Wednesday, November 11, 2009

नो हींदी नो हींदी नो हींदी!!

अब आप को अपणे बारे में क्या क्या बताऊं? बस इतणा जाण लेओ कि मैं अपणी जिंदगी में जो कुछ भी आज तक बणा दुर्घटणावस ही बणा। मैं पति नहीं होणा चाता था। पर हो गया ! मैं चोर होणा चाता था पर मास्टर होणा नहीं चाता था। वो तो चुणाव में अपणे नेता जी के पोस्टर लगाए, और बो बदकिस्मती से चुणाव जीत गए और उण्होंणे मास्टरी की नौकरी का पेपर लीक करवा मेरे हाथ सौंप मुझे अपणे कर्ज से मुक्त किया। उस वक्त मैंणे उणसे कहा भी था,‘ नेता जी! मुझे पटवारी बणा दीजिए, मुझे पुलिस में भर्ती करवा दीजिए पर मास्टर तो मत बणाइए। मुझे पढ़णे पढ़ाणे से बहुत डर लगता है।’ तो वे मंद मंद मुस्कराते कहे थे,‘बचुआ आज हर नौकरी में रिस्क है। कुछ खाओ भी णहीं तो भी जणता शक की नजर से देखे है। और मास्टर हो के जो मण कहे करो, कोई कुछ नहीं कहणे वाला। देश निर्माता का फट्टा माथे पे लगाओ और मौज मणाओ।

और उणके आशीर्वाद से प्राइमरी स्कूल का मास्टर हो गिया। सच्ची को मास्टर होणे के आज की डेट में बहुत फादे हैं। गांव वाले सबकुछ फ्री में दे जाते हैं और हम भी मास्टरी का प्रसाद समझ मजे से खा लेते हैं। भगवाण उण नेता जी को स्वर्ग दे जो मेरी पुकार सुण रहा हो। ण वे चुणाव लड़ते, ण मैं उणके पोस्टर लगाणे के लिए दिण रात एक करता और ण वे मेरी भक्ति पर प्रसण्ण हो मास्टरी का पेपर लीक करवा मुझ तक पहुंचाते और ण मैं आज मास्टर शब्द अंग्रेजी तो अंग्रेजी हींदी में भी गलत लिखणे वाला मास्टर हो पाता।

आज तो साहब हम बड़ों बड़ों को पटखणी देते हैं और सीणा चैड़ा कर कते हैं कि है कोई पूरे विभाग में अपणे जैसा मास्टर कि जो स्कूल टाइम में ही स्कूल के पीछे जुए वालों को जमाए, बच्चों को सारा साल कुछ ण पढ़ाए पर परीक्षा में अपणे हर बच्चे को फस्र्ट क्लास में पास कराए!

जबसे स्कूल में सरकार की खिचड़ी चली है अपणे तो साब चांदी है। सारा दिण बच्चों का पूरी लग्ण से खिचड़ी पकाते हैं , पहले खुद खाते हैं फिर बच्चों को खिलाते हैं और जो बच जाती है उसे घर में शाम को बीवी बच्चों को ले जाते हैं। अब अकेला मास्टर स्कूल में क्या क्या करे? खिचड़ी का हिसाब, बच्चों का हिसाब, ऊपर से हिसाब का हिसाब!

बच्चों के मा बाप मुझसे बहुत खुश है। कहते हैं,‘क्या हुआ जो कुछ णहीं पढ़ा रहा है, बच्चे तो कते हैं कि स्कूल मास्टर खिचड़ी उणकी माओं से कई गुणा स्वाद बणा रहा है। बिणा पढ़ाए ही बच्चों को पूरे इलाके में फ्रस्ट ला रहा है। ऐसे में ये पढ़ाए तो इसके पढ़ाए बच्चे पता णहीं क्या तबाही मचाए। हमारे स्कूल में मास्टर जी णहीं, मास्टर जी के वेश में कोई जादूगर हैं आए। भगवाण करे ये मरणे के बाद भी यहां से ण जाए। ’ खिचड़ी बणाणे में पूरे विभाग में कोई मेरा साणी णहीं। मैं बच्चों को सारा दिण डटकर खिचड़ी खिलाता हूं और कभी कभार जो खिचड़ी का माच ण लगा होवे तो उण्हें अंग्रेजी उण्हीकी जबाण में पढ़ाता हूं।

कल सुणार का लड़का रोता हुआ आया तो मैंणे उससे पूछा,‘ रो कयों रा है? कल क्या खिचड़ी में मिर्च ज्यादा थी?’
‘णाहीं।’
‘तो क्या नमक ज्यादा थिया?’
‘णाहीं।’
‘तो क्या खिचड़ा खा खा के कब्ज हो गया?’
‘णाही!’
‘तो क्या आज खिचड़ी वाली थाली किताबों के साथ घर भुल आया?’
‘णाहीं। गुरू जी! मारोगे तो णाहीं?’
‘ णाही! खुल के बोल,अरे पगले जब हमणे कूछ करवाए ही णाहीं तो मारेंगे काहे।’
‘मैं हींदी बोलणा चाहे हूं।’
‘का करेगा हींदी बोलके? अपणी बोली बोल अपणी। हुणा जिणा है जो! हींदी तेरे बाप ने बोली?’
‘णाही!’
‘तेरे मास्टर णे बोली?’
‘णाही।’
‘तो तेरे को हींदी बोलने का दौरा कहां से आ पड़ा रे? पिटेगा हींदी बोलेगा तो, सड़क में भी और संसद में भी। टांग बाजू तुड़वाणे का जादा सौक है तो जा कबड्डी खेल आ, दंगा कर आ पर हींदी मत बोल। हींदी के दिण आजकाल बुरे चले हो रे बिटुआ। मास्टर का कहणा माण और जा अपणी थाली धो कर ला, खिचड़ी तैयार है। ’
‘पर हींदी हमार रास्टर भासा है ण?’
‘कौण कहे है रे देसभक्त?? जा णहीं तो तेरे बाप से कहे दूंगा कि तेरा बेटा आजकाल बिगड़ रहा है। ऐसी उटपटांग भासा सीखेगा कहेगा ण तो कहीं का ण रहेगा। तू बड़ा होकर बड़ा बणणा चाहे हो ण?’
‘हा।’
‘ तो सबकुछ सीख पर हींदी ण सीख। हिंदुस्थान में सबकुछ बोलते हैं पर हींदी हुींदू णहीं कहते। समझा!’
‘ णा। समझा हो माटर समझा।’

अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड, सोलन-173212 हि.प्र.

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4 बैठकबाजों का कहना है :

मनोज कुमार का कहना है कि -

मेरा दुर्लभ देश आज अवनति से आक्रांत हुआ,
अंधकार से मार्ग भूलकर भटक रहा है भ्रांत हुआ।
तो भी भय की बात नहीं है हिन्दी पार लगावेगी,
अपने मधुर स्निग्द्ध नाद से अनन्त भाव जगावेगी।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

हिंदी वाले देश में है हिंदी का बुरा हाल
बच्चा कहे सीखने को मास्टर जाये टाल
क्या होगा इस देश का कौन है खेवनहार
देश की नैया डुबो रहा छीन रहा पतवार.
-शन्नो

Anonymous का कहना है कि -

अशोक गौतम जी विचारोत्तेजक लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई! कार्टून चित्र तो लाजवाब है ! दरअसल हिन्दी भाषा का बायकाट करने वालों को भारतीय संविधान की जानकारी नहीं इसलिए वोटों की खातिर ये कुछ भी कहने और करने को तैयार हैं। आपसी लडाई के चलते ही पिछ्ले साल हम २६/११ ब्लास्ट के शिकार हुए थे। उस वक्त भी भाषावाद के चलते यूपी वालों को पीटा जा रहा था। पूरा प्राशासन तंत्र घर के झगडे में उलझा हुआ था तभी मौका पाकर आतंकियों ने हमला किया था जिसका खामियाजा हम आज भी भर रहे हैं। आज वही माहौल फ़िर से बन रहा है। पूरा सिस्ट्म या तो इन नेताओं की सुरक्षा में लगा है या आन्तरिक झगडों में उलझा है।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अशोक जी,
बुरा ना मारण की बात है पर इस आलेख को हास्य रस की दृष्टी से देखा जाये तो बड़े मजे का है. बड़ा मजा पणने में आया. पर बच्चे को जितना मजा खिचड़ी खाण में आवे है, उतना ही हींदी भी सीखण को करे है. अपनी रास्टर भासा पर गौरव किसे ण होगा? सही कहा ण मैंने?

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