२०११ के लिये जनसंख्या की गिनती शुरु हो चुकी है। दुनिया के सबसे बड़े गण्तंत्र की अब तक की सबसे बड़ी गिनती है। पिछले तीन-चार वर्षों से आरक्षण की माँग जोर उठाती जा रही है। "भोपाल कांड" में फ़ँसी कांग्रेस और उनके अर्जुन सिंह ने आरक्षण का वो अस्त्र चलाया था जो किसी भी दल के लिये भेद पाना कठिन हो गया। उनके इस कदम का विरोध दबे शब्दों में किया गया लेकिन कोई भी दल सामने नहीं आया। वोट के लालच को दूर रख पाना हर दल के बस की बात नहीं है। राजनीति की पहली शर्त कुर्सी का लालच ही है। जाति के आधार पर आरक्षण की शुरुआत जो की गई वो अब हर दल की मजबूरी बन गई है।
भारत में जाति कोई नया विषय नहीं है। सहस्त्राब्दियों पहले भी जाति थी, आज भी जाति है। कहते हैं कि सब कुछ बदलता है पर यह देश ऐसा है जहाँ जाति कभी नहीं जाती। भारत में जाति-गत राजनीति कोई नई नहीं है। मंडल कमीशन की स्थापना १९७९ में की गई। मकसद था जाति की गणना करना ताकि सभी वर्गों को बराबर का "हक़" मिल सके। बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल ऐसी गिनी चुनी पार्टियों में से हैं जो "जाति" का दिया ही खाती हैं।
मंडल ने जो गणना उसके अनुसार हमारे देश में १६ फ़ीसदी अनुसूचित जाति, सात फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति व ५२ फ़ीसदी पिछड़ा वर्ग है। यानि कि कुल ७५ प्रतिशत जनता पिछड़ी मानी गई। हालांकि एक और सर्वे में ओ.बी.सी ३२ फ़ीसदी माने गये। १९८९ में वी.पी सिंह की सरकार ने मंडल पर मोहर लगाई और आरक्षण का मुद्दा उछाला।
मंडल के आकड़ों को ध्यान में रख कर ही सीटों को आरक्षित कोटे में रखा गया। १६, ७.५ व २७ प्रतिशत सीटें क्रमश: एस.सॊ, एस.टी व ओ.बी.सी को दी गईं। अनुसूचित जाति व जनजाति में अलग आरक्षण होता है। पिछड़ों को भी उनका हक मिलता है। पर अगर को "अन्य" हो यानि कि "जनरल" केटेगरी हो तो उसके लिये आरक्षण नहीं होता। इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्चा कोई गरीब नहीं उठा सकता। तो अमीर "अनुसूचित जाति वर्ग" के व्यक्ति को दाखिला मिलने से बेहतर है गरीब "सवर्ण" को मौका मिलना। ये गौर तलब है कि जब प्राइवेट कम्पनी किसी को नौकरी पर रखती है तब उसका धर्म या जाति नहीं देखती।
वर्ष २००६ में आरक्षण का मुद्द फिर गर्म था। इसके विरोध और समर्थन में खूब धरना व प्रदर्शन हुए। कभी कोई जाति ओ.बीसी में आने की बात करती तो कोई एस.सी में शामिल होने को कहती। एक ही जाति किसी प्रदेश में अल्पसंख्या में है तो किसी राज्य में उसको "वोटों" के आधार पर तरजीह दी जाती है। इसी आरक्षण के पेंच में फ़ँसी है इस बार की जनसंख्या भी। इस बार की जनसंख्या मे जाति भी पूछी जा रही है। यानि कि किस जाति के कितने लोग हैं, सब पता चल जायेगा। उसी के आधार पर फिर आरक्षण निर्धारित होगा। आज हर कोई "आरक्षित जाति" में आना चाहता है। पैसे के आधार पर सर्टिफ़िकेट बनाये जाते हैं। मेरे ९० प्रतिशत है और मुझे दाखिला नहीं, किसी के ५० प्रतिशत और वो इंजीनियर बन जाये उससे बेहतर है कि मैं भी नकली सर्टिफ़िकेट बनवा लूँ। अभी ५० प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। सोचिये अगर यह पता चले कि ये संख्या ६० प्र.श. हो गई है तो फ़ार्म भरते हुए आप "अन्यों"को कोटे के लिये लड़ते देखेंगे। और ज्यादा चक्का जाम होंगे और ज्यादा हड़तालें। हर ओर अफ़रा--तफ़री का माहौल होगा। हर जाति "गुर्जर" और "मीणा" होगी। हर तरफ़ मंडल कमीशनों का दौर चलेगा। हर दल अपना "वोट बैंक" बढाने में लगी रहेगी। कुल मिलाकर एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी जो इस देश की प्रगति की दिशा दुर्गति की ओर ले जा सकती है। वैसे भी इस देश का एक हिस्सा ही प्रगति कर रहा है। लेकिन कोई भी समाज सेवक या दल आगे नहीं आयेगा जो इसका विरोध करे।
ऐसे में ज्वलंत सवाल एक और भी है कि इस सर्वे में धर्म के आधार पर गिनती क्यों नहीं हो रही? कितने हिन्दू, मुस्लिम व ईसाई हैं इसकी गिनती नहीं होगी। ऐसा क्यों हो रहा है इसके बारे में जरा सोचियेगा।
अगर कोई यह कहता है कि इससे हममें से किसी का भला होगा तो यह हास्यास्पद ही कहा जायेगा। कांग्रेस सरकार का यह दूसरा ब्रह्मास्त्र है जिससे उसने अपना वोट बैंक और मजबूत करने की ओर कदम बढ़ाया है।
तपन शर्मा
(लेखक हिंदयुग्म के बुनियादी सदस्यों में से एक हैं....हिंदयुग्म के सबसे सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं...फिलहाल शादी करके इंटरनेट से बाहर की दुनिया बसाने में जुटे हैं)
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4 बैठकबाजों का कहना है :
विचारणीय पोस्-- तपन जी का दाँपत्य जीवन खुशियों से भरपूर रहे मेरी शुभकामनायें और आशीर्वाद है।
शादी की बधाई तपन ..........
जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान-कबीर
बस ज्यदा क्या कहें ...
शादी की बधाई तपन ..........
जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान-कबीर
बस ज्यदा क्या कहें ...
सुखमय दांपत्य जीवन के लिए शुभकामनाएं तपन शर्मा!.... इस लेख के बारे में यही राय है कि लोगों में अब जागृति आ चुकी है... कितनी भी कोशिश करें...कॉन्ग्रेस को जातिवाद फायदा पहुंचने वाला नहीं है!
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