हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव २००८ के अतिथिगण |
डर की सुबह
नोएडा से जब हम अपने कंधे पर हिंद-युग्म का झोला लादे रूममेट नसीम के साथ 11 बजे बस में आईटीओ के लिए बैठे तो मन में कुलबुलाहट शुरू हो गयी थी…कई सारे डर थे...एक तो दिल्ली की सर्दी, साल का आखिरी इतवार और वो भी हिंदी का कोई कार्यक्रम....कितने लोग आ पायेंगे....क्या पता मुख्य अतिथि राजेंद्र यादव ही नहीं आयें...नसीम भाई ने हौसला दिया....कहा, कम लोग ही सही, जो लोग भी आयेंगे, वो असल में हिंद-युग्म के प्रति इमानदार होंगे...आनन-फानन में आटीओ चौक पर पराठे खाकर बढ़ चले हिंदी भवन की ओर...
डेढ बजे से पहले नहीं घुसने देंगे....
भारत की सबसे मज़ेदार बात ये है कि जब तक आप “बड़े” आदमी जैसे दिखते नहीं, आपको कोई भाव नहीं देता...जब हम हिंदी भवन के गेट पर पहुंचे तो दरबान ने हमें देखते ही रोक दिया...कहा, प्रोग्राम दो बजे से है, बारह बजे क्यूं आ गये....जब हमने बताया कि प्रोग्राम के आयोजक हम ही हैं तो उसे भरोसा ही नहीं हुआ...हमें शैलेश जी के आने तक का इंतज़ार करना पड़ा....चूंकि, शैलेश भी मुझे “बड़े” आदमी जैसे दिखते नहीं, तो मेरा डर कम नहीं हुआ कि कहीं गार्ड उन्हें भी कोई नसीहत न दे दे... ख़ैर, शैलेश आये रुपम चोपड़ा की कार में और मुझे तसल्ली मिली की कोई तो “बड़ा” आदमी पहुंचा...तब तक हम हिंदी-भवन की बाहरी दीवार पर कूद-फांद कर हिंद-युग्म का बड़ा सा बैनर टांग चुके थे... बैनर पर दूर से हिंद-युग्म-“हिंदी को खून चाहिए” देखकर मन रोमांच से भर गया था....बैनर टांगने में हमें मदद मिली पंकज से जो वहां प्रोजेक्टर लगाने के लिए नियत समय पर पहुंच गया था... बहरहाल, शैलेश जी ने भी थोड़ी मशक्कत के बाद एक बजे ही अंदर जाने की इजाज़त ले ही ली....
गिने-चुने लोग
धर्मवीर संगोष्ठी कक्ष में जब मैं पहुंचा तो हिंद-युग्म के भी गिने-चुने लोग ही साथ थे...कार्यक्रम शुरू होने में अब भी 45 मिनट थे....शैलेश प्रो़जेक्टर पर स्लाइड शो की तैयारी में लग गये और हम एक-एक कर आने वाले आगंतुकों के अभिवादन में जुटे थे...सुमित भारद्वाज, तपन शर्मा अपनी छोटी-सी टोली लेकर आ गये थे और अपने अभियान में लग गये थे...लोगों की संख्या अब बढ़ने लगी थी और हमारी धड़कनें भी...दो बजे तक स्थिति ये थी कि आधे से ज़्यादा कुर्सियां भर गयी थीं..बस, एक भी मुख्य अतिथि नहीं पहुंचे थे...हम रेडियो के कार्यक्रमों की तरह श्रोताओं को हिंद-युग्म के स्वरबद्ध गीत सुनवाए जा रहे थे और आये हुए लोगों को बहला रहे थे...
वो घड़ी आ गई…
शैलेश जी से गहन विमर्श के बाद तय हुआ कि कोई आए न आए, पौने तीन बजे कार्यक्रम शुरू कर देंगे...ठीक पौने तीन बजे जब मैं मंच पर पहली लाइन बोलने के लिए सांसें भर रहा था, कक्ष के दरवाज़े पर बैसाखी के सहारे एक शख्स हमारी ओर बढ़ रहा था..मैंने माइक छोड़ा और उनकी अगवानी में दौड़ पड़ा....वो राजेंद्र यादव थे...लगा, कि सारा आकाश हिंद-युग्म के आंगन में उतर आया हो....
कलम आज उनकी जय बोल
मेरे कार्यक्रम के शुरू करने और श्याम सखा “श्याम” जी को आगे की कमान सौंपने के अंतराल में लगभग सभी कुर्सियां भर चुकी थीं...आये हुए लोगों में कुछ तो जानने वाले थे, ज़्यादातर, पहली बार हिंद-युग्म से मिले थे...उनका आना इस बात पर मुहर लगा रहा था कि अगले चार घंटों तक वो हमें बस सुनने ही आये हैं, कोई रस्म निभाने के लिए नहीं....नाज़िम नक़वी, जो हमसे हाल ही में जुड़े हैं, राजेंद्र यादव के बाद आये....फोन पर हमने उन्हें ढाई बजे याद दिलाया कि प्रोग्राम बोरिंग भी हो तो भी घर का है, सो आना ही पड़ेगा..
हिंद-युग्म ने पिछली बार कोई बड़ा कार्यक्रम पिछली फरवरी में कराया था...प्रगति मैदान के पुस्तक मेले में “पहला सुर का विमोचन”...तब के हिंद-युग्म के कई नामी चेहरे ग़ायब थे...कई नए चेहरे दुगने जोश के साथ जुटे थे...शिवानी सिंह, प्रेमचंद सहजवाला चुपचाप हमारी रवानी देखकर संतुष्ट थे...सुनीता चोटिया शालीन श्रोता की तरह पूरे कार्यक्रम में बैठी रहीं और मन ही मन वाहवाही भी देती रहीं....नीलम मिश्रा व शोभा जी न सिर्फ बाल उद्यान संभाल रही हैं, बल्कि हिंद-युग्म की हालिया ऊर्जा का केंद्र भी हैं....गौरव, अभिषेक, मनुज अलग ही मोरचा संभाले हुए थे.... किस-किस का नाम लें...क्या बताएं कि कार्यक्रम का सबसे सम्मानित पाठक आलोक “साहिल” आखिरी समय तक गुलदस्ते लाने में लगा हुआ था....सबको सलाम करने का जी करता है...सजीव सारथी, सुनीता यादव आदि की कमी बेहद खल रही थी...
वाह ! शैलेश.....
शैलेश एक अलग ही मूड में दिख रहे थे..उनके चेहरे पर आम तौर से ज़्यादा गंभीरता थी...उन्होंने जब ब्लॉगिंग की क्लास लेनी शुरू की तो राजेंद्र यादव भी सीखने के मूड में आ गये....हालांकि, मैं चाहता था कि शैलेश कम देर तक ही बोलें मगर लोगों की रुचि देखकर शैलेश बोलते गये और समय का पता ही नहीं चला...बाद में मैं भी पूरे ध्यान से उन्हें सुनने लगा और काफी कुछ सीखने को मिला...
उम्दा कवि, उम्दा श्रोता, उम्दा संचालक
हिंद-युग्म मंच के अधिकांश कवि किसी भी बड़े काव्य मंच के नियमित चेहरे नहीं है...फिर भी जब वो कविताएं पढ़ते हैं तो कहीं से नहीं लगता कि वो साल में इक्का-दुक्का बार ही पढ़ने के लिए मंच पर उतरे हैं....गौरव, पावस, रूपम, मनुज आदि जब कविताएं पढ़ रहे थे, तो मैं दर्शक दीर्घा को निहार रहा था...सब लोग डूब कर सुन रहे थे...नाज़िम जी आखिर में आए तो सब तालियां बटोर कर ले गये....”अंकल जैसे लोग थे सब....” मेरे दिल में अब तक चुभ रहा है...मज़े की बात ये रही कि पूरे कार्यक्रम के दौरान राजेंद्र यादव भी कवियों को देखते रहे, सुनते रहे और डूबते-उतरते रहे... श्याम जी का संचालन भी सबका दिल जीत रहा था...लग ही नहीं रहा था कि वो कार्यक्रम के ठीक पहले दिल्ली पहुंचे हैं …पूरे कार्यक्रम में मैं उनसे संचालन के गुर सीखता रहा और जहां ज़रूरत पड़ी, उन्हें आवश्यक निर्देश भी देता रहा...
गूंज उठा "सारा आकाश"
ठीक छह बजे राजेंद्र जी के आगे माइक पहुंचा और उन्होंने बोलना शुरू किया...उनको कभी पहले सामने सुनने का मौका नहीं मिला था...उन्होंने जो कुछ कहा, उसमें एक बात साफ थी..उन्होंने तीन घंटे तक हमें बड़े ध्यान से सुना था....उन्होंने बड़ी इमानदारी से अपनी तकनीकी अक्षमता को स्वीकारा और हिंद-युग्म को ये जिम्मा भी दिया कि उन्हें हम तकनीक से जोड़ सकें...फिर बड़ी महीन बातें भी की...हमें ये निर्देश भी दिया कि तकनीक में आधुनिकता के साथ-साथ विचारों में भी आधुनिकता समय की मांग है....कई और बातें भी कहीं जो वहां कई लोगों को नाराज़ करने के लिए काफ़ी था....पर, ये तो उनका परिचित अंदाज़ है....दस गालियां और ढेर सारी तालियां बटोरे बग़ैर तो वो किसी भी कार्यक्रम से रुखसत नहीं होते...
बहरहाल, हिंद-युग्म के लिए राजेंद्र यादव का आना एक सुखद संयोग था....किताबी साहित्य का पुरोधा तकनीक के कर्णधारों की सभा में आया था...एक सेतु बनकर, जो कई और साहित्यकारों को भी ब्लॉगों की तरफ़ मुड़ने को बाध्य करेगा....
इंतिहां और भी हैं...
कार्यक्रम के बीच में कई बार हमें कुर्सियां बढ़ानी पड़ी...कार्यक्रम के आखिर में नाश्ते के पैकेट भी कम पड़ गये...ये सब हमारे लिए खुशी की बात है...इतने शुभचिंतक आये कि वो हमसे किसी भी विशेष सम्मान की अपेक्षा लेकर नहीं आये थे...जाते-जाते वो बस मुझे, शैलेश या हिंद-युग्म के किसी और सदस्य को मिलकर पीठ थपथपाकर ही गये...गज़ल की किताबें बांट रहे दरवेश भारती हों या अपनी पैनी नज़र रखे हिंद-युग्म के कार्टूनिस्ट मनु बेतख्खल्लुस, सबके सब हिंद-युग्म के कार्यक्रम में पहली बार आये थे मगर आये तो हमारे होकर रह गये....
मुझे लगता है कि अगला साल हिंदयुग्म के लिए मील का पत्थर साबित होगा...हम अपने साथ कई लोगों को जोड़ चुके हैं....अब बारी है हिंदी की मशाल सबके हाथों में थमाने का....ताकि, तकनीक और साहित्य की हर विधा से हिंदी जुड़ सके.....सबको महसूस हो कि हिंदी की बात करने वाले लोग झोलाछाप नहीं हैं..उनके पास विज़न है और हिंदी को सर्वप्रिय बनाने का माद्दा भी....
निखिल आनंद गिरि
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छि: यादव जी, आप कैसे साहित्यकार हैं जी!!!
क्या यादव जी के चुरट सुलगाने को भी जायज कहेंगे आप?
बाप दादाओं की तस्वीरों को निकाल कर फेंक दो
साहित्यकार राजेन्द्र यादव का कार्टून
Taking a Call from Hell
हिंद युग्म के सफल वार्षिकोत्सव में अपमानित हुई हिन्दी
मोहल्ला से साभार
घर मां बुलाईके जूता लगाईके अहा!
जय हिन्द, जय हिन्दी, जय हिन्दयुग्म!!!