Tuesday, October 26, 2010

चीन के द्वारा भारत की घेराबंदी

वर्ष 2007 में चीन द्वारा वास्‍तविक नियंत्रण रेखा पर अतिक्रमण या उससे मिलती-जुलती लगभग 140 घटनायें हुई, वर्ष 2008 में 250 से भी अधिक तथा वर्ष 2009 के प्रारम्‍भ में लगभग 100 के निकट इसी प्रकार की घटनायें हुई इसके बाद भारत सरकार ने हिमालयी रिपोर्टिंग, भारतीय प्रेस पर प्रतिबन्‍ध लगा दिया। आज देश के समाचार पत्रों एवं इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को सूचनायें मिलना बन्‍द हैं। क्‍या उक्‍त प्रतिबन्‍ध से घुसपैठ समाप्‍त हो गयी या कोई कमी आयी। इस प्रतिबन्‍ध से चीन के ही हित सुरक्षित हुये तथा उनके मनमाफिक हुआ। जरा हम चीन के भारत के प्रति माँगों की सूची पर गौर करें - वह चाहता है अरुणाचल प्रदेश उसे सौंप दिया जाये तथा दलाईलामा को चीन वापस भेज दिया जाये। वह लद्‌दाख में जबरन कब्‍जा किये गये भू-भाग को अपने पास रखना चाहता है तथा वह चाहता है। भारत अमेरिका से कोई सम्‍बन्‍ध न रखे इसके साथ-साथ चीन 1990 के पूरे दशक अपनी सरकारी पत्रिका ‘‘पेइचिंग रिव्‍यू'' में जम्‍मू कश्‍मीर को हमेशा भारत के नक्‍शे के बाहर दर्शाता रहा तथा पाक अधिकृत कश्‍मीर में सड़क तथा रेलवे लाइन बिछाता रहा। बात यही समाप्‍त नहीं होती कुछ दिनों पहले एक बेवसाइट में चीन के एक थिंक टैंक ने उन्‍हें सलाह दी थी कि भारत को तीस टुकड़ों में बाँट देना चाहिये। उसके अनुसार भारत कभी एक राष्‍ट्र रहा ही नहीं। इसके अतिरिक्‍त चीन भारत पर लगातार अनावश्‍यक दबाव बनाये रखना चाहता है। वह सुरक्षा परिषद में भारत की स्‍थाई सदस्‍यता पाने की मुहिम का विरोध करता है तो विश्‍व बैंक और अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष में अरुणाचल प्रदेश की विकास परियोजनाओं के लिये कर्ज लिये जाने में मुश्‍किलें खड़ी करता है। इसके साथ-साथ तिब्‍बत में सैन्‍य अड्‌डा बनाने सहित अनेक गतिविधियाँ उसके दूषित मंसूबे स्‍पष्‍ट दर्शाती हैं।

आज से लगभग 100 वर्षों पूर्व किसी को भी भास तक नहीं रहा होगा, वैश्‍विक मंच पर भारत तथा चीन इतनी बड़ी शक्‍ति बन कर उभरेंगे। उस समय ब्रिटिश साम्राज्‍य ढलान पर था तथा जापान, जर्मनी तथा अमेरिका अपनी ताकत बढ़ाने के लिए जोर आजमाइश कर रहे थे। नये-नये ऐतिहासिक परिवर्तन जोरों पर थे। आज उन सबको पीछे छोड़ चीन अत्‍यधिक धनवान तथा ताकतवर राष्‍ट्र बनकर उभरा है। कुछ विद्वानों का मत है चीन अनुमानित समय से पहले अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। भारत भी अपनी पूरी ऊर्जा के साथ लोकतंत्र को सीढ़ी बना अपनी चहुमुखी प्रगति की ओर अग्रसर है। चीन अपने उत्‍पादन तथा भारत सेवा के क्षेत्र में विश्‍व पटल पर अपनी उपस्‍थिति अग्रणी भूमिका के रूप में बनाये हुए है। यह बात सत्‍य है कि चीन भारत के मुकाबले अपनी सैन्‍य क्षमता में लगभग दोगुना धन खर्च कर रहा है। अतः उसकी ताकत भी भारत के मुकाबले दोगुनी अधिक है। उसकी परमाणु क्षमता भी भारत से कहीं अधिक है। इन सबके साथ यह भी सत्‍य है कि चीन की सीमा अगल-अलग 14 देशों से घिरी है अतः वह अपनी पूरी ताकत का उपयोग भारत के खिलाफ आजमाने में कई बार सोचेगा। परन्‍तु चीन की उक्‍त बढ़ती हुई सैन्‍य एवं मारक शक्‍ति भारत के लिए चिन्‍तनीय अवश्‍य है।

एक तरफ चीन अपनी जी.डी.पी. से कई गुना रफ्‍तार से रक्षा बजट में खर्च कर रहा है वहीं वह अपने रेशम मार्ग जहाँ से सदियों पहले रेशम जाया करता था, पुनः चालू करना चाहता है। वह अफगानिस्‍तान, ईरान, ईराक और सउदी अरब तक अपनी छमता बढ़ाना चाहता है। निश्‍चित ही वह वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अपने हित में करना चाहता है। जिसके उक्‍त कार्य में निश्‍चित ही पाकिस्‍तान की भूमिका महत्‍वपूर्ण रहने वाली है। देखना यह है कि उसकी यह सोच कहाँ तक कारगर रहती है।
चीन महाशक्‍ति बनने की जुगत में है, जिससे भारत को चिन्‍तित होना लाजमी है, उसकी ताकत निश्‍चित ही भारत को हानि पहुँचाएगी। लगातार चीनी सेना नई शक्‍तियों से लैस हो रही है। पाकिस्‍तान तथा बांग्‍लादेश में समुद्र के अन्‍दर अपने अड्‌डे बनाकर वह अपनी भारत के प्रति दूषित मानसिकता दर्शा रहा हैं। वर्ष 2008 में चीन पाकिस्‍तान में दो परमाणु रिएक्‍टरों की स्‍थापना को सहमत हो गया था। जिसका क्रियान्‍वयन होने को है।

हमारे नीति निर्धारकों को उक्‍त विषय की पूरी जानकारी भी है। परन्‍तु फिर भी वे एकतरफा प्‍यार की पैंगे बढ़ाते हुए सोच रहे हैं। कि एक दिन चीन उनपर मोहित हो जाएगा, तथा अपनी भारत विरोधी गतिविधियाँ समाप्‍त कर देगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का वैश्‍विक मंच पर कहना अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार की दुनिया में चीन हमारा सबसे महत्‍वपूर्ण सहोदर है तथा भारतीय विदेशमंत्री का कहना तिब्‍बत चीन का अंग है। उचित प्रतीत नहीं होता। उक्‍त दोनों बयान भारत को विभिन्‍न आयामों पर हानि पहुँचाने वाले प्रतीत होते हैं। चाणक्‍य तथा विदुर के देश के राजनेता शायद यह भूल गये कि राष्‍ट्र की कोई भी नीति भावनाओं से नहीं चलती। अलग-अलग विषयों पर भिन्‍न-भिन्‍न योजनाएँ लागू होती हैं। परन्‍तु भावनाओं का स्‍थान किसी भी योजना का भाग नहीं है। आज भारत को चीन से चौकन्‍ना रहने की आवश्‍यकता है। उसे भी कूटनीति द्वारा अपनी आगामी योजना बनानी चाहिए। उसे चाहिए चीन की अराजकता से आजिज देश उसके विषय में क्‍या सोच रहे हैं। उसके नीतिगत विकल्‍प क्‍या हैं ? भारत को अमेरिका के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया के महत्‍वपूर्ण देशों के साथ खुली बात-चीत करनी चाहिए। चीन का स्‍पष्‍ट मानना है कि भारत में कई प्रकार के आंतरिक विवाद चल रहे हैं चाहे वह अंतर्कलह हो, आतंकवाद हो या साम्‍प्रदायिक खींच-तान। भारत क्षेत्रीय विषयों पर भी बुरी तरह बटा हुआ है। चीन उक्‍त नस्‍लीय विभाजन का लाभ देश को बाटने के लिए कर सकता है। वहाँ के दूषित योजनाकारों के अनुसार प्रांतीय स्‍तर पर अलग-अलग तरीके से क्षेत्रीय वैमनस्‍यता एवं विवादों को भड़का भारत का विभाजन आसानी से किया जा सकता है।
निश्‍चित रूप से आगे आने वाले वर्ष भारत के लिए काफी मुश्‍किलों भरे हो सकते हैं। वर्ष 2011 के बाद पश्‍चिमी सेना काबुल से निकल जाएगी। इसके बाद बीजिंग-इस्‍लामाबाद-काबुल का गठबंधन भारत के लिए मुश्‍किलें खड़ी करेगा। चीन नेपाल के माओवादियों को लगातार खुली मदद कर रहा है। वहाँ की सरकार बनवाने के प्रयासों में उसकी दखलंदाजी जग जाहिर है। पाकिस्‍तान भारत में नकली नोट, मादक पदार्थ, हथियार आदि भेज भारत को अंदर से नुक्‍सान पहुँचाने की पूरी कोशिश कर रहा है। उसकी आतंकी गतिविधियाँ लगातार जारी हैं। भारत चीन के साथ व्‍यापार कर चीन को ही अधिक लाभ पहुँचा रहा है। वहाँ के सामानों ने भारतीय निर्माण उद्योग को बुरी तरह कुचल डाला है। यदि आगे आनेवाले समय में भारत सरकार चीनी उत्‍पादनों पर पर्याप्‍त सेल्‍स ड्‌यूटी या इसी प्रकार की अन्‍य व्‍यवस्‍था नहीं करती है तो भारत का निर्माण उद्योग पूरी तरह टूट कर समाप्‍त हो जाएगा। इसे भी चीन का भारत को हानि पहुँचाने का भाग माना जा सकता है।

भारत को चाहिए 4,054 किलोमीटर सरहदीय सीमा की ऐसी चाक-चौबन्‍द व्‍यवस्‍था करें कि परिंदा भी पर न मार सके। इसके साथ-साथ देश के राज्‍यीय राजनैतिक शक्‍तियों को अपने-अपने प्रान्‍तों को व्‍यवस्‍थित करने की अति आवश्‍यकता है। जिससे वह किसी भी सूरत में भारत की आंतरिक कमजोरी का लाभ न ले सके। देश की सरकार को जल, थल तथा वायु सैन्‍य व्‍यवस्‍थाओं को और अधिक ताकतवर बनाना चाहिए। जिससे चीन भारत पर सीधे आक्रमण करने के बारे में सौ बार विचार करे। 1954 के हिन्‍दी-चीनी भाई-भाई तथा वर्तमान चिन्‍डिया के लुभावने नारों के मध्‍य चीन ने 1962 के साथ-साथ कई दंश भारत को दिये हैं। भारत को आज सुई की नोक भर उस पर विश्‍वास नहीं करना चाहिए। चीन जैसे छली राष्‍ट्र के साथ विश्‍वास करना निश्‍चित ही आत्‍मघाती होगा। हमें अपनी पूरी ऊर्जा राष्‍ट्र को मजबूत एवं सैन्‍य शक्‍ति बढ़ाने में लगाना चाहिए।

लेखक- राघवेन्‍द्र सिंह

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