हे ठग! तेरे कितने रूपइन दिनों ठगी के चर्चे पूरे शबाब पर हैं। अभी मुश्किल से एक महीना भी नहीं गुजरा, जब लोगों से कई करोड़ों की ठगी करने का आरोपी
डॉ॰ अशोक जडेजा पुलिस के हत्थे चढ़ा। खुद को सांसी समाज का देवीभक्त बताने वाले अशोक जडेजा ने अपने 18 एजेंटों की मदद से 12 राज्यों में अपना नेटवर्क फैला रखा था। जडेजा लोगों से 15 दिनों में उनके धन को तिगुना करने का लालच देकर करोड़ों रूपये जमा कर लेता था और 15 दिनों बाद आने का वादा कर हमेशा के लिए फरार हो जाता था। लगभग 15 दिन पहले दिल्ली पुलिस ने महाठग
सुभाष अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया जिसने चीटफंड की कम्पनी खोल रखी थी और उसपर 1000 करोड़ रुपये की ठगी का आरोप था। सुभाष अग्रवाल भी अपने ग्राहकों को बहुत कम समय में उनके धन को दुगुना और तिगुना करने का वादा करता था।
ठगी का एक और मामला पिछले 2 वर्षों से प्रकाश में है जिसमें कीनिया और नाइजीरिया मूल के लोग इंटरनेट के माध्यम से लोगों को ठगने काम कर रहे हैं। इंटरनेट की दुनिया के ये महाठग बहुत ही लुभावने ऑफरों वाली ईमेल एक साथ कई इंटरनेट प्रयोक्ताओं को भेजते हैं, जिसमें अफ्रीकी देशों में कई लाख रुपये वेतन की नौकरी देने के झाँसे होते हैं, कोई अपनी मिलियन डॉलर की सम्पत्ति आपके नाम कर जाता है तो किसी किसी ईमेल में इस बात का ज़िक्र होता है कि आपकी ईमेल आईडी फलाँ लॉटरी में कई बिलियन डॉलर के इनाम के लिए चुनी गयी है। आपको उस ईमेल के उत्तर में बस अपना नाम-पता और बैंक डीटेल इत्यादि भेजने होते हैं, जिसके बाद उनकी तरफ से ईमेल आता है, दोस्ती होती है। फिर उनका गिरोह फोन द्वारा आपसे बात करता है। अंत में तथाकथित नौकरी या रक़म देने से पहले वे पंजीकरण शुल्क के रूप में
15-20 हज़ार रुपये (300-400 डॉलर) जमा करने की माँग करते हैं।
ठगी का यह पेशा कोई नया नहीं है। भारतीय इतिहास महान ठगों की महागाथा से पटा पड़ा है। भगवान श्रीकृष्ण को ठगों का राजा कहा जाता है। मध्यकालीन भारत में तो यह धंधा एक प्रथा के रूप में प्रचलित था, जिसमें ठग लोग भोले-भाले यात्रियों को विष आदि के प्रभाव से मूर्छित करके अथवा उनकी हत्या करके उनका धन छीन लेते थे। ठगी प्रथा का समय मुख्य रूप से 17वीं शताब्दी के शुरू से 19वीं शताब्दी अंत तक माना जाता है। मध्य भारत में प्रकोप की तरह फैले- रुमाल में सिक्कों की गांठ लगा कर रुपये-पैसे और धन के लिए निरीह यात्रियों के सिर पर चोट करके लूटने वाले ठग और पिंडारियों का आतंक 19वीं सदी के प्रारंभ तक इतना बढ़ गया कि ब्रिटिश सरकार को इसके लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ी। ठगी प्रथा के कारण मुग़ल काल में नागपुर से उत्तर प्रदेश के शहर मिर्ज़ापुर तक बनी सड़क पर यात्रियों का चलना मुश्किल हो गया था। इस सदी के ये
महान ठग खुद को काली का भक्त बताते थे, फिर वे चाहे हिन्दू-ठग हों, सिख-ठग हों या फिर मुसलमान-ठग।
मध्य भारत के ठगों द्वारा ठगी की घटना को अंजाम देना कुशल संचालन, बेहतर समय-प्रबंधन और उत्तम टीम-वर्क के बेहतरीन उदाहरण के तौर पर भी याद किया जाता है। उस जमाने के ये ठग चार चरणों में ठगी को अंजाम देते थे। पहले चरण में ठगों की एक टोली जंगलों में छिपकर यात्रियों के समूहों का जायजा लेने की कोशिश करती थी कि किन यात्रियों के पास माल है। यह सुनिश्चित होने के बाद ये जानवारों की आवाज़ में (जिसे ये अपना कोड-वर्ड या ठगी जुबान कहते थे) अपनी दूसरी टोली को इसकी सूचना देते थे। दूसरे टोली यात्रियों के साथ उनके सहयात्रियों की तरह घुल-मिल जाते थे। साथ में भोजन पकाते थे, सोते थे और यात्रा करते थे। दूसरी टोली उन यात्रियों की एक अलग टोली बना लेती थी जिनके पास धन, सोने-चाँदी होते थे। फिर वे धोखे से उन्हें ज़हर खिलाकर या तो मार देते थे या बेहोश कर देते थे। लेकिन ये टोली उनसे धन लूटने का काम न करके अपनी तीसरी टोली को अपनी जुबान में बताकर अन्य यात्रियों के साथ लग जाती थी। तीसरी टोली आकर उन यात्रियों को पूरी तरह से लूट लेती थी। इस टोली के ठग साथ में खाकी या पीले रंग का रुमाल रखते थे, जिससे ये यात्रियों का गरौटा (गला) भी दबाते थे और सोने-चाँदी बाँध ले जाते थे। जाते-जाते ये अपनी चौथी टीम को सूचना दे जाते थे जो यात्रियों की लाशों को या तो कुएँ में फेंक देती थी या पहले से तैयार क़ब्रों में दफ़न कर देती थी।
'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड' के अनुसार सन्
1790–1840 के बीच महाठग बेहरम ने
931 सिरीयल किलिंग की जो कि विश्च रिकॉर्ड है। इस समस्या के उन्मूलन के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक विशेष पुलिस दस्ता तैयार किया जिसकी कमान
कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन को सौंपी गयी। उन्होंने जबलपुर में अपनी छावनी स्थापित की और एक दस्ता इसी जगह छोड़ा जो आज स्लीमनाबाद कहलाता है।
मशहूर अंग्रेजी लेखक
फिलीप एम॰ टेलर ने सन 1839 में एक अंग्रेजी उपन्यास लिखा
'कन्फेशन्स ऑफ ठग' जो कि ठग अमीर अली की जीवनी पर आधारित था। माना जाता है कि यह वास्तविक ठग
सैयद अमीर अली की कहानी है। यह पुस्तक
19वीं शताब्दी में ब्रिटेन की बेस्ट-सेलर क़िताब रही।
ठगों का यह संसार केवल भारत तक सीमित नहीं है। दुनिया के लगभग सभी देशों में महान ठग हुए है। विदेशों में ठगों को स्मार्ट, बुद्धिमान और मास्टर-माइंड के रूप में पहचाना जाता है। ठगों के किस्से सुनकर कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। ये ठग खुद की बुद्धि और हिम्मत पर बहुत भरोसा रखते हैं और बहुत चालाकी से लोगों को बेवकूफ बनाते हैं।
मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ऊर्फ नटवरलाल ऊर्फ मुहावरा-ए-ठगीनटवरलाल की गिनती भारत के प्रमुख ठगों में से होती है। बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में जन्में नटवरलाल ने बहुत से ठगी की घटनाओं से बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को वर्षों परेशान रखा। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें ठगी का मुहावरा बन चुका नटवर लाल ताजमहल बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देंगे जो मैं कहूंगा। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूं। नटवरलाल पर अमिताभ बच्चन अभिनित फिल्म भी बनी 'मिस्टर नटवरलाल'। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी।
बिकनी किलर बनाम सर्पेंट किलरभारतीय उद्योगपति बाप और एक वियतनामी माँ के बेटे चार्ल्स गुरमुख शोभराज के पास फ्रांस की नागरिकता है और बिकनी किलर के नाम से भी विख्यात है। 67 वर्षीय सर्पेंट किलर शोभराज 60 और 70 के दशक में विदेशी पर्यटकों को ठगने, उनकी हत्या करने और नकली पासपोर्ट के सहारे एक देश से दूसरे देश में फरार होने में प्रसिद्ध हुआ। उस जमाने में तिहाड़ जेल से भाग पाने में सफल शोभराज के हिप्पी कट बालों से नौजवान समुदाय बहुत प्रभावित था। 1997 में शोभराज 10 साल की सजा काटने के बाद जब मुम्बई से फ्रांस पहुँचा तो उसने वहाँ अपनी बहादुरी और चालाकी के झूठे किस्से मीडिया वालों को सुनायें। अपना इंटरव्यू देने के लिए टीवी वालों से पैसे लिया, खुद के ऊपर किताब लिखने के लिए प्रकाशकों से एडवांस रॉयल्टी ली और फिल्म बनाने के लिए भी निर्माताओं से पैसे ऐठा। चार्ल्स शोभराज पर 12 हत्याओं का आरोप था, नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने इसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यही इसने एक 20 साल की लड़की निहिता से ब्याह भी रचाया।
जिसने एफिल टॉवर ही बेच दियाचेक में जन्मे विक्टर लस्टिग का नाम एफिल टॉवर बेचने वाले ठग के रूप में लिया जाता है। विक्टर ने ठगी की शुरूआत 'नोट छापने वाली मशीन' बेचने से की। यह लोगों को एक छोटा सा बॉक्स दिखाकर कहता कि यह हर 6 घंटे में 100 डॉलर छापता है। ग्राहक ये सोचकर कि इससे बहुत बड़ा मुनाफ़ा होगा, इसकी चाल में फँस जाते थे और इसकी वह मशीन 30,000 डॉलर तक की रक़म में भी खरीद लेते थे। जब तक लोगों को पता चलता, यह फरार हो जाता था। 1925 में जब पहला विश्व युद्ध चल रहा था, लस्टिग ने अख़बार में पढ़ा कि एफिल टॉवर की पुताई और रख-रखाव का काम सरकार के लिए बहुत महँगा पड़ रहा है। पेरिस अधिकारी का यूनिफॉर्म जुगाड़कर इसने 6 व्यापारियों के साथ शहर के सबसे बड़े होटेल में एक मीटिंग की और उनको डाक मंत्रालय का सबसे बड़े अधिकारी के रूप में अपना परिचय दिया। उसने कहा कि एफिल टॉवर इस शहर के लिए फिट नहीं हो रहा है, इसे दूसरे शहर में शिफ्ट किया जायेगा, आपलोगों को ईमानदार व्यापारी मानकर एफिल टॉवर को नीलाम करने का जिम्मा सरकार ने मुझे सौंपा है। लस्टिग ने नीलामी की रक़म तो ली ही, साथ-साथ बहुत सारा घूस भी खा लिया।
कैच मी इफ यू कैनजी हाँ, यह एक हॉलीवुड की मशहूर फिल्म है, जो अमेरिका के एक मशहूर ठग फ्रैंक एबेगनेल पर बनी थी। फ्रैंक एबेगनेल ने 60 के दशक में 5 वर्षों के भीतर 26 देशों में 2॰5 मिलीयन डॉलर के फर्जी चेक जारी किये। इसने इस काम को अंजाम देने के लिए 8 अलग-अलग नामों का इस्तेमाल किया। यह अपने निजी खाते से क्षमता से अधिक राशि का चेक निकालता था, बैंक जब तक उससे उस पैसे के बारे में पड़ताल करती, वह किसी और बैंक में किसी और नाम से एकाउँट खोलकर पैसे जमा कर देता था। फ्रैंक एबेगनेल ने बचपन से ही ठगी का काम शुरू कर दिया था। छुटपन से ही इसे गर्लफ्रेंड बनाने का शौक था। इसके पिता इसे उतना जेब-खर्च नहीं देते थे, जितना कि इसे ज़रूरत थी। इसने पिता की क्रेडिट पर न्यूयॉर्क और उसके आस-पास के गैस स्टेशनों से पहियों के बहुत से सेट, बैटरियाँ और भारी मात्रा में पेट्रोल खरीदा। उसने विक्रेताओं को दाम का मात्र 1 भाग दिया। वह उनसे सामान लेकर दूसरे लोगों से पूरी कीमत पर ये सामान बेच देता था। एक ऋण वसूलने वाला अधिकारी इसके पिता से 3400 डॉलर के उधार की वसूली के लिए मिला तब उनको अपने बेटे के कारनामे के बारे में पता चला।
साबून स्मिथ यानी सॉपी स्मिथसॉपी स्मिथ एक अमेरिकन ठग था जिसने 1879 से 1898 के दरमियान अमेरिका के बहुत से शहरों में साबून बेचकर अपना उल्लू सीधा किया। स्मिथ शहर के व्यस्त चौराहों पर साबून की ढेर सारी टोकरियाँ लेकर खड़ा हो जाता था। साबून के रैपर के ऊपर यह 1 से 100 डॉलर के नोट लपेट देता था, उसके ऊपर एक पेपर। वह डॉलर के नोटों को लोगों के सामने ही लपेटता था और साबून के उन ढेरों में मिला देता था, जिसमें डॉलर नहीं लपेटे होते थे। लोगों का विश्वास जीतने के लिए अपने परिचित ठग से वह उस साबून को निकलवाता था जिसमें नोट लपेटा होता था। इसका सहयोगी चिल्ला-चिल्लाकर कहता कि मुझे नोट मिला है। उसके बाद वह अपनी चालाकी से नोट लपेटे साबूनों को ढेरों से या तो अलग कर देता था या यह पक्का कर लेता था कि लोट लपेटे साबून इसके ठग-गैंग 'सोप गैंग' के ठगों को ही मिले। फिर वह साबून का पूरा ढेर बेच कर चला जाता। यह प्रथा बाद में पूरे दुनिया में मशहूर हो गई। सॉपी स्मिथ का नाम पश्चिम में सबसे प्रसिद्ध ठग के रूप में लिया जाता है जिसने ठगी के तीन साम्राज्यों को खड़ा किया। पहला डेनवेर, कोलोराडो (1886-1895) में, दूसरा क्रीडे, कोलोराडो (1892) में और तीसरा स्कैगवे, अलास्का (1897-1898) में। प्रतिवर्ष 8 जुलाई को स्कैगवे, अलास्का में सॉपी स्मिथ के कब्र के पास 'सॉपी स्मिथ जागरण' आयोजन होता है। हॉलीवुड में 8 जुलाई को सॉपी स्मिथ की याद में जादू के खेल, जुआ, चालाकी इत्यादि प्रतिस्पर्धाओं का आयोजन किया जाता है।
बॉन लेवी ठग प्रा॰ लि॰बॉन लेवी ऑस्ट्रेलिया का प्रसिद्ध ठग था जिसने फ्रेंचाइज़ व्यवसाय के माध्यम से हज़ारों व्यापारियों को ठगा। इसने हल्के अनुयान (ट्रेलर) निर्माण कं॰, अनुरक्षण एजेंसी, ऑटो रेकर (स्व-विनाशक), परिवहन कं॰, दुर्घटना राहत कं॰, खानपान (केटरिंग) और डिस्पोजेबल कैमरा आपूर्ति जैसे कई फर्जी उपक्रमों का निर्माण किया। यह अपने ग्राहकों को 10 हज़ार डॉलर में इन कम्पनियों में से किसी एक में शेयर होल्डर होने का झाँसा देता था। लेवी 1997 में अमेरिका आ गया और यहाँ के सभी शहरों में अपनी दो फर्जीं कम्पनियों के दफ्तर खोल दिया। यहाँ इसको 50 से अधिक व्यापारियों ने 30 हज़ार से 68 हज़ार डॉलर तक धन दिया, जिनसे इसने 500 से 2000 डॉलर प्रति सप्ताह मुनाफे का वादा किया। बाद में यह अमेरिकन पुलिस के हाथों दबोच लिया गया।
जासूस ठगरॉबर्ट हेंडी फ्रीगैर्ड ब्रिटानी ठग है जिसने बहुत ही अनोखे ढंग से लोगों को ठगा। एक बारबॉय और कार-विक्रेता के रूप में काम करने वाला रॉबर्ट हेंडी खुद को ब्रिटानी गुप्तचर एजेंसी एमआई5 का अधिकारी बताता था, और कहता कि वह आईरिश रिपब्लिकन आर्मी के खिलाफ काम कर रहा है। यह लोगों से किसी सार्वजनिक जलसे में मिलता और उन्हें डराता कि यदि वे खुद को बचाना चाहते हैं तो अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों से नाता तोड़ अंडरग्राउंड हो जायें। वह यह भी कहता कि आपलोगों की सुरक्षा के लिए मुझे पैसों की ज़रूरत है। वह किसी से कहता कि गुप्तचर एजेंसी उसे उसके काम के लिए पैसे नहीं देती, बल्कि कहती है कि वह अपने लिए पैसे का इंतज़ाम खुद करे तो किसी से कहता कि मुझे अगले महीने कई लाख पॉण्ड का चेक मिलनेवाला है। इस तरह से इसने कई मिलियन पॉण्ड की ठगी की। इसने लड़कियों को डराकार उनके साथ व्यभिचार भी किया। इसने बहुत से भोले बाले ब्रिटिश लोगों को जासूसी विद्या में पारंगत बनाने के लिए पैसे ऐंठा। हेंडी-फ्रीगार्ड ने जासूसी के कुछ कैसे नायाब तरीके ढूँढ़े थे, जिससे सीखनेवाले को भी यह शक नहीं होता था कि वह ठगा जा रहा है। वह जासूसी सीखनेवालों को बसों, ट्रेनों में, सार्वजनिक स्थलों पर कुछ बेचने को भेजता और कहता कि किसी को अपना परिचय मत बताओ बस जासूसी करते रहो। शुरू में 10,000-15,000 पॉण्ड फीस लेता था, फिर यह कहकर कि उसके जासूसी स्कूल को और पैसों की ज़रूरत है, उनसे फीस की दूसरी किश्त वसूल कर लेता था। सन 2005 में इसे पुलिस ने पकड़ लिया, जहाँ किडनैपिंग के आरोप में इसे आजीवन कारावास की सज़ा हुई। इसके अलावा यदि सुनवाई होती तो इसपर 18 तरह के जालसाज़ी के आरोप और भी थे।
----- शैलेश भारतवासी