एक पुरानी कहावत है....जब रोम शहर जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था....भारतीय जनता पार्टी के लिए फिलहाल ये जुमला एकदम फिट बैठता है....इधर यशवंत सिन्हा ने इस्तीफा देकर पार्टी की हार के ज़ख्मों पर नमक छिड़का तो अपनी हालत पर विचार करने के बजाय पार्टी के नेता अपने-अपने शौक पूरे करने में लगे हैं.....टीवी पर टी-20 क्रिकेट मैच देखते-देखते नज़र पड़ी अरुण जेटली पर....लॉर्डस के मैदान में भारतीय क्रिकेट टीम का हौसला बढ़ाने के लिए अरुण जेटली अपनी हाज़िरी लगा रहे थे.....अरुण जेटली नेता विपक्ष हैं....चुनाव में पार्टी की नीति तय करने वाले बीजेपी के चाणक्य.....सियासत के इस चाणक्य की नीतियों का क्या हश्र हुआ, चुनाव के नतीजे बता चुके हैं.....यूपी की चुनावी नैया भी इन्हें ही पार लगानी थी, मगर वहां भी पार्टी ने कांग्रेस को लगभग वाकओवर दे दिया.....
यूपी की बदनसीबी
इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि जिस रामनाम के फॉर्मूले की ज़मीन यूपी में है, वहां उसकी हालत सबसे ज़्यादा पतली है...राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी यूपी के ही हैं....सूबे के सीएम भी रह चुके हैं....मगर, पार्टी के लिए कुछ नहीं कर सके....लालजी टंडन और कलराज सिंह यूपी के सबसे दिग्गज नेताओं में हैं मगर जनाधार कितना है ये मायने रखता है.....कल्याण सिंह के पर कतर दे गए तो वो पार्टी से बाहर समाजवाद का ढोंग कर रहे हैं....फिर, यूपी में बचा क्या.....वरुण गांधी ! जिन्हें ख़ुद ही नहीं पता कि पार्टी के हित में कहां तक जाना उचित रहेगा....
राजनाथ सिंह की बेबसी पर तरस आता है....डमी अध्यक्ष की तरह लगते हैं....अटल जी की तरह पॉज ले-लेकर बोलते हैं, मगर सुनता कौन है.....पूरी पार्टी असमंजस में है.....
चुटकी हो जाए....
राजनीति की बहुत ज़्यादा समझ नहीं है.....दसवीं क्लास में एक ख़ास दोस्त की बात याद है....समय बरबाद करने का सबसे आसान तरीका है कि आप भारतीय राजनीति पर बातचीत शुरु कर दें......कोई नतीजा नहीं निकलने वाला, चाहे जितना सर खपा लें.....अरुण जेटली भी शायद ये समझ चुके हैं....ठीक किया, मन बदलेगा तो कहीं किस्मत भी बदल जाए.....खूब क्रिकेट देखिए....सूट-बूट में तो रहते ही हैं.....कहीं एकाध विज्ञापन ही मिल जाएं तुक्के में....विज्ञापन वाला पूछे,
‘क्यों जेटली जी, आजकल तो खाली-खाली ही हैं....आइए ना, एक ऐड कर लीजिए.....’
‘किस चीज़ का ऐड है भाई ’
‘ठंडे तेल का विज्ञापन करना है , ख़ास आपके लिए...आपको ज़रुरत भी है आजकल ’
‘उड़ा लो बेटा, मज़ाक उड़ा लो....क्या फर्क पड़ता है...वैसे साइनिंग अमाउंट कितना है’
‘सर, इससे क्या फर्क पड़ता है....’
‘हां, फर्क तो नहीं पड़ता.....आजकल और कुछ करने को तो है भी नहीं....विपक्ष में बैठने में रखा भी क्या है.....मुझे कुछ कहने की ज़रुरत ही नहीं पड़ने वाली....हमारी पार्टी में बोलने वालों की कमी है क्या ’
‘सो तो है, 29 साल के बच्चे भी बोलते हैं तो अच्छे-अच्छों की बोलती बंद कर देते हैं....सर, हम आपको इस तेल का ब्रांड एंबेसडर बनाना चाहते हैं....मुझे लगता है कि आपकी पार्टी से हमें बहुत फायदा होने वाला है...वैसे भी आपकी पार्टी में सब तेल लगाने में माहिर हैं.....’
‘मुझे बार-बार लग रहा है कि आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं....’
‘नहीं सर, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं (जनता ने तो आपका जो मज़ाक उड़ाया है, उसके आगे मैं.....)’
‘ठीक है, ठीक है....मैं यहां मैच का मज़ा लेने आया हूं....मुझे मैच देखने दो..’
‘सॉरी सर, मैं चलता हूं.....’
‘अच्छा सुनो, वो साइनिंग अमाउंट स्विस बैंक वाले खाते में ही डलवाना....भारत में आजकल बड़े ख़तरे हैं......’
निखिल आनंद गिरि
यूपी की बदनसीबी
इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि जिस रामनाम के फॉर्मूले की ज़मीन यूपी में है, वहां उसकी हालत सबसे ज़्यादा पतली है...राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी यूपी के ही हैं....सूबे के सीएम भी रह चुके हैं....मगर, पार्टी के लिए कुछ नहीं कर सके....लालजी टंडन और कलराज सिंह यूपी के सबसे दिग्गज नेताओं में हैं मगर जनाधार कितना है ये मायने रखता है.....कल्याण सिंह के पर कतर दे गए तो वो पार्टी से बाहर समाजवाद का ढोंग कर रहे हैं....फिर, यूपी में बचा क्या.....वरुण गांधी ! जिन्हें ख़ुद ही नहीं पता कि पार्टी के हित में कहां तक जाना उचित रहेगा....
राजनाथ सिंह की बेबसी पर तरस आता है....डमी अध्यक्ष की तरह लगते हैं....अटल जी की तरह पॉज ले-लेकर बोलते हैं, मगर सुनता कौन है.....पूरी पार्टी असमंजस में है.....
चुटकी हो जाए....
राजनीति की बहुत ज़्यादा समझ नहीं है.....दसवीं क्लास में एक ख़ास दोस्त की बात याद है....समय बरबाद करने का सबसे आसान तरीका है कि आप भारतीय राजनीति पर बातचीत शुरु कर दें......कोई नतीजा नहीं निकलने वाला, चाहे जितना सर खपा लें.....अरुण जेटली भी शायद ये समझ चुके हैं....ठीक किया, मन बदलेगा तो कहीं किस्मत भी बदल जाए.....खूब क्रिकेट देखिए....सूट-बूट में तो रहते ही हैं.....कहीं एकाध विज्ञापन ही मिल जाएं तुक्के में....विज्ञापन वाला पूछे,
‘क्यों जेटली जी, आजकल तो खाली-खाली ही हैं....आइए ना, एक ऐड कर लीजिए.....’
‘किस चीज़ का ऐड है भाई ’
‘ठंडे तेल का विज्ञापन करना है , ख़ास आपके लिए...आपको ज़रुरत भी है आजकल ’
‘उड़ा लो बेटा, मज़ाक उड़ा लो....क्या फर्क पड़ता है...वैसे साइनिंग अमाउंट कितना है’
‘सर, इससे क्या फर्क पड़ता है....’
‘हां, फर्क तो नहीं पड़ता.....आजकल और कुछ करने को तो है भी नहीं....विपक्ष में बैठने में रखा भी क्या है.....मुझे कुछ कहने की ज़रुरत ही नहीं पड़ने वाली....हमारी पार्टी में बोलने वालों की कमी है क्या ’
‘सो तो है, 29 साल के बच्चे भी बोलते हैं तो अच्छे-अच्छों की बोलती बंद कर देते हैं....सर, हम आपको इस तेल का ब्रांड एंबेसडर बनाना चाहते हैं....मुझे लगता है कि आपकी पार्टी से हमें बहुत फायदा होने वाला है...वैसे भी आपकी पार्टी में सब तेल लगाने में माहिर हैं.....’
‘मुझे बार-बार लग रहा है कि आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं....’
‘नहीं सर, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं (जनता ने तो आपका जो मज़ाक उड़ाया है, उसके आगे मैं.....)’
‘ठीक है, ठीक है....मैं यहां मैच का मज़ा लेने आया हूं....मुझे मैच देखने दो..’
‘सॉरी सर, मैं चलता हूं.....’
‘अच्छा सुनो, वो साइनिंग अमाउंट स्विस बैंक वाले खाते में ही डलवाना....भारत में आजकल बड़े ख़तरे हैं......’
निखिल आनंद गिरि
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4 बैठकबाजों का कहना है :
"Jesi karni vesi bharni"
ki kahavat BJP par lagu ho rahi hai.Aj ke neta to girgit ki taraha rang badalne mein mahir hai.Ghar ki kalahai ab sari duniya dek rahi hai.Tayagpatr ki bat to Advani ne kahi, lekin Yashwant Sinha ne Ag mei ghee dalne ka kam kar diya.
Mahakhalnak ka " mahakhalnak chalisa"pada.Nikhil ji ki lekni ko shat-shat badhayi.
Manju Gupta.
जी हाँ मंजू गुप्ता जी ने बिलकुल सही कहा के बीजेपी की जैसी करनी वैसी भरनी. लोक लुभावने वाडे भी कोई कमल न पाए.निखिल जी ने चुटकी में एक बहुत मज़ेदार बात कही के अगर आपको समय बर्बाद करना है तो भारतीये राजनीती पर बातें शुरू कर दीजिए.
बैठक पर खबर के बाद अरुण जेटली ने इस्तीफा दे दिया....
Bahut khub "amaunt svis bank accaut me dlavana"Ha Ha Ha Ha Ha..........
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