स्वाहा...
हमारे मध्यप्रदेश ने कमाल कर दिया और अब तक किसी को पता भी नहीं चला. देश भर में बारिश को लेकर चिंता फैल रही है, सब बादलों की ओर टकटकी लगाये हुए हैं. वैज्ञानिक चिंतित हैं कि कैसे बारिश होगी, पर्यावरणविद पर्यावरण के नष्ट होने की दुहाई दे देकर खुद मुरझा गए हैं, लेकिन हमारे प्रदेश के लोगों ने और सरकार ने रास्ता खोज लिया है. जब भी हमें बारिश करवानी होती है, हम बस एक यज्ञ या हवन करते हैं, किसी अफीमची पुजारी को घोड़े पर बैठाते हैं, डीजे वाली गाडी आगे चलाते हैं और फुरसती लड़कों को उसके आगे नचा-नचाकर जुलूस निकालते हैं. अगले दिन बहुत संभव है कि १०-१५ लीटर पानी बरस जाए. अगर बरस गया तो अफीमची अपने संत होने को खुद भी सच मानकर ख़ुशी में और अफीम पीता है और नहीं बरसा तो भगवान की मर्ज़ी.
क्या गाँव क्या शहर, हमारे प्रदेश के सारे निवासियों की समझ एक सी उर्वर है. और विकसित शहरों की तरह वे ट्रैफिक जाम आदि भौतिक समस्याओं को महत्त्वपूर्ण नहीं मानते, वे तो किसी भी व्यस्ततम मार्ग पर भजन-कीर्तन करने बैठ जाते हैं. सच है, भाई तुम्हारा ट्रैफिक बड़ा कि पानी...और हमारे भजन-कीर्तन से जो पानी बरसेगा उसका तुम उपयोग नहीं करोगे क्या? फिर खड़े रहो एक घंटे और भजन सुनो.
अभी आप देखेंगे तो प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर में रोज़ यज्ञ होते हैं और यही वजह है कि कभी-कभी बूंदा-बंदी हो जाती है क्योंकि भगवान् को 'अपने वाले' का ध्यान तो रखना पड़ता है न? मैं तो कहता हूँ कि हमारे मुख्यमंत्रीजी को इस युक्ति का पेटेंट करवा लेना चाहिए वरना अगर अमेरिका को पता चला तो वो करवा लेगा. फिर वहां यज्ञ-हवन से बारिश होगी और आपको इसके लिए उनकी अनुमति लेनी होगी.
बात निकली है तो हमारे पूज्यनीय मुख्यमंत्रीजी का भी गुणगान कर ही लेता हूँ. बहुत भले पुरुष हैं, उनकी नाक के नीचे लोग करोडों का हेर-फेर कर देते हैं लेकिन वे प्राणी मात्र में ईश्वर को देखते हुए उसे उनका भोग समझ कर धन्य हो जाते हैं. वे भी जनता की ही फ्रीक्वेंसी के हैं, वे भी पेड़-पौधों इत्यादि के चक्कर में नहीं पड़ते, ग्रीन हाउस इफेक्ट और ग्लोबल वार्मिंग तो शब्द ही अंगरेजी हैं और उनकी तो पार्टी ही स्वदेशी वाली है इसलिए इस पर तो वो नज़र भी नहीं डालते. और वे बारिश ना होने से चिंतित भी हैं, हालांकि उनके फोटो देखकर आप उन्हें दुनिया का सबसे खुश इंसान समझने की भूल भी कर सकते हैं. वो तो उन्हें फोटो खिचवाने का बचपन से ही शौक है इसीलिये पूरे प्रदेश में उनके बड़े-बड़े पोस्टर दिखाई देंगे.
हाँ, तो मैं कह रहा था कि वे बारिश ना होने से चिंतित हैं और मुखिया होने के नाते उन्हें इस समस्या के हल के लिए कुछ करना था. उन्होंने अपने सहयोगियों से सलाह-मशविरा किया. सहयोगी भी एक से बढ़कर एक धार्मिक पुरुष. किसी ने कहा गौ माता की पूजा करनी चाहिए, किसी ने कहा किसी संत को पकड़कर तपस्या करवा दो जब तक बारिश ना हो, फिर किसी ने बताया कि प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में सिर्फ महात्मा ही निवास करते हैं और उन महात्माओं ने बारिश की खातिर एक साथ बैठकर भोजन करना स्वीकार किया है. सो मुख्यमंत्रीजी अपने व्यस्त जीवन में से समय निकालकर उज्जैन महाकाल मंदिर पहुचे जहाँ ५० हज़ार चिंतित पण्डे भोजन के इंतज़ार में थे क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि पण्डे के पेट से ही हर चीज़ बनती है. इतने पण्डे जब जीम लेंगे तो इस हलुवा, पूडी, खीर आदि से पंडों के पेट में बादल बनाने लगेंगे और अंततः वही बारिश करवाएंगे. ये खोज सच में विज्ञान की बड़ी से बड़ी खोज पर भारी है. तो हमारे मुखियाजी भी अपने पेट में बादल की फैक्ट्री बनवाने मंदिर जा पहुचे. वहां ५० हज़ार पंडों ने जम कर खाया ताकि बादल बनाने में कमी ना हो. फिर मुख्यामंत्रेजी इस समस्या के सुलझ जाने से प्रसन्न हो कर और भगवान् को धन्यवाद देकर घर चले गए. ये इस बीमारू प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि सारे पंडों को एक साथ कब्ज हो गई और पेट में बादल नहीं बन पाए, और बने भी तो बाहर नहीं निकल पाए.
वैसे हमारे मुख्यमंत्रीजी बहुत धार्मिक व्यक्ति हैं. उनका मानना है कि इंसान की क्या औकात है जो वो कोई समस्या सुलझा ले, जो करता है वो ईश्वर करता है. इसीलिए वे सारी समस्याएँ उसी को पास कर देते हैं, एक तरह से कह सकते हैं कि हमारे प्रदेश का मुख्यमंत्री ईश्वर है. एक और बात वे कहना नहीं भूलते जब भी उनके सामने कोई समस्या लाई जाए कि केंद्र हमारी मदद नहीं कर रहा, इस तरह से हम एक केंद्र शासित प्रदेश भी हैं.
स्कूलों में शिक्षा बद से बदतर हो गई है, वो दे या ना दें लेकिन भोजन के पहले की प्रार्थना अनिवार्य है क्योंकि असली ज्ञान तो उसी से मिलेगा बाकी सब तो टाइम पास है. प्रदेश में बिजली नहीं है, नहीं क्या है बिलकुल भी नहीं है लेकिन आप ही सोचिये अँधेरा तो भगवान् ने बनाया है और ट्यूबलाइट किसने बनाई??? इंसान ने... तो अब ये बताइये कि इंसान बड़ा या भगवान्?? अब जवाब तो एक ही हो सकता है...तो लो हो गई हल समस्या, तुम क्या भगवान् से बढ़कर हो? क्यों बिजली के लिए रोते हो? उसी ने अँधेरा दिया है वही रौशनी देगा.
कुछ लोग होते ही हैं विध्नसंतोषी और वे ही कभी-कभी सांसारिक बातों का रोना रोते रहते हैं, कहते हैं इंदौर में हर तरफ गन्दगी हो रही है, जिधर देखो सड़ा हुआ पानी, मच्छर, कचरा...अब बताइये कितने निम्न स्तर पर जी रहे हैं ये लोग... पानी भगवान् ने बनाया और उसी ने सड़ाया...और मच्छर क्या किसी कंपनी में बनाते हैं? कभी सुना रिलायंस के मच्छर टाटा के मच्छर...? मच्छर भी तो भगवान् की देन हैं. और कचरे का क्या है...पुराने ज़माने में ऋषि-मुनियों के ऊपर तपस्या करते-करते इतनी मिट्टी जम जाती थी कि वे दिखाई देना बंद हो जाते थे और तुम इतने से में हाय-तौबा मचाने लगे? सचमुच कलयुग है. अरे कभी रामानंद सागर की रामायण देखी है? भगवान् के हाथ में से एक रौशनी निकलेगी और सारा कचरा भस्म...तुम बस पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन करते रहो.
तो ऐसे हैं हमारे लोग और नेता. सबके सब महापुरुष. धन्य हैं वे लोग जो अब तक संसार को असार समझ कर, सब उसके भरोसे छोड़कर भजन-कीर्तन में मस्त हैं.
शत-शत नमन.
अनिरुद्ध शर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 बैठकबाजों का कहना है :
अनिरुद्ध जी,
आपने इतनी दिलचस्प बात इतने मजेदार ढंग से बताई.
मुझे तो आज ही इस बात का ज्ञान हुआ की पंडों को भोजन करा के बारिश भी कराई जा सकती है. धन्य है ऐसी सोच! लेकिन अब क्या होगा? ५० हज़ार बादल जो अब उमड़-घुमड़ रहे होंगे पंडों के पेट में तो मंत्री जी ने क्या सोचा है इस बारे में? मेरे ख़याल से उसी अनुपात में हजमोले की गोलिओं का भी इंतजाम करना जरूरी है. ऐसी गर्जन से क्या फायदा जो पेट में ही रह जाए.
बहुत ही गज़ब लिखा है आपने. "अगले दिन बहुत संभव है कि १०-१५ लीटर पानी बरस जाए. अगर बरस गया तो अफीमची अपने संत होने को खुद भी सच मानकर ख़ुशी में और अफीम पीता है और नहीं बरसा तो भगवान की मर्ज़ी. " जी हाँ यही सोच रहती है. मैं समझता हूँ की यह खुद को संतुष्ट करने का एक तरीका है.
abhi manju gupta aayegi comment aesa hoga "chitra aaj ki hakeekat hai. badhya lekh. badhai."
comment me koi dhang bari bat b to hoe
आज के नेता और पंडो पर बडिया व्यंग्य है सरकारी माल खा -खा कर इनकी तोंद तो मतवाले बादल की तरह फूली हैं . वर्षा के लिए राजा जनक ने भी हल चलाया था .
अनोनिमस जी मेरे कमेन्ट अमूल्य,अनमोल हैं .२००रु. इसकी कीमत नहीं है .आप रचनाओं पर कमेन्ट दो .न की मेरे कमेन्ट पर .
अनिरुद्ध जी आगे तो हम यही समझते थे कि इन बादलों को शायाद हम ही अकेले अपनी आँखों से बहा रहे हैं मगर अब तो प्रकृति भी हमारे साथ है । तभी तो बरसात ने अपना रुख बदल लिया है अब वो आँखों से ही बरसा करेगी । आभार्
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद्. मुझे बहुत दुःख होता है यहाँ ये सब देखकर. इन सब आयोजनों में यहाँ १ करोड़ रुपये तक खर्च हो जाते हैं.
मुझे याद है पिछले साल १ करोड़ का यज्ञ हुआ था जिसके बाद इतनी ज्यादा गन्दगी फैली थी कि वहां से गुज़रना मुश्किल था.
यही १ करोड़ अगर अच्छी योजनाओं में लगाए जाते तो उसका फल ज़रूर मिलता. यही सब देखकर इस बार मैंने खुद ही फंड इकठ्ठा करके इंदौर में जितना
बना उतना वृक्षारोपण कर दिया. आगे भी अगर मौका मिलेगा तो इसे जारी रखूँगा.
shannoji आपने बहुत ही महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प मुद्दा उठाया है.
उन पंडों का क्या होगा ये किसी ने सोचा ही नहीं...हाजमोला का इन्तजाम तो ज़रूरी है :)
Hi Aniruddha,
Aap ne apni baat aur pradesh ki problems ko bahut hi acche tarike se pesh kiya hai. Insaan ko apne karm aur bhagya ki simay tay rakhni chahiye.
Hi Aniruddha,
Aap ne apni baat aur pradesh ki problems ko bahut hi acche tarike se pesh kiya hai. Insaan ko apne karm aur bhagya ki simay tay rakhni chahiye.
जी हाँ, अनिरुद्ध जी,
अब एक नया issue create हो गया है और आपके समर्थन के लिए धन्यबाद. मामला बिगड़ गया ना? की इतने पंडे खा-पीकर अपने-अपने पेट को पकड़ कर बैठ गये. पेट में हलचल हो रही है लेकिन बरसात के बारे में डकार तक नहीं ली अब तक. यह मामला तो और संगीन हो गया. पहले खाने का बिल भरो फिर हजमोले का उसके बाद भी क्या गारंटी की उनके पेट में उमड़-घुमड़ जो हो रही है उससे असली बादल बरसेंगे भी की नहीं. मंत्री जी की जय हो! जो उनहोंने ऐसी तरकीब सोची. अब और क्या खुराफात सोचने का इरादा है उनका?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)