ..कि ये संख्या ज्यादा हो सकती है कम नहीं..कहां मर गये इतने सारे बच्चे हमारे देश में इस साल..तो जवाब है गोरखपुर, उत्तर प्रदेश....लेकिन ये स्वाईन फ्लू नहीं है....ये बाताना ज़रूरी है..नहीं तो सरकार डर जायेगी...इंटरनेशनल बीमारियों से सरकारें ज्यादा ख़ौफज़दा रहती हैं...ये सारे लोग शिकार बने हैं...इंसेफेलाईटिस से...पिछले तीस सालों में हज़ारों लोगों को निगल लिया..जिसमें सिर्फ बच्चों की संख्या 10 हज़ार है..यहां हमारे चैनल में रोज रिपोर्ट्स आ रही है..हर दूसरे दिन कुछ बच्चों की मौत की ख़बर आ जाती है यहां से ...लेकिन बता दूं कि ये स्वाईन फ्लू नहीं है....ये जुमला मै बार-बार लिखूंगा ...समझने की कोशिश कीजिये..गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल(बीआरडी) कॉलेज में अभी कई बच्चे मौत से लड़ाई लड़ रहे है...हो सकता है कि किसी ने लड़ना भी बंद कर दिया हो ..जब मै ये सबकुछ लिख रहा हूं..या जब आप ये सबकुछ पढ़ रहे हों...इस मेडिकल कॉलेज में बिहार के चंपारण, सीमावर्ती नेपाल से भी मरीज़ पहुंचते है..साथ ही यूपी के ही देवरिया, महाराजगंज और कुशीनगर जैसे ज़िलों से भी मरीज़ पहुंचते हैं...तो इतनी बड़ी देसी समस्या को छोड़ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे स्वाईन फ्लू में लगा हुआ है..पूर्वी उत्तर प्रदेश में जो लोग इस बीमारी से लड़ रहे हैं..कुछ दिनों पहले उन्होने अपने ख़ून से लिखी चिट्ठी राहुल गांधी और केंद्र सरकार को लिखी..लोकिन उन नासमझ लोगों को भी बताना पड़ेगा कि ये स्वाईन फ्लू नहीं है....गोरखपुर बाढ़ से लड़ रहा है..इसके पहले सूखा था..बाढ़ का पानी जब लौट रहा है तो बीमारियों की अतिरिक्त खेप यहां के लोगों को दिये जा रहा है..खाने की दिक्कत , रहने की दिक्कत , ईलाज की दिक्कत. पर सूखा हर साल तो नहीं आता...बाढ़ आती है तो चली जाती है..पर ये बीमारी यहां पिछले 30 सालों से मौत का क्रूर खेल खेल रही है..10 हज़ार बच्चों की मौत का आंकड़ा सरकार को इस लिए कम लग रहा होगा..क्योंकि ये स्वाईन फ्लू नहीं है...सरकार का दावा है कि यहां इंसेफेलाईटिस से लड़ने के लिए टीकाकरण का काम पूरा कर लिया गया है..फिर तो बच्चों के मां-बाप बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में जरूर पिकनिक मनाने आये होंगे....और पिकनिक ख़त्म हो जाने के बाद ये ग़रीब मां-बाप गिफ्ट भी ले जाते है..अपने दोनों हाथों से उठा कर..देखने में छोटा ..लेकिन ज़िन्दगी भर न भूलने वाला...लखनउ में पत्थर के हाथियों को खड़ा करने वाली सरकार कितनी अंधी है ...समझना मुश्किल नही है..रायबरेली और अमेठी का चक्कर मारने वाले कांग्रेस के राहुल बाबा और सोनिया गांधी की दौड़ भी अपनी-अपनी मस्जिदों तक ही है..कहां आयेंगे यूपी के इस अफ्रूटफुल बेल्ट में..फिर चाहे ये लोग खून से लिखे अपने व्यथा पत्र ही उन तक क्यों न भेजें...एक तो इन इलाकों की जनता ग़रीब है....दूसरे बेहतर चिकित्सा सुविधायें भी नहीं हैं..ऐसे में कई मां-बाप पैसे खत्म होने पर घर वापसी के लिए भी मजबूर हो जाते हैं...कोई है जो तीस साल से पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस मातमी चीत्कार को सुन सके? ...पिछले तीस सालों में यूपी में बहुत सी बातें बदली..सरकारें बदली..मस्जिद गिरीं...दंगे हुए...कल्याण बदले..मुलायम बदले...माया बदलीं....बहुत कुछ बदल गया...लेकिन मौत का ये सिलसिला पूर्वी उत्तर प्रदेश में बदस्तूर जारी है...10 हज़ार लाशें सरकारी फाईलों में दफ़न हैं..असल में बाबू लोग जो नहीं लिख पाये वो आंकड़ा कहीं आगे होगा...जसवंत को मरे जिन्ना की चिंता है..भाजपा मरे जिन्ना के भूत से डरती है..उधर स्वाईन फ्लू का चेहरा ज़रूरत से ज्यादा डरावना लग रहा है...सभी व्यस्त हैं..हम टीवी वाले भी..लेकिन लगा कि कुछ बच्चे की जिंदगी मरे जिन्ना से कहीं क़ीमती है..सो लोगों का ध्यान खींचा जाये..शायद कोई फर्क पड़ जाये..वैसे एक बात फिर से दुहरा दूं..कि ये ....स्वाईन फ्लू नहीं है...
रवि मिश्रा