Friday, November 20, 2009

महंगाई नियरे राखिए,संसद कुटि छवाई


अंग्रेजी-कार्टून का हिन्दी अनुवाद । स्रोत- केगलकार्टून्स । अनुवादक- शैलेश भारतवासी

महंगाई में बंस गरीब का, हो गई अब कमाल। राम रहीम को छोड़ के, घर में सब बेहाल। थाली घर घर में फिरे, जीभ मरी मुख माहीं। दाल भात चहुं दिसि दिखे, पर पेट तो कछु नाहीं। जो दाल दे रोटी दे, मुझे तो वही सरकार। अब तो मूली के पत्ते भी, हो गए पहाड़। जान गवाय रोटी मिले, हर कोई लेए गवाए। दो रोटी जिसे मिले, अब वही स्वर्ग को जाय। कंट्रोल रेट सब झूठ है, मत भरमो जग कोय। चोर बाजारी किए बिना, यहां साध न होय।

डिग्री लिए रोए जग मुआ, नौकरी मिलि न कोय। मूंगफली जो बेच रहा, अब सोई पंडित होय। रेता र्इंटा चोरी के, दो कमरे लिए बनाय। तां चढ़ी बंदा बांग दे, पर रोटी कहां से पाय। दिन भर रोजा रखत है, राती भी कुछ न खाय। अब तो हर पल दिखत है, सबको बस खुदाय। रामू ‘यामू सलमान अब, क्या बाजार को जाई। सारा दिन मंते घूमे, सब खाली झोला आई। बकरी खाती गंद है, ताकि काढ़ी खाल। जो जनता को खात है, वो हो रहे तालो ताल। पेट में रोटी, रोटी में पेट, देखे जो वो ही ग्यानी। भूखा पेट रोटी में समाए, यह तत कहत है रानी।
मनवा चीनी में लिपटा, पंख घी लिपटाय। हाथ मले और सिर धुने, सरकार चुप रही जाए। आंखड़ियां झाई पड़ी, सब्जी निहारी निहारी, जीभड़िया छाले पड़े, दूध पुकारि पुकारि। बहुत दिनन से देखती, बाट तुम्हारी पनीर। फाकों से मुक्ति मिले, तो अमर हो ये सरीर।

जनता खड़ी बाजार में, लिए थालियां हाथ। जिसके घर रोटी मिले, ले जाए सबको साथ। हे प्रभु इतना दीजिओ, मेरा परिवार पल जाए। पड़ोसी भाड़ में जाए, साधु भाड़ में जाए।
सपने में रोटी मिली,सोबत दिया जगाय। आंखिन खोली तो क्या देखा,घर रोटी को हाय। बहुत दिनन से जोवता, बाट तुम्हारी लंच। जीभ तरसे तुझ मिलन को, मारे महंगाई के दंश। चोट सतानी महंगाई की,अंग अग जरजर होई। हंसने वाले हंस रहे, जनता मरी रोई रोई। रोटी रोटी न कहो, रोटी वाले बेईमान। जा पेट रोटी संचरै, वही यहां सुलतान। जो रोऊं तो जग हंसे, हंसों तो पेट दुखाई। अब तब तक मन में रोना है, जब तक कम न हो महंगाई। कै जनता को मार दे, या कम कर दे महंगाई। अब ये पेट की आग और, मुझसे सही न जाई। भूखा सारा देस है, क्या खावै क्या सोवे। आटा लाया जत्न से , बच्चे दूध को रोवै।

जनता को उपवास भाया, अब करे निरंतर उपवास। सिवाय रूखे सूखे के, कुछ नहीं उस के हाथ। आया था इस देस में, खाने को बहुरूप। आ कर यहां पर फंस गया, सब जगह भूख ही भूख। अरहर से कल मिला, लाहौरिया भरपूरि। सकल पाप देखत गए, ज्यों सांई मिला हजूरि। अल्लाह को था ढूंढता, कल चानक मिलिया आई, सोचा था उसको खाऊंगा, पर उसने मेरी खाई। मार्किट में हाहाकार, जीव जीव भटकाहिं, छिलके वाले छिलके चुगै,मटरों से नजर चुराहिं। निम्न वर्ग समाज का, रटे कंटरोल कंटरोल,वो क्या जाने बेचारा, क्या सत्ता को झोल। जनता कुत्ता सरकार की,गली गली भटकाए। गली वाले भी खुद बेचारे, और गली में जाए। बंदे ये जग बाजार का, खाला का घर नाहीं। कीमत दे माल ले जा, तब घर में चूल्हा जलाहीं।

रोटी न रिश्ते उपजै, रोटी तो हाट बिकाहीं। लालू पालू जेहि रूचै, नोट दे ले जाहीं। ऐसा मिला न कोय जो,घर आए को दे खिलाए। घर आए साधु तो अब , दरवाजा खुद बंद हुई जाय । महंगाई महंगाई करे मरे , हर मानुस की जात। स्वर्ग में खाएंगे, क्या दाल क्या भात। खिलावन वाले तो मुए, मुए अब खावनहार। सौ सौ ढाबे थे जहां, अब जमा घटाकर चार। साधु आप ही खाइए, और न खिलाइए कोय। आप खाए सुख उपजे, और खिलाए दुख होय। हाट बाजार ह्वै ह्वै गया ,केती बार गरीब। हर बार वहां बिकती देखी, उसने एक सलीब। हम घर बांधा आपणा, अब चूल्हा चैका बंद। न जीने का अधिकार उसे , जेब हो जिसकी तंग। जिनि वोट पाए ते जिए, वोटर अब चालनहार। उनते पाछै पूंगरे, संभलें वे करतार।

महंगाई नियरे राखिए,संसद कुटि छवाई। बिन दवा बिन दारू कै, पेट रहे सफाई।


अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड,
नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र.

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4 बैठकबाजों का कहना है :

आमीन का कहना है कि -

bahut achha kaha

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

महंगाई ने तो जनता की हालत ही खराब कर रखी है..

gazalkbahane का कहना है कि -

डिग्री लिए रोए जग मुआ, नौकरी मिलि न कोय। मूंगफली जो बेच रहा, अब सोई पंडित होय
मूंगफली जो खरीदै कोय नहीं .बेचन वाला रोय

मनोज कुमार का कहना है कि -

यथार्थबोध के साथ कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।

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