Tuesday, October 26, 2010

करवा चौथ..या कड़वा चौथ?

हाँ, अपने समाज का यह कड़वा सच है कि एक औरत ही पतिव्रता बन कर वफादार रहती है और पति से अगले सात जन्मों के बंधन के बारे में सोचती है. लेकिन पुरुष के मन में क्या है उसका पता उसे नहीं लग पाता है. और वो शायद जानना भी नहीं चाहती. तो ये तो एक तरह से पति पर ज्यादती हुई कि उसकी पत्नी अगले सात जन्मों में भी उसी पर अपने को थोपना चाहती है, है ना ? अपने पति की असली इच्छा जाने बिना ही अगले सात जन्मों में भी उसी से ही चिपकी रहना चाहती है. आँख-कान बंद करके औरत यही करती आयी है अपने समाज में पतिव्रता बनने की कोशिश में. क्या ये दिखावा है..ढोंग है लोगों को अपने पतिव्रतापन को इस तरह से जताकर ? इन बातों पर जब गंभीरता से गौर किया तो मुझे यह सब लिख कर कहने की प्रेरणा मिली.

मानती हूँ, हर तरह के बिचार व व्यवहार के लोग हर जगह होते हैं..और आज की आधुनिकता में तो लोगों के बिचार लगातार बदल रहे हैं. पहली बात तो ये कि अगले जनम का क्या पता कि कौन क्या होता है और मिलता भी है या नहीं. लेकिन जहाँ चाहत व असली प्यार हो वहाँ तो ऐसी बातें करना अच्छी लगती हैं..वरना औरत अपने को एक तरह से वेवकूफ ही बनाती है इन सब बातों को करके व कहके. चलो मानती हूँ कि जो औरतें पूजा-आराधना करती हैं पति की लंबी उम्र व भलाई के लिये वो सही है किसी हद तक. लेकिन अगला जनम उसी के नाम !!!! WHO KNOWS ABOUT THAT ? पता नहीं दुनिया में कितने शादी-शुदा पुरुष शायद सोचते होंगे कि '' VARIETY IS THE SPICE OF LIFE '' तो फिर वो क्यों अपनी उसी वीवी की अगले आने वाले जन्मों में तमन्ना करने लगे, बोलिये ?

सुनी हुई बातें भी हैं लोगों से कि कितने ही शराबी पति इस दिन भी देर से आकर अपनी पत्नियों को भूखा-प्यासा रखते हैं. और अगर किसी बीमार औरत ने इंतजार करते हुये पति के आने की उम्मीद छोड़कर कुछ मुँह में डाल लिया कमजोरी से चक्कर आने पर तो पति बाद में आकर गाली- गलौज करता है और मारता है उसे कि '' तूने मुझे खिलाये बिना कैसे खा लिया..तेरी हिम्मत कैसे और क्यों हुई ऐसा करने की ? ''

मुझे पता है कि मेरे बिचारों के बिरुद्ध तमाम लोग बोलने को तैयार होंगे. फिर भी कहना चाहती हूँ कि अपने समाज की बातों को देख और महसूस करके मन में जो बिचार उठ रहे थे उन पर मैंने गौर किया. पर उन्हें किसी से डिसकस करते हुये डर लग रहा था तो अपनी बात कहने का ये तरीका सोचा मैंने कि शायद औरतों का ध्यान मेरी कही बात की तरफ कुछ आकर्षित हो सके. और इतना भी बता दूँ कि मैं इस '' करवा चौथ '' की प्रथा के विपक्ष में नहीं हूँ. मुझे बगावत करने का दौरा नहीं पड़ा है. किन्तु क्या उन रिश्तों में ये उचित होगा कि वो औरतें जो खुश नहीं हैं अपनी जिंदगी में अपने पतियों के संग..वो आगे के जन्मों में भी उन्हीं को पति के रूप में अवतरित होने के लिये कहें. अपनी समझ के तो बाहर है ये बात. खैर, आखिर में इतना और कहना है कि इस बात पर हर औरत अपने आप गौर करे और समझे तो उचित होगा...मैंने तो सिर्फ अपने बिचार रखने की एक सफल या असफल कोशिश की है. और सोचने पर मजबूर होती हूँ कि ऐसे पतियों का साथ पत्नियाँ क्यों माँगती है अगले जन्मों में..वो भी सात जन्मों तक ? क्यों, आखिर क्यों..जब कि किसी भी जनम का कोई अता-पता तक नहीं किसी को ? और क्या फिर से यही अत्याचार सहने के लिये उन जन्मों का इंतजार ?????

- शन्नो अग्रवाल

चीन के द्वारा भारत की घेराबंदी

वर्ष 2007 में चीन द्वारा वास्‍तविक नियंत्रण रेखा पर अतिक्रमण या उससे मिलती-जुलती लगभग 140 घटनायें हुई, वर्ष 2008 में 250 से भी अधिक तथा वर्ष 2009 के प्रारम्‍भ में लगभग 100 के निकट इसी प्रकार की घटनायें हुई इसके बाद भारत सरकार ने हिमालयी रिपोर्टिंग, भारतीय प्रेस पर प्रतिबन्‍ध लगा दिया। आज देश के समाचार पत्रों एवं इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को सूचनायें मिलना बन्‍द हैं। क्‍या उक्‍त प्रतिबन्‍ध से घुसपैठ समाप्‍त हो गयी या कोई कमी आयी। इस प्रतिबन्‍ध से चीन के ही हित सुरक्षित हुये तथा उनके मनमाफिक हुआ। जरा हम चीन के भारत के प्रति माँगों की सूची पर गौर करें - वह चाहता है अरुणाचल प्रदेश उसे सौंप दिया जाये तथा दलाईलामा को चीन वापस भेज दिया जाये। वह लद्‌दाख में जबरन कब्‍जा किये गये भू-भाग को अपने पास रखना चाहता है तथा वह चाहता है। भारत अमेरिका से कोई सम्‍बन्‍ध न रखे इसके साथ-साथ चीन 1990 के पूरे दशक अपनी सरकारी पत्रिका ‘‘पेइचिंग रिव्‍यू'' में जम्‍मू कश्‍मीर को हमेशा भारत के नक्‍शे के बाहर दर्शाता रहा तथा पाक अधिकृत कश्‍मीर में सड़क तथा रेलवे लाइन बिछाता रहा। बात यही समाप्‍त नहीं होती कुछ दिनों पहले एक बेवसाइट में चीन के एक थिंक टैंक ने उन्‍हें सलाह दी थी कि भारत को तीस टुकड़ों में बाँट देना चाहिये। उसके अनुसार भारत कभी एक राष्‍ट्र रहा ही नहीं। इसके अतिरिक्‍त चीन भारत पर लगातार अनावश्‍यक दबाव बनाये रखना चाहता है। वह सुरक्षा परिषद में भारत की स्‍थाई सदस्‍यता पाने की मुहिम का विरोध करता है तो विश्‍व बैंक और अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष में अरुणाचल प्रदेश की विकास परियोजनाओं के लिये कर्ज लिये जाने में मुश्‍किलें खड़ी करता है। इसके साथ-साथ तिब्‍बत में सैन्‍य अड्‌डा बनाने सहित अनेक गतिविधियाँ उसके दूषित मंसूबे स्‍पष्‍ट दर्शाती हैं।

आज से लगभग 100 वर्षों पूर्व किसी को भी भास तक नहीं रहा होगा, वैश्‍विक मंच पर भारत तथा चीन इतनी बड़ी शक्‍ति बन कर उभरेंगे। उस समय ब्रिटिश साम्राज्‍य ढलान पर था तथा जापान, जर्मनी तथा अमेरिका अपनी ताकत बढ़ाने के लिए जोर आजमाइश कर रहे थे। नये-नये ऐतिहासिक परिवर्तन जोरों पर थे। आज उन सबको पीछे छोड़ चीन अत्‍यधिक धनवान तथा ताकतवर राष्‍ट्र बनकर उभरा है। कुछ विद्वानों का मत है चीन अनुमानित समय से पहले अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। भारत भी अपनी पूरी ऊर्जा के साथ लोकतंत्र को सीढ़ी बना अपनी चहुमुखी प्रगति की ओर अग्रसर है। चीन अपने उत्‍पादन तथा भारत सेवा के क्षेत्र में विश्‍व पटल पर अपनी उपस्‍थिति अग्रणी भूमिका के रूप में बनाये हुए है। यह बात सत्‍य है कि चीन भारत के मुकाबले अपनी सैन्‍य क्षमता में लगभग दोगुना धन खर्च कर रहा है। अतः उसकी ताकत भी भारत के मुकाबले दोगुनी अधिक है। उसकी परमाणु क्षमता भी भारत से कहीं अधिक है। इन सबके साथ यह भी सत्‍य है कि चीन की सीमा अगल-अलग 14 देशों से घिरी है अतः वह अपनी पूरी ताकत का उपयोग भारत के खिलाफ आजमाने में कई बार सोचेगा। परन्‍तु चीन की उक्‍त बढ़ती हुई सैन्‍य एवं मारक शक्‍ति भारत के लिए चिन्‍तनीय अवश्‍य है।

एक तरफ चीन अपनी जी.डी.पी. से कई गुना रफ्‍तार से रक्षा बजट में खर्च कर रहा है वहीं वह अपने रेशम मार्ग जहाँ से सदियों पहले रेशम जाया करता था, पुनः चालू करना चाहता है। वह अफगानिस्‍तान, ईरान, ईराक और सउदी अरब तक अपनी छमता बढ़ाना चाहता है। निश्‍चित ही वह वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अपने हित में करना चाहता है। जिसके उक्‍त कार्य में निश्‍चित ही पाकिस्‍तान की भूमिका महत्‍वपूर्ण रहने वाली है। देखना यह है कि उसकी यह सोच कहाँ तक कारगर रहती है।
चीन महाशक्‍ति बनने की जुगत में है, जिससे भारत को चिन्‍तित होना लाजमी है, उसकी ताकत निश्‍चित ही भारत को हानि पहुँचाएगी। लगातार चीनी सेना नई शक्‍तियों से लैस हो रही है। पाकिस्‍तान तथा बांग्‍लादेश में समुद्र के अन्‍दर अपने अड्‌डे बनाकर वह अपनी भारत के प्रति दूषित मानसिकता दर्शा रहा हैं। वर्ष 2008 में चीन पाकिस्‍तान में दो परमाणु रिएक्‍टरों की स्‍थापना को सहमत हो गया था। जिसका क्रियान्‍वयन होने को है।

हमारे नीति निर्धारकों को उक्‍त विषय की पूरी जानकारी भी है। परन्‍तु फिर भी वे एकतरफा प्‍यार की पैंगे बढ़ाते हुए सोच रहे हैं। कि एक दिन चीन उनपर मोहित हो जाएगा, तथा अपनी भारत विरोधी गतिविधियाँ समाप्‍त कर देगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का वैश्‍विक मंच पर कहना अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार की दुनिया में चीन हमारा सबसे महत्‍वपूर्ण सहोदर है तथा भारतीय विदेशमंत्री का कहना तिब्‍बत चीन का अंग है। उचित प्रतीत नहीं होता। उक्‍त दोनों बयान भारत को विभिन्‍न आयामों पर हानि पहुँचाने वाले प्रतीत होते हैं। चाणक्‍य तथा विदुर के देश के राजनेता शायद यह भूल गये कि राष्‍ट्र की कोई भी नीति भावनाओं से नहीं चलती। अलग-अलग विषयों पर भिन्‍न-भिन्‍न योजनाएँ लागू होती हैं। परन्‍तु भावनाओं का स्‍थान किसी भी योजना का भाग नहीं है। आज भारत को चीन से चौकन्‍ना रहने की आवश्‍यकता है। उसे भी कूटनीति द्वारा अपनी आगामी योजना बनानी चाहिए। उसे चाहिए चीन की अराजकता से आजिज देश उसके विषय में क्‍या सोच रहे हैं। उसके नीतिगत विकल्‍प क्‍या हैं ? भारत को अमेरिका के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया के महत्‍वपूर्ण देशों के साथ खुली बात-चीत करनी चाहिए। चीन का स्‍पष्‍ट मानना है कि भारत में कई प्रकार के आंतरिक विवाद चल रहे हैं चाहे वह अंतर्कलह हो, आतंकवाद हो या साम्‍प्रदायिक खींच-तान। भारत क्षेत्रीय विषयों पर भी बुरी तरह बटा हुआ है। चीन उक्‍त नस्‍लीय विभाजन का लाभ देश को बाटने के लिए कर सकता है। वहाँ के दूषित योजनाकारों के अनुसार प्रांतीय स्‍तर पर अलग-अलग तरीके से क्षेत्रीय वैमनस्‍यता एवं विवादों को भड़का भारत का विभाजन आसानी से किया जा सकता है।
निश्‍चित रूप से आगे आने वाले वर्ष भारत के लिए काफी मुश्‍किलों भरे हो सकते हैं। वर्ष 2011 के बाद पश्‍चिमी सेना काबुल से निकल जाएगी। इसके बाद बीजिंग-इस्‍लामाबाद-काबुल का गठबंधन भारत के लिए मुश्‍किलें खड़ी करेगा। चीन नेपाल के माओवादियों को लगातार खुली मदद कर रहा है। वहाँ की सरकार बनवाने के प्रयासों में उसकी दखलंदाजी जग जाहिर है। पाकिस्‍तान भारत में नकली नोट, मादक पदार्थ, हथियार आदि भेज भारत को अंदर से नुक्‍सान पहुँचाने की पूरी कोशिश कर रहा है। उसकी आतंकी गतिविधियाँ लगातार जारी हैं। भारत चीन के साथ व्‍यापार कर चीन को ही अधिक लाभ पहुँचा रहा है। वहाँ के सामानों ने भारतीय निर्माण उद्योग को बुरी तरह कुचल डाला है। यदि आगे आनेवाले समय में भारत सरकार चीनी उत्‍पादनों पर पर्याप्‍त सेल्‍स ड्‌यूटी या इसी प्रकार की अन्‍य व्‍यवस्‍था नहीं करती है तो भारत का निर्माण उद्योग पूरी तरह टूट कर समाप्‍त हो जाएगा। इसे भी चीन का भारत को हानि पहुँचाने का भाग माना जा सकता है।

भारत को चाहिए 4,054 किलोमीटर सरहदीय सीमा की ऐसी चाक-चौबन्‍द व्‍यवस्‍था करें कि परिंदा भी पर न मार सके। इसके साथ-साथ देश के राज्‍यीय राजनैतिक शक्‍तियों को अपने-अपने प्रान्‍तों को व्‍यवस्‍थित करने की अति आवश्‍यकता है। जिससे वह किसी भी सूरत में भारत की आंतरिक कमजोरी का लाभ न ले सके। देश की सरकार को जल, थल तथा वायु सैन्‍य व्‍यवस्‍थाओं को और अधिक ताकतवर बनाना चाहिए। जिससे चीन भारत पर सीधे आक्रमण करने के बारे में सौ बार विचार करे। 1954 के हिन्‍दी-चीनी भाई-भाई तथा वर्तमान चिन्‍डिया के लुभावने नारों के मध्‍य चीन ने 1962 के साथ-साथ कई दंश भारत को दिये हैं। भारत को आज सुई की नोक भर उस पर विश्‍वास नहीं करना चाहिए। चीन जैसे छली राष्‍ट्र के साथ विश्‍वास करना निश्‍चित ही आत्‍मघाती होगा। हमें अपनी पूरी ऊर्जा राष्‍ट्र को मजबूत एवं सैन्‍य शक्‍ति बढ़ाने में लगाना चाहिए।

लेखक- राघवेन्‍द्र सिंह

Sunday, October 24, 2010

ओबामा की चिन्‍ता के केन्‍द्र में भारतीय छात्र

अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की नवम्‍बर की बहुप्रतीक्षित भारत यात्रा पर कई देशों में आम भारतीयों की नजर भी लगी हुई है। कई समीक्षक उनकी विदेशनीति तथा कई अन्‍य विषयों पर उनके रूख की समीक्षा कर रहे है। बराक ओबामा की यह यात्रा निसंदेह उत्‍साहपूर्ण वातावरण में हो रही है संसद के संयुक्‍त अधिवेश्‍न सहित वे कई आर्थिक-राजनैतिक कार्यक्रमों में हिस्‍सा लेगें। बराक ओबामा की सोच भारत के बारे में क्‍या है? वे भारत के विश्‍व पटल पर उभरने की संभावना को राजनैतिक-कूटनीतिज्ञ कारणों से नहीं अपितु अन्‍य कारणों से देख रहे है। ओबामा जब से अमेरिका के राष्‍ट्रपति बने है तब से कई बार भारतीय छात्रों एवं उनकी मेधा की चर्चा विभिन्‍न मंचों पर कर चुके है। उनकी चिन्‍ता उभरती अर्थव्‍यवस्‍था के प्रतीक भारत एवं चीन के वे छात्र हैं जो विश्‍व पटल पर छा जाने के लिए जबर्दश्‍त मेहनत कर रहे है। इन छात्रों के परिवारीजन अपने सारे संसाधन झोंक कर उनको उच्‍च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा मुहैया करा रहे है।

शिक्षक से अमेरिका के राष्‍ट्रपति बने बराक ओबामा की इन चिन्‍ताओं की जड़ में उनकी अमेरिका के प्रति गहरा लगाव तथा संवेदनशीलता है यह लगाव और संवेदनशीलता उनके द्वारा लिखी गई किताबों ‘‘ड्रीम्‍स फ्राम माई फादर, दि आडोसिटी आफ होप तथा चेन्‍ज वी कैन विलीव इन'' से समझी जा सकती है। पहली किताब ड्रीम्‍स फ्राम फादर में श्‍वेत-अश्‍वेत संदर्भ के साथ-साथ उनके अपने निजी संघर्ष का गहरा चित्रण है। दूसरी तथा तीसरी किताब अमेरिका के सीनेटर तथा राष्‍ट्रपति पद के प्रत्‍याशी बराक ओबामा की अमेरिकी नेता को तौर पर प्रस्‍तुति है। बराक ओबामा निसंदेह अपने कई समकक्षी राष्‍ट्रपतियों की तुलना में जमीन से उठकर राष्‍ट्रपति के पद पर मेरिट से चुने गये राष्‍ट्रपति है यह उनकी योग्‍यता ही लगती है कि श्‍वेत-अश्‍वेत संघर्ष के प्रतीक बनकर पहले अश्‍वेत अमरीकी राष्‍ट्रपति बनने का गौरव उन्‍हे हासिल हुआ। अमेरिकी की रंगभेद नीति के साथ उन्‍हे अपने देश की समस्‍याओं और भविष्‍य की चुनौतियों का अन्‍दाज है। आज का अमेरिका भी अन्‍यों देशों की तरह कई ऐसी चुनौतियों से जूझ रहा है जिसके परिणाम अमेरिका के भविष्‍य के लिए अच्‍छे होने के संकेत नहीं है।

लेखक-डॉ0 मनोज मिश्र
एशोसिएट प्रोफेसर
भौतिक विज्ञान विभाग,
डी.ए-वी. कालेज,
कानपुर।
संपर्कः ‘सृष्‍टि शिखर'
40 लखनपुर हाउसिंग सो0,
कानपुर - 24
फोन नं0 09415133710, 09839168422
email-dr.manojmishra63@gmail.com
dr.manojmishra63@yahoo.com
अपने राष्‍ट्रपति चुनाव के दौरान बराक ओबामा अपने भाषणों में कहा करते थे कि सबसे विकसित देश में 4 करोड़, 70 लाख लोग बिना स्‍वास्‍थ्‍य बीमा के रह रहे हैं। स्‍वाथ्‍य बीमा के प्रीमियम की वृद्धि दर लोगों की आय वृद्धि की दर से कहीं ज्‍यादा है। एक करोड़ से कुछ अधिक अवैध आव्रजक है। अमेरिका तथा सुदूर प्रान्‍तों में धन तथा कम्‍प्‍यूटर के अभाव में स्‍कूल आधे टाइम से बन्‍द हो जाते है। अमेरिकी सीनेट उच्‍च शिक्षा में बजट में कटौती कर रही है। जिससे लाखों छात्रों के उच्‍च शिक्षा में प्रवेश के द्वारा बन्‍द हो जाने का खतरा है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा शिक्षा का स्‍तर अपेक्षित तौर पर बढ़ नहीं पा रहा है तथा छात्रों का मन इन विषयों में न लगकर टीवी तथा कम्‍प्‍यूटर गेम्‍स में लग रहा है। देश पर उधारी लगातर बढ़ती जा रही है तथा वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा में भारत तथा चीन जैसे कई देश बड़ी चुनौती प्रस्‍तुत करने की ओर है। ऊर्जा पर बढ़ती निर्भरता उनकी चिन्‍ता का प्रमुख कारण है। आउट सोर्सिंग के कारण नौकरियॉ विदेश स्‍थानान्‍तरित हो रही है तथा गूगल जैसी कम्‍पनियों में आधे कर्मचारी एशियाई है जिनमें से भारत तथा चीन के ज्‍यादा संख्‍या में है।
अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुने जाने के बाद बराक ओबामा ने पूर्व घोषित कार्यक्रमोंं में से दो प्रमुख मुद्‌दों पर ध्‍यान केन्‍द्रित किया। इन दो कार्यक्रमों में से एक सबकी पहुॅच में स्‍वास्‍थ्‍य बीमा तथा अमेरिकी शिक्षा व्‍यवस्‍था को उच्‍च स्‍तरीय तथा प्रतिस्‍पर्धी बनाना। अपने स्‍वास्‍थ्‍य एजेण्‍डा हेतु स्‍वास्‍थ्‍य विधेयक प्रस्‍तुत किया तथा कड़े संघर्ष के बाद जीत दर्ज की। स्‍वास्‍थ्‍य विधेयक के बाद बराक ओबामा की चिन्‍ता प्राथमिक स्‍तर से लेकर उच्‍च शिक्षा तक की सुधार का प्रयास। बराक ओबामा को लगता है कि भारत और चीन के छात्र अपने को वैश्‍विक स्‍तर पर ज्‍यादा प्रतिस्‍पर्धी सिद्ध कर रहे है तथा उनके अभिभावक उनका मार्गदर्शन तथा सहयोग कर रहे है। इसके विपरीत उनके अपने देश में ओबामा के अनुसार छात्रों की रूचि पढ़ाई से घट रही है। भारत तथा चीन अपने-अपने शिक्षा के स्‍तर में निरन्‍तर सुधार कर रहे है तथा अपना बजट बढ़ा रहे है। भारत में दिन प्रतिदिन उच्‍च तथा तकनीकी शिक्षा का विस्‍तार हो रहा है। उनकी गुणवत्‍ता में सुधार के गम्‍भीर प्रयास हो रहे है। भारत सूचना युग में बढ़त बना चुका है तथा अब शैक्षिक इनफ्रास्‍ट्रकचर सुधार कर ज्ञान के युग का दोहन कर रहा है। बराक ओबामा के अनुसार अमेरिकी डाक्‍टरों, इन्‍जीनियरों तथा अन्‍यों पेशेवरों का मुकाबला उनके अपने ही देश के प्रतिस्‍पर्धियों से न होकर भारत तथा चीन के पेशेवरों से होगा। भारत तथा चीन अपने-अपने पेशेवरों को इस वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा के लिए तैयार कर रहें है, जबकि अमेरिका ऐसे समय में अपने उच्‍च शिक्षा तथा शोध के बजट में 20 प्रतिशत की कटौती कर रहा है उनके अनुसार यह कटौती अमेरिका के भविष्‍य पर पड़ने की संभावना है जिसके कारण लगभग 20 लाख अमेरिकी छात्र उच्‍च शिक्षा से वंचित रह जायेगे।

राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की चिन्‍ता के सन्‍दर्भ में भारत को भी सबक लेने की जरूरत है। जो चिन्‍तायें ओबामा के मस्‍तिष्‍क में है वे चिन्‍तायें भारत के लिए संभावना के नये-नये द्वारा खोलती है। आउट सोर्सिंग पर प्रतिबन्‍ध राजनैतिक कारणों से तो ठीक हो सकता है परन्‍तु अमेरिकी कम्‍पनियों के लिए आर्थिक कारणों से उचित नही है। आउट सोर्सिंग के क्षेत्र में भारत कई तरीके के बिजनेश माडल प्रस्‍तुत कर रहा है तथा अमेरिकी कम्‍पनियों को उनके हित लाभ के लिए आकर्षित कर रहा है। विज्ञान, टैक्‍नोलॉजी तथा शिक्षा के क्षेत्र में बजट बढ़ाकर विश्‍व स्‍तरीय छात्र तैयार कर भविष्‍य का मस्‍तिष्‍क युद्ध भारत जीत सकता है। ज्ञान के इस युग में ब्राडबैण्‍ड की उपलब्‍धता तथा विस्‍तार कर देश के सुदूर भाग को शैक्षिक क्रान्‍ति का भागीदार बनाया जा सकता है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्‍च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा को वैश्‍विक स्‍तर का बनाना हमारा प्रथम लक्ष्‍य होना चाहिए। राज्‍य सरकारें तथा केन्‍द्र सरकार को अपने-अपने पार्टी हितों को छोड़कर राष्‍ट्रीय हित में गम्‍भीर प्रयास करने चाहिए। भारत में शिक्षा का प्रसार हो तो रहा है परन्‍तु उनकी गुणवत्‍ता अपेक्षित स्‍तर की नही है। प्रान्‍तीय सरकारों में दूरदर्शी नेतृत्‍व का अभाव है तथा शिक्षा इनकी अन्‍तिम प्राथमिकता है। अतः हमें विश्‍व पटल पर एक सुनहरा अवसर प्राप्‍त हो रहा है जिसे यदि सरकार चाहें तो हम इसकों सफलता में बदलकर वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा का रूख अपनी ओर कर सकते है। बराक ओबामा ने कहा कि पिछली एक सदी में कोई भी युद्ध अमेरिकी धरती पर नहीं लड़ा गया है। परन्‍तु अब साइबर क्रान्‍ति के कारण हर देश और कम्‍पनी का रूख अमेरिका की ओर है। और उनकी यही चिन्‍ता है। अब युद्ध का हथियार ज्ञान होगा जिसके लिए कड़ी प्रतिस्‍पर्धा का वैश्‍विक मन्‍च तैयार हो रहा है और भारत एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर सकता है। हमारी आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए सभी जरूरी संसाधन पर्याप्‍त मात्रा में देश में उलब्‍ध है हमारे यहॉ बहुत सी नीतियॉ और संस्‍थायें है। चुनौती है तो बस शिक्षकों, विद्यार्थियों और तकनीक तथा विज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर एक दिशा में सोचने की।