Sunday, June 14, 2009

गोदाम अनाज से फिर हुए लबालब

अनेक वर्षों के बाद अब फिर सरकारी गोदाम अनाज यानी गेहूं और चावल के स्टाक से लबालब हो चुके हैं और इसका कारण सरकारी एजेंसियों द्वारा दोनों ही अनाजों की रिकार्ड खरीद किया जाना है। इस वर्ष गेहूं और चावल की रिकार्ड खरीद की गई है।

उल्लेखनीय है कि चार वर्ष पूर्व देश में गेहूं की कमी हो गई थी, आवश्यकता को पूरा करने के लिए आयात का सहारा लेना पड़ा था। अनेक वर्षो के बाद गेहूँ का आयात किया गया था।

अदूरदर्शिता
वास्तव में सरकारी अनाज के भंडार के बारे में कोई दूरदर्शितापूर्ण नीति नहीं होने के कारण ही हमें आयात का सहारा लेना पड़ा था। हालांकि सरकार ने गेहूं व चावल के न्यूनतम बफर स्टाक की सीमा तय की हुई है लेकिन कुछ वर्ष उसका भी कोई लाभ नहीं मिला था और आयात करना ही पड़ा था।

वर्ष 2000 में भी एक बार ऐसी ही स्थिति आई थी जब देश में गेहूं और चावल की भरमार हो गई थी और इन्हें रखना एक समस्या बन गई थी। तत्कालीन सरकार ने उस समय स्टाक से निजात पाने के लिए निर्यात का सहारा लिया और निर्यात की पूरी छूट दे दी। देश में गेहूं व चावल के भाव ऊंचे थे और विदेशों में नीचे। निर्यातकों के लिए निर्यात को लाभकारी बनाने के लिए सरकार ने उन्हें रियायती दरों पर गेहूं और चावल की सप्लाई दी। सरकार ने निर्यातकों को उस समय घरेलू बाजार में प्रचलित भाव से भी नीचे पर चावल दिया। निर्यातकों ने सरकार की इस नीति का भरपूर लाभ उठावा और सरकारी गोदामों से जी भर कर अनाज उठाया। हालांकि बीच में यह चर्चा भी रही कि कुछ निर्यातक चावल को केवल कागजों पर ही निर्यात कर रहे थे और उसे घरेलू बाजार में ही बेच कर लाभ कमा रहे थे। सरकार ने इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। हालांकि सरकारी गोदामों में स्टाक काफी कम हो गया था लेकिन किन्हीं अज्ञात कारणों से निर्यात जारी रहा।

सरकारी नीति के कारण स्थिति यह गई कि एक अप्रैल 2006 को सरकारी गोदामों में केवल 20 लाख टन गेहूं का ही स्टाक रह गया जबकि बफर नार्म के अनुसार स्टाक 40 लाख टन होना चाहिए था।

आयात का सहारा
देश में गेहूं की कमी हुई और भाव बढ़ गए। इन्हें रोकने के लिए सरकार को आयात का सहारा लेना पड़ा। सरकार ने निर्यात सस्ते भाव पर किया और बाद में आयात महंगे भाव पर।
चावल के बारे में स्थिति बदतर होने से बच गई क्योंकि सरकार ने समय रहते निर्यात पर अंकुश लगा दिया था।

फिर रिकार्ड
अब सात वर्ष के बाद गेहूं और चावल की खरीद के फिर रिकार्ड बन गए हैं क्योंकि सरकार ने प्राईवेट सेक्टर पर शिकंजा कस दिया और वे बाजार से बाहर ही रहे और गेहूं व चावल की अधिकांश मात्रा सरकारी एजेंसियों को खरीदनी पड़ी।

खरीफ वर्ष 2008-09 (अक्टूबर-सितम्बर) में अब तक सरकारी एजेंसिया 300 लाख टन से अधिक चावल की खरीद कर चुकी हैं जबकि 2007-08 के पूरे वर्ष में कुल खरीद केवल 284.93 लाख टन ही थी।

इसी प्रकार रबी विपणन वर्ष 2009-10 (अप्रैल-मार्च) में अब तक 243 लाख टन गेहूं की खरीद की जा चुकी है जबकि गत पूरे वर्ष में 226.89 लाख टन की खरीद की गई थी।
इस प्रकार गेहूं व चावल दोनों ही रिकार्ड खरीद की जा चुकी है।

रिकार्ड खरीद के कारण एक मई को सरकारी गोदामों में 298.2 लाख टन गेहूं और 214 लाख टन चावल का स्टाक जमा हो चुका था। इससे पूर्व एक अप्रैल 2002 को सरकारी गोदामों में 260.39 लाख टन गेहूं और 249.12 लाख टन चावल का रिकार्ड स्टाक था।

सरकारी गोदामों में स्टाक रखना भी महंगा सौदा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार सरकार को गोदामों में रखे स्टाक के भंडारण और रख-रखाव के लिए ही लगभग 36 रुपए प्रति टन प्रति माह खर्च करने पड़ते हैं। इसके अलावा पूंजी पर ब्याज, प्रशासनिक व्यय, अनाज का नष्ट होना अलग से है।

ठोस नीति
सरकार कोई ठोस नीति अपना कर अधिकता या कमी की स्थिति से बच सकती है। उदाहरण के लिए यदि सरकार इस वर्ष सीमित मात्रा में गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दे देती तो निर्यातक बाजार में खरीद करते और सरकार पर बोझ कम होता। इसी प्रकार यदि सरकार गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में तीव्र वृद्वि करती और गत वर्ष खुले बाजार में भाव कुछ सुधरने देती तो इस वर्ष व्यापारी व स्टाकिस्ट मुनाफा कमाने के लिए इसकी खरीद करते और सरकार को कम मात्रा में गेहूं की खरीद करनी पड़ती।

--राजेश शर्मा

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2 बैठकबाजों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

Chaval aur gehoo ki nie,vyapak jankari mili.Sarkar ke godam anaj se bhar ne ke karan sabhi ko sahi dam par anaj milega.

Abhar ke sath-
Manju Gupta.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

गेहूं और चावल के बारे में जानकारी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. शायद इस बार गरीबों को भी आसानी से अनाज मिल जायेगा.

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