गत 6 जून को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान महंगाई की दर घट कर मायनस 1.61 प्रतिशत पहुंच जाना भले ही सरकार के लिए संतोष की बात हो लेकिन वर्षा की वर्तमान स्थिति आगामी महीनों में स्थिति को बदल सकती है और उपभोक्ता की परेशानियों को और बढ़ा सकती है।
शुरूआत अच्छी होने के बाद अब मानसून की स्थिति अच्छी नहीं बनी हुई है। हालांकि इस वर्ष दक्षिणी तट पर मानसून ने 23 मई को ही दस्तक दे दी थी और मौसम विभाग ने समय से पूर्व इसके आने की घोषणा कर दी है लेकिन अब मानसून की गति ठहर सी गई है। देश के अधिकांश भागों में वर्षा की कमी अनुभव की जा रही है।
मौसम विभाग के अनुसार अब तक देश में वर्षा की स्थिति अच्छी नहीं है। देश के कुल 36 मौसमीय उप-खंडों में से केवल 8 उप-खंडों में ही वर्षा सामान्य या सामान्य से अधिक हुई है। बाकी उप-खंडों में वर्षा की कमी है।
इस सीजन में देश भर में अब तक केवल 39.5 मिली मीटर वर्षा ही दर्ज की गई है जबकि आमतौर पर 72.5 मिली मीटर होती है।
बुआई
मानसून में देरी और वर्षा की कमी का असर खरीफ फसलों की बुआई पर पड़ रहा है। कृषि भवन से प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक तिलहनों की बुआई 4.14 लाख हैक्टेयर पर की गई है जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 5.02 लाख हैक्टेयर पर की गई थी। इसी प्रकार आलोच्य अवधि में दलहनों का रकबा 1.88 लाख हैक्टेयर से घट कर 1.81 लाख हैक्टेयर रह गया है।
हालांकि सोयाबीन, तिल और सूरजमुखी की बुआई गत वर्ष की तुलना में कुछ अधिक हुई है लेकिन प्रमुख तिलहन मूंगफली का रकबा 2.39 लाख हैक्टेयर से घट कर 1.08 लाख हैक्टेयर रह गया।
दहलनों मूंग का रकबा 87,000 हैक्टेयर से घट कर 57,000 हैक्टेयर रह गया है जबकि उड़द और मूंग की बुआई गत वर्ष की तुलना में क्रमश: 7,000 हैक्टेयर औ 11,000 हैक्टेयर अधिक क्षेत्रफल पर हुई है।
दूसरी ओर, धान की बुआई 7.15 लाख हैक्टेयर से बढ़ कर 8.01 लाख हैक्टेयर, मक्का की 57,000 हैक्टेयर की तुलना में 1.05 लाख हैक्टेयर, ज्वार की 76,000 हैक्टेयर से बढ़ कर 91,000 हैक्टेयर और बाजरा की 5,000 हैक्टेयर से बढ़ कर 39,000 हैक्टेयर पर की जा चुकी है। कपास का रकबा भी 17.30 लाख हैक्टेयर से बढ़ कर 18.51 लाख हैक्टेयर हो गया है।
गिरता जल स्तर
वर्षा की कमी के कारण देश के प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर भी लगातार कम होता जा रहा है। गत 18 जून को 81 प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर केवल 15.068 बिलियन क्यूबिक मीटर रह गया जो क्षमता का केवल 10 प्रतिशत ही है।
गत वर्ष की तुलना में इस समय पानी का स्तर आधा ही रह गया है।
हालांकि मौसम विभाग जल्दी ही मानसून के सक्रिय होने की बात कर रहा है लेकिन यदि कुछ देरी हो जाती है तो खरीफ की बुआई तो कम होगी ही उत्पादकता कम होने से कुल उत्पादन में भी गिरावट आएगी।
खरीफ के दौरान मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी आदि तिहलनों, गन्ना, कपास, धान, अरहर आदि का उत्पादन प्रमुखता से होता है। अरहर के भाव पहले ही आसमान को छू रहे हैं। गन्ने की कमी से चीनी के उत्पादन में आई गिरावट के कारण उपभोक्ता को चीनी के लिए अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं।
ऐसे मे मानसून की देरी या वर्षा की कमी उपभोक्ता की परेशानी को और बढ़ा सकती है।
--राजेश शर्मा
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3 बैठकबाजों का कहना है :
आदरणीय राजेश जी,
आप बैठक के सबसे महत्वपूर्ण लेखक हैं.....ब्लॉगिंग को एक ज़रूरी मीडियम बनाने का श्रेय आप जैसे लेखकों को है जो ब्लॉगिंग को कुछ भी लिखने के बजाय मेहनत से लिखने का मंच बनाते हैं....अगर हो सके तो इस स्तंभ के तहत हमारे मॉडर्न होते देश में पिछड़ते किसानों की स्थिति और दिक्कतों पर एक सिलसिलेवार आलेख शुरू कीजिए ना....शायद सरकार की नींद इसी ब्लॉग से खुले....
संपादक
किसी भी विषय पर लिख देना बहुत आसन होता है. लेकिन इतने आकडे जुटा के लिखना बहुत मुश्किल. एक अच्छा आलेख. बधाई.
Nayi shandar,damdar jankari mili.
Badhayi.
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