Thursday, August 26, 2010

एक बीमारी, जो दोस्तों से भी प्यारी है...

कमाल की चीज़ है ये टेंशन..इसके जलवे हर जगह देखने में नजर आते हैं और इतनी पॉपुलर होती जा रही है ये..हाँ जी, ऐसा ही है..लेकिन गलतफहमी ना हो आपको तो इसलिये लाजिमी है बताना कि यह किसी चिड़िया का नाम नहीं है और ना ही कोई ऐक्ट्रेस, माडल या ब्यूटी प्रोडक्ट है..बल्कि एक खास तरह का सरदर्द है..या सोशल बीमारी..इसी तरह ही इसकी व्याख्या की जा सकती है..आजकल लोगों को जरा-जरा सी बात पर टेंशन हो जाती है...कोई जरा सी बात पूछो तो बिदक जाते हैं..टेंशन हो जाती है..तो सोचा कि आज टेंशन के बारे कुछ मेंशन किया जाये...लोग कहते तो रहते हैं कि '' यार कोई टेंशन नहीं देने का या लेने का '' तो सवाल उठता है कि लोग फिर क्यों टेंशन देते या लेते है...ये टेंशन एक लाइलाज बीमारी हो रही है..अब कुछ लोग नेट पर काम करते हुये नेट पर ही खाने का ऑर्डर देकर पेट भरते हैं..बीबी को टेंशन नहीं देने का...या फिर बीबी को घर पर रोज खाना बनाने की सोचकर टेंशन हो जाती है ..दोस्त अपने दोस्त का हाल पूछते हैं तो कहेंगे '' कैसे हो पाल..तुम्हें कोई टेंशन तो नहीं होगी एक बात के बारे में सलाह लेनी है ''


एक वह दिन था जब लोग चटर-पटर जब देखो अपने घरों के आँगन, वरामदे, दरवाजे पर खड़े, छत पर बैठे, या फिर किसी चौपाल में, दूकानों में या कहीं पिकनिक पर बातें करते हुए दिखते थे..खुलकर बातें करते थे और खुलकर हँसते थे. स्टेशन ट्रेन, बस, दुकानों, फुटपाथ जहाँ देखो मस्त होकर बातें करते थे और सहायता करने में भी कोई टेंशन नहीं होती थी उन्हें..लेकिन अब आजकल कमरे में बंद करके अपना काम करते हैं, नेट पर जोक पसंद करते हैं और अगर बीच में कोई दखल दे आकर तो टेंशन हो जाती है. फैमिली के संग बात करना या बोलना मुश्किल..सब अजनबी से हो गये..सब नेट पर बिजी...दोस्तों के लिये समय है लेकिन दुखियारी बीवी के लिये नहीं...लेकिन उसमे भी कब टेंशन घुस जाये कुछ पता नहीं..वेटर को सर्व करने में टेंशन, हसबैंड को बीबी के साथ में शापिंग जाने की बात सुनकर टेंशन..बच्चों को माँ-बाप से टेंशन..तो दुनिया क्या फिर गूँगी हो जाये..अरे भाई, कोई हद से ज्यादा बात करे या किसी बात की इन्तहां हो जाये तब टेंशन हो तो अलग बात है..कहीं जाते हुए घर के बाहर कोई पड़ोसी दिख गया तो हाय, हेलो कर ली लेकिन उसके बाद हाल पूछते ही जबाब सुनने से वक्त जाया न हो जाये ये सोचकर उनको टेंशन होने लगती है..किसी बात का सिलसिला चला तो लोग बहाने करके चलते बनते हैं. डाक्टर मरीजों की चिकित्सा करते हैं तो कुछ दिनों बाद उस मरीज की बीमारी में दिलचस्पी ख़तम हो जाती है और अपनी टेंशन का मेंशन करने लगते हैं...तो मरीज़ को भी अपनी समस्या को मेंशन करते हुये टेंशन होने लगती है..और अपना इलाज खुद करने लगता है..जिस डाक्टर को मरीज की बीमारी की कहानियाँ सुन कर टेंशन होती है वो क्या खाक सही इलाज करेगा...डाक्टर ऊबे-ऊबे से दिखते हैं सभी मरीजों से..उनका वक्त कटा, पैसे मिले..मरीज भाड़ में जाये..जॉब को सीरियसली नहीं लेते..क्योंकि मरीजों से उन्हें टेंशन मिलती है. मन काँप जाता है कि जैसे इंसान किसी और ग्रह के प्राणी की विचित्र हरकतें सीख गया हो..बच्चे को उसके कमरे से खाने को बुलाओ तो उसे नेट पर ईमेल भेजना पड़ता है ऐसा सुना है किसी से...'' जानी डिअर, कम डाउन योर डिनर इज वेटिंग फार यू..मील इज गेटिंग कोल्ड. योर डैडी एंड आई आर वेटिंग ''..उसे पुकार कर बुलाओ तो कहेगा कि टेंशन मत दो बार-बार कहकर..अब तो मित्रों से भी बोलते डर लगता है..चारों तरफ टेंशन ही टेंशन दिखती है..हवा भी खिड़की से आती है तो उसे भी शायद टेंशन हो जाती होगी..किसी भिखारी को अगर पैसे दो तो उसके चेहरे पर संतोष की जगह टेंशन दिखने लगती है..दुकानदार से किसी चीज़ के बारे में तोल-मोल करो तो उसे टेंशन हो जाती है..लोग टेंशन देने या लेने की तमीज और तहजीब के बारे में सिर्फ अपने ही लिये सोचते हैं ..किसी का समय लेने में टेंशन नहीं लेकिन अपना समय देने में टेंशन हो जाती है..आखिर क्यों सब लोग चाहते हैं कि उनकी बातों से दूसरों को टेंशन ना हो लेकिन उनको दूसरों की बातों से टेंशन हो जाती है..और तो और खुद के लिये भी कुछ करते हैं लोग तब भी टेंशन नाम की इस बला से पिंड नहीं छूटता. घर का काम हो या बाहर का, पैकिंग करो, यात्रा करो, कहीं किसी की शादी-ब्याह में जाओ..हर जगह ही टेंशन इंतज़ार करती रहती है आपका. किसी से हेलो करना भूल जाओ, तो बाद में आपको टेंशन..ये सोचकर कि ना जाने उस इन्सान ने आपकी तहजीब के बारे में क्या सोचा होगा..ये जालिम '' टेंशन '' शब्द बहुत कमाल दिखाता है..इस टेंशन का क्या कहीं कोई इलाज़ है ? नहीं..शायद नहीं...मेरे ख्याल से यह आधुनिक बीमारी लाइलाज है.

आज कल जिसे इसका अर्थ भी नहीं पता है वो भी अनजाने में इसका शिकार बन गया है...ये जमाना ही टेंशन का है...जो लोग इससे जरा सा मुक्त हैं या जिनके पास कोई अच्छी चीज़ है तो उनकी ख़ुशी देखकर औरों को टेंशन होने लगती है..किसी के बिन चाहे ही ये चिपक जाती है..इसलिये अब जानकर इतना विचित्र नहीं लगता..जहाँ देखो वहाँ एक फैशन सा हो गया है कहने का 'अरे यार आजकल मैं बहुत टेंशन में हूँ .' आप किसी को पता है कि नहीं पर अब इसका इलाज करने वाले लोग भी हैं ( लोग ठीक नहीं होते है वो अलग बात है ) ये लोग पैसा बनाने के चक्कर में हैं..और जिन्हें अंग्रेजी में सायकोलोजिस्ट बोलते हैं या अमेरिका में श्रिंक नाम से जाने जाते हैं..वहाँ पर तो ये धंधा खूब जोरों पर चल रहा है..पर क्या टेंशन दूर होती है उनके पास जाने से..मेरे ख्याल से नहीं..बल्कि शायद बढ़ जाती होगी जेब से मोटी फीस देने पर..पैसे वाले लोगों के लिये श्रिंक के पास जाना और मोटी फीस देकर डींग मारना एक फैशन सा बन रहा है वहाँ..अब तो हमें बनाने वाले उस ईश्वर को भी शायद टेंशन हो रही होगी.

और अब मुझको भी टेंशन हो रही है सोचकर कि कहीं आप में से किसी को इस लेख को पढ़कर टेंशन तो नहीं होने लगी है..तो चलती हूँ..बाईईईई...दोबारा फिर मिलेंगे कभी...

शन्नो अग्रवाल

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7 बैठकबाजों का कहना है :

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शन्‍नो जी, राम राम। बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा, टेंशन कम हुई। बड़ा अच्‍छा आलेख है। आज व्‍यक्ति स्‍वयं को बहुत अधिक समझदार और दूसरों को मूर्ख समझने लगा है इसलिए वह किसी से भी अपनी बात नहीं कह पाता है और अकेला बैठा टेंशन लेता रहता है। पहले मूर्ख और समझदारी का गणित नहीं था सामाजिकता में। एक बात और दिखायी देती है कि हम किसी से भी परामर्श लेना पसन्‍द नहीं करते हैं यदि ले लिया तब वह समझदार हो जाएगा। लेकिन ब्‍लागिंग करने से टेंशन समाप्‍त हो जाता है, आप लिखकर अपना टेंशन समाप्‍त कर सकते हैं।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अजित जी,
बड़ा अच्छा लगा आपको यहाँ देखकर. सही कहा कि आज की दुनिया में अधिकतर हर जगह लोगों की आदतों में कुछ बिचित्रता आ रही है..एक तरह की आत्मग्लानि सी महसूस करते हैं लोग कि कहीं अपना या दूसरों का समय बर्बाद तो नहीं हो रहा है अधिक, किसी के पास कायदे से बात करने को समय नहीं लेकिन मनोरंजन में समय कितना जाया कर दें..आपस की दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं इंसान में अपने को अभिव्यक्त ना कर पाने की वजह से.शायद पहले लोगों के पास तरह-तरह के मनोरंजन के साधन नहीं थे..और अक्सर ही लोग आपस में मिलते-जुलते रहते थे..अब सब कुछ ही बदल रहा है..मिलना भी बहुत सोच-समझ कर होता है..दूसरे को तकलीफ न हो इसलिये कुछ समझदार लोग किसी न किसी क्रिएटिविटी को अपना लेते हैं..कितने ही लोग तो मानसिक बीमारी के शिकार हो जाते हैं.आपने तो अमेरिका की यात्रा पर शायद सुना या पढ़ा होगा कि मन की बातें या समस्या कहने को लोग अब श्रिंक के पास जाते हैं..जब कि पहले घर में कह-सुनकर लोग अपने मन का गुबार निकल कर हलके हो जाते थे..अब श्रिंक पैसे लेकर लोगों की व्यक्तिगत बातें या समस्यायें सुनते हैं..सबके आचार-बिचार भी तो बदल रहे हैं.आने वाले समय का तो भगवान ही मालिक है..आपके कमेन्ट का बहुत-बहुत धन्यबाद.

Aruna Kapoor का कहना है कि -

शन्नो जी!...बहुत सटिक मुद्दा उठाया है आपने!..टेंशन शब्द का इस्तेमाल आज कल आम हो गया है!...छोटे छोटे बच्चे कहते है कि...' टेंशन में हूं!!'.... बडों से ही सिखते है!.... वैसे टेंशन फ्री कोई भी नही होता!...इसकी तीव्रता को जरुर कम किया जा सकता है!...इसके लिए कई तरह के तरीके अपनाएं जाते है!...बहुत सुंदर लेख, धन्यवाद!

satish srivastava का कहना है कि -

kuch log tension-pasand hote hain shayad......agar nahi to phir cross
word puzzles kya hain ? sudoko kya hai ?

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अरुणा जी,

लेख को पसंद करने के लिये बहुत धन्यबाद. और टेंशन को कुछ कम करने के बारे में आपकी राय सही है. कई बार खुद अपने आप ही इंसान को सोचना पड़ता है ऐसी बातों को जिससे किसी को अधिक दुख न मिले..क्यों कि हर किसी के पास समय की कमी दिखती है और लोग जल्दी ही टेंशनग्रसित हो जाते हैं.

सतीश जी,

सलाह देने का बहुत धन्यबाद..सूडोको क्या और भी चीज़ें हैं जैसे कि कहीं टहल-घूम आओ, मनन-चिंतन, टीवी देखना, लिखना-पढ़ना, म्यूजिक सुनना, आदि..और भी न जाने कितनी बातें..पर ये सब तो तो टाइम पास या शौक हुये..बात ये है कि जीवन में अन्य बातों का सामना करते हुये जरा-जरा सी बात में जो टेंशन हो जाती है..उसका क्या किया जाये ?

Shanno Aggarwal का कहना है कि -
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avinash का कहना है कि -

आजकल टेंशन इस हद तक आगे निकल चुकि है कि अब टेंशन ना हो तो टेंशन है!

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