Thursday, June 11, 2009

व्यंग्य- हे मक्खन, तू जिंदाबाद !!

जनाब मुझसे मिलिए! मैं हूं अबस विभाग का छत्रपति साहब!घूमती कुर्सी पर बैठ सभी को अपने आगे-पीछे घुमानेवाला। यार-दोस्तों, सगे-संबंधियों की घर में लिस्ट बना सुबह दफ्तर आते ही दफ्तर के फोन से उन्हें फोन पर फोन कर चैन पाने वाला। हमेशा सभी को आदेश देने वाला! पर खुद काम के नाम पर तिनका भी न तोड़ने वाला। सभी को काम चोर कहने वाला। मैं हूं जनाब वह कर्मशील जो खुद मेज पर रखा पानी का गिलास उठा पाने में भी असहाय, भले ही मुझे कितनी भी प्यास क्यों न लगी हो। पीउन आएगा तो वही मेरी प्यास बुझाएगा। अपने हाथों से पानी पी लूं तो साहबी कलंकित हो जाए। मैं हूं वह, दफ्तर के चार-चार कर्मचारी जिसके घर में दिन-रात काम करें और जिनका वेतन दफ्तर से जाए।

बंधुओ, मैं हूं जनता की आँखों की किरकिरी,पर नेताओं की आंखों का तारा! दफ्तर का उजियारा! प्यारा सा, खाऊ सा साहब!पटाने में नंबर वन,पटने में जीरो! जितना खाया, सब पलक झपकते पचा लिया। खाने में मेरा कोई सानी नहीं,पचाने में मुझसा कोई ज्ञानी नहीं। जो मिलता है, भगवान का प्रसाद समझ खा लेता हूं, डकार लेता हुआ व्यवस्था के गुण गा लेता हूं। जनता खुदा कसम, मुझे बीवी से भी प्यारी लगती है। प्रेमिका से भी दुलारी लगती है।

पर देखिए न भाई साहब! पत्नी मुझे देर रात तक जनता की सेवा नहीं करने देती। पांच बजे नहीं कि फोन की घंटी पर घंटी बजानी शुरू कर देती है। डरती है कि मैं कहीं खाते हुए पकड़ा न जाऊं! श्रीमती जी, खाक पकड़ा जाऊंगा? यहां तो आजकल न खाने वाले पकड़े जा रहे हैं,धड़ा- धड़,धड़ा-धड़!

लो साहब, दस बज गए! अब देखिए आते ही पहले तो सारे अधीनस्थ मुझे मक्खन लगाएंगे, जब मैं मक्खन से मक्खनमय हो जाऊंगा तो चैन से अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ जनता की हजामत करने के लिए अपने-अपने उस्तरे पर धार लगाने लग जाएंगे। समाज में भेड़ों की कमी नहीं, भेड़िए भले ही कम हो जाएं तो हो जाएं। समाज में भेड़ें ही भेड़े, काली भेड़ें, सफेद भेड़ें।

सच कहूं, जबसे साहब हुआ हूं, मक्खन लगवाने की आदत सी हो गई है। अधीनस्थों के हाथों में चाहे मक्खन के नाम पर कोयला ही क्यों न हो। अपनी पत्नी की जबान की कोमलता तो उनकी मक्खनबाजी के आगे फीकी लगती ही है, प्रेमिका की चिहुक भी उनकी मक्खनबाजी के आगे कौवों सी कर्कश लगती है। अब आप से छुपाना क्या! अधीनस्थों की मक्खनबाजी मुझे शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर स्वस्थ बनाती है। किसी भी साहब को जब अधीनस्थ मक्खन लगाते हैं तो साहब की सूरत देखने लायक होती है। उसका चेहरा चैहदवीं का चांद हो जाता है। वह अपनी कुर्सी से चार फुट ऊंचा हो जाता है। बिन पंखों के गिद्धों के साथ आसमान में ऊंचे, बहुत ऊंचे उड़ता ही चला जाता है। अधीनस्थ जब मुझे मक्खन लगाते हुए बताते हैं कि इससे साहब का वजन बढ़ेगा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। साहब वही जिसका वजन उसके पद से दस गुणा अधिक हो।

मक्खनबाजी के दौरान मैं और मक्खनबाज एक दूसरे से आंखों ही आंखों में जी भर कर बातें करते हैं। ऐसी-ऐसी बातें जो ऐसे कदापि भी संभव नहीं। सच कहूं, मक्खन लगाने के बाद मुझे जो आंनद मिलता है.. वाह ! इस आंनद को देख स्वर्ग में देवता भी जलते होंगे। सोचते होंगे, देवता क्यों हुए? साहब क्यों न हुए! मक्खन लगवाने के बाद ऐसी गहरी नींद आती है कि मत पूछो। और मैं तब बिना किसीकी परवाह किए मजे से टांगें दो कुर्सियों पर पसार रेड लाइट जला सो जाता हूं। मैंने अपने केबिन के दरवाजे पर असल में रेड लाइट लगवा ही इसीलिए रखी है। ग्रीन बल्व फ्यूज हो तो होता रहे,पर मैं रेड बल्व का हमेशा ध्यान रखता हूं।

काम तो मरने के बाद भी होते रहेंगे। पर मक्खन लगवाना फिर षायद ही मिले। फाइलें तो दूसरा जो आएगा वह भी डील कर लेगा। नेता जी की कृपा हुई तो रिटायर होने के बाद दो-चार साल और कुर्सी पर पदिया लेंगे, मक्खन लगवा लेंगे।

मक्खन लगवाने के बाद मेरे सोने का फायदा अधीनस्थों को भी होता है। वे भी बेचारे रही-सही परेशानी से बचे रहते हैं।

अधीनस्थों की लगातार मक्खनबाजी के कारण मुझे अपनी जबान भी गंदी नहीं करनी पड़ती। मुझे मक्खन लगा वे मेरे अहंकार को शांत रखते हैं। इन बेचारों के लिए जितना करूं कम होगा। भगवान किसीके अधीनस्थों को मोक्ष कभी न दें दें। धन्य हों, मक्खनबाजी में माहिर ये अधीनस्थ! भगवान ऐसे अधीनस्थ हर साहब को दें।

मेरे अधीनस्थ बहुत ईमानदार हैं। हर भेड़ मूंडने के बाद मेरे हिस्से की ऊन मुझे बिन याद दिलाए दे देते हैं। वे सब कुछ भूल सकते हैं पर मेरा हिस्सा नहीं। दिल से गालियां देते होंगे तो देते रहें। किसीके दिल में क्या है, ये तो भगवान भी नहीं जान पाए। पर मेरे सामने साहब चालीसे का ही गान करते रहते हैं।

मेरे खास भक्त मेरे सारे कपड़े खुलवा मेरे तन-मन पर वो मक्खन लगाते हैं ,वो मक्खन लगाते हैं कि....फीमेल अधीनस्थें जब मृगनयनी आंखें गोल-गोल घुमा मेरे मन पर मक्खनी कम चंदनी लेप लगाती हैं तो सच कहूं! भूल जाता हूं कि अग्नि को साक्षी मानकर किसीके साथ सात फेरे भी लिए हैं।

राम कसम! जिस दिन छुट्टी होती है, मरना हो जाता है। काष ! जब तक साहब पद पर रहूं, कोई छुट्टी न हो। हे भगवान! अगले जन्म में भी मुझे साहब ही बनाना प्लीज! नहीं तो तब तक मेरा पैदा होना रोके रखना जब तक साहब-योनि में पैदा होने की मेरी बारी न आए।

मक्खनबाजी में लंच टाइम तो लंच टाइम, पांच कैसे बज जाते हैं ,कमबख्त पता ही नहीं चलता। कुछ प्रोफेशनल मक्खनबाज तो पांच बजे भी मुझे मक्खन लगाने से नहीं हटते। और उनके चेहरे पर तनिक भी थकान नहीं होती। भगवान ऐसे मक्खनबाजों को मेरी भी उम्र दें। चूं भी करूं तो कहना।

मक्खनबाजों द्वारा लगाए मक्खन से मुझे कितना आनंद मिलता है आप क्या जानो! मैं बताता हूं। मक्खन लगवाने के बाद मुझे किसीसे भी शिकायत नहीं रहती, भगवान से भी नहीं। मेरे अहं से जनित सारी दर्दें एकदम छू हो जाती हैं।
इस व्यवस्था में हर साहब का संवैधानिक हक है कि अपने को इतना मक्खन लगवाए, इतना मक्खन लगवाए कि जब तक वह पुनः साहब की योनि को प्राप्त न हो तब तक उसे खुश्की न हो। और साहब की त्वचा को ऐसी शाश्वत नमी कुशल मक्खन नवीस ही दे सकते हैं।

साहबों को 99 प्रतिशत तनाव मक्खनबाजों की कमी से ही होता है। दफ्तर का काम तो मात्र 1 प्रतिशत तनाव भी नहीं देता। अधीनस्थों की मक्खनबाजी साहबों को 101 प्रतिषत तनाव मुक्त रखती है।

मैं ही नहीं, मक्खनबाजी के इस खेल में मक्खनबाज भी पूरा एन्ज्वाय करते हैं। अतः आप साहब हैं तो निसंकोच मक्खन लगवाइए और यदि अगर आप अधीनस्थ हैं तो बेझिझके मक्खन लगाइए। क्योंकि मक्खन लगवाना ही जिंदगी है, मक्खन लगाना ही बंदगी है।


अशोक गौतम
द्वारा- संतोष गौतम, निर्माण शाखा,
डॉ. वाय. एस. परमार विश्वविद्यालय, नौणी,सोलन-173230 हि.प्र.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

6 बैठकबाजों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

अशोक जी तो हम भि जरा स मक्खन लगा ही देते हैन टिपिया कर हा हा हा बहुत बडिया वयंग है आभार्

Manju Gupta का कहना है कि -

Desh ke her vibhag ka makkhanbaji ka yatharth chitran hai.vyangy ki Prabhavshalie shelie mei anubhav ko jinda ker diya hai.
Sadiyo se asha mahamakkhan chal raha hai,chalta rahega aur es ke dam par to sare kam ho jate hai.
Mei to padkemei to m makkhan-makkhan ho gayie.
Bhadhaie.

Manju Gupta

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मंजू जी की तरह मैं भी यही कहना चाहूँगा के पढ़के मेरा दिल भी मक्खन मख्हन हो गया. क्या मक्खंगिरी का चित्रण किया हैं आपने.

Manju Gupta का कहना है कि -

Shamikh ji ko mere vichar pasand ane ke liye dhanywad!!!!!!!!!!!!!!



Manju Gupta .

संपादक का कहना है कि -

हम भी आपको मक्खन लगाते हैं कि आगे भी आते रहें बैठक पर....
निखिल आनंद गिरि

Disha का कहना है कि -

ये बटर है बहुत बढिया
जिसे लगाओ समझो वो गया
एक झटके में काम कर देता है
वरना लगाते रहो अर्जियां
बहुत ही अच्छा है आपका अंदाज़. ये बटर नही आपकी तारीफ़ है जना़ब

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)