Monday, May 25, 2009

काली मिर्च रहेगी तेज

पिछले कुछ दिनों से कोची बाजार में काली मिर्च के भाव में तेजी चल रही है। यदि आंकड़ों का गणित देखें तो आगामी महीनों में इसके भाव और तेजी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

वैश्विक उत्पादन
पहले विश्व बाजार की स्थिति की बात करें। विश्व में काली मिर्च का उत्पादन पिछले कुछ वर्षों से लगातार कम होता जा रहा है। वर्ष 2003 विश्व में काली मिर्च का कुल उत्पादन 3 लाख टन था के आसपास था जो 2008 में गिर कर 2.30 लाख टन के करीब आ गया।

विश्व में काली मिर्च के प्रमुख उत्पादक देश हैं: वियतनाम, ब्राजील, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका और भारत। कोई समय था जब काली मिर्च के निर्यात में भारत सबसे ऊपर होता था लेकिन पिछले कुछ वर्ष मेंं स्थिति बदल गई है। अब काली मिर्च के उत्पादन और निर्यात में पहला स्थान वियतनाम का है।

विश्व के प्रमुख उत्पादक देशों में इस समय काली मिर्च का स्टाक कम ही बचा हुआ है। केवल ब्राजील व वियतनाम में ही कुछ स्टाक है।

भारत
अन्य देशों की भांति भारत में भी 2008-09 (नवम्बर-अक्टूबर) के दौरान काली मिर्च का उत्पादन कम हुआ है। वर्ष 2001-02 में भारत मे काली मिर्च का उत्पादन 79,000 टन के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया था लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट ही आ रही है। अब तो इसका औसत उत्पादन गिरकर 50,000 टन के आसपास आ गया है लेकिन चालू वर्ष में तो गिर कर लगभग 42,000 टन ही रह गया। देश में सबसे अधिक उत्पादन केरल में होता है और उसके बाद तमिलनाडु और कर्नाटक का स्थान आता है।
उत्पादन में गिरावट का कारण प्रतिकूल मौसम के अलावा किसानों द्वारा खाद का कम मात्रा में प्रयोग करना और नई झाड़ियों की संख्या में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं होना है।
उत्पादन ही नहीं देश से काली मिर्च के निर्यात भी कम हो रहा है। वित्त वर्ष 1999-2000 में देश से 42,000 टन काली मिर्च का निर्यात किया गया था जो एक रिकार्ड था। उसके बाद इसका निर्यात घटता ही जा रहा है।
वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान अप्रैल से फरवरी के दौरान 23,350 टन काली मिर्च का निर्यात किया गया जो पूर्व वर्ष की इसी अवधि के निर्यात-31,760 टन-की तुलना में 26.5 प्रतिशत कम है।

चालू वर्ष में भी इसके निर्यात में सुधार की संभावना नहीं है क्योंकि भारतीय काली मिर्च के भाव अन्य देशों की तुलना में लगभग 400 डालर प्रति टन अधिक चल रहे हैैं। यह ठीक है कि अन्य देशों की तुलना में भारतीय काली मिर्च की क्वालिटी बेहतर है लेकिन आयातक देश इसके लिए 250/300 डालर प्रति टन तक ही अधिक भाव चुका सकते हैं। भाव में अधिक अंतर होने पर वे अन्य देशों की ओर रुख कर लेते हैं।

आयात
भाव में अधिक अंतर होने के कारण अब कुछ निर्यात काली मिर्च का आयात भी करते हैं। यह आयात एडवांस लाईसेंस के तहत किया जाता है और आयातित काली मिर्च को एक निश्चित अधिक के भीतर वैल्यू एडीशन करके निर्यात करना होता है। हालांकि इस स्कीम का उद्देश्य विदेशी मुद्रा कमाना होता है लेकिन कुछ आयातक व व्यापारी कथित रुप से इस स्कीम का दुरुपयोग भी करते हैं।

भाव
पिछले कुछ महीनों तक मंदे रहने के बाद भारतीय बाजारों में काली मिर्च के भाव सुधार हुआ है लेकिन अब कुछ सप्ताहों से भाव बढ़ रहे हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले महीनों में इसके भाव में और सुधार होगा। संभव है कि एडवांस लाईसेंस के तहत वियतनाम आदि से सस्ता आयात होने के कारण काली मिर्च के भाव में कुछ गिरावट आ जाए लेकिन वह केवल कुछ समय के लिए ही होगी।

--राजेश शर्मा