कह्ते हैं कि भगवान श्रद्धा-भक्ति और विश्वास के भूखे होते हैं. श्रद्धा से किया गया स्मरण मात्र भी प्रभु को खुश करने के लिये काफ़ी है. लेकिन उनका बनाया इंसान इन बातों को नही समझता. उसकी नजरों में पैसों के बिना किसी चीज का कोई मोल नही है.
जी हाँ मैं बात कर रही हूँ. वैष्णो धाम तथा ऐसे ही कई तीर्थों की, जहां श्रद्धालु दूर-दूर से अपनी मुरादें पूरी होने की आस लिये प्रभु दर्शन को आते हैं लेकिन वहां आकर उन्हें मिलता है तिरस्कार. 'जय माता दी' के नारों के बीच रास्ते की कठिनाईयों को भुलाते हुए जो श्रद्धालु माता के द्वार पहुँचते हैं, उन्हें क्या पता होता है कि यहां उनके द्वारा लायी गयी भेंट का कोई आदर नहीं अपितु उसे तो कूड़े की तरह एक कोने में फ़ेंक दिया जायेगा और प्रसाद स्वरूप उन्हें धक्के मिलेंगे, प्रभु दर्शन तो दूर की बात है.
इसी तरह अन्य स्थानों पर भी यही हाल है. अब आप जम्मू स्थित रघुनाथ मंदिर का ही उदाहरण ले लीजिये. रघुनाथ मंदिर एक ऐसा धर्म स्थल जो बहुत प्रसिद्ध है. वैष्णो धाम से लौटते हुए हजारों श्रद्धालु जम्मू स्थित इस स्थल पर प्रभु दर्शन के लिये अवश्य आते हैं. रघुनाथ मंदिर की प्रसिद्धता को देखते हुए और आतंकी हमले के बाद यहां चौकसी बढा़ दी गयी है. दरवाजे पर ही पुलिस चौकी है जो सभी आने जाने वालों की तलाशी लेती है ताकि कोइ लूटेरा या आतंकी मंदिर में प्रवेश न कर सके. लेकिन वे यह नही जानते कि असली लुटेरे तो मंदिर के भीतर ही हैं. अब आप सोचेंगे कि मैं किन लुटेरों कि बात कर रही हूं. आजकल पुजारी किसी लुटेरे से कम हैं क्या? यहां मंदिर में प्रवेश करने के बाद पुजारी पाँच सौ तथा हजार के नोट दिखाकर आपको जताते हैं कि आप भी इसी तरह की दक्षिणा उनकी थाली में रखें, यदि आप ऐसा नही करते तो वो आपको खरी-खोटी सुनाने से और तिरस्कृत करने से भी नहीं चूकेंगे. इस मंदिर के प्रांगण में कई अन्य मंदिर भी हैं. अत: लूटने का ये सिलसिला हर मंदिर में होता है. आज सभी तीर्थस्थानों में प्रोफ़ेशनलिज्म इस कदर हावी हो गया है कि लोगों की भावनायें कहीं भी मायने नहीं रखती. तीर्थस्थानों में बैठे पुजारियों को तो अपने नोटों से मतलब. इनका शीश प्रभु के आगे नहीं बल्कि ५०० और १००० के नोटों की हरियाली के आगे झुकता है.
कहा जाता है कि "जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखी तैसी".अर्थात जिसकी जो भावना हो उसे वैसा ही दिखाई देता है. जहां श्रद्धालुओं के लिये पत्थर की मूरत साक्षात प्रभु हैं, वहीं पुजारियों के लिये केवल लूटने का एक जरिया है.
दीपाली तिवारी
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9 बैठकबाजों का कहना है :
kash aap ye sab mullo ko keh pati ?? aapki jaban khich li jati....... hinduo aur hindu pujario ko gali dena aajkal ka fashion hai kyoki isase bina mehnat ke aap open minded sabit ho jate hai....... jaha tak lootane ka sawal hai ..... ghar pe hi kyo nahi aap pooja kar leti....... mandir jane ke liye poojari log aapko ghar se to nahi utha ke le jate hai ??
यह उनका मौलिक अधिकार है भाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपका कमेंट पढ़के हंसी आ गई जनाब.....आपको मुल्लों में पाखंड लगता है तो लिख भेजिए...हम वो भी छापेंगे....बस, व्यक्तिगत कमेंट न करें...कम से कम परिचय देने की हिम्मत तो जुटा ही सकते हैं.....
और हम भी तो भक्ति के नाम पर ख़ुद को लुटवाना चाहते हैं...ऐसा नहीं है कि सिर्फ अशिक्षित लोग ही इनका शिकार बनते अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग इनके चुंगल में आ फंसते हैं...हमारी आदत होती है ख़ुद को किसी भी ज़िम्मेदारी से दूर रखना, लेकिन हम उसके उतने ही कुसूरवार होते हैं...एक बार नहीं बारबार लुटे जाने के बाद भी लुटना चाहते हैं, हमारी प्रवृत्ति बन चुकी है.........
इस विषय पर बोलना या लिखना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ, दरअसल जहां तक लूटने का सवाल है आपकी मर्जी के बिना तो आपको डाकू ही लूट सकता है पंडा या पाखंडी पंडित नहीं, और वैसे भी वो आपका तिरस्कार करने वाला कौन होता है
अब विषय ये है की इन धार्मिक स्थलों पर यात्रा की जाए या नहीं, जो आदमी इन सभी चीज़ों से निपट सकता है वो यात्रा करे और जो नहीं निपट सकता वो यात्रा न करे
आपका ये लेख, जिस व्यक्ति को हकीकत का पता न हो उसके लिए उपयोगी है
वैसे प्रोफेशनल तो हर जगह हर मंदिर में पुजारी हो गए हैं उनके लिए भक्ति कोई सेवा नहीं है एक बिज़नस है
"एनीमाउस" जी जरा पहले अपने आधारभूत ज्ञान को ठीक करें फिर कमेन्ट करें आज पुजारी क्यों पैसे के लिए पीछे पड़ जाते हैं जबकि आधार भूत रूप से यह एक सेवा कार्य है
खैर हमें जागरूक होना होगा सोचिये जब सरकार भिक्षावृति पर पाबन्दी लगा रही है तो हमें प्रण करना होगा की हम एक पैसा भी ऐसे व्यक्ति को नहीं देंगे जो व्यक्ति बिना काम करे पैसा मांगेगा चाहे वह किसी भी भगवान् के नाम पर हो ............
अरुण मितल अद्भुत
मैं अनिमोउस जी से बस इतना ही कहना चाहूँगा की ग़लत हिन्दू या मुसलमान नहीं होता बल्कि इंसान होता है. यह महज़ एक इत्तेफाक होता है की वह हिन्दू है या मुसलमान.
यहाँ पर मैं ये कहना चाहूँगा यदि पुजारी लुटते है तो उनको पैसा तो हामी देते है यदि वो दोषी है तो हम भी हैं
और रही पैसा न देने पर तिरस्कार की बात तो गीता में भगवान् कृष्ण ने एक श्लोक में कहा है मेरा भक्त वो है जो झूटे अहंकार,सम्मान, तिरस्कार से विचलित नहीं होता यदि आप भगवान् के भक्त है तो आपके ऊपर इन बातो का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए क्युकी ठुकराया उसे पुजारी है भगवान् ने नहीं
और यदि पड़ता है तो भगवान् कहते है "उस स्थान पर कभी नहीं जाना चाहिए जहा सद्गुणों और भक्तो का आदर न हो मैं तो कण कण में हूँ मेरे बिना कोई चीज़ इस दुनिया में नहीं है मुझे खोजेगे तो मई हर जगह मिलूँगा" तो वहां जाना ही नहीं चाहिए जहाँ सद्गुणों का आदर न हो क्युकी इस दुनिया में कोई ऐसा स्थान नहीं है जो भगवन का नहीं है
और अंत में हिन्दू मुस्लमान के बाबत मई ये कहना चाहूँगा की जब सदियों से हमारे पूर्वज तक मानते आये है की भगवान् एक है तो हम पढ़े लिखे होकर भी क्यों भटक जाते है जो दोनों में अन्तेर खोजने लगते है अगर हिन्दू के बारे में कुछ कहा जाता है तो वो मुसलमान के बारे में भी है अगर किसी मुसलमान के बारे में कहा जाता है तो वो हिन्दू के लिए भी है
Mein to Rishikesh se hoon.sach hai
pande shardhaluao ko loot ker A.c mein rahate hai.
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