हाँ, अपने समाज का यह कड़वा सच है कि एक औरत ही पतिव्रता बन कर वफादार रहती है और पति से अगले सात जन्मों के बंधन के बारे में सोचती है. लेकिन पुरुष के मन में क्या है उसका पता उसे नहीं लग पाता है. और वो शायद जानना भी नहीं चाहती. तो ये तो एक तरह से पति पर ज्यादती हुई कि उसकी पत्नी अगले सात जन्मों में भी उसी पर अपने को थोपना चाहती है, है ना ? अपने पति की असली इच्छा जाने बिना ही अगले सात जन्मों में भी उसी से ही चिपकी रहना चाहती है. आँख-कान बंद करके औरत यही करती आयी है अपने समाज में पतिव्रता बनने की कोशिश में. क्या ये दिखावा है..ढोंग है लोगों को अपने पतिव्रतापन को इस तरह से जताकर ? इन बातों पर जब गंभीरता से गौर किया तो मुझे यह सब लिख कर कहने की प्रेरणा मिली.
मानती हूँ, हर तरह के बिचार व व्यवहार के लोग हर जगह होते हैं..और आज की आधुनिकता में तो लोगों के बिचार लगातार बदल रहे हैं. पहली बात तो ये कि अगले जनम का क्या पता कि कौन क्या होता है और मिलता भी है या नहीं. लेकिन जहाँ चाहत व असली प्यार हो वहाँ तो ऐसी बातें करना अच्छी लगती हैं..वरना औरत अपने को एक तरह से वेवकूफ ही बनाती है इन सब बातों को करके व कहके. चलो मानती हूँ कि जो औरतें पूजा-आराधना करती हैं पति की लंबी उम्र व भलाई के लिये वो सही है किसी हद तक. लेकिन अगला जनम उसी के नाम !!!! WHO KNOWS ABOUT THAT ? पता नहीं दुनिया में कितने शादी-शुदा पुरुष शायद सोचते होंगे कि '' VARIETY IS THE SPICE OF LIFE '' तो फिर वो क्यों अपनी उसी वीवी की अगले आने वाले जन्मों में तमन्ना करने लगे, बोलिये ?
सुनी हुई बातें भी हैं लोगों से कि कितने ही शराबी पति इस दिन भी देर से आकर अपनी पत्नियों को भूखा-प्यासा रखते हैं. और अगर किसी बीमार औरत ने इंतजार करते हुये पति के आने की उम्मीद छोड़कर कुछ मुँह में डाल लिया कमजोरी से चक्कर आने पर तो पति बाद में आकर गाली- गलौज करता है और मारता है उसे कि '' तूने मुझे खिलाये बिना कैसे खा लिया..तेरी हिम्मत कैसे और क्यों हुई ऐसा करने की ? ''
मुझे पता है कि मेरे बिचारों के बिरुद्ध तमाम लोग बोलने को तैयार होंगे. फिर भी कहना चाहती हूँ कि अपने समाज की बातों को देख और महसूस करके मन में जो बिचार उठ रहे थे उन पर मैंने गौर किया. पर उन्हें किसी से डिसकस करते हुये डर लग रहा था तो अपनी बात कहने का ये तरीका सोचा मैंने कि शायद औरतों का ध्यान मेरी कही बात की तरफ कुछ आकर्षित हो सके. और इतना भी बता दूँ कि मैं इस '' करवा चौथ '' की प्रथा के विपक्ष में नहीं हूँ. मुझे बगावत करने का दौरा नहीं पड़ा है. किन्तु क्या उन रिश्तों में ये उचित होगा कि वो औरतें जो खुश नहीं हैं अपनी जिंदगी में अपने पतियों के संग..वो आगे के जन्मों में भी उन्हीं को पति के रूप में अवतरित होने के लिये कहें. अपनी समझ के तो बाहर है ये बात. खैर, आखिर में इतना और कहना है कि इस बात पर हर औरत अपने आप गौर करे और समझे तो उचित होगा...मैंने तो सिर्फ अपने बिचार रखने की एक सफल या असफल कोशिश की है. और सोचने पर मजबूर होती हूँ कि ऐसे पतियों का साथ पत्नियाँ क्यों माँगती है अगले जन्मों में..वो भी सात जन्मों तक ? क्यों, आखिर क्यों..जब कि किसी भी जनम का कोई अता-पता तक नहीं किसी को ? और क्या फिर से यही अत्याचार सहने के लिये उन जन्मों का इंतजार ?????
- शन्नो अग्रवाल
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6 बैठकबाजों का कहना है :
डा.रमा द्विवेदी....
बहुत कड़वा सच है ..एक जन्म तो निभा नहीं पाते सात जन्मों की बात करते हैं ....अधिकांशत: पवित्र भावना कम दिखावा अधिक है। मैंने भी इस विषय पर एक पोस्ट अपने ब्लाग में विगत वर्ष डाली थी ..संभव हो तो पढ़ियेगा। पत्नियाँ ही नहीं पति भी त्रस्त हैं:) इस युग में एक जन्म निभ जाए वही बहुत है...व्रत-पूजा से किसी की उम्र कम या ज्यादा नहीं होती यह सब मन का भ्रम है पर खुशियाँ मनाने का बहाना अच्छा है अगर सच में पति पत्नी में इतना प्रेम हो तो????
सार्थक विषय पर लिखने के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.......
रमा जी,
मेरे इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिये आपका बहुत धन्यबाद. सोचा कि आपके ब्लॉग में इस विषय पर डाली पोस्ट पहले पढ़ लूँ ताकि यहाँ उसपर अपने बिचारों की प्रतिक्रिया भी दे सकूँ. किन्तु कहते हुये बड़ा अफ़सोस है कि आपका ब्लॉग ACCESS नहीं कर सकी.
और अपने लेख के बारे में अब यही कहना है कि जो आप सोच रही हैं वही बातें अपने दिमाग में भी थीं जिन्हें सोचकर ये सब लिखा कि ऐसे मौकों पर अधिकतर तो सुन्दर कपड़े पहनकर सबसे तारीफ़ करवाना और फैशन की बातें करना अधिक होती हैं..और दूसरों की आँखों में पतिव्रता बनें इसलिये रटी-रटाई सात जन्म की बातें करना..अपनी जिंदगी की सचाई को अनदेखा कर देना..और करवाचौथ की असली भावना कम..कुछ देर को मीठी बातें और फिर वही सबका ढर्रा..फैशन और दिखावा में जिंदगी की सचाई छुपा ली जाती है...
मेरी तरफ से आपको दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें.
afsos ki aapko बगावत करने का दौरा नहीं पड़ा
vrna appke ek ek shbd se shmat tha
श्याम जी, मेरी शामत क्यों आने लगी :) जो बात सही लगी या है उसे मैंने निर्भीकता से कह दिया तो क्या गलत किया...आप क्यों डरा रहे हैं मुझे ?
डा. रमा द्विवेदी
शन्नो जी,
आपकी प्रतिक्रिया पढ़ी अभी ...यह जानकर अफ़्सोस हुआ कि मेरा ब्लाग नहीं खुल रहा ...ऐसा क्यों? आप को लिंक भेज रही हूँ ..कोशिश करके देखियेगा ज़रूर खुलेगा....धन्यवाद सहित...
धन्यबाद रमा जी...लेकिन लिंक कहाँ है ?
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