Tuesday, July 06, 2010

धोनी संग साक्षी : DOGS & MEDIA NOT ALLOWED !

ज़रा सोचिए, अगर महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट में अपनी जगह नहीं बना पाते और झारखंड के ही मैदानों पर चौके-छक्के लगा रहे होते। फिर, उनकी उम्र 29 साल की होती और वो शादी कर रहे होते। तो एक कैमरामैन लड़केवालों की तरफ से और एक लड़कीवालों की तरफ से भाड़े पर मंगाया जाता। ये तो नहीं होता कि देश के सबसे अच्छे कैमरे और सबसे बुद्धिमान होने का भ्रम पाले मीडिया वाले मुफ्त में धोनी की शादी पर खर्च हो रहे होते। मगर, ऐसा हुआ और हमें ताज्जुब इसलिए नहीं हुआ कि मीडिया की ऐसी दीवानगी पहली बार नहीं थी....सानिया-शोएब की शादी भी मीडिया के लिए कूदने-फांदने का ऐतिहासिक दिन था...ऐसे जैसे भारत और पाकिस्तान दोस्ती के सात फेरे लेने जा रहे हों...इसी बीच दंतेवाड़ा में 76 जवान मारे गए, मगर सानिया-शोएब की खबर टीवी के पर्दों पर ज़्यादा ज़रूरी बनी रही....
खैर, धोनी की शादी पर लौटते हैं.... ज़ी न्यूज़(इसी के एक छोटे-से हिस्से में मैं भी नौकरी करता हूं...) भी बाक़ी चैनलों की तरह शादी के मंडप से कोसों दूर कैमरा टिकाए इंतज़ार में था कि कब क्या ब्रेकिंग न्यूज़ मिल जाए......देहरादून में हमारे रणबांकुरे साथी और नोएडा के न्यूज़रूम में हम....देहरादून से नोएडा सिग्नल पर मिल रहे वीडियो में कोई भी गाड़ी दिखती तो लगता ये साक्षी होगी, ये साक्षी की अम्मा होगी...और न जाने क्या-क्या....इतनी बारीकी से तो मैंने कभी किसी शादी में हिस्सा नहीं लिया....
खैर, हमारी एक रिपोर्टर ने तो उस घोड़ी का 'जायज़ा' ले लिया जिस पर धोनी सवार होने वाले थे....इतना उत्साह था रिपोर्टर में कि दर्शक अपने भोलेपन में ये तक समझ लें कि धोनी की शादी इसी घोड़ी से हो रही है! और तो और, हमारी एक एंकर ने शादी पर विशेष बुलेटिन के लिए खास तौर पर एक लाल रंग का लहंगा पहन लिया था ...ऐसा लग रहा था कि वहां देहरादून में बारात निकलेगी और यहां हम नाच उठेंगे...
सबसे मज़ेदार था पसीने से लथपथ घोड़ीवाले का 'एक्सक्लूज़िव' इंटरव्यू जो हर चैनल पर चल रहा था....घोड़ीवाला ही मीडियावालों के लिए सबसे विश्वस्त सूत्र था कि धोनी ने क्या पहना, भज्जी ने कितना नाचा और खाने में क्या-क्या था वगैरह-वगैरह....बेचारा घोड़ीवाला इतने सारे कैमरे एक साथ अपने मुंह पर देखकर राहत की सांस ज़रूर ले रहा होगा कि उसके सामने उससे भी 'बेचारे' कितने लोग हैं...
एनडीटीवी के रवीश कुमार ने अपने ब्लॉग पर पहले ही लिख दिया है कि उन्हें आदर्शवादी होकर टीवी के गिरते स्तर पर मर्सिया पढ़ने वाला पत्रकार न समझा जाए....नहीं समझेंगे जी, बस कुछ सलाह और दे दें ताकि आने वाले समय में शादियों की कवरेज में पत्रकारों को टीवी पर मंडप बनाने में और आसानी हो जाए.... सलाह नंबर एक... हो सकता है कि मीडिया चैनल कुछ बड़ी हस्तियों के शादी के ऑर्डर अभी से ही बुक कर लें....जैसे, राहुल गांधी, युवराज सिंह, भज्जी और 'प्रिंस' (गड्ढे में गिरने वाला महान बालक)....फिर इन्हीं चैनलों के ज़िम्मे कैटरिंग का सारा ज़िम्मा हो...पत्तलें बांटने से लेकर पत्तले उठाने तक का...शॉट्स की दिक्कत ही नहीं आएगी साहब...बड़े-बड़े एंकर बड़े-बड़े लोगों की पत्तले उठाएं...वाह! देश की सबसे बड़ी शादी....सबसे बड़ी कवरेज.....सबसे बड़ा पंडाल....हम सबसे बड़े युग में जी रहे हैं....वाह!
सलाह नं दो... शादी के सारे छोटे-बड़े काम छोटे-बड़े चैनल्स आपस में बांट लें...मसलन, पंडित जी को लाने-ले जाने का ज़िम्मा किसी एक चैनल को.....जनवासे (जहां बारात ठहरती है) का इंतज़ाम किसी और चैनल को....न्योता (वो लिफाफा या तहफा जो शादी में आने वाले मेहमान लेकर आते हैं) लिखने का काम किसी और चैनल को...हां, मंगल गीत वगैरह गाने का काम किसी एफएम चैनल को भी सौंपा जा सकता है.....
मेरी बड़ी दीदी की शादी हुई थी तो दस-पंद्रह दिन बाद शादी की कैसेट बनकर आई थी...अलग-अलग फिल्मी गानों और पहाड़-समुंदर वाले लोकेशन्स पर उड़-उड़कर दीदी और जीजाजी की तस्वीरें आती थीं और हम रोमांचित होते थे....मैं दसवीं में पढ़ता था तब....अब एमए पास हूं...नौकरी भी करने लगा हूं...मगर, काम वही शादी के वीडियो बनाने का ही रहा...देहरादून से दूर जहां ये शादी हो रही थी, दूर-दूर तक मीडिया के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी....कैमरे पर भूख-प्यास से बेहाल रिपोर्टर ऐसे जंगल में खड़े लग रहे थे कि दंतेवाड़ा से कवरेज कर रहे हों...फिर भी कवरेज किए जा रहे थे...कोई चैनल बता रहा था कि धोनी ने गोल्डन शेरवानी पहनी थी, किसी ने कहा भूरी शेरवानी पहनी थी...सबको रतौंधी हो गई थी...जिसे जो दिखा, अपने-अपने चैनल को बता दिया...देश अलग-अलग शेरवानी में धोनी की शादी देख रहा था...जैसे धोनी धोनी न रहे हों, धोनी शिव का अवतार हो गए हों....देहरादून की पहाड़ियां कैलाश हों और साक्षी साक्षात पार्वती....मीडिया वाले भूत-बेताल बनकर नाच रहे थे और कोई खाने तक को नहीं पूछ रहा था....
खाने से एक और खबर याद आई जो इस दिन हल्के में कहीं-कहीं चल रही थी....हमारे प्रधानमंत्री 3 जुलाई को आईआईटी कानपुर गए थे तो उनके खाने में 26 व्यंजनों में मिलावट पाई गई थी ! ऐसे-ऐसे ज़हरीले केमिकल पाए गए कि मुझे नाम ही समझ नहीं आ रहे थे....मगर, प्रधानमंत्री की किसी को फिक्र नहीं थी.....अजी, इस देश में खाने में मिलावट कोई खबर है क्या....पीएम ने पहली बार खाया तो क्या हो गया...धोनी रोज़-रोज़ थोड़े ही शादी करेगा....मीडिया को नहीं बुलाया, न सही....जाना तो ज़रूरी है...बिन बुलाए पहुंचने का मजा ही कुछ और है...

निखिल आनंद गिरि
(फोटो : बीबीसी से साभार)

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9 बैठकबाजों का कहना है :

Sarita का कहना है कि -

बेबाक.
धो डाला..
धुलाई जारी रहे...
--
इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक ब्लागर कृपया यहां पधारें - http://gharkibaaten.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) का कहना है कि -

बहुत सटीक लिखा है...देश की गंभीर समस्याओं के बजाये आज मीडिया ऐसी ही खबरें परोसता है...अच्छा व्यंग्यात्मक लेख

Aruna Kapoor का कहना है कि -

....न्युज-चेनल वालों को भी 'मसाला' मिल गया!...किसी सामान्य दूल्हा-दुल्हन के पीछे कोई भला क्यों भागेगा?...अब देखिए धोनी की ही बात करें तो उसके सास-ससुर, साले-सालियां, चाचे-मामे भी शादी में संमिलित हुए ही होंगे...लेकिन उनके नामों का कहीं भी उल्ल्रेख नहीं है ..जब कि नाम गिनवाएं गए है..जॉन अब्राहम, हरभजन ,सुरेश रैना जैसे सेलिब्रिटिज के....

अति Random का कहना है कि -

रवीश जी ने तो अपने लेख के आखिर में ये भी कह दिया है कि अगर यह सब बाज़ार के दबाव में हुआ तो यह कहना चाहिए कि दबाव में चैनलों ने अच्छा काम किया जिस पर तालियां बजाई जानी चाहिए...आखिर आप मीडिया इथिक्स का कितना भी ढोंग रच ले उस पर मुद्दा या मुकाबला जैसे स्पेशल प्रोग्राम करवा ले या विभिन्न मीडिया वेबसाइटस पर इस चिंता पर चिंता व्यक्त करवा लें लेकिन मीडिया का शाश्वत सत्य यही है कि बाजार बिन सब सून। और बाजार के दबाव में जो खबर को अच्छे से प्रस्तुत कर पाता है उसकी तरक्की भी सून(जल्दी) हो जाती है. तमाम अखबारों और चैनलों की हालत इस खबर को लेकर एक जैसी ही थी कोई भी आदशॆ का अपवाद नहीं रहा लेकिन भीतर कहीं हर पतरकार मीडिया की इस दुरदशा का मंथन कर रहा होगा जो वाकइय पतरकारिता की सोच रखता हैं

आपने उसी मंथन को बैठक पर मुखर कर दिया
अच्छी और ज्वलंत पोस्ट

Mohd. Nasim का कहना है कि -

Editor jee, coments on media is so good but unfortunately it is happening in India. There are so many news channels but all are running towards TRP. It is a dirty game of media. they are making money (for the news, of the news and by the news).

Thanks again

Please keep it up

manu का कहना है कि -

बेचारे घोड़ी वाले के आगे भी कितने बेचारे हैं..
उस से भी ज्यादा बेचारे...


:)

चांटा लगना तो कोई आपसे सीखे...

या..

मूड हुआ तो हमसे..

:)

rajesh agrawal का कहना है कि -

Nikhil ji,

Aapne bilkul sahi likha hai, media mein celebrity hi bikta hai, chahe wo dhoni hon ya koi Prince (gaddhe mein girne wala bachcha) ya phil Arjun Vajpayee, Everest vijay karane wala youngest boy.
Yadi dhoni celebrity nahin hote to aam aadmi hi hote, aur aam to chusne ke liye hi hota hai. Har koi usko chusta hi hai, chahe wo Sarkar ho, Prashasan ho, ya phir Media.
Aaj News channel (ya phir kahen ke TV ke samane sab kaam band kar aankhen gadhaye baithe Ideots ka) ke durbhagya yahi hai ki TRP ke ghan-chakkar mein Janta ki Mool Samasyaon Se Aaankhen Moond kar sirf Shadiyan hi dikha rahe hain. Kabhi Saniya ki, Kabhi Dhoni ki, Kabhi Rahul Mahajan ki, to Kabhi Aishwarya ki. Aur sochte hain ki wo bahut achcha kam kar rahe hain. Jabki Janta Mahangai se pareshan hai, berojgari se pareshan, Bijli Paani se pareshan hai, Samajik Riti-riwajon se pareshan. Janta ko in shaadiyon mein koi dilchaspi nahin hai, wo to channel badal badal kar koi matlab ki news hi dhoodh rahi hoti hai aur apna samay barbad hota dekh apne sir ke baal nonch rahi hoti hai.
Ab samay hai TRP se hatkar kuch achchi aur janata ke kaam ki khabar ho jayen. Yakeen maniye uski TRP in sabse achchi hogi.

Rajesh Agrawal
A chto mota media personal

raghunath tripathi का कहना है कि -

अच्छा लिखा है...बहुत अच्छा...

Aniruddha Sharma का कहना है कि -

हमारा भारत देश अब छिछोरों का अड्डा बन गया है. हमारे नेता छिछोरे, हमारी फ़िल्में छिछोरी, हमारे अभिनेता छिछोरे और सब छिछोरों का सरताज मीडिया.....पहले बात में गहराई का मतलब कुछ और होता था लेकिन आजकल मीडिया ने बात में गहराई का मतलब कितना नीचे गिरी हुई है वो बताया है.
"प्रिन्स(गड्ढे में गिरने वाला महान बालक)" ये गहरी चोट थी...मज़ा आ गया.
प्रधानमन्त्री के खाने में मिलावट अगर की जा सकती है तो आप सोच लें कि ये देश महानता की किन उचाईयों को छू चुका है. जोर से बोलते रहिये "मेरा भारत महान" ताकि सच्चाई आपके कानों में न पड़ सके.

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