एक मशहूर कहावत है-जिनके घर शीशे के होते हैं वे दूसरे के घरों में पत्थर नहीं फेंका करते। लेकिन हम भारतीय अनूठे हैं। हम अपनी ही कही बात पर अमल नहीं करते। ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमले पर भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही जगहों पर इसके विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं। नस्लभेदी हमलों पर हर कोई आगबबूला हो रहा है। हर ओर हड़कम्प मचा हुआ है।
पर मुझे लगता है कि हमें ऑस्ट्रेलिया को कुछ भी कहने का हक नहीं है। महाराष्ट्र में जब हिन्दी भाषियों पर हमले होते हैं तब हम कहाँ होते हैं? "मराठी मानुस" और हिन्दी भाषियों में लड़ाई है नौकरी की। हक की। एक आदमी दूसरे देश या राज्य में पैसा कमाने ज्यादा है इसका कारण होता है उसके खुद के देश में नौकरी व संसाधनों की कमी। या फिर और अधिक पैसा कमाने की लालसा उसे दूसरे देश ले जाती है। इसके अलावा और कोई कारण नहीं होता। आप और हम नहीं चाहेंगे कि बांग्लादेश से कोई गैरकानूनी रूप से आये और हमारा हक हमसे छीने। जब घर में ही दाल-रोटी के लाले पड़े हों तो दूसरे को निवाला कैसे दें? कमोबेश वही हाल विदेशियों का हैं। जब हम हिन्दुस्तान से लोग विदेश में गैरकानूनी तरीके से जा कर रहते हैं तब तो सरकार कुछ नहीं करती?
पूर्वांचल में बिहारियों को ट्रेन में पीटा जाता है, बुरा बर्ताव होता है तब कोई कुछ क्यों नहीं करता? शेष भारत के लोग कौन सा पूर्वोत्तर का ध्यान रखते हैं? हमारा मीडिया उन इलाकों को कितना कवर करता है? इसे मीडिया कौन सा "वाद" कहेगा? क्षेत्रवाद? जातिवाद? रंगभेद? आखिरी बार आपने नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम आदि की खबर कब सुनी या देखी थी? मुझे तो याद नहीं आ रहा। किस मुँह से किसी विदेशी पर आरोप लगायें जब हम खुद ही एक नहीं हैं? हाल ही में रूसी राजदूत ने कहा कि गोवा में रूसी पर्यटकों से ठीक वैसा ही व्यवहार होता है जैसा कि भारतीयों के साथ ऑस्ट्रेलिया में हो रहा है। ये सुनकर क्या हमें शर्म नहीं आती? क्या भारत की सरकार इस पर चुप्पी साध लेगी?
दक्षिण भारतीय और हिन्दी भाषियों के बीच में मनमुटाव कुछ कम नहीं हैं। मेरे और मेरे एक मित्र के साथ चेन्नई में बुरा बर्ताव हो चुका है। ऐसा नहीं है कि सभी लोग एक जैसे हैं पर असमाजिक तत्वों की कमी भी नहीं।
ये तो केवल क्षेत्र की बात करी है। हमारे देश में ऐसे अनगिनत वाद-विवाद मिल जायेंगे। गुर्जर और मीणा विवाद कैसे भूल सकते हैं? यूपी, राजस्थान और बिहार में न जाने ऐसे कितने ही वाद-विवाद रोज़ होते रहते हैं। उनपर हमारा ध्यान कभी नहीं जाता। जब हम स्वयं ही अपने लोगों से उसी तरह से पेश आते हैं जैसे कि ऑस्ट्रेलिया वाले तो हमें कुछ कहने का हक ही नहीं बनता। राज ठाकरे हमारे घर में है विदेश में नहीं। नस्लभेद टिप्पणियाँ कोई नई बात नहीं है। इस तरह के "भेद" हमारे घर में अधिक हैं। पर हम बेशर्म हो चुके हैं।
अपने एक मित्र संदीप के शब्दों में :
यह कहना ग़लत नही होगा की अगर कोई नस्लवाद/जातिवाद की प्रतियोगिता हो तो भारतीय प्रथम आयेंगे ये हमारे अन्दर कूट कूट के भरा हुआ है, वह तो शुक्र है कि भारत एक धनी देश नही है वरना बाकी और देशो के साथ बहुत ही बुरा बर्ताव करता देश से बाहर रह कर भारतीय नस्लवाद और भी स्पष्ट दिखता है वहाँ अगर कोई काला (अफ्रीकी) व्यक्ति दिख जाए तो भारतीय सबसे आगे होते हैं उसका मजाक उडाने में ये इस देश का दुर्भाग्य ही कह लीजिये कि जहाँ भगवान के नाम में भी काले रंग का वर्णन है, उस देश में fairness creams की बिक्री धड़ल्ले से होती है
निदा साहब ने शायद ऐसे ही मौके के लिए कहा है-
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये
तपन शर्मा
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14 बैठकबाजों का कहना है :
बहुत ही सत्य सुन्दर और सटीक पोस्ट है हम अपने ही घर मे अपनों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं तो दूसरों शे क्यों आपेक्षा करते हैं कि वो ऐसा ना करें बहुत बहुत धन्यवाद
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
aapne bimaari ko jad se pakda hai
aap badhaai ke patra hain
atyant sateek post............waah waah !
Bilkul sahi likha hai...
sahi kaha tapan...
buddy, dont say these things out loud.. sach kadva hota hai, isliye please meetha boliye..
buy anyways you nailed it buddy.
ऐसी घटनाए तो विदेशो मे पहले भी होती थी, पर अब जरूरत से ज्यादा हो रही है, इसका एक कारण आर्थिक मंदी भी है, आपने ठीक ही कहा भारतीय भी इस मामले मे कम नही है, यहा पर भी हर व्यक्ति अपने इलाके का शेर है औरो बाहर के राज्यो से आये लोगो से बुरा बर्ताव करता है।
ऐसी घटनाए तो विदेशो मे पहले भी होती थी, पर अब जरूरत से ज्यादा हो रही है, इसका एक कारण आर्थिक मंदी भी है, आपने ठीक ही कहा भारतीय भी इस मामले मे कम नही है, यहा पर भी हर व्यक्ति अपने इलाके का शेर है और बाहर के राज्यो से आये लोगो से बुरा बर्ताव करता है।
एक बहुत गंभीर मुद्दे को बयां करता आलेख. आज अगर ऑस्ट्रेलिया में नस्लभेदी हमले हो रहे हैं तो वो तो एक गैर मुल्क है लेकिन अपने देश में भी तो हिन्दोस्तानियों में नस्लभेदी हमले हुए हैं.
हम आपकी बातों से सहमत हैं क्योंकि आज सभी जगह यही हाल है.लोग एक दूसरे को नोच खाने में लगे हुए हैं.कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर.कहते हैं ना कि "जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरों से क्या कहा जाये."
कबीर दास जी ने कहा है कि
बुरा देखन मैं चला ,बुरा ना मिलया कोय
जो मन देखयो आपणो, मुझसे बुरा ना कोय
इत्तेफाक तो है आलेख से !....पर भारत में नस्लीय हिंसा का आधार मैं खारिज करता हूँ!!
शायद यह फर्क आप भी मन रहे होंगे !!
बकिया लेख में चिन्हित हिंसक प्रवत्ति पर मेरी भी सहमति !!
bilkul sahi baat kahi bhai, jitna naslvaad hindustaan me hai shayad hi kahin ho.
aapki baat 16 aane sach hai.
Nasliye bhedbhav nahi hona chahiye.
Manavta bhi dharm hai.
post se siik jarur milagi.
Badhayi.
ak dam sahi kha apne.Aaj kya may abhi se yah prtigya karta hu ki -"KISI BHI VIDESHI KA MJAK NAHI UDAU GA"
Par ye bta bhai videsi jab hamare yha ate hai to abhdr kapde kayo pahne hai jineh dek kar hamari pidi par galat prbhav padta hai.
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