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Friday, November 20, 2009

महंगाई नियरे राखिए,संसद कुटि छवाई


अंग्रेजी-कार्टून का हिन्दी अनुवाद । स्रोत- केगलकार्टून्स । अनुवादक- शैलेश भारतवासी

महंगाई में बंस गरीब का, हो गई अब कमाल। राम रहीम को छोड़ के, घर में सब बेहाल। थाली घर घर में फिरे, जीभ मरी मुख माहीं। दाल भात चहुं दिसि दिखे, पर पेट तो कछु नाहीं। जो दाल दे रोटी दे, मुझे तो वही सरकार। अब तो मूली के पत्ते भी, हो गए पहाड़। जान गवाय रोटी मिले, हर कोई लेए गवाए। दो रोटी जिसे मिले, अब वही स्वर्ग को जाय। कंट्रोल रेट सब झूठ है, मत भरमो जग कोय। चोर बाजारी किए बिना, यहां साध न होय।

डिग्री लिए रोए जग मुआ, नौकरी मिलि न कोय। मूंगफली जो बेच रहा, अब सोई पंडित होय। रेता र्इंटा चोरी के, दो कमरे लिए बनाय। तां चढ़ी बंदा बांग दे, पर रोटी कहां से पाय। दिन भर रोजा रखत है, राती भी कुछ न खाय। अब तो हर पल दिखत है, सबको बस खुदाय। रामू ‘यामू सलमान अब, क्या बाजार को जाई। सारा दिन मंते घूमे, सब खाली झोला आई। बकरी खाती गंद है, ताकि काढ़ी खाल। जो जनता को खात है, वो हो रहे तालो ताल। पेट में रोटी, रोटी में पेट, देखे जो वो ही ग्यानी। भूखा पेट रोटी में समाए, यह तत कहत है रानी।
मनवा चीनी में लिपटा, पंख घी लिपटाय। हाथ मले और सिर धुने, सरकार चुप रही जाए। आंखड़ियां झाई पड़ी, सब्जी निहारी निहारी, जीभड़िया छाले पड़े, दूध पुकारि पुकारि। बहुत दिनन से देखती, बाट तुम्हारी पनीर। फाकों से मुक्ति मिले, तो अमर हो ये सरीर।

जनता खड़ी बाजार में, लिए थालियां हाथ। जिसके घर रोटी मिले, ले जाए सबको साथ। हे प्रभु इतना दीजिओ, मेरा परिवार पल जाए। पड़ोसी भाड़ में जाए, साधु भाड़ में जाए।
सपने में रोटी मिली,सोबत दिया जगाय। आंखिन खोली तो क्या देखा,घर रोटी को हाय। बहुत दिनन से जोवता, बाट तुम्हारी लंच। जीभ तरसे तुझ मिलन को, मारे महंगाई के दंश। चोट सतानी महंगाई की,अंग अग जरजर होई। हंसने वाले हंस रहे, जनता मरी रोई रोई। रोटी रोटी न कहो, रोटी वाले बेईमान। जा पेट रोटी संचरै, वही यहां सुलतान। जो रोऊं तो जग हंसे, हंसों तो पेट दुखाई। अब तब तक मन में रोना है, जब तक कम न हो महंगाई। कै जनता को मार दे, या कम कर दे महंगाई। अब ये पेट की आग और, मुझसे सही न जाई। भूखा सारा देस है, क्या खावै क्या सोवे। आटा लाया जत्न से , बच्चे दूध को रोवै।

जनता को उपवास भाया, अब करे निरंतर उपवास। सिवाय रूखे सूखे के, कुछ नहीं उस के हाथ। आया था इस देस में, खाने को बहुरूप। आ कर यहां पर फंस गया, सब जगह भूख ही भूख। अरहर से कल मिला, लाहौरिया भरपूरि। सकल पाप देखत गए, ज्यों सांई मिला हजूरि। अल्लाह को था ढूंढता, कल चानक मिलिया आई, सोचा था उसको खाऊंगा, पर उसने मेरी खाई। मार्किट में हाहाकार, जीव जीव भटकाहिं, छिलके वाले छिलके चुगै,मटरों से नजर चुराहिं। निम्न वर्ग समाज का, रटे कंटरोल कंटरोल,वो क्या जाने बेचारा, क्या सत्ता को झोल। जनता कुत्ता सरकार की,गली गली भटकाए। गली वाले भी खुद बेचारे, और गली में जाए। बंदे ये जग बाजार का, खाला का घर नाहीं। कीमत दे माल ले जा, तब घर में चूल्हा जलाहीं।

रोटी न रिश्ते उपजै, रोटी तो हाट बिकाहीं। लालू पालू जेहि रूचै, नोट दे ले जाहीं। ऐसा मिला न कोय जो,घर आए को दे खिलाए। घर आए साधु तो अब , दरवाजा खुद बंद हुई जाय । महंगाई महंगाई करे मरे , हर मानुस की जात। स्वर्ग में खाएंगे, क्या दाल क्या भात। खिलावन वाले तो मुए, मुए अब खावनहार। सौ सौ ढाबे थे जहां, अब जमा घटाकर चार। साधु आप ही खाइए, और न खिलाइए कोय। आप खाए सुख उपजे, और खिलाए दुख होय। हाट बाजार ह्वै ह्वै गया ,केती बार गरीब। हर बार वहां बिकती देखी, उसने एक सलीब। हम घर बांधा आपणा, अब चूल्हा चैका बंद। न जीने का अधिकार उसे , जेब हो जिसकी तंग। जिनि वोट पाए ते जिए, वोटर अब चालनहार। उनते पाछै पूंगरे, संभलें वे करतार।

महंगाई नियरे राखिए,संसद कुटि छवाई। बिन दवा बिन दारू कै, पेट रहे सफाई।


अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड,
नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र.

Saturday, November 07, 2009

व्यंग्य- यार, बाजार गया था!!

दफ्तर में आज भी बैठने को मन नहीं किया सो दोपहर को बिन छुट्टी दिए घर आ गया। दफ्तर में रहता तो भी कौन से पहाड़ उल्ट देता! दफ्तर में मुझे देखते ही बंदे तो बंदे, अब तो फाइलें भी थर्र-थर्र कांपने लगती हैं। मुझे देखते ही काम करवाने आए वालों की तरह इन्हें भी छुपने को जगह नहीं मिलती और लाख कोशिश करने के बाद भी महीनों-महीनों चपरासी को नहीं मिलतीं। दफ्तर में अब सीनियर बंदा हो गया हूं। इसलिए अवकाश देने से ऊपर उठ चुका हूं। दफ्तर से आकर अभी जूते भी नहीं खोले थे कि मुहल्ले में हलचल कुछ अधिक ही होती लगी। सभी थे कि वर्मा के घर की ओर दौड़े जा रहे थे। घरवाली भी बदहवास सी लगी।
मैंने न चाहते हुए भी पूछ लिया,‘ क्या बात हो गई? ये मुहल्ले वाले कहां जा रहे हैं?’
‘वर्मा के घर।’
‘क्यों? क्या हो गया ऐसा वहां कि....’ फरलो का सारा मजा किरकिरा हो गया। नहीं तो आते-आते सोचा था कि आज तो टीवी के आगे मजे से पांच बजे तक पसरा रहूंगा।
‘ कह रहे हैं कि उन्हें कुछ हो गया।’ न चाहते हुए भी मुहल्ले की मर्यादा को बचाए रखने के लिए वर्मे के घर की ओर देखा ही था कि सामने चारपाई पर पांच-सात जनों के पीछे आठ दस किसी को उठा कर हमारे मुहल्ले की ओर आते दिखे तो मन कुछ कांपा। यार वर्मे को सच्ची कुछ हो गया होगा तो संडे को ताश खेलने वाला चौथा कहां से आएगा? बिल देने के लिए घंटों लाइन में खड़ा कैसे होऊंगा? बेचारा कितना नेक बंदा था! कोई भी काम बता दो, कभी न नहीं करता था। भाई साहब, आप रहते होंगे मुहल्ले में प्रेम के लिए। मैं तो स्वार्थवश मुहल्ले में तो मुहल्ले में, अपने घर रह रहा हूं। अगर मुझे किसी की जरूरत न होती तो बाप की कसम! मुहल्ले में रहना तो दूर, मुहल्ले की ओर देखता भी नहीं। बाय गॉड! मुझे पता नहीं एकाएक शरम कहां से आई कि मैं वर्मे के घर चला गया। वहां उस आंगन में मुहल्ले वालों को रेला देखा तो परेशान हो गया। लगा जैसे सभी उसके मरे होने के इंतजार में रोने की रिहर्सल कर रहे हों। असल में क्या है न कि मैं आजतक औरों को परेशान देख कर कभी परेशान नहीं हुआ बल्कि औरों की परेशानी से अपने आराम को परेशान होते देख ही परेशान होता रहा हूँ।
‘क्या कहीं गिर गए थे?’
‘नहीं। उनके सिर की तरफ लगे ने मुँह में कुछ बड़बडा़ते कहा। वर्मा बिल्कुल शांत चारपाई पर पड़ा हुआ। औरों के कंधों पर चढ़ने का मजा ही कुछ और होता है! चाहे मरने पर ही यह मौका क्यों न मिले।
‘ तो क्या कहीं गाड़ी गुड़ी से टकरा गए?’
‘नहीं।’ उनके पांव की ओर लगे ने हँसी रोकते हुए कहा।
‘तो दफ्तर में किसी से हाथापाई तो नहीं हो गई?’ अब जनता पगलाने भी लग गई है भाई साहब। घर का सारा गुस्सा हम ईमानदार कर्मचारियों पर उतारने लगी है। चाहती है दो टूटे हाथों से सौ हाथों का काम करें। साले रिश्वत के चार पैसे क्या हाथ में रख देते हैं, सोचते हैं बंदा गुलाम बना लिया। अरे भैया! ये तो साला रिश्वत का खून मुंह लग गया है, वरना हम तो न काम करते और न रिश्वत ही लेते।
‘नहीं। थोड़ा हाथ दो।’
‘यार! माफ करना। मैंने तो आज तक दफ्तर में भी कलम तक नहीं उठाई तो इस बंदे को कैसे उठाऊंगा? आखिर इन्हें हुआ क्या??’
‘होना क्या यार! बाजार गया था।’ वर्मे ने चारपाई पर पड़े हुए संवेदनाएं बटोरना शुरू किया। उसे उठाने वाले बंदे किराए के थे सो चुप रहे। मुहल्ले वाले होते तो उसे गिरा कर कभी के जा चुके होते।
‘तो क्या वहां लाला से हाथापाई हो गई?’
‘नहीं।’ उसने करहाते हुए कहा।
‘तो??’
‘तो क्या! प्याज को छुआ भर था कि साले ने ऐसी दुल्लती मारी.. ऐसी दुल्लती मारी कि... चीनी को प्यार से देखा भर ही था कि चीनी ने गाल पर तड़ातड़ घूंसे दे मारे। गाल सहलाने ही लगा था कि दाईं ओर से काले कलूटे माश से अचानक नजर मिल गई। फिर क्या था! माश ने आव देखा न ताव। बाजू ही मरोड़ दी। इससे पहले कि मैं संभल पाता आलू पर गलती से हाथ पड़ गया। बस फिर क्या था! आलू ने सिर पर टचाटच लगा दी। उसके बाद क्या हुआ! मुझे कुछ पता नहीं। बस! मैं बेहोश हो गया।’
‘अब कैसा फील कर रहा है?’
‘ अब तो भगवान से हाथ जोड़ यही विनती है कि वह मुझे श्मशान भेज दे पर बाजार न भेजे।’ कह वह फिर बेहोश हो गया। सरकार! वर्मे को होश में कब तक ला रहे हो? पानी का बिल भी देना था जमा कराने को उसके पास मुझे तो।

--अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड,
नजदीक मेन वाटर टैंक सोलन-173212 हि.प्र.

Sunday, June 21, 2009

पिछड़ी खरीफ फसलों की बुआई, फिर महंगाई की आशंका

गत 6 जून को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान महंगाई की दर घट कर मायनस 1.61 प्रतिशत पहुंच जाना भले ही सरकार के लिए संतोष की बात हो लेकिन वर्षा की वर्तमान स्थिति आगामी महीनों में स्थिति को बदल सकती है और उपभोक्ता की परेशानियों को और बढ़ा सकती है।

शुरूआत अच्छी होने के बाद अब मानसून की स्थिति अच्छी नहीं बनी हुई है। हालांकि इस वर्ष दक्षिणी तट पर मानसून ने 23 मई को ही दस्तक दे दी थी और मौसम विभाग ने समय से पूर्व इसके आने की घोषणा कर दी है लेकिन अब मानसून की गति ठहर सी गई है। देश के अधिकांश भागों में वर्षा की कमी अनुभव की जा रही है।
मौसम विभाग के अनुसार अब तक देश में वर्षा की स्थिति अच्छी नहीं है। देश के कुल 36 मौसमीय उप-खंडों में से केवल 8 उप-खंडों में ही वर्षा सामान्य या सामान्य से अधिक हुई है। बाकी उप-खंडों में वर्षा की कमी है।
इस सीजन में देश भर में अब तक केवल 39.5 मिली मीटर वर्षा ही दर्ज की गई है जबकि आमतौर पर 72.5 मिली मीटर होती है।

बुआई
मानसून में देरी और वर्षा की कमी का असर खरीफ फसलों की बुआई पर पड़ रहा है। कृषि भवन से प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक तिलहनों की बुआई 4.14 लाख हैक्टेयर पर की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 5.02 लाख हैक्टेयर पर की गई थी। इसी प्रकार आलोच्य अवधि में दलहनों का रकबा 1.88 लाख हैक्टेयर से घट कर 1.81 लाख हैक्टेयर रह गया है।

हालांकि सोयाबीन, तिल और सूरजमुखी की बुआई गत वर्ष की तुलना में कुछ अधिक हुई है लेकिन प्रमुख तिलहन मूंगफली का रकबा 2.39 लाख हैक्टेयर से घट कर 1.08 लाख हैक्टेयर रह गया।
दहलनों मूंग का रकबा 87,000 हैक्टेयर से घट कर 57,000 हैक्टेयर रह गया है जबकि उड़द और मूंग की बुआई गत वर्ष की तुलना में क्रमश: 7,000 हैक्टेयर औ 11,000 हैक्टेयर अधिक क्षेत्रफल पर हुई है।
दूसरी ओर, धान की बुआई 7.15 लाख हैक्टेयर से बढ़ कर 8.01 लाख हैक्टेयर, मक्का की 57,000 हैक्टेयर की तुलना में 1.05 लाख हैक्टेयर, ज्वार की 76,000 हैक्टेयर से बढ़ कर 91,000 हैक्टेयर और बाजरा की 5,000 हैक्टेयर से बढ़ कर 39,000 हैक्टेयर पर की जा चुकी है। कपास का रकबा भी 17.30 लाख हैक्टेयर से बढ़ कर 18.51 लाख हैक्टेयर हो गया है।

गिरता जल स्तर
वर्षा की कमी के कारण देश के प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर भी लगातार कम होता जा रहा है। गत 18 जून को 81 प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर केवल 15.068 बिलियन क्यूबिक मीटर रह गया जो क्षमता का केवल 10 प्रतिशत ही है।
गत वर्ष की तुलना में इस समय पानी का स्तर आधा ही रह गया है।
हालांकि मौसम विभाग जल्दी ही मानसून के सक्रिय होने की बात कर रहा है लेकिन यदि कुछ देरी हो जाती है तो खरीफ की बुआई तो कम होगी ही उत्पादकता कम होने से कुल उत्पादन में भी गिरावट आएगी।
खरीफ के दौरान मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी आदि तिहलनों, गन्ना, कपास, धान, अरहर आदि का उत्पादन प्रमुखता से होता है। अरहर के भाव पहले ही आसमान को छू रहे हैं। गन्ने की कमी से चीनी के उत्पादन में आई गिरावट के कारण उपभोक्ता को चीनी के लिए अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं।
ऐसे मे मानसून की देरी या वर्षा की कमी उपभोक्ता की परेशानी को और बढ़ा सकती है।

--राजेश शर्मा

Monday, May 25, 2009

काली मिर्च रहेगी तेज

पिछले कुछ दिनों से कोची बाजार में काली मिर्च के भाव में तेजी चल रही है। यदि आंकड़ों का गणित देखें तो आगामी महीनों में इसके भाव और तेजी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

वैश्विक उत्पादन
पहले विश्व बाजार की स्थिति की बात करें। विश्व में काली मिर्च का उत्पादन पिछले कुछ वर्षों से लगातार कम होता जा रहा है। वर्ष 2003 विश्व में काली मिर्च का कुल उत्पादन 3 लाख टन था के आसपास था जो 2008 में गिर कर 2.30 लाख टन के करीब आ गया।

विश्व में काली मिर्च के प्रमुख उत्पादक देश हैं: वियतनाम, ब्राजील, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका और भारत। कोई समय था जब काली मिर्च के निर्यात में भारत सबसे ऊपर होता था लेकिन पिछले कुछ वर्ष मेंं स्थिति बदल गई है। अब काली मिर्च के उत्पादन और निर्यात में पहला स्थान वियतनाम का है।

विश्व के प्रमुख उत्पादक देशों में इस समय काली मिर्च का स्टाक कम ही बचा हुआ है। केवल ब्राजील व वियतनाम में ही कुछ स्टाक है।

भारत
अन्य देशों की भांति भारत में भी 2008-09 (नवम्बर-अक्टूबर) के दौरान काली मिर्च का उत्पादन कम हुआ है। वर्ष 2001-02 में भारत मे काली मिर्च का उत्पादन 79,000 टन के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया था लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट ही आ रही है। अब तो इसका औसत उत्पादन गिरकर 50,000 टन के आसपास आ गया है लेकिन चालू वर्ष में तो गिर कर लगभग 42,000 टन ही रह गया। देश में सबसे अधिक उत्पादन केरल में होता है और उसके बाद तमिलनाडु और कर्नाटक का स्थान आता है।
उत्पादन में गिरावट का कारण प्रतिकूल मौसम के अलावा किसानों द्वारा खाद का कम मात्रा में प्रयोग करना और नई झाड़ियों की संख्या में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं होना है।
उत्पादन ही नहीं देश से काली मिर्च के निर्यात भी कम हो रहा है। वित्त वर्ष 1999-2000 में देश से 42,000 टन काली मिर्च का निर्यात किया गया था जो एक रिकार्ड था। उसके बाद इसका निर्यात घटता ही जा रहा है।
वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान अप्रैल से फरवरी के दौरान 23,350 टन काली मिर्च का निर्यात किया गया जो पूर्व वर्ष की इसी अवधि के निर्यात-31,760 टन-की तुलना में 26.5 प्रतिशत कम है।

चालू वर्ष में भी इसके निर्यात में सुधार की संभावना नहीं है क्योंकि भारतीय काली मिर्च के भाव अन्य देशों की तुलना में लगभग 400 डालर प्रति टन अधिक चल रहे हैैं। यह ठीक है कि अन्य देशों की तुलना में भारतीय काली मिर्च की क्वालिटी बेहतर है लेकिन आयातक देश इसके लिए 250/300 डालर प्रति टन तक ही अधिक भाव चुका सकते हैं। भाव में अधिक अंतर होने पर वे अन्य देशों की ओर रुख कर लेते हैं।

आयात
भाव में अधिक अंतर होने के कारण अब कुछ निर्यात काली मिर्च का आयात भी करते हैं। यह आयात एडवांस लाईसेंस के तहत किया जाता है और आयातित काली मिर्च को एक निश्चित अधिक के भीतर वैल्यू एडीशन करके निर्यात करना होता है। हालांकि इस स्कीम का उद्देश्य विदेशी मुद्रा कमाना होता है लेकिन कुछ आयातक व व्यापारी कथित रुप से इस स्कीम का दुरुपयोग भी करते हैं।

भाव
पिछले कुछ महीनों तक मंदे रहने के बाद भारतीय बाजारों में काली मिर्च के भाव सुधार हुआ है लेकिन अब कुछ सप्ताहों से भाव बढ़ रहे हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले महीनों में इसके भाव में और सुधार होगा। संभव है कि एडवांस लाईसेंस के तहत वियतनाम आदि से सस्ता आयात होने के कारण काली मिर्च के भाव में कुछ गिरावट आ जाए लेकिन वह केवल कुछ समय के लिए ही होगी।

--राजेश शर्मा

Sunday, May 03, 2009

बढ़ता खाद्य तेल आयात घातक

भारत एक कृषि प्रधान देश है और तिलहन उत्पादन के क्षेत्रफल में विश्व में भारत का स्थान चौथा है लेकिन कम उत्पादकता के कारण देश में खाद्य तेलों का आयात दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। आज स्थिति यह हो गई है कि खाद्य तेलों के आयात बिल का नम्बर कच्चे तेल के आयात बिल के बाद आता है।

पिछले कुछ वर्षों से खाद्य तेलों का आयात बढ़ता ही जा रहा है। यदि चालू तेल वर्ष 2008-09 (नवम्बर-अक्टूबर) की बात करें तो मार्च तक के 34.34 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया जा चुका है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 19.34 लाख टन का आयात किया गया था। वास्तव में इस वर्ष के आरंभ से ही महीने दर महीने खाद्य तेलों का आयात बढ़ता आ रहा है और आगामी महीनों में भी इसके जारी रहने का अनुमान है।

तेल वर्ष 2005-06 के दौरान कुल 44.16 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया था जो 2006-07 में बढ़ कर 47.14 लाख टन और गत वर्ष यानि 2007-08 में बढ़ कर 56.08 लाख टन के स्तर पर पहुंच गया था।

खाद्य तेलों के आयात की वर्तमान स्थिति को देखते हुए चालू वर्ष में आयात 70 लाख टन तक पहुंच सकता है। क्योंकि आयात शुल्क न होने के कारण आयात सस्ता पड़ रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश में तिलहनों का उत्पादन कम होता है और खाद्य तेलों की मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर होना पड़ता है। लेकिन चिंता का विषय यह है कि यह निर्भरता दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
कोई समय था जब खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता केवल 10 प्रतिशत ही थी लेकिन अब यह 50 प्रतिशत से ऊपर पहुंच चुकी है। देश में खाद्य तेलों की सालाना मांग लगभग 110 लाख टन है।

खाद्य तेलों पर विदेशी निर्भरता बढ़ते जाने कारण सरकारी नीतियां हैं। गत वर्ष जब देश में मंहगाई बढ़ रही तो खाद्य तेलों के भाव भी पीछे नहीं थे। विदेशों में भी खाद्य तेलों के भाव रिकार्ड स्तर पर थे। इन पर काबू पाने के लिए सरकार ने पहले खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम किया और बाद में कच्चे तेलों पर तो आयात शुल्क समाप्त ही कर दिया।

इसी बीच, विश्व बाजार में खाद्य तेलों के भाव में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट आ गई लेकिन चुनाव को देखते हुए सरकार ने आयात शुल्क नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया। इससे आयातकों ने खाद्य तेलों का आयात अधिक मात्रा में किया (भले ही इससे किसानों को नुकसान हो रहा है।) और आज देश में आयातित खाद्य तेलों की बाढ़ आ गई है।
इससे न केवल देश के तिलहन उत्पादक किसानों को अपेक्षा से कम भाव मिल रहे हैं अपितु सूरजमुखी उत्पादकों को तो सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहे हैं।

इसके अलावा खाद्य तेल उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है क्योंकि भारी मात्रा में रिफाईंड तेलों का आयात किया जा रहा है जबकि देश के रिफाईंनिंग उद्योग की स्थापित क्षमता बेकार पड़ी है।

सस्ते खाद्य तेलों के आयात का असर आगामी वर्षो में और भी भंयकर होगा क्योंकि किसानों की दिलचस्पी तिलहन उत्पादन में कम होती जा रही है। तिलहन उत्पादन कम होने से देश के खाद्य तेल उद्योग पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।
ऐसे में बेहतर होगा कि सरकार उपभोक्ता के हितों के साथ-साथ तिलहन उत्पादक किसानों की हितों का भी ध्यान करे। अन्यथा कुछ वर्षों बाद खाद्य तेल उद्योग केवल इतिहास बन कर रह सकता है।

--राजेश शर्मा

Sunday, March 29, 2009

महंगाई दर घटी लेकिन तेज़ी वहीं की वहीं

सरकार महंगाई दर कम होने पर अपनी पीठ ठोक रही है कि 14 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान यह घट कर 0.27 प्रतिशत पर आ गई है। यह महंगाई की दर में वृद्वि का पिछले 30 वर्षों का सबसे नीचा स्तर है। सरकार के लिए संतोष की बात है भी क्योंकि गत वर्ष इसी अवधि में यह 8.02 प्रतिशत थी। यही नहीं गत वर्ष अगस्त में यह दर 13 प्रतिशत का आकंड़ा छू गई थी। उस समय पूरा मीडिया महंगाई को लेकर सरकार के पीछे पड़ गया था। इसे देखते हुए सरकार के लिए यह राहत की बात है। यही नहीं आगामी आम चुनाव को देखते हुए भी सरकार प्रसन्न है कि चलो महंगाई की दर पर काबू तो पाया।
महंगाई की गिरती दर को देखते हुए अनेक अर्थशास्त्री देश में मुद्रा स्फीति की बजाए अपस्फीति की आशंका जताने लगे हैं।

विरोधाभास
वास्तव में सरकार के बयानों में ही विरोधाभास है। थोक मूल्य सूचकांक उद्योग व वाणिज्य मंत्रालय द्वारा किया जाता है। इसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि देश में महंगाई की दर कम हो रही है और आगामी सप्ताहों में यह शून्य पर आ जाएगी या निगेटिव हो जाएगी।
लेकिन वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार स्वयं यह मान रहे हैं कि महंगाई कम नहीं हुई है। उनका कहना है कि महंगाई की दर थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर निकाली जाती है। यह ठीक है कि थोक मूल्य सूचकांक में लगातार कमी आ रही है लेकिन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वृद्वि दर तो अब भी 10 प्रतिशत के आसपास घूम रही है।

उपभोक्ता हैरान
बरहहाल, इन सब से आम उपभोक्ता हतप्रभ है। वह महंगाई की दर 13 प्रतिशत के आसपास पहुंचने के बाद परेशान तो था लेकिन अब गिर कर 0.27 प्रतिशत आ जाने पर प्रसन्न नहीं लेकिन हैरान अवश्य है कि यह क्या हो रहा है? उसका बजट तो वहीं का वहीं है या बढ़ रहा है, फिर महंगाई कैसे कम हो रही है।

क्या है सूचकांक
थोक मूल्य सूचकांक में लगभग एक हजार विभिन्न वस्तुओं का समावेश है। दिलचस्प बात यह है कि सूचकांक की लगभग 78 प्रतिशत वस्तुएं वे हैं जिनकी रोजमर्रा की जिंदगी में आम आदमी को आवश्यकता ही नहीं होती है। इनमें विभिन्न रसायन, धातुएं, विभिन्न प्रकार के ईंधन, ग्रीस, रंग-रोगन, सीमेंट, स्टील, मशीनरी व मशीन टूल, पुस्तकों व समाचार पत्रों की प्रिन्टिग, पल्प, कागज आदि अनेक वस्तुएं इस सूची में शामिल हैं। शेष 22 प्रतिशत में वे वस्तुएं हैं जिनकी रोज आवश्यकता होती है।

आंकड़ों की सच्चाई
आम उपभोग की अनेक वस्तुओं के भाव दिल्ली बाजार में गत वर्ष की तुलना में ऊंचे चल रहे हैं। गत वर्ष दिल्ली बाजार में चीनी के एक्स मिल भाव 1600 रुपए के आसपास चल रहे थे जो अब लगभग 2200 रुपए (थोक में 25 रुपए किलो) चल रहे हैं। गुड़ के भाव तो इससे भी आगे हैं। गेहूं दड़ा क्वालिटी के थोक भाव 1125/1130 रुपए से बढ़ कर 1160/1165 रुपए हो गए हैं। मूंग के भाव गत वर्ष 2200/2650 रुपए थे जो अब 3500/4000 रुपए हो गए हैं। रंगून की अरहर गत वर्ष 2575/2600 रुपए थी जो अब 3500 रुपए पार कर गई है। रंगून की उड़द भी 2375/2400 रुपए से बढ़ कर 2800 रुपए के आसपास हो गई है। चने के भाव गत वर्ष की तुलना में अवश्य कम हैं। मसालों के भाव भी गत वर्ष की तुलना में काफी तेज हैं लेकिन खाद्य तेलों के भाव नीचे चल रहे हैं।

सरकारी आंकड़े
यदि सरकारी आंकड़ों को देखें तो भी यह स्पष्ट है कि खाद्य वस्तुओं का थोक मूल्य सूचकांक बढ़ा है। इस वर्ष 14 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान दलहनों का थोक मूल्य सूचकांक 269.1 था जो गत वर्ष 15 मार्च को 244.7 था। अनाजों का सूचकांक आलोच्य अवधि में 219.4 से बढ़ कर 241.6 पर पहुंच गया है। सब्जियों व फलों का सूचकांक 234.8 से बढ़ कर 247.6 हो गया है। दूध का सूचकांक 220.3 से बढ़ कर 233.7 हो गया है। इसी प्रकार मसालों, खांडसार, गुड़ व चीनी तथा अन्य खाद्य उत्पादों का थोक मूल्य सूचकांक बढ़ा है लेकिन अन्य व गैर खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक में कमी के कारण महंगाई की दर में बढ़ोतरी कम हो गई है।
यहां यह जानना भी आवश्यक है कि महंगाई की दर में बढ़ोतरी की गति कम हुई लेकिन वह घट नहीं रही है।

--राजेश शर्मा