एसएमएस लक्ष्मी
संचार सरिता में प्रवाहित इस दौर की पीढी़ ने आख़िरकार सदियों से अनुत्तरित प्रश्न को हल करने का बीड़ा उठा ही लिया। एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर सतयुग, त्रेता और द्वापर नहीं ख़ोज सके लेकिन कलियुग ने वह चमत्कार कर दिखाने का संकल्प लिया। ब्रह्माण्ड के सभी अनुत्तरित प्रश्नों या यूं कहे कि सभी असम्प्रेषित /अनउद्घाटित उत्तरों को खोजने का नाम ही तो विज्ञान है। विज्ञान की दुनिया का विस्तार अनंत है। विज्ञान के नक्शे में मोबाइल नाम का एक शहर है। इस शहर का एक मोहल्ला है एसएमएस और इसी मोहल्ले में रहने वाले अर्थ उपासकों ने इस प्रश्न को हल करने का बीड़ा उठाया।
टमाटर फल है या सब्जी?
बहुत ही कठिन और अहम् प्रश्न। पूरे दो माह का समय मुकर्रर किया गया, ज़वाब भेजने के लिये। हर इंसान से इल्तजा की गई कि वह अपने मोबाईल से टमाटर के फल अथवा सब्जी होने का एसएमएस करे। एक उच्चस्तरीय समिति द्वारा मोबाईल धारकों को ही इंसानों की श्रेणी में रखने का तय किया गया।
मात्र दो माह का समय था और काम बहुत अधिक। सभी ऐजेंसियों को युद्वस्तर पर कार्य करना होगा। विश्व के विकसित और विकासशील देशों की जिम्मेदारियां तय की गई। सबसे अहम् जिम्मेदारी जो धारण की गई वह थी विकासशील और अविकसित देशों के बाशिंदों को इंसान बनाना यानी हर एक को मोबाइल धारक बनाना। इस उत्सव की घोषणा से सभी मोबाइल कम्पनियों, नेटवर्क एजेंसियों, टीवी, रेडियों अख़बार, पत्र पत्रिकाओं, इवेंट मेनेजमेट ठेकेदारों, मॉडलों, क्रिकेटर कलाकार, राजनेता इत्यादि सभी के मुख सुमन खिल गये। इनके अलावा उन सभी लोगों को इसी सूचि में माना जाये जो द्रुतलक्ष्मी की प्राप्ती हेतु नित्य नवोन्वेष लघुपथ के अन्वेशण में लगे रहते है।
मोबाइल कम्पनियों ने ऐसा कैम्पेन किया कि सबको महसूस होने लगा सांस लेने के बाद इस जिस्म की पहली ज़रुरत मोबाइल ही है। अख़बार वालों ने पूरे पेज के विज्ञापन छाप कर जनहित में अपील जारी की। टीवी रेड़ियों पर विषेश रुप से निर्मित ज़िंगल अल्प अंतराल में बजने लगें।
जागो हे स्वास्थ्य शुभेच्छु
समझो टमाटर की पीर
अपनी बुद्धि कमान से
छोड़ो मत के तीर
एसएमएस यज्ञ रचा है
जागो शाह फक़ीर
बड़ी कर्णप्रिय धुन बनाई गई। अनवरत कोई ना कोई क्रिकेटर अथवा फिल्म कलाकार टीवी के पर्दे पर यह ज़िंगल गाता हुआ दिख जाता। विश्व के अन्य देशों में भी वहां की भाषा में बडे़ पुरज़ोर शब्दों में अपील की गई। नागासाकी हिरोशिमा पर न्यूक्लियर बम और चाँद पर मानव अवतरण के बाद यह पहला मौका था जब सम्पूर्ण विश्व एक ही मसले पर सामूहिक चिंतन में लिप्त था ।
आखि़र वह दिन भी आया जब यह घोषणा होनी थी कि टमाटर फल है या सब्ज़ी। पूरे संसार की सांस थमी हुई। टीवी चेनलों ने आंकड़े कम, विज्ञापन अधिक परोसे वह भी तरसा-तरसा कर मानों भूखों को एक-एक जलेबी उछाल-उछाल कर खिलाई जा रही हो। मतों की गणना की गई| हज़ारों लाखों नही अरबों-खरबों एसएमएस मिले। लेकिन मतों का अंतर कुछ हजारों में ही रहा। अंतर्राष्ट्रीय विषेशज्ञों की एक विशेष समिति ने इस धेनु के पुनः दुहने की सम्भावनाओं पर विचार कर निर्णय लिया कि कुछ हज़ार मतों के अंतर के आधार पर इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। और इस तरह टमाटर के फल या सब्ज़ी होने की घोषणा को स्थगित रखा गया।
अब पूरी दुनिया तीन वर्गों में बंट चुकी है। एक टमाटर को सब्ज़ी मानने वाला, दूसरा टमाटर को फल मानने वाला और तीसरा इस महायुद्ध से मालामाल होने वाला। आज पहला और दूसरा वर्ग टमाटर ज्ञान से औतप्रौत है। उसके पास टमाटर से सम्बन्धित महीन से महीन जानकारी उपलब्ध है, पर टमाटर खरीद नही सकता क्योंकि सारा पैसा तो तीसरे वर्ग के पास है।
---विनय के जोशी
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5 बैठकबाजों का कहना है :
बहुत बढ़िया पोस्ट
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मेरे नये प्रयास चर्चा । Discuss INDIA पर आपकी एक नज़र की चाह है
विनय जी बहुत बडिया व्यंग है और आज का सच भी बाज़ा्रववाद जिन्दाबाद हो रही हैाभार््
बढ़िया व्यंग्य है....
बहतरीन व्यंग.
Bajarvad ko jinda kar diya hai.
moolik soch ke liye badhayi.
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