शेक्सपियर ने कहा था "नाम में क्या रखा है?"। मुझे नहीं पता कि यह किस संदर्भ में कहा गया लेकिन इतना जरूर है कि आज की तारीख में यह कथन उपयुक्त नहीं लगता। हाल ही में "माया प्रदेश" (यूपी) में एक और शहर का नाम बदला गया। अमेठी को जिला बनाया गया और नाम रखा गया श्री छत्रपतिशाहू जी महाराज नगर। यह पहला मौका नहीं है कि किसी शहर का नाम बदला गया हो। बम्बई का मुम्बई, मद्रास बना चेन्नई और कलकत्ता का बन गया कोलकोता। लेकिन वे नाम उस जगह की भाषा व संस्कृति को ध्यान में रखते हुए बदले गये। जबकि ये दलित नेता के नाम पर रखा गया जिनका अमेठी के लिये कोई योगदान नहीं रहा है।
मायावती की "माया" को हर कोई जानता है। जो ठान लेती हैं वो कर देती हैं। आजकल अपने और हाथी के पुतले लगाये जा रहे हैं चाहे सुप्रीम कोर्ट से फ़टकार ही क्यों न लगी हो। वैसे तो वे गाँधी परिवार से पंगा लेती ही रहती हैं। रायबरेली और अमेठी में अड़ंगा पड़ा ही रहता है। इस बार भी अमेठी ही हत्थे चढ़ा। अगर कोई दूसरा शहर होता तो बात कुछ और थी। पर उन्होंने छेड़ा है गाँधी परिवार की "धरोहर" को। कांग्रेस का आग-बबूला होना बनता था।
पर कांग्रेस नहीं जानती कि उसके खुद के दामन पर कितने छींटे हैं। कोई ऐसा शहर नहीं होगा जिसमें नेहरू नगर, इंदिरा नगर या इंदिरा विहार जैसी जगह न हों। अपने खुद के नेताओं के नाम पर हर जगह के नाम रखे हैं कांग्रेस ने। कोई सड़क बने या यूनिवर्सिटी या कोई बिल्डिंग सबसे आगे कांग्रेसी ही नजर आयेंगे। इंद्रप्रस्थ विष्वविद्यालय का नाम गुरू गोबिन्द सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय रखकर शीला सरकार ने सिखों को रिझाने की पूरी कोशिश की। कनॉट प्लेस जो सी.पी के नाम से मशहूर है उसका नाम राजीव चौक रखने में यही कांग्रेस आगे थी। कनॉट सर्कस भी इंदिरा चौक बन गया। आने वाला समय इस देश को इंडिया या भारत या हिन्दुस्तान नहीं कहेगा बल्कि गाँधीस्तान के नाम से जाना जायेगा। कुल मिलाकर कहना यह कि नामों के खेल में कांग्रेस से सब पीछे ही रहेंगे। क्या पता आगे मायावती उन्हें पीछे छोड़ सके फ़िलहाल तो यह मुश्किल लगता है।
लेकिन अगर आप कांग्रेस पर उंगली उठायेंगे तो आप को यह दलील सुनने को मिलेगी कि इन नेताओं ने देश की "सेवा" की है। इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस के बाकी नेता "बेकार" और निठल्ले थे और आज भी हैं। अगर हम यह कहें कि इन "महापुरुषों" ने देश की सेवा की है तो जब सड़कों के नाम "शहाजहाँ रोड", जहाँगीर रोड, लोदी रोड, औरांगअजेब रोड और तुगलक रोड रखा जाता है तो यह दलील कहाँ तक सही है? तुगलकाबाद व लोदी कॉलोनी के बारे में क्या कहा जाये? लोदी ने इस देश को लूटा, औरंगजेब ने देश को लूटा, मुगलों ने देश पर राज किया तो फिर उनके नाम पर सड़कों के नाम? तुगलक के आतंक को हम लोग भूल जाते हैं !!! इन सड़कों व जगहों के नाम लेते हुए दिल में आक्रोश सा भर जाता है।
किसी जाति व सम्प्रदाय को खुश करना हो तो इन्हीं नामों का सहारा लिया जाता। अम्बेडकर स्टेडियम हो या अम्बेडकर नगर या फिर उनके "मेमोरियल" पर बना कोई इंजीनियरिंग अथवा मेडिकल कॉलेज। भगत-तिलक-लाला लाजपत राय-राजगुरु-चंद्रशेखर आज़ाद-राम प्रसाद बिस्मिल-इन्होंने शायद देश के लिये ज्यादा योगदान नहीं दिया या फिर ये नाम किसी अल्पसंख्यक धर्म-सम्प्रदाय से नहीं जुड़े-ये दलित नहीं थे-वगैरह वगैरह और भी कारण हो सकते हैं (शायद इनके नाम में "गाँधी" नहीं था । शायद इसलिये इनके नाम पर सड़क-बिल्डिंग-कॉलेज का नाम रखते हुए दस बार सोचा जाता है। ये नाम किसी दल को वोट नहीं दिला सकते। बस इतनी सी बात है और यही सच्चाई है।
क्या आप जानते हैं कि वाघा बॉर्डर कहाँ है? आप कहेंगे कि अमृतसर में तो मेरा जवाब होगा कि नहीं। वाघा तो पाकिस्तान की सीमा में आता है, हमारे देश में तो अटारी आता है। शायद हमें वाघा नहीं अटारी बॉर्डर कहना चाहिये। यही उपयुक्त है या फिर वाघा-अटारी बॉर्डर। इस पर बहस हो सकती है। राज नेताओं को छोड़िये। लोगों की अंग्रेज़ी में लिखने की स्पेलिंग बदल जाती है। तो कोई अपनी फ़िल्म का नाम एक ही अक्षर से शुरु करता है। लोग अपनी किस्मत बदलने के लिये नाम तक बदल लेते हैं। ’राम’ व ’अल्लाह’ के नाम पर दुनिया टिकी है और आप कहते हैं कि "नाम में क्या रखा है!!!" अरे जनाब नाम का ही सारा खेल है। अब अगर राजनीति भी इस खेल में कूद जाये तो फिर कहना ही क्या!!
तपन शर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
21 बैठकबाजों का कहना है :
यह सब राजनीति के दांव पेंच हैं...इन नामों के चक्कर में आम आदमी तो चकरघिन्नी बन जाता है...
(भगत-तिलक-लाला लाजपत राय-राजगुरु-चंद्रशेखर आज़ाद-राम प्रसाद बिस्मिल-इन्होंने शायद देश के लिये ज्यादा योगदान नहीं दिया या फिर ये नाम किसी अल्पसंख्यक धर्म-सम्प्रदाय से नहीं जुड़े-ये दलित नहीं थे-वगैरह वगैरह और भी कारण हो सकते हैं )
एक कटु सत्य को उजागर कर दिया..
http://ibnlive.in.com/news/oppn-overruled-kadapa-district-named-after-ysr/126214-37-64.html?from=tn
अभी कल ही कांग्रेस ने अपने "महान नेता" वाई.एस रेड्डी के नाम पर कडप्पा जिले का नाम बदल दिया। जय हो!!!
तपन जी, यह् नामों का जंजाल तक्लीफ ही अधिक देता है. जब शिव सेना के प्रयासों से वी.टी स्टेशन का नाम बदल कर छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रख दिया तो मीडिया ने एक चुटकुला कहा कि यह बीसवीं सदी का सब से बड़ा sex change है! बहुत पहले की एक बात याद आ रही है कि कोई Mother India नाम का पाक्षिक पत्र था जो SSP नेता बाबुराव पटेल चलते थे. उन्होंने एक अंक में दिल्ली की सड़कों पर ऐतराज़ उठाया कि औरंगजेब रोड या हुमायूँ रोड वगैरह क्यों हैं (हालांकि यह ज़रूरी नहीं कि मैं भी उसे गलत मानता हूँ). पर प्रधान मंत्री पंडित नेहरु सरकार ने secularism का बहाना बाना कर उस अंक को ज़ब्त कर दिया. बेचारे बाबुराव अगले अंकों से पाठकों को बताते रहे कि उन्हें लाखों का नुक्सान हुआ है सो पाठक कृपया मदद करें. परन्तु इस अंक का राज़ बाद में खुला जब पता चला कि संबंधित अंक में दरअसल इंदिरा गाँधी पर कुछ व्यक्तिगत तिप्पिनियाँ टिप्पीणियां थी सो सड़कों के नाम का बहाना था ... (क्रमशः)
भगत सिंह आदि पूर्णतः विस्मृत हों, ऐसा नहीं है. दिल्ली में पहाडगंज के आसपास एक राजगुरु रोड मैंने देखा है. अगर मुझे सही पता है तो दिल्ली विश्वविद्यालय में भगत सिंह कॉलेज भी है तो आई टी ओ के निकट शहीद पार्क भी है.
केवल कांग्रेस को ही दोष देना ठीक नहीं. दलित राजनीति के अंतर्गत मायावती ने भी अनेक नाम बदले हैं और भाजपा ने भी अपनी ओर से कसर नहीं छोड़ी. भाजपा ने डॉ. हेडगेवार मार्ग बनाया जब कि डॉ. हेडगेवार उस साम्प्रदायिकता के अवतार थे जिस का चरम आज की हिंदू मुस्लिम घृणा है व बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी शर्मनाक घटनाएं हैं. भाजपा ने वंदे मातरम मार्ग बनाया जो कि बुरा नहीं लग्न चाहिए जबकि उस के पीछे भी उनकी घटक हिंदुत्व राजनीति थी जिस के अंतर्गत वे विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देते देते रह गए और संसद में सावरकर की मूर्ति लगा कर ही छोड़ी, उस सावरकर की जिन का नाम गाँधी हत्या से जुड़ा...(क्रमशः)
डॉ. लोहिया का देहांत विलिंगडन हस्पताल में हुआ तो उस का नाम लोहिया हस्पताल रखना अच्छा ही लगा और फिर हस्पतालों के नाम बदलते गए. इरविन हस्पताल बन गया जयप्रकाश नारायण हस्पताल तो लेडी हार्डिंग का बन गया सुचेता कृपलानी हस्पताल. और एक मज़ेदार बात यह हुई कि जनता पार्टी सरकार के दौरान कोई पागलखाना बन रहा था तो डिमांड आई कि इस पागलखाने का नाम राज नारायण हस्पताल रखा जाए. कुल मिला कर नेताओं के नाम से किसी भी नगर या हस्पताल का नाम रखें तो राजनीती उस के भीतर से झाँक ही रही होती है सो नेताओं के नाम पर मेरे ख्याल में कुछ नहीं रखना चाहिए...
दलित राजनीति के अंतर्गत मराठवाडा विश्वविद्यालय का नाम बाबा साहेब आंबेडकर विश्वविद्यालय जब रखा जा रहा था तब हंगामा किया था शिव सेना ने और बाल ठाकरे ने कह दिया था कि उनकी शिव सेना तो अपने 35% वोटों से ही संतुष्ट है. शायद राजनीति जहाँ जाएगी, वहाँ सब कुछ विव्दास्पद हो जाएगा. इसीलिये के आर मलकानी से एक बार जब मैंने पूछा - Politics is a dirty game played by dirty men in dirty manners, your comments? तो मलकानी जी ने कहा था - with dirty results! क्या उन्होंने गलत कहा? जानना चाहूँग.
पगलखाने वाला किस्सा सबसे मज़ेदार रहा...दुनिया के सारे पागलखाने भारतीय नेताओं के नाम पर रख दिए जाएं.....
निखिल जी , सारे पागलखानों के नाम नेताओं पर रखोगे तो पागलखाने कम पड़ जाएंगे क्यों कि नेता तो बहुत हैं! इतने पागल कहाँ से लाओगे और इतने पागलखाने ये निकम्मी सरकारें बनाएंगी कहाँ से!
बहुत जल्द भारत का नाम करण होने वाला है , और नाम रखा जायेगा रोम. मेरे रोम -रोम मैं बसने वाली .........................
ये क्या नाम हुआ तारकेश्वर जी, कुछ जंचा नहीं....बदलना ही है तो कुछ अच्छा रखिए साहब...
भारत का नाम बदलकर बसपा ही रख दें?
प्रेमचंद जी,
क्यों न दिल्ली की संसद को ही पागलखाना घोषित कर दें....काम हल्का हो जाएगा....
आपने ठीक ही कहा है...नाम कई शहरों के और जगहों के बदले गए है... पुना का पूणे, बनारस का वाराणसी, बरोडा का वडोदरा वगैरा, वगैरा!... यहां अमेठी का नाम छ्त्रपति शाहूजी महाराज नगर...लंबा नाम है!..छ्त्रपति शाहूजी महाराज...छ्त्रपति शिवाजी के पिताजी थे!...अमेठी से उनका संबंध क्यों कर जोडा गया, यह समझमें नहीं आ रहा!...खैर!...भारत का नाम मायावती या कोंग्रेस नहीं बदल सकती!
सहजवाला जी, सादर नमस्कार..
पुस्तक मेले के बाद आज मुलाकात हुई.. हिन्दयुग्म की बैठक तो न हो पाई पर "बैठक" पर मिलना हो गया.. :-)
मैं व्यक्तिगत तौर पर अंग्रेजी और मुगल/तुगलकों के नाम को सही नहीं मानता इसलिये यदि लेडी हार्डिंग व वीटी या हुमायूँ रोड आदि का नाम बदला जाये तो सही है। ये नाम गुलामी का परिचय देते हैं।
मेरी नजर में मोहनदास करमचंद गाँधी भी कम controversial नहीं रहे।
जहाँ तक हिन्दू-मुस्लिम घृणा की बात है तो उसका बीज तब बो दिया गया था जब इस देश में तुगलक, लोदी और मुगलों का आक्रमण हुआ था। जब हिन्दू खुद आपस में जात-पात और सम्प्रदायों के फ़ेर में फ़ँसे हुए थे/हैं, तो हिन्दू और मुस्लिम घॄणा तो स्वाभाविक है। जब घर के बर्तन ही आपस में लड़ेंगे तो पड़ोसियों के साथ भी वैसा ही होगा..
नाथूराम भी हिन्दुओं को एकजुट देखना चाहता था और हेडगेवार भी। क्योंकि यदि एकता रहती तो तुगलक और लोदी और अब्दाली जैसे दरिंदे इस देश पर राज नहीं कर पाते।
जहाँ तक भारत रत्न देने की बात है तो सबसे आगे कांग्रेस व कांग्रेसी रहे हैं। आप विजेताओं की लिस्ट देख सकते हैं। यहाँ तक कि बोस का नाम भी नहीं है..कारण कुछ भी रहे हों.. क्या कांग्रेस नेताओं के अलावा इस देश के लिये किसी और नेता ने कुछ भी नहीं किया ? चाहें आजादी से पहले या बाद..
कहने को और कुछ नहीं है।
मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ कि इस देश की राजनीति में जो अच्छा व बुरा हो रहा है या हुआ है उसका बीज केवल कांग्रेस ने बोया है। इस पर बहस कर सक्ते हैं..:-)
हालाँकि मैं "नामों की राजनीति" से हट गया हूँ उसका खेद है पर खुद को रोक नहीं पाया.. :-(
क्षमा..अन्यथा नहीं लीजियेगा ये मेरे विचार हैं। नाम की राजनीति कांग्रेस की शुरु की हुई है..जाति की राजनीति कांग्रेस की देन है...इसमें बसपा या भाजपा कोई कुसूर नहीं वो तो बेचारे कांग्रेसीकरण का शिकार हैं.. बसपा अपने दलित के एजेंडे से कभी हटती नजर आती है तो भाजपा तो अपना "हिन्दू एजेंडा" ही कायम नहीं रख पाई..
इस पर बह्स की जा सकती है..!!!
संसद पर हमला हुआ और एक भी नेता नहीं मरा.. बड़ा दुख हुआ था..!!!
पागलखाना अच्छा नाम है निखिल!!
चलिए, आज से बैठक पर भारत को पागलखाने के नाम से ही जाना जाएगा...बड़ा अपनापन आ रहा है इस नाम में....
भारत को नहीं निखिल.. संसद को... :-)
भारत हमको जान से प्यारा है..
नाम बदलने की होड़ बड़ी भयंकर है। बुरा यह नहीं कि कौन-सी पार्टी नाम बदलने पर लगी है, बुरा यह है कि अकारण हीं नाम बदला जा रहा है।
तपन भाई,
मैं यह नहीं कह रहा कि कांग्रेस कम दोषी है .. लेकिन यह कहना चाहता हूँ कि भाजपा भी कोई दूध में धुली पार्टी नहीं। जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि भाजपा ने कम हीं नहीं बदले हैं तो भाई साब! भाजपा को मौका हीं कितना मिला है। सही से दस साल भी तो हिस्से नहीं आए भाजपा के.. आने तो दीजिए फिर देखिए कि यह अपना कौन-सा रंग दिखाती है। वैसे भी "गडकरी" साहब अपने दिमाग से पैदल होने के मिसाल पेश करते जा रहे हैं।
मुझे अभी एक पाकिस्तानी गाना याद आ रहा है "लगा रह" जिसे अभी "खट्टा-मीठा" में "बुलशिट" के नाम से डाला गया है। गाने में एक जगह प्रश्न यह आता है कि "नेक कौन है" तो गाने का हिरो जवाब देता है - "नेक वही है, जिसे मौका नहीं मिला"। कुछ नेताओं या कुछ पार्टियों को छोड़कर जिस किसी को भी हम नेक मानने पर तुले हैं सब पर यही बात लागू होती है।
इस स्थिति में देश का क्या होगा.. यह प्रश्न विचारणीय है.. चलिए विचार करते हैं.. देश का नया नाम क्या होगा या फिर संसद का नया नाम "पागलखाना" होगा या नहीं, इसपर विचार करने से क्या फायदा.. देश की स्थिति कैसे सुधरेगी, अगर इस पर विचार किया जाए तो शायद कुछ अच्छा हो भी जाए।
-विश्व दीपक
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)