Sunday, October 24, 2010

ओबामा की चिन्‍ता के केन्‍द्र में भारतीय छात्र

अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की नवम्‍बर की बहुप्रतीक्षित भारत यात्रा पर कई देशों में आम भारतीयों की नजर भी लगी हुई है। कई समीक्षक उनकी विदेशनीति तथा कई अन्‍य विषयों पर उनके रूख की समीक्षा कर रहे है। बराक ओबामा की यह यात्रा निसंदेह उत्‍साहपूर्ण वातावरण में हो रही है संसद के संयुक्‍त अधिवेश्‍न सहित वे कई आर्थिक-राजनैतिक कार्यक्रमों में हिस्‍सा लेगें। बराक ओबामा की सोच भारत के बारे में क्‍या है? वे भारत के विश्‍व पटल पर उभरने की संभावना को राजनैतिक-कूटनीतिज्ञ कारणों से नहीं अपितु अन्‍य कारणों से देख रहे है। ओबामा जब से अमेरिका के राष्‍ट्रपति बने है तब से कई बार भारतीय छात्रों एवं उनकी मेधा की चर्चा विभिन्‍न मंचों पर कर चुके है। उनकी चिन्‍ता उभरती अर्थव्‍यवस्‍था के प्रतीक भारत एवं चीन के वे छात्र हैं जो विश्‍व पटल पर छा जाने के लिए जबर्दश्‍त मेहनत कर रहे है। इन छात्रों के परिवारीजन अपने सारे संसाधन झोंक कर उनको उच्‍च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा मुहैया करा रहे है।

शिक्षक से अमेरिका के राष्‍ट्रपति बने बराक ओबामा की इन चिन्‍ताओं की जड़ में उनकी अमेरिका के प्रति गहरा लगाव तथा संवेदनशीलता है यह लगाव और संवेदनशीलता उनके द्वारा लिखी गई किताबों ‘‘ड्रीम्‍स फ्राम माई फादर, दि आडोसिटी आफ होप तथा चेन्‍ज वी कैन विलीव इन'' से समझी जा सकती है। पहली किताब ड्रीम्‍स फ्राम फादर में श्‍वेत-अश्‍वेत संदर्भ के साथ-साथ उनके अपने निजी संघर्ष का गहरा चित्रण है। दूसरी तथा तीसरी किताब अमेरिका के सीनेटर तथा राष्‍ट्रपति पद के प्रत्‍याशी बराक ओबामा की अमेरिकी नेता को तौर पर प्रस्‍तुति है। बराक ओबामा निसंदेह अपने कई समकक्षी राष्‍ट्रपतियों की तुलना में जमीन से उठकर राष्‍ट्रपति के पद पर मेरिट से चुने गये राष्‍ट्रपति है यह उनकी योग्‍यता ही लगती है कि श्‍वेत-अश्‍वेत संघर्ष के प्रतीक बनकर पहले अश्‍वेत अमरीकी राष्‍ट्रपति बनने का गौरव उन्‍हे हासिल हुआ। अमेरिकी की रंगभेद नीति के साथ उन्‍हे अपने देश की समस्‍याओं और भविष्‍य की चुनौतियों का अन्‍दाज है। आज का अमेरिका भी अन्‍यों देशों की तरह कई ऐसी चुनौतियों से जूझ रहा है जिसके परिणाम अमेरिका के भविष्‍य के लिए अच्‍छे होने के संकेत नहीं है।

लेखक-डॉ0 मनोज मिश्र
एशोसिएट प्रोफेसर
भौतिक विज्ञान विभाग,
डी.ए-वी. कालेज,
कानपुर।
संपर्कः ‘सृष्‍टि शिखर'
40 लखनपुर हाउसिंग सो0,
कानपुर - 24
फोन नं0 09415133710, 09839168422
email-dr.manojmishra63@gmail.com
dr.manojmishra63@yahoo.com
अपने राष्‍ट्रपति चुनाव के दौरान बराक ओबामा अपने भाषणों में कहा करते थे कि सबसे विकसित देश में 4 करोड़, 70 लाख लोग बिना स्‍वास्‍थ्‍य बीमा के रह रहे हैं। स्‍वाथ्‍य बीमा के प्रीमियम की वृद्धि दर लोगों की आय वृद्धि की दर से कहीं ज्‍यादा है। एक करोड़ से कुछ अधिक अवैध आव्रजक है। अमेरिका तथा सुदूर प्रान्‍तों में धन तथा कम्‍प्‍यूटर के अभाव में स्‍कूल आधे टाइम से बन्‍द हो जाते है। अमेरिकी सीनेट उच्‍च शिक्षा में बजट में कटौती कर रही है। जिससे लाखों छात्रों के उच्‍च शिक्षा में प्रवेश के द्वारा बन्‍द हो जाने का खतरा है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा शिक्षा का स्‍तर अपेक्षित तौर पर बढ़ नहीं पा रहा है तथा छात्रों का मन इन विषयों में न लगकर टीवी तथा कम्‍प्‍यूटर गेम्‍स में लग रहा है। देश पर उधारी लगातर बढ़ती जा रही है तथा वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा में भारत तथा चीन जैसे कई देश बड़ी चुनौती प्रस्‍तुत करने की ओर है। ऊर्जा पर बढ़ती निर्भरता उनकी चिन्‍ता का प्रमुख कारण है। आउट सोर्सिंग के कारण नौकरियॉ विदेश स्‍थानान्‍तरित हो रही है तथा गूगल जैसी कम्‍पनियों में आधे कर्मचारी एशियाई है जिनमें से भारत तथा चीन के ज्‍यादा संख्‍या में है।
अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुने जाने के बाद बराक ओबामा ने पूर्व घोषित कार्यक्रमोंं में से दो प्रमुख मुद्‌दों पर ध्‍यान केन्‍द्रित किया। इन दो कार्यक्रमों में से एक सबकी पहुॅच में स्‍वास्‍थ्‍य बीमा तथा अमेरिकी शिक्षा व्‍यवस्‍था को उच्‍च स्‍तरीय तथा प्रतिस्‍पर्धी बनाना। अपने स्‍वास्‍थ्‍य एजेण्‍डा हेतु स्‍वास्‍थ्‍य विधेयक प्रस्‍तुत किया तथा कड़े संघर्ष के बाद जीत दर्ज की। स्‍वास्‍थ्‍य विधेयक के बाद बराक ओबामा की चिन्‍ता प्राथमिक स्‍तर से लेकर उच्‍च शिक्षा तक की सुधार का प्रयास। बराक ओबामा को लगता है कि भारत और चीन के छात्र अपने को वैश्‍विक स्‍तर पर ज्‍यादा प्रतिस्‍पर्धी सिद्ध कर रहे है तथा उनके अभिभावक उनका मार्गदर्शन तथा सहयोग कर रहे है। इसके विपरीत उनके अपने देश में ओबामा के अनुसार छात्रों की रूचि पढ़ाई से घट रही है। भारत तथा चीन अपने-अपने शिक्षा के स्‍तर में निरन्‍तर सुधार कर रहे है तथा अपना बजट बढ़ा रहे है। भारत में दिन प्रतिदिन उच्‍च तथा तकनीकी शिक्षा का विस्‍तार हो रहा है। उनकी गुणवत्‍ता में सुधार के गम्‍भीर प्रयास हो रहे है। भारत सूचना युग में बढ़त बना चुका है तथा अब शैक्षिक इनफ्रास्‍ट्रकचर सुधार कर ज्ञान के युग का दोहन कर रहा है। बराक ओबामा के अनुसार अमेरिकी डाक्‍टरों, इन्‍जीनियरों तथा अन्‍यों पेशेवरों का मुकाबला उनके अपने ही देश के प्रतिस्‍पर्धियों से न होकर भारत तथा चीन के पेशेवरों से होगा। भारत तथा चीन अपने-अपने पेशेवरों को इस वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा के लिए तैयार कर रहें है, जबकि अमेरिका ऐसे समय में अपने उच्‍च शिक्षा तथा शोध के बजट में 20 प्रतिशत की कटौती कर रहा है उनके अनुसार यह कटौती अमेरिका के भविष्‍य पर पड़ने की संभावना है जिसके कारण लगभग 20 लाख अमेरिकी छात्र उच्‍च शिक्षा से वंचित रह जायेगे।

राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की चिन्‍ता के सन्‍दर्भ में भारत को भी सबक लेने की जरूरत है। जो चिन्‍तायें ओबामा के मस्‍तिष्‍क में है वे चिन्‍तायें भारत के लिए संभावना के नये-नये द्वारा खोलती है। आउट सोर्सिंग पर प्रतिबन्‍ध राजनैतिक कारणों से तो ठीक हो सकता है परन्‍तु अमेरिकी कम्‍पनियों के लिए आर्थिक कारणों से उचित नही है। आउट सोर्सिंग के क्षेत्र में भारत कई तरीके के बिजनेश माडल प्रस्‍तुत कर रहा है तथा अमेरिकी कम्‍पनियों को उनके हित लाभ के लिए आकर्षित कर रहा है। विज्ञान, टैक्‍नोलॉजी तथा शिक्षा के क्षेत्र में बजट बढ़ाकर विश्‍व स्‍तरीय छात्र तैयार कर भविष्‍य का मस्‍तिष्‍क युद्ध भारत जीत सकता है। ज्ञान के इस युग में ब्राडबैण्‍ड की उपलब्‍धता तथा विस्‍तार कर देश के सुदूर भाग को शैक्षिक क्रान्‍ति का भागीदार बनाया जा सकता है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्‍च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा को वैश्‍विक स्‍तर का बनाना हमारा प्रथम लक्ष्‍य होना चाहिए। राज्‍य सरकारें तथा केन्‍द्र सरकार को अपने-अपने पार्टी हितों को छोड़कर राष्‍ट्रीय हित में गम्‍भीर प्रयास करने चाहिए। भारत में शिक्षा का प्रसार हो तो रहा है परन्‍तु उनकी गुणवत्‍ता अपेक्षित स्‍तर की नही है। प्रान्‍तीय सरकारों में दूरदर्शी नेतृत्‍व का अभाव है तथा शिक्षा इनकी अन्‍तिम प्राथमिकता है। अतः हमें विश्‍व पटल पर एक सुनहरा अवसर प्राप्‍त हो रहा है जिसे यदि सरकार चाहें तो हम इसकों सफलता में बदलकर वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा का रूख अपनी ओर कर सकते है। बराक ओबामा ने कहा कि पिछली एक सदी में कोई भी युद्ध अमेरिकी धरती पर नहीं लड़ा गया है। परन्‍तु अब साइबर क्रान्‍ति के कारण हर देश और कम्‍पनी का रूख अमेरिका की ओर है। और उनकी यही चिन्‍ता है। अब युद्ध का हथियार ज्ञान होगा जिसके लिए कड़ी प्रतिस्‍पर्धा का वैश्‍विक मन्‍च तैयार हो रहा है और भारत एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर सकता है। हमारी आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए सभी जरूरी संसाधन पर्याप्‍त मात्रा में देश में उलब्‍ध है हमारे यहॉ बहुत सी नीतियॉ और संस्‍थायें है। चुनौती है तो बस शिक्षकों, विद्यार्थियों और तकनीक तथा विज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर एक दिशा में सोचने की।

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