डॉ अरुणा कपूर पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं! डॉक्टरी के पेशे से फुरसत निकालकर लिखने का शौक ज़िंदा रखा है...हिंदी के अलावा मराठी और गुजराती में भी लेख, कविताएं और कहानियाँ प्रकाशित हुई है! हिंदयुग्म के सहयोग से जल्द ही एक उपन्यास भी प्रकाशित होने को है। बैठक पर इनका पहला लेख कोई आयुर्वेदिक नुस्खा नहीं बॉलीवुड की नायिकाओं पर है...आपका स्वागत है
एक ज़माना था जब स्त्री प्रधान भूमिकाओं वाली फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाती थी। मीना कुमारी, नर्गिस, नूतन और वैजयन्तीमाला जैसी अभिनेत्रियाँ अपने अभिनय से दर्शकों का मन मोह लेती थी! मीना कुमारी की लगभग सभी फिल्मों की कहानियाँ नायिका प्रधान ही हुआ करती थी। दिल अपना और प्रीत पराई, भाभी की चूड़ियां, शारदा, पाकीज़ा...जैसी फिल्मों को कौन भूल सकता है? पाकीज़ा फिल्म आज भी जिस जगह पर दिखाई जाती है, दर्शक उमड़ पडते हैं! पाकिस्तान में तो इस फिल्म ने अलग ही धूम मचाई थी!
धर्मेन्द्र के साथ की हुई फिल्म 'फूल और पत्थर ' में मीना कुमारी ने ही धर्मेन्द्र को लोकप्रियक नायक का दर्जा दिलवाया था! लेकिन मीना कुमारी किसी एक नायक के साथ कभी भी जोड़ी बना कर आई नहीं थी! हाल यह था कि मीना कुमारी को मध्य में रखकर ही फिल्मों की कहानियां लिखी जाती थी! मीना कुमारी की खासियत थी की वो गंभीर भूमिकाओं की एक्सपर्ट मानी जाती थी! लेकिन 'कोहिनूर' और 'आजाद' फिल्म में मीना कुमारी ने दिखा दिया कि वह एक कलाकार है और हर तरह की भूमिका निभाने में माहिर हैं! हल्की-फुल्की और हास्य मिश्रित भूमिका निभाने वाले राज कपूर के साथ मीना कुमारी ने 'शारदा' फिल्म में अभिनय किया था, दर्शकों के दिल को द्रवित कर गया था। यह फिल्म खूब चली थी ।
यही हाल नर्गिस का भी था ! 'मदर इण्डिया' फिल्म के नाम से कौन परिचित नहीं है? भारत और विदेशों भी 'मदर इण्डिया' ने सफलता के झंडे गाड़े थे। इसी फिल्म ने सुनील दत्त और राज कुमार जैसे नायकों को अपनी पहचान दिलवाई थी.. फिल्म की कहानी नर्गिस के मज़बूत (या नाजुक?) कंधों पर टिकी हुई थी। नर्गिस ने महान निर्माता, अभिनेता, और निर्देशक राज कपूर के साथ जोड़ी बनाई थी। वैसे अन्य नायकों के साथ भी कई फिल्में की थी । राज कपूर जैसे दिग्गज के साथ नायिका प्रधान फिल्मों में अभिनय करने जैसा कठिन काम नर्गिस ने किया। राज कपूर के साथ 'चोरी-चोरी 'जैसी मनोरंजन से भरपूर फिल्म...यह भी नायिका प्रधान थी...और ऐसी फिल्म करना मानो नर्गिस ही के बस की बात थी! अधेड़ उम्र में नर्गिस ने बलराज सहानी जैसे संजीदा कलाकार के साथ फिल्में की... 'घर संसार' ऐसी ही एक फिल्म थी जो नायिका प्रधान थी। नर्गिस ने सस्पेंस फिल्म भी की थी ...जिसका नाम था...आधा दिन आधी रात.. जो प्रदीप कुमार के साथ की हुई नायिका प्रधान फिल्म थी!
नूतन भी नायिका प्रधान फिल्मों की नामचीन हस्ती थी! महानायक अमिताभ बच्चन के साथ की हुई फिल्म 'सौदागर' मुझे याद आ रही है... इस फिल्म में नूतन ही छाई हुई थी! अमिताभ बच्चन तो जैसे सह-नायक की भूमिका में थे... उन्हें इस फिल्म में नायक नहीं बल्कि खलनायक की भूमिका ही करनी पड़ी थी! नूतन की अशोक कुमार और धर्मेन्द्र के साथ की हुई फिल्म 'बंदिनी' भी नायिका प्रधान थी! नूतन की फिल्म 'सुजाता' खूब चली थी...यह भी नायिका प्रधान फिल्म थी...इसमें नायक सुनील दत्त थे!
वैजयंतीमाला अपने समय की बहुत अच्छी डांसर हुआ करती थी...इन्होंने भी साधना, कठपुतली और मधुमती जैसी नायिका प्रधान फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाई है! बाद में शर्मिला टैगोर, शबाना आजमी और स्मिता पाटील ने नायिका प्रधान फिल्मों की परिपाटी को बनाए रखा...इन नायिकाओं ने भी अपनी भूमिकाओं में नायिका के अस्तित्व को बनाए रखा!.. लेकिन अब आज नायिका प्रधान फिल्में कहाँ छिप गई है?
हां! इक्का दुक्का फिल्में सामने आ रही हैं.. काजोल और करिश्मा कपूर ने भरसक कोशिश इस दिशा में की है..लेकिन अब काजोल और करिश्मा की जगह लेने कौन-सी नायिका आगे आई है?.. शायद प्रियंका चोपड़ा का नाम लिया जा सकता है जो...'सात खून माफ़ ' में प्रधान नायिका के किरदार में है... फिल्म की कहानी ही बता सकती है की यह फिल्म नायिका प्रधान है या नहीं! मुझे लग रहा है कि अब दर्शक फिर से इस तरह की फिल्में पसंद करेंगे जिसमें कहानी नायिका के इर्दगिर्द घूमती हो! फिर वह फिल्म चाहे रोमांटिक हो, सस्पेंस हो, हॉरर हो, धार्मिक हो या हास्य-प्रधान हो!.. बदलाव की आवश्यकता तो हमेशा होती ही है।
डॉ अरुणा कपूर
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6 बैठकबाजों का कहना है :
अरुणाजी आपने बहुत खूबसूरत यादें दिलाई लेकिन अफ़सोस ये है कि आपकी ये उम्मीद पूरी नहीं हो सकती. आप नायिका प्रधान कहानी लिख भी लें और १ पल के लिए मान लें कि कोई उस पर फिल्म भी बनाने को तैयार हो जाए पर आप अभिनय किससे करवाएंगी? कटरीना से? आपने जिन हस्तियों का नाम लिया है वे सब खूबसूरत होने के साथ-साथ महान अभिनेत्रियाँ भी थी लेकिन अब अभिनय को तो भूल ही जाइए. कोई अपने पैरों की वजह से हिट है, कोई किसी और वजह से लेकिन अभिनेत्री आज के दौर में कोई नहीं है.
ानि रुध जी ने सही कहा है मुझे नही लगता कि वो दौर फिर कभी आये। धन्यवाद।
अरूणा जी,
मैं आपकी बातों से इत्तेफ़ाक रखता हूँ। सात खून माफ़ से मुझे भी उम्मीद है। चूँकि यह कहानी एक प्रियंका चोपड़ा और सात नायकों के इर्द-गिर्द है तो इस हिसाब से फिल्म नायिका-प्रधान हीं होनी चाहिए। हाँ, पहले के मुकाबले नायिका-प्रधान फिल्में कम हीं बन रही हैं, लेकिन आज भी कुछ नायिकाएँ हैं (अनिरूद्ध जी, अच्छी नायिकाएँ आज भी हैं.. जो अपने कंधे पर फिल्म चला सकती हैं... जैसे कि विद्या बालन, कोंकणा सेन, प्रियंका चोपड़ा, सुष्मिता सेन .. ) जिन्हें लेकर एक-दो नायिका-प्रधान फिल्में बनी/बन रही हैं। कुछ हीं महीने पहले "इश्क़िया" आई थी, जो हर हिसाब से नायिका-प्रधान हीं थी। मधुर भंडाकर के "जेल" को अगर हटा दें तो उनकी बाकी सारी फिल्में "नायिका" को केंद्र में रखकर हीं बनाई गई हैं। इसलिए उम्मीद अभी भी खत्म नहीं हुई। लेकिन यही है कि वह सुनहरा दौर जब नायिका को लेकर ढेर सारी फिल्में बनती थी, वह लौटेगा या नहीं, इसमें शक़ है, क्योंकि ज्यादातर फिल्मों में नायिका बस "शो-पीस" के लिए रखी जाती है।
-विश्व दीपक
मेरा मानना है कि फिल्मों में नायिकाओं का दौर जरुर लौटेगा...जब नायक प्रधान फिल्मों के फ्लॉप होने का दौर चरम सीमा पर पहुंचेगा!...अनिरुद्धजी, निर्मलाजी और विश्वदीपकजी!... आपने सुंदर टिपणियां लिख कर मेरी बहस करने की आदत को बढावा दिया है!... बहुत बहुत धन्यवाद!
अरुणा जी, आपका आलेख बहुत दिलचस्प लगा...मैं आपकी उम्मीद की सराहना करते हुये आपके साथ उम्मीद करती हूँ कि यदि वह दौर दोबारा आता है तो कैसा लगेगा....
धन्यवाद शन्नो जी कि आप भी यही उम्मीद कर रही है!... नायिका प्रधान फिल्मों का दौर लौटने पर पता चलेगा कि नायिकाएं शो-पीस की तरह फिल्मों की सजावट की चीज नहीं है बल्कि फिल्म को हिट बनाने में भी कितनी सक्षम होती है!
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