घर में जब भी पत्नी से अनबन होती है,सच कहूं भाई साहब! प्रेमिका की बहुत याद आती है। उस वक्त तो मन करता है कि गृहस्थी के सारे बंधन तोड़ प्रेमिका के किराए के दो कमरों में अपना स्थाई निवास बना लूं। लेकिन ऐन मौके पर यह क्या! कहीं छुपाई डायरी में प्रेमिका का नंबर ढूंढने सीना तान कर उठे तो पाया कि यार, डायरी का वह पन्ना तो सिलवर फिश चट कर गई है जिस पर जो प्रेमिका का फोन नंबर लिखा था। नरक मिले इस सिलवर फिश को भी! जले पर समाज तो नमक छिड़कता ही है पर इस मामले में ये सिलवर फिश भी कम नहीं। लो भैया! इस अनबन में डूबते को प्रेमिका का ही एक मात्र सहारा था, अब गया वह भी। अब रोते रहो बीते दिनों को याद करते हुए गुसलखाने में।
मेरे जो बंधु विवाह को जीवन का अंतिम लक्ष्य मान लेते हैं, उन सबके साथ अक्सर यही होता है। देखिए साहब! मैं तो इस सोच का बंदा हूं कि विवाह के बाद लाइफ में पत्नी की जगह अपनी, प्रेमिका की अपनी। जिस तरह से स्कूटर में दो पहिए चलने के लिए आवश्यक होते हैं, उसी तरह से विवाहित पुरूष को स्मूथ जीने के लिए पत्नी और प्रेमिका दोनों जरूरी हैं। एक पहिये पर स्कूटर आप चला सकते हैं तो चलाते रहिए, अपने बस की बात तो है नहीं भाई साहब!
बहुधा जनाब होता क्या है कि विवाह होते ही मर्द प्रेमिका को भूल जाता है। वह अक्सर इस गलत सोच का शिकार हो जाता है कि प्रेमिका का रोल जीवन में केवल विवाह से पहले का ही होता है। पर यह सोच बिलकुल गलत है। मेरा तो मानना है कि प्रेमिका की जरूरत विवाह के बाद बहुधा पहले से ज्यादा पड़ती है। अगर ऐसा न होता तो मेरा पड़ोसी सौ बार जूते खाने के बाद तो सुधरा होता।
बंधुओ!
वैवाहिक जीवन में इतनी महत्वपूर्ण पत्नी नहीं होती जितनी प्रेमिका होती है। समाज में न आदर्श जरूरी हैं न आदर्शवादी मर्द!धर्म मर्द को जंक फूड खाने से रोकता है तो पत्नी जंक धर्म के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। चाहे जंक फूड हो चाहे जंक धर्म, दोनों का आज के जीवन में बड़ा महत्व है। सनातनी चाहे इसका कितना ही विरोध करते फिरें पर मौका हाथ लगते ही वे भी उंगलियां चाट घर आते मुंह में तुलसी के पत्ते डाले कहीं भी देखे जा सकते हैं। रोज-रोज दाल-रोटी पेट खराब करते हैं तो एक पत्नी के साथ रहते मर्द दूसरी सांझ बूढ़ा हो जाता है। जो सनातनी संस्कृति के उपासक हैं उनके जूतों के निशान भी देख लीजिए,कोठों की सीढ़ियों पर इतिहास की तरह पक्के जमे हैं। अब वे इतिहास को नकारते फिरें, तो नकारते फिरें।
इसलिए-
आप विवाह के बाद कुछ संभाल कर रखें या न,प्रेमिका को अवश्य संभाल कर रखिएगा। विवाह के तुरंत बाद प्रेमिका के घर जाएं, उसके आगे अपनी विवशता का झूठा रोना रोएं,कहें,`न टाली जाने वाली परिस्थितियों के कारण मुझे इसके साथ विवाह करने के लिए विवश होना पड़ा। मैंने सामाजिक परंपरा निर्वाह मात्र के लिए विवाह तो इससे किया है,पर स्वर्गिक प्रेम तो बस तुम्ही से करता हूं।´ बस हो गया काम! कारण, आज भी समाज में ऐसी प्रेमिकाएं बहुत हैं जो दिमाग से काम कम ही लेती हैं।
पर-
गृहस्थी बिना तनाव के चले , अत: कुशल मर्द की समझदारी इसी में है कि प्रेमिका की पत्नी को बास भी न लगे। प्रेमिका को पत्नी से मिलवाना ही पड़े तो प्रेमिका को अपनी धर्म बहन बता दीजिए। वैसे भी आजकल मां-बाप, पत्नी आदि से प्रेमिका को मिलवाने में यह सम्बंध महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। धर्म के भाई-बहन चार-चार बच्चों के मां-बाप होते मैंने समाज में हजारों देखे हैं। रही बात धर्म की, जब धर्म का ही कोई धर्म नहीं तो हम आपका क्यों हो... और वह भी गृहस्थी में! गृहस्थी में और युद्ध में सब जायज होता है। सबके काम चलते रहें, इसमें कौन सी बुरी बात है....
लेकिन-
वैवाहिक जीवन में प्रेमिका की महत्ता को स्वीकारते हुए उससे कभी भी ऐसी बेईमानी न करे, कि जिसे वह नोट कर जाए। पत्नी को भले ही डोज़ दीजिए तो दीजिए। वह आपने ब्याही ही इसीलिए है। प्रेमिका को अगर लगा कि आप उससे धोखा दे रहे हैं तो वह समझदार भी हो सकती है। और अगर प्रेमिका ने घर बदल लिया तो आप न रहे घर के न घाट के! धोबी का कुत्ता मैं नहीं कहूंगा , कारण मैं खुद भी उसी बिरादरी से बिलांग करता हूं।
हमेशा याद रखें-
पत्नी का स्थान घर में होता है तो प्रेमिका का दिल में। पर परंपरा निर्वाह के लिए अधिक समय पत्नी को ही दें।
प्रेमिका को भले ही आप समाज के सामने धर्म बहन बना कर पेश करें, पर अब समाज इस रिश्ते के नए अर्थ को समझने लगा है। फिर भी, जब प्रेमिका को घर लाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि पत्नी घर में न हो। हो सके तो प्रेमिका पर अपना विश्वास बनाए रखने के लिए बीच-बीच में उसके साथ विशेष प्रोग्राम भी बनाएं।
पत्नी को जितना चाहें डांटे। पर प्रेमिका को भूले से भी न डांटे। प्रेमिका आप की पत्नी नहीं कि सबकुछ भाग्य मान सह ले। उसने आप के साथ सात फेरे थोड़े ही लिए हैं। याद रखें, विवाहेतर प्रेम सम्बंधों की एक मात्र आधार-शिला प्रेमिका ही होती है, पत्नी नहीं। अगर वह आधार- शिला खिसकी तो समझो पूरा का पूरा वैवाहिक जीवन ही खिसका।
आवश्यक निर्देश-
वैवाहिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए पत्नी से मंदिर जाने के बहाने प्रेमिका को किसी अच्छे से रेस्तरा में लंच करवाने ले जाइए। उसे अच्छे-अच्छे पकवान खिलाइए, भले पत्नी घर में आटा-दाल पड़ोसियों से उधार ले आपका डिनर तैयार कर रही हो।
गांठबांध लें-
प्रेमिका के हितों की रक्षा आपके वैवाहिक जीवन का सर्वप्रथम कर्त्तव्य है। अत: भूले से भी पत्नी से सच्चा प्रेम न करें, पर सच्चे प्रेम का नाटक पूरी संजीदगी से करें। सबकुछ भूल जांए तो भूल जाएं,पर एक बात आठों पहर स्मरण रखें-हाथ से निकली प्रेमिका और शरीर से निकले प्राण पुन: लौट कर कम ही आते हैं।
अंत में
पत्नी को सोने के लिए फटी चादर दें तो प्रेमिका को अपनी पलकें बिछाएं। इससे जीवन में प्रेम फ्री प्रेम घुलता रहेगा।
गृहस्थी ने भले ही आपको लूंगी पर ला दिया हो,पर जब प्रेमिका से मिलने जाएं तो सज-धज कर जाएं ताकि प्रेमिका को लगे कि आपका गृहस्थी ने दीवाला नहीं निकाला है। सज-धज किराए पर लेने पर भी संकोच न करें। इससे प्रेमिका के मन में आपकी जेब के प्रति विश्वास बना रहेगा।
बेहतर हो -
सदा प्रेमिका को प्रेम के नीर में डुबो कर रखें। पत्नी मुरझाती हो तो मुरझाती रहे। उसने मुरझाने के लिए ही पत्नी होना स्वीकारा है। पत्नी की अपने समाज में यही नियति है मित्रो!
प्रेमिका को अगर लगे कि आपके प्रेम में झुर्रियां पड़ने लगी हैं तो तुरंत प्रेम के स्वास्थ्य लाभ के लिए किसी हिल स्टेशन पर सारे कम छोड़ हो लीजिए। पत्नी घर में बीमार हो तो होती रहे। प्रेमिका है तो वैवाहिक जीवन का आनंद है भाई साहब!
जरा अपने से पूछिए-
हम विवाह क्यों करते हैं? प्रेमिका के प्रेम को लांछन से बचाने के लिए। ऐसे में प्रेमिका को हर स्तर पर बनाए रखें ,भले ही जमाने से जूतें पड़ें। जूते टूटेंगे किसके? नुकसान होगा किसका ? जमाने का ही न! विवाहेतर सम्बंधों को जीने वाले सदा स्वर्ग के अधिकारी होते रहे हैं,मेरे बीसियों स्वर्गीय मित्र इस बात के पुख्ता सबूत हैं। मैं तो आपको अलर्ट भर कर सकता हूं, सो कर दिया। शेष, आपकी मर्जी भाई साहब!!
अशोक गौतम
द्वारा- संतोष गौतम, निर्माण शाखा,
डॉ. वाय. एस. परमार विश्वविद्यालय, नौणी,सोलन-173230 हि.प्र.
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9 बैठकबाजों का कहना है :
bat men dm hai
pr practical km hai
sitaram radhe sham premgaliwale is dr se anam ki aap pol n khol den
sahi kahaa aapne.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जैनेन्द्र जैन जी की याद दिला दी आपने :-)
इसे पढ़कर 'रंग बरसे भीगे चुनरिया' गाना याद आ गया .
इस तरह के आलेख संग्रहनीय हैं ....... बहुत अच्छा लिखा है आपने ...
उसने मुरझाने के लिए ही पत्नी होना स्वीकारा है। पत्नी की अपने समाज में यही नियति है
बहुत बडिया कटू सत्य अगर ये सम्बन्ध पुराण पत्नियों के लिये भी लिख दें तो मेहरबानी होगी अच्छा व्यंग है आभार्
लाख रुपये की बात मुफ्त में कह दी आपने |
इसमें इतना और जोड़ना चाहूँगा कि जब आप इस तरह के आलेख लिखे तो पूरी तरह
निश्चित करें कि पत्नी और प्रेमिका में से कोई भी उसे ना पढ़ पाए :)
अच्छा रिसर्च है..मेरी सलाह है पेटेंट करा लिजिए...नहीं तो कोई चुरा लेगा ..ऐसे बहुत से लोग हैं जिनको इससे मदद मिलेगी...मज़ा आ गया..
क्या खूब वर्गीकरण किया है आपने. क्या करें क्या न करे बस एक यही हेडिंग रह गया जनाब. पर बहुत ही बढ़िया लगा.
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