सरकार महंगाई दर कम होने पर अपनी पीठ ठोक रही है कि 14 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान यह घट कर 0.27 प्रतिशत पर आ गई है। यह महंगाई की दर में वृद्वि का पिछले 30 वर्षों का सबसे नीचा स्तर है। सरकार के लिए संतोष की बात है भी क्योंकि गत वर्ष इसी अवधि में यह 8.02 प्रतिशत थी। यही नहीं गत वर्ष अगस्त में यह दर 13 प्रतिशत का आकंड़ा छू गई थी। उस समय पूरा मीडिया महंगाई को लेकर सरकार के पीछे पड़ गया था। इसे देखते हुए सरकार के लिए यह राहत की बात है। यही नहीं आगामी आम चुनाव को देखते हुए भी सरकार प्रसन्न है कि चलो महंगाई की दर पर काबू तो पाया।
महंगाई की गिरती दर को देखते हुए अनेक अर्थशास्त्री देश में मुद्रा स्फीति की बजाए अपस्फीति की आशंका जताने लगे हैं।
विरोधाभास
वास्तव में सरकार के बयानों में ही विरोधाभास है। थोक मूल्य सूचकांक उद्योग व वाणिज्य मंत्रालय द्वारा किया जाता है। इसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि देश में महंगाई की दर कम हो रही है और आगामी सप्ताहों में यह शून्य पर आ जाएगी या निगेटिव हो जाएगी।
लेकिन वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार स्वयं यह मान रहे हैं कि महंगाई कम नहीं हुई है। उनका कहना है कि महंगाई की दर थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर निकाली जाती है। यह ठीक है कि थोक मूल्य सूचकांक में लगातार कमी आ रही है लेकिन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वृद्वि दर तो अब भी 10 प्रतिशत के आसपास घूम रही है।
उपभोक्ता हैरान
बरहहाल, इन सब से आम उपभोक्ता हतप्रभ है। वह महंगाई की दर 13 प्रतिशत के आसपास पहुंचने के बाद परेशान तो था लेकिन अब गिर कर 0.27 प्रतिशत आ जाने पर प्रसन्न नहीं लेकिन हैरान अवश्य है कि यह क्या हो रहा है? उसका बजट तो वहीं का वहीं है या बढ़ रहा है, फिर महंगाई कैसे कम हो रही है।
क्या है सूचकांक
थोक मूल्य सूचकांक में लगभग एक हजार विभिन्न वस्तुओं का समावेश है। दिलचस्प बात यह है कि सूचकांक की लगभग 78 प्रतिशत वस्तुएं वे हैं जिनकी रोजमर्रा की जिंदगी में आम आदमी को आवश्यकता ही नहीं होती है। इनमें विभिन्न रसायन, धातुएं, विभिन्न प्रकार के ईंधन, ग्रीस, रंग-रोगन, सीमेंट, स्टील, मशीनरी व मशीन टूल, पुस्तकों व समाचार पत्रों की प्रिन्टिग, पल्प, कागज आदि अनेक वस्तुएं इस सूची में शामिल हैं। शेष 22 प्रतिशत में वे वस्तुएं हैं जिनकी रोज आवश्यकता होती है।
आंकड़ों की सच्चाई
आम उपभोग की अनेक वस्तुओं के भाव दिल्ली बाजार में गत वर्ष की तुलना में ऊंचे चल रहे हैं। गत वर्ष दिल्ली बाजार में चीनी के एक्स मिल भाव 1600 रुपए के आसपास चल रहे थे जो अब लगभग 2200 रुपए (थोक में 25 रुपए किलो) चल रहे हैं। गुड़ के भाव तो इससे भी आगे हैं। गेहूं दड़ा क्वालिटी के थोक भाव 1125/1130 रुपए से बढ़ कर 1160/1165 रुपए हो गए हैं। मूंग के भाव गत वर्ष 2200/2650 रुपए थे जो अब 3500/4000 रुपए हो गए हैं। रंगून की अरहर गत वर्ष 2575/2600 रुपए थी जो अब 3500 रुपए पार कर गई है। रंगून की उड़द भी 2375/2400 रुपए से बढ़ कर 2800 रुपए के आसपास हो गई है। चने के भाव गत वर्ष की तुलना में अवश्य कम हैं। मसालों के भाव भी गत वर्ष की तुलना में काफी तेज हैं लेकिन खाद्य तेलों के भाव नीचे चल रहे हैं।
सरकारी आंकड़े
यदि सरकारी आंकड़ों को देखें तो भी यह स्पष्ट है कि खाद्य वस्तुओं का थोक मूल्य सूचकांक बढ़ा है। इस वर्ष 14 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान दलहनों का थोक मूल्य सूचकांक 269.1 था जो गत वर्ष 15 मार्च को 244.7 था। अनाजों का सूचकांक आलोच्य अवधि में 219.4 से बढ़ कर 241.6 पर पहुंच गया है। सब्जियों व फलों का सूचकांक 234.8 से बढ़ कर 247.6 हो गया है। दूध का सूचकांक 220.3 से बढ़ कर 233.7 हो गया है। इसी प्रकार मसालों, खांडसार, गुड़ व चीनी तथा अन्य खाद्य उत्पादों का थोक मूल्य सूचकांक बढ़ा है लेकिन अन्य व गैर खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक में कमी के कारण महंगाई की दर में बढ़ोतरी कम हो गई है।
यहां यह जानना भी आवश्यक है कि महंगाई की दर में बढ़ोतरी की गति कम हुई लेकिन वह घट नहीं रही है।
--राजेश शर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
3 बैठकबाजों का कहना है :
भाई, मुद्रास्फीति की दर शून्य होने का अर्थ महंगाई कम होने से इतना सीधा भी नहीं है क्योंकि यह दर फिछले सप्ताह इत्यादि के सन्दर्भ में होती है, उदारहरण के रूप में इसे यूं देखा जा सकता है:-
१.१.२००८ किसी वस्तु की कीमत रु.१००/-
१.२.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १०% = ११०/-
१.३.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १०% = १२१/-
१.४.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १५% = १३९.१५
१.५.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर ०२% = १४१.९३
इसी तरह आगे भी.....
ऊपर के उदाहरण से देखा जा सकता है कि मुद्रास्फीति की दर १५% से घट कर २% होने पर भी वस्तु की कीमत बढ़ी है, यानि मंहगाई नहीं घटी. यही अर्थशास्त्र का खेल है जिसे वोटों के खेल में बदला जाता रहता है ठीक वैसे ही, जैसे कभी ये कहा गया कि नदी पर बाँध बनाकर पानी में से बिजली निकाल ली गयी और इस तरह से गरीब किसानों को धोखे से बिना बिजली वाला पानी
'सांख्यिकी में कहा जाता है की आंकड़े दोधारी तलवार की तरह होते हैं' आशय यह की आंकडों से दो विपरीत बातें प्रमाणित की जा सकती हैं. मुद्रास्फीति और मंहगाई के संदाढ़ब में भी किसी आंकड़े से परस्पर विरोधी निष्कर्ष निकले जा सकते हैं. देश के स्वतंत्र होने के बाद से हर सरकार जनता को छलती रही है. फलतः गरीब अधिक गरीब तथा अमीर अधिक अमीर हुआ है.
jankaari bhare lekh ke liye dhanywaad./....
ALOK SINGH "SAHIL"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)