राष्ट्र की मुख्य भूमिका वाली कांग्रेस सरकार ने अपनी दूसरी पारी की प्रथम वर्षगाँठ मनाई। इस प्रकार डॉ0 मनमोहन सिंह जी लगातार प्रधानमंत्री पद पर सातवें वर्ष में प्रवेश कर पिछले 25 वर्षों में इस पद पर सबसे लम्बे समय तक रहने वाले प्रथम प्रधानमंत्री बन गये। जो व्यक्ति कांग्रेस में नेहरू गाँधी परिवार में पैदा न हुआ हो और उक्त पार्टी की मुख्य भूमिका के द्वारा इतने लम्बे समय तक देश के प्रधानमंत्री पद का निर्वाह किया हो, यह उसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। यदि हम यूपीए भाग-2 के प्रथम वर्ष का सिंहावलोकन करें तो पाएँगे 207 सांसदों के साथ कांग्रेस पार्टी के सत्ता संभालने के बावजूद यह गठबंधन लंगड़ा का लंगड़ा ही रहा। आत्मविश्वास से कमजोर यह सरकार संसद के हर सत्र में किसी न किसी विषय पर फंस जाती रही। सामाजिक क्षेत्र में सिर्फ गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार का खर्च 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया। परन्तु नतीजों का कुछ अता-पता नहीं। खाद्यान्न सुरक्षा विधेयक भी लगभग पिछले 9 महीनों से राजनैतिक झंझावात में उलझा हुआ है, देश की 70 प्रतिशत आबादी की आजीविका अभी भी कृषि आधारित है। जिसके कारण देश में बहुत बड़ी आर्थिक असमानता है। लगभग 200 जिलों में नक्सलवाद इसी का नतीजा है। अफजल गुरू जैसे कुख्यात आतंकी को सहेज कर रख मुस्लिम तुष्टिीकरण का विभत्स स्वरूप दिखाया है, इस सरकार ने। इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन, बी. टी. बैगन से लेकर माओवादियों से निपटने के तरीके पर आपस में एक दूसरे की टाँग खिंचाई की गई। फिर भी मनमोहन सिंह जी के पास उन्हें झेलने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं था। क्योंकि छाया ग्रह की तरह कार्य करने वाले प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह जी के हाथ एक निश्चित सीमा तक ही खुले हैं। यदि हम यूपीए द्वितीय भाग का आकलन करें तो पायेंगे इस पंचवर्षीय में उनका लक्ष्य मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश रहने वाला है। कांग्रेस सुप्रीमो के गृह प्रदेश तथा देश की सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाला प्रदेश होने के कारण वे उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाना चाहते हैं। परन्तु जिस प्रकार टोटकों के सहारे युवराज राहुल गाँधी अपना कद बढ़ाना चाहते हैं, असम्भव सा दिखता है। दलितों के घर भोजन कर, उनके बच्चों को पुचकारना, उनके यहाँ रात व्यतीत करना सिर्फ उनके द्वारा समर्थन हासिल करने का हल्का प्रयास मात्र है।
राहुल गाँधी की स्पष्टवादिता या आदर्शवादिता के चर्चे प्रायः पढ़ने को मिलते हैं। समाज का सामान्य वर्ग अन्जाने में उनका मौखिक प्रचार माध्यम बनता जा रहा है। उक्त राजकुमार की छोटी-छोटी राजनैतिक स्पष्टवादिता समाज का भावनात्मक शोषण करती है। वे इतने ही आदर्शवादी हैं तो बताएँ आज देश विभिन्न ज्वलंत समस्याओं से गुजर रहा है आतंकवाद, मंहगाई सरीखे विषय मनुष्य को सशरीर निगल जाने पर आमादा हैं। देश का शायद ही कोई भाग हो जहाँ अमन-चैन कायम हो। परन्तु जिस प्रकार कहा जाता है, रोम जल रहा था और नीरो उक्त तबाही से बेपरवाह बाँसुरी बजा रहा था। ठीक उसी प्रकार सम्पूर्ण भारतवर्ष उन्हीं की सत्ता रहते हुए बड़े नाजुक दौर से गुजर रहा है। परन्तु उक्त युवराज सभी समस्याओं को नजरंदाज कर अपने हल्के राजनैतिक हथकंडे अपनाने पर आमादा है।
राष्ट्रीय राजनीति, समर का युद्ध क्षेत्र हमेशा से उत्तर प्रदेश रहा है। चूँकि यहाँ 80 लोकसभा सीटें हैं अतः राष्ट्रीय राजनीति के योद्धा इस क्षेत्र में अपनी-अपनी पूरी ऊर्जा लगाते हैं। वर्तमान में कांग्रेस तथा भाजपा दो ऐसी राजनैतिक ताकतें हैं जो उत्तर प्रदेश में अपनी जोर आजमाइश का पूरा मन बनाए हुए हैं। जिसमें एक की केन्द में सरकार तथा दूसरा मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। जनाधार के हिसाब से भी दोनों की स्थितियाँ लगभग प्रदेश में समान हैं। कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी अपने समय का अधिक भाग उत्तर प्रदेश में देते हैं तो वहीं उनकी बड़ी बहन प्रियंका सहित उनकी माँ सोनिया गाँधी भी उत्तर प्रदेश में अपना दखल बनाए हुए हैं। केन्द्र की योजनाओं के दुरुपयोग रोकने के बहाने प्रदेश सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति उनकी राजनैतिक योजना का हिस्सा है। कांग्रेस किसी भी सूरत में उत्तर प्रदेश में अपना आधार बढ़ाने पर आमादा है। वहीं राष्ट्रीय राजनीति का दूसरा महत्वपूर्ण किरदार भारतीय जनता पार्टी भी उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। इसी लिए इस प्रदेश के सभी निर्णय भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व बड़ी सूझ-बूझ से कर रहा है। उक्त पार्टी के शीर्ष राजनेताओं ने नेहरू - गांधी परिवार के सामने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सूर्य प्रताप शाही जी को लाये हैं। श्री शाही जी अपने निर्णायक व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। वाह्य, आंतरिक व्यक्तित्व तथा विश्वास से लबरेज प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वे सड़क मार्ग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश से दौरा कर लखनऊ पहुँचे रास्ते भर उनका अभूतपूर्व स्वागत उनकी लोकप्रियता एवं समाज में उनकी विश्वसनीयता दर्शाता है। उत्तर प्रदेश इकाई के वे पहले अध्यक्ष हैं जिनकी दूसरी पीढ़ी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रमुख का दायित्व निभा रही है। इसके पहले इनके चाचा श्री रवीन्द्र किशोर शाही जनसंघ (वर्तमान भाजपा) के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष रह चुके हैं। अब तक श्री शाही जी की राजनैतिक यात्रा विद्यार्थी परिषद से लेकर वर्तमान भाजपा तक बिना किसी समझौते के पूरी हुई है। एक साफ-सुथरी एवं संघर्षशील छवि के सहारे वे प्रदेश भाजपा के सारथी के तौर पर 15वीं लोकसभा के सेमी फाइनल उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2012 के लिए तैयार है। वहीं कांग्रेस पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी सपरिवार उत्तर प्रदेश में अपना दखल बनाए हुए हैं। इस प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जिसने प्रथम बार अपने बूते सरकार बनाई वे तथा यहां के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव दोनों अपने जातिवादी समीकरणों के साथ हाजिर हैं। केन्द्र की कांग्रेस पार्टी को 13वीं लोकसभा चुनाव की तुलना में 14वीं लोकसभा में लगभग 2 प्रतिशत वोट बढ़कर मिला, जिसके कारण उन्हें सीधे 61 सीटों का फायदा हुआ तथा जातीय राजनीति के आधार पर मलाई खानेवाले मुलायम सिंह, लालू प्रसाद तथा मायावती सरीखे राजनेताओं को भारी नुकसान झेलना पड़ा। बिहार में जिस मुस्लिम यादव समीकरण के सहारे लालू प्रसाद यादव पिछले दो दशकों से बिहार पर निष्कंटक राज किये हुए थे नितिश कुमार के विकास के जादू के आगे उक्त जातीय गठबंधन टूटा। बिहार के लोगों ने पहली बार अपने यहां विकास देखा, तो वे इतने खुश हुए कि उन्होंने विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव के सीमित अंतराल में ही नितिश कुमार को विकास पुरुष का दर्जा दे डाला। इसी प्रकार तामिलनाडु में भी जाति आधारित राजनैतिक दलों में उदासीनता देखने को मिली। पिछले 15 वर्षों से वन्नियार समुदाय की राजनीति करने वाले दल पररलि मक्कल काच्चि (पीएमके) का सभी 7 सीटों पर सफाया हो गया।
देश की जनता जाति आधारित राजनीति से आजिज आ चुकी है। क्षेत्रीय दलों ने पूरे देश का सत्यानाश कर रखा है। उन्हें तलाश है उस नेतृत्व की जो उन्हें तथा उनके बच्चों को उचित शिक्षा, साधन तथा सुरक्षा उपलब्ध करा सके। वर्ष 2009 की चौदहवीं लोकसभा चुनाव में जिसकी एक झलक देखने को मिली। बड़ी-बड़ी क्षेत्रीय जातिवादी राजनैतिक ताकतें धूलधूसरित हो गईं। जातिवाद के आधार पर बने राजनैतिक तिलस्म चटक कर बिखर गये। जहां राष्ट्रीय राजनीति का महत्वपूर्ण राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी को लगभग 3.5 प्रतिशत मतों का नुकसान अपनी कुछ गलतियों की वजह से उठाना पड़ा वहीं केंद्र में काबिज कांग्रस पार्टी विभिन्न राष्ट्रीय समस्याओं जैसे बेरोजगारी, आतंकवाद तथा मंहगाई पर बुरी तरह फेल हुई तथा नरेगा, ग्राम विद्युतीकरण योजना सरीखी विकासवादी योजनाओं के सहारे केन्द्रीय सत्ता पर काबिज हो गई। आज देश की जनता समझ चुकी है कि किस प्रकार मुलायम, लालू तथा मायावती सरीखे राजनेता अपनी जातिवादी समीकरण तथा राजनीति के तहत उनका लाभ सत्ता में आने के लिए किया तथा उसके बाद उन्हें निरीह छोड़ सत्तासुख का मदिरापान करने में व्यस्त हो गये। आज तलाश है देश की जनता को ऐसे राजनैतिक दल की जो उन्हें विकास की किरण तथा देश को सही मार्ग पर ला सके।
*राघवेन्द्र सिंह
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
बैठकबाज का कहना है :
देश के राजनैतिक हालातों पर आपकी चिंता अच्छी लगी...राहुल गांधी सचमुच अपनी चॉकलेटी छवि और समझ से आगे अब तक देश को समझ नहीं पाए हैं...कांग्रेस की नज़र यूपी पर है, ये भी ठीक है, मगर बीजेपी कैसे यूपी में कांग्रेस के बराबर ठहरती है....आपने लिखा है...
''उक्त पार्टी के शीर्ष राजनेताओं ने नेहरू - गांधी परिवार के सामने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सूर्य प्रताप शाही जी को लाये हैं। श्री शाही जी अपने निर्णायक व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। वाह्य, आंतरिक व्यक्तित्व तथा विश्वास से लबरेज प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वे सड़क मार्ग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश से दौरा कर लखनऊ पहुँचे रास्ते भर उनका अभूतपूर्व स्वागत उनकी लोकप्रियता एवं समाज में उनकी विश्वसनीयता दर्शाता है। उत्तर प्रदेश इकाई के वे पहले अध्यक्ष हैं जिनकी दूसरी पीढ़ी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रमुख का दायित्व निभा रही है। इसके पहले इनके चाचा श्री रवीन्द्र किशोर शाही जनसंघ (वर्तमान भाजपा) के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष रह चुके हैं। ''
ये पंक्तियां तो बीजेपी का प्रचार लगती हैं....यूपी में बीजेपी चौथे दर्जे की पार्टी है....बीजेपी के कई दिग्गज यूपी से तो हैं, मगर सबकी अपनी डफली, अपना राग है....शाही तो सवर्ण वोट बैंक बढ़ाने के लिए प्लांट किए गए है, वरना उन्हें लोकप्रियता के पैमाने पर राहुल गांधी, मायावती, मुलायम के आसपास रखने की सोची भी नहीं जा सकती....एक सच्चे राजनैतिक दल की तलाश सिर्फ कांग्रेस की दुर्गति की वजह से नहीं है, सभी दलों का एक जैसा हाल है.....हो सकता है आपका मोह बीजेपी से हो, मगर यूपी में तो इसका् गुणगान मत करिए....वहां तो इसकी हालत भूखे-नंगे जैसी है...उसे तो पता ही नहीं कि आज बीएसपी, एसपी, कांग्रेस के आगे अपना दांव कैसे खेलना है....जबकि कई मुख्यमंत्री दिए हैं बीजेपी ने.....
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)