मित्रो! जब से रिटायर हुआ हूं, कुछ दिन तक अकेला भरी-पूरी फैमिली होने के बाद भी लावारिस गाय की तरह सुबह-सुबह मार्निंग वाक पर निकलता रहा। ये जो आप आजकल सुबह-सुबह घूमते हुए मुझे कुत्ते के साथ देखते हो न! यह मुझे दो महीने पहले मेरे बच्चों ने मेरी मैरिज एनिवर्सरी पर गिफ्ट में दिया था कि मैं इस उम्र में कम से कम अकेला सैर करने न निकलूं ।
अब कुत्ता और मैं अरली इन द मार्निंग घूमने निकल जाते हैं। घर की किच-किच से भी बचा रहता हूं। स्वास्थ्य लाभ इस उम्र में मुझे तो क्या होगा, पर चलो कुत्ते को अगर हो रहा है तो ये भी क्या कम है।
तो कुत्ते के स्वास्थ्य लाभ के लिए पसीना-पसीना हुए अपने अनवांटिड पड़ोसी के घर के सामने से दुबकता हुआ गुजर रहा था कि भीतर से उसके भौंकने की आवाजें सुनीं । मैं तो चुप रहा पर कुत्ता भौंक पड़ा। उसे रोका भी, पर जो कहने पर मान जाए उसे कुत्ता कहेंगे आप? आप कहें तो कह लें, पर मैं नहीं कह सकता। कारण सारी उम्र मास्टरी की है।
कुत्ते के भौंकने की आवाज सुन भीतर भौंकता हुआ पड़ोसी भी बाहर आ गया । रिटायरमेंट के बाद एक भौंकने वाला भी परेशान कर देता है और वे भौंकने वाले दो-दो। कुत्ता अभी भी कुछ अपना था, सो उसे जैसे-कैसे चुप कराया, पर पड़ोसी भला चुप होने वाला कहां था। उसने चार-चार सीढ़ियां एक साथ उतरीं और मेरे आगे चीन की दीवार बन खड़ा हो गया,‘यार’ शर्मा जी हद हो गई! ये भी कोई बात बनती है कि सरकार के मन में जो आए करती रहे और हम उल्लू बनकर सहन करते रहें। सरकार के नौकर हैं तो इसका मतलब यह तो नहीं कि...है??’ पर मैं चुप रहा । सारी उम्र तो उल्लू ही बनकर जीता रहा। पड़ोसी बड़ा भाग्यशाली लगा जो अब उल्लू बना। दोस्तो! आदमी जिंदगी में कुछ बने या न, पर कभी न कभी उल्लू जरूर बनता है। वास्तव में आदमी पूरा आदमी बनता ही तभी है, जब वह उल्लू बनता है।
‘आखिर ऐसी बात क्या हो गई जो आज सुबह-सुबह ही...क्या कल खाली जेब तो घर नहीं लौट आए थे और पत्नी से झाड़ पड़ी हो?’ मैंने पूरी सहृदयता से पूछा।
‘नहीं, ऐसी बात नहीं , कल तो भगवान ने छप्पर फाड़ कर दिया।’
‘ तो किसी ’शरीफ आदमी से पाला पड़ गया होगा?’
‘ शरीफ आदमी अब समाज में बचे ही कहां हैं ’शर्मा जी! वे तो अब मोम के बुतों में ढल संग्रहालयों में मौन खड़े हैं।’
‘तो????’ मैं परेशान, पर भगवान की दया से हैरान नहीं हुआ। असल में क्या है न कि इतनी दुनिया देखने के बाद अब कुछ भी हैरान नहीं करता । हां! थोड़ी देर के लिए परेशान जरूर कर देता है।
‘पहले आप घर चलो। आपको सब बताता हूं।’ कह बंधु ने जबरदस्ती अपने घर की बीस सीढ़ियां एक सांस में चढ़ा दीं। घर में ले जा बंधु ने बड़े आदर से बिठाया। लगा ही नहीं कि मैं किसी पुलिसवाले के घर आया हूं।
मेरे आगे बड़े आदर से चाय का कप रख बंधु उसी तरह भौंके,‘ शर्मा जी! ये भी कोई बात बनती है कि सरकार जो कहे हम सिर झुकाए मानते रहें।’
‘आखिर बात क्या है?’ बड़े दिनों बाद औरों के घर की चाय पी थी ,इसलिए हर घूंट किसी फाइवस्टार की टी से कम नहीं लग रही थी।
‘सरकार कभी कहती है रिश्वत न लो, तो कभी कहती है ’शरीफ को न पकड़ो। अब इस अखराजात के दौर में कोरे वेतन में कौन यहां गुजारा कर लेगा? इस वेतन में तो बच्चों की फीस भी नहीं हो पाती। सरकारी नौकरी में भी अगर मौज के लाले पड़ें तो लानत है ऐसी सरकारी नौकरी को। रिश्वत के बिना इस देश में किसी का गुजारा हुआ है क्या? चोर-उचक्के आज तक पकड़ में आए हैं क्या! बदनामी से बचने के लिए शरीफ ही पकड़ने पड़ते हैं। अब एक और आदेश कि हम मानवता का पाठ पढ़ें। मानव हों तो मानवता का पाठ पढ़ें। हम तो साले अभी आदमी भी नहीं हो पाए। ये उम्र है अपनी क्या पढ़ने की? बच्चे तक तो आवारा हो चुके हैं। डंडा चलाते-चलाते बाल सफेद हो गए। अब जाएं मानवता का पाठ पढ़ने! अपने आप दिन पर दिन .....’ कहते -कहते वे कुछ ज्यादा ही सुलग गए तो मैंने उन पर थोड़ा पानी डाला,‘ तो क्या हो गया यार! सरकारी आदेश पालन के लिए थोड़े ही होते हैं। दूसरे, सरकार आदेश न करे तो और क्या करे? उसे भी तो लगना चाहिए कि वो देशहित में कुछ तो कर रही है। पर चिकने घड़ों में कभी बिल लगे हैं क्या?’ इसे कहते हैं समझदारी! उन्होंने पूरी श्रद्धा से मेरे कुत्ते के पांव छुए, तो मैं धन्य हुआ। लगा मैं अभी भी इन सर्विस हूं।
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अशोक गौतम
गौतम निवास, अपर सेरी रोड,
नजदीक वाटर टैंक सोलन-१७३२१२ हि.प्र.
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6 बैठकबाजों का कहना है :
बहुत अच्छा व्यंग्य लिखते हैं आप....बैठक पर आना अच्छा लगता है....ट
प्रकाश
कमाल का व्यंग लिखा है गौतम जी...बहुत आनंद आया पढ़ कर...वाह...लिखते रहें...
नीरज
अच्छा व्यंग लिखा है!!!!!!
bhari poori faimily hone ke baawjood bhi sawere aawaara gaay ki tarh morning walk....waah saahib ,,kyaa baat hai,,,
बहुत मजेदार व्यंग भई मज़ा आ गया.
Wah! kamal ka vyang!!!!!
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